लिखिए अपनी भाषा में

Monday, December 20, 2021

एक दिन सब बदल जाएगा न!!!


आज बेटे ने फोन को फिर से रीबूट किया.... और चूंकि मैने नोट्स(जिसे मैं मेरी डिजिटल डायरी की तरह इस्तेमाल करती हूं) में लिखा हुआ बहुत सा मैटर, कुछ आधे-अधूरे ब्लॉग्स वो बेटे को सेव करने को नहीं कहा था... इस लिए नये सिरे से फोन को रिन्यू करने में मेरा तीन चार साल का सब लिखा पढा हुआ डिलीट हो गया...... गनीमत है कि कुछ चीजें मैने ब्लॉगर में पोस्ट कर दी थीं.... पर अब मुझे कुछ भी याद नहीं और क्या क्या लिखा था और अब हाथ मलने के सिवा और कोई चारा नहीं है मेरे पास..... बेटे को भी अब क्या कहूँ....अब तो जो होना था वो हो चुका है..... मेरे पास बरसों पहले, कुछ बरसों पुरानी कॉपियां थी। उनमें लिखी बहुत सी चीजों को ब्लॉग पोस्ट के साथ शेयर कर दिया करती थी।अभी भी तमाम बातें इधर उधर पन्नों कागजों में लिखी पड़ी है.....
कई बार अपनी फाइल्स को एक साथ एक जगह सेव कर लेना चाहती थी, मगर ये आजतक नहीं हो सका......फिर मैने भी उसे भुला दिया। मैं कौन सी इतनी बड़ी लेखिका हूँ कि लोग मेरा लिखा पढने के लिए मरे जा  रहे हैं..... छोड़ो...
"याहू", "आर्कुट" वगैरह पर कितने अच्छे (बुरे भी) लोगों से मुलाकात हुई.... कितनी अच्छी कविताओं कहानियों, लेखों, विचारों का आदान-प्रदान हुआ..... उनके अनगिनत नाम है। बहुत से नाम तो मैं भूल भी चुकी हूँ।फेसबुक से जुड़ी तो वहां भी अनगिनत, प्रिय अप्रिय भूले बिसरे मित्रों से मुलाकात हुई.... ऐसे ऐसे श्रेष्ठ और प्रसिद्ध लेखकों कवियों से परिचय हुआ जिनके विषय में सिर्फ पढा था.... सुना था.. कभी कल्पना भी नहीं की थी कि जिन्हें बचपन से पढती चली आ रही हूँ वो कभी मुझे मेरे जन्म दिन पर मुबारकबाद भी देंगे....कहने में ये छोटी या हल्की बात लग सकती है पर मेरे लिए ये बहुत खुशी की बात है...
इंस्टाग्राम आया वहां कितनी फोटोज पोस्ट कीं.... अब वहां भी विज्ञापन और अनचाही पोस्ट्स ने क़ब्ज़ा कर लिया है.... फिर भी अपनी सब तस्वीरें कम से कम एक साथ दिख जाती हैं।

कभी मैं डरती हूँ कि कुछ बेहद ज़रूरी तस्वीरें या जो कुछ भी ऊलजलूल मैं नेट पर पढती लिखती रहती हूँ वो कहीं अचानक एक दिन लुप्त न हो जाएं....

लेकिन मैंने महसूस किया है कि समय के साथ तस्वीरों और उनके कारणों से मोहभंग होता रहता है। एक अरसे बाद  उनके प्रति उदासीनता सी आने लगती है.... इसलिए अब  ज़्यादा नहीं सोचती।

जीवन जा रहा है क्या..... लगभग जा ही चुका है। हां कुछ हसरतें बची हैं। पर समय के साथ उनपर भी गर्द जम जाएगी। अब बहुत सी चीजों से मोह नहीं रहा....सच में समय के साथ हर चीज़ से मोह खत्म हो जाता है.

मेरे  तमाम चित्र खो गए। कविताएं खो गई। कहानियों के ड्राफ्ट्स इधर उधर हो गए....बहुत कुछ करना चाहती हूँ.... लिखना भी और पढना भी....इधर दो सालों से स्थितियाँ बहुत बदल गई हैं.... सब कुछ डिस्टर्ब है... एक डर, हदस सा बैठ गया है मन में....आसपास इतना कुछ खो गया है कि अब और खोने के डर से बेचैनी होती है....
कुछ सोचती हूँ मगर फिर रहने देती हूँ।
एक दिन सब ठीक हो जाएगा यही सोचती हूँ..... और शायद बस यही उम्मीद रहनी भी  चाहिए....
पर कई बार वो एक दिन कब तक आएगा पता नहीं..... वो दिन आने में बहुत दिन लग जाते हैं न..
कभी कभी बहुत लोगों से घिरे होने पर भी बहुत अकेलापन महसूस होता है न!!! ये क्यों नहीं जान पाते सब....
जब हम  खुद की ही  पहुँच से दूर हों तब?? इनदिनों...कभी-कभी बहुत कुछ उलझा हुआ जान कर भी कुछ सुलझाने का मन नहीं करता......
जब कुछ समझ न आए तब क्या करना चाहिए पता नहीं...

* * * 

😔😔

जब वक्त पडे़ या मिले  
तब रो लेना चाहिये।
चीख लेना चाहिये ,
वरना ये रूदन
 कभी अट्टहास बन फूट पड़ता है 
बता देना चाहिये किसी को.... 
जो अपना हो. 
किसी भी तरह 
कि ये पीड़ा असहनीय है।
पर हम वक्त पर रोते कहाँ हैं?

सोचते हैं ..
अभी रोने का वक्त नहीं 
अभी ये करना है 
वो करना है..
मजबूत दीवाल की तरह खड़े रहना है अटल.... 
नहीं समझ पाते 
कि ये पीड़ा, ये दर्द, दीमक बन जाते हैं 
और खा जाते हैं धीरे -धीरे 
हमारी बेवक्त बेफिक्र वाली हँसी को...... 

Friday, December 17, 2021

यूँ ही....

स्मृतियों में कोई जी नहीं सकता लेकिन स्मृतियों के बिना भी जीवन खाली ही होता है..! ! हालांकि मां थीं घरपर लेकिन  जब पापा जी के जाने के बाद बेहद सीरियस हो गई थीं...... मां वो मां नहीं रह गई थीं, बुझी बुझी सी, बेहद हताश कहीं अंदर तक..... और मैं  इन सबको सदा के लिए अपने पास,  सशरीर रख लेना चाहती थी। मैं कभी नहीं खोना चाहती थी अपने पैरेंट्स को... 
         पता नहीं कैसी मनःस्थिति हो गई है इन दिनों.... एक उदासीनता से घिर रही हूँ जैसे.... चाय पीते-पीते उकता कर छोड़ देती हूं। अपने पसंदीदा गाने सुनते हुए भी बीच मे खीझकर बन्द कर देती हूं.... भूल जाती हूँ कि किताब कहाँ तक पढ़ी थी और तो और बुकमार्क लगाने के बाद भी पिछला पढ़ा याद नहीं आता।  मतलब कुछ भी हो रहा है... । मूवी देखना शुरू करती हूं और खत्म नहीं करती..... बीच में ही छोड़ देती हूँ...
रह- रहकर एक काश आस पास फटकता रहता है,एक अधूरी कहानी जहन में घूमती रहती है। बहुत कुछ करने को पड़ा है ,सिलेबस खत्म करना है। किताब खत्म करनी है । ईजल पर लगी आधी अधूरी पेंटिंग्स पूरी करनी हैं.... कबसे एक ही नावेल के चार पन्ने हर रोज पढ़ कर पलट कर सो जाती हूँ।
वक्त गुजर गया है ,सबकुछ वैसा ही है जैसे होता आया है हमेशा। जिंदगी अपनी गति से आगे बढ़ रही है पर मैं जैसे किसी एक पल में रुक जा रही हूँ..ठहर जारही हूँ..
आगे बढ़ना जरूरी है और कोई विकल्प भी नहीं है पर जैसे मैं खुद को ही धकेल धकेल कर आगे बढ़ रही हूं....... पूरी उम्मीद है कि फिर वो दिन लौटेंगे , तब तक बस यही दुआ है.... सबकी जोड़ियां बनी रहें..... हर माँ का बच्चा महफ़ूज़ रहे हर बच्चे के सिर पर माँ बाप का साया रहे .....आमीन!!!!

Monday, November 8, 2021

काजू कतली ☺️☺️

ये बात तो सभी को माननी ही पडे़गी कि काजू कतली एक ऐसी मिठाई है जो आपको मीठा खाने पर पाबंदी लगाती है.... ये ही एक मिठाई है जो आप गपागप नहीं खा सकते... ये हमेशा सामूहिक रूप से आपके सामने पेश की जाती है.... चाहे सिर्फ डब्बे का ढक्कन हटा कर दिखाई जाए या प्लेट में सजा कर... और आप लजाते शर्माते या बेशर्म बन कर भी एक ही कतली/बरफी उठा सकते हैं...और ये काजू कतली इतनी दुबली पतली खूबसूरत और नाजुक सी होती है.... जो न कहीं गंदगी मचाएगी न रसगुल्ले या गुलाब जामुन की तरह चिपचिप करेगी...कटोरी चम्मच की कोई जरूरत नहीं......सिर्फ नजाकत से एक पीस उठाइए और मुंह में डालिए.... हाथ भी धोने की जरूरत नही....बर्तन धुलने का तो कोई सवाल ही नहीं....ये सिर्फ मुंह में ही रह जाती है.पेट इंतजार ही करता रह जाता है..... आप दोबारा तिबारा नहीं उठा सकते..... संकोच में पड़ जाते हैं...दरिद्र/लालची न घोषित हो जाएं यही सोच कर मेजबान के बहुत कहने पर भी एक दो पीस से ज्यादा नहीं लेते.....(जब कि अंदरूनी इच्छा ताबड़तोड़ चार छः काजू कतली निपटाने की होती है)
.
(मेजबान भी एक किलो काजू कतली मंगा कर पूरा त्योहार मना सकते हैं.... रईस भी घोषित हो जाते हैं...और मिठाई बच भी जाती है😁😁😁😁😁)

Sunday, October 17, 2021

यूंही सा(17.10.21)

आज भी मेरे पापा के घर पर उन्हीं की नेमप्लेट लगी है जबकि उनको गए बरसों बीत गए हैं.... न पापा हैं न मम्मी ☺जाने वाले अपने पीछे अपने निशां छोड़ जातें हैं.....अब ये उनके पीछे रह गए लोगों पर ही निर्भर करता है... कि वो उनकी यादों को संजो कर रख पाते हैं  या वक़्त की निर्मम परतों के पीछे अदृश्य होने देते हैं....वैसे आज की पीढी इस मामले में इतनी भावुक नहीं है....जिन चीजों को वर्तमान और एक या दो पीढ़ी तक बहुत आत्मीयता और हिफाजत से सहेज कर रखा जाता है.... वो उसके बाद वालों के लिए कबाड़ मे गिनी जाने लगती है.....😟😟😟😟ये मेरा निजी अनुभव है

Thursday, September 30, 2021

30.9.16

सामने की सीट पर एक फेमिली है पांच छः लोगों की.... मुंबई जा  रहे हैं.... अभी करीब एक घंटे तक टीसी से बकझक  हुई है 😠😠 सारे अगल  बगल के लोग सकते में आ गये हैं उस महिला का रौद्र रुप देख कर..... गर्मी और उमस से पहले ही सब चिढ़ हुए हैं...... वो बार बार अपनी बेटी से अपने किसी ज़फ़र मामू को फोन लगाने को कह रही है जो शायद रेल्वे की किसी बड़ी पोस्ट पर हैं.... यदि उस महिला का रुआब  देखा जाय तो शायद सुरेश प्रभु से एक दो सीढ़ी ही नीचे होंगे......😁😁😁😁😁 पर उस टीसी पर कोई असर नहीं पड़ रहा है...... वो पूरा वसूलने के मूड में है....... परिवार का सबसे छोटा बच्चा जमीन पर बैठ गया है और नीचे पडे जूते चप्पलों में व्यस्त है..... पर किसी को भी  उसकी  फिक्र नहीं  है.... क ई बार जी में आया कि उसकी  मां को कहूं कि उसे उठा ले......पर... बस खिड़की की तरफ मुंह घुमा के बैठ गई हूं...... किसी से बात करने को जी नहीं  चाह रहा😕😕😕😕

Saturday, September 25, 2021

25.9.21

आज फिर खूबसूरत सुबह ने बांहे फैलाकर स्वागत किया....
 उम्र का एक साल बढ़ता है और ज़िंदगी का एक साल घट जाता है... इस घटने बढ़ने के क्रम में कितना कुछ पीछे छूटता चला जा रहा न लौटने के लिए...... और कितना कुछ नया नवेला जुड़ता जा रहा है....नातिन से स्वयं नानी बनने की यह सुखद यात्रा बहुत सुकून दायक है....... 
         आज साठ साल पूरे कर लिए मैंनें.... खूब सफेदी आ रही है बालों पर....चेहरे पर झाइयां और झुर्रियां भी... ढल ही रहे रोज दर रोज हफ्ता दर हफ्ता.......और अब जीवन ढलान की ओर ही है....बस्सससस...... ❤️शुरू में एकाध सफेद बाल देखकर भी एक अजीब सी बेचैनी होती थी हालांकि रोज आईने के सामने खुद को दिनों दिन बुढापे की ओर सरकते हुए देखती हूँ..... देख रही हूँ...... पर अब सब ठीक है...☺️ वाकई बहुत हिम्मत चाहिये..... खुद का पकना स्वीकार करने के लिये....दिनों दिन खुद को बुढाते  हुए देखना..... अंदर ही अंदर बहुत कुछ होता है। 
           पार्टी - फंक्शन मे अपने जैसा कोई न दिखे तो मन कुछ बदल सा  जाता है...अपनी हम उम्र लेडीज को काले रंगे हुए बालों और मेंटेन स्लिम ट्रिम कद काठी के साथ देख कर मुझे जलन तो नहीं होती बस पर थोड़ा बहुत अजीब सा जरूर लगता है....पर सोचती हूँ..... ठीक है... जैसा है वैसा है..... 
          हालांकि अपने लुक, साइज, शेप को लेकर मैं कभी खास परवाह नहीं करती, तब भी नहीं की  जब करने की उमर थी....सच कहूँ तो न तब इतना समय था न पैसा.... और अब भी बहुत कुछ वैसा ही है..... कुछ खास नहीं बदला... पर अब शौक नहीं रहा.... लेकिन बुरी तरह चिढ जाती थी जब कोई कहे कि वजन कम कर लो... कपडे जरा फैशनेबल बनवा लो... स्टाइलिश जूते चप्पल क्यों नहीं पहनती??? और अब तो मुझे कोई फर्क नहीं पडता मोटी हूं तो हूं... बूढी हो रही हूं तो??? वो तो सबको होना है... 
मैं भी खुद से बेहद प्यार करती हूं... इस हद तक करती हूँ कि सभी ये सोचते हैं कि मैं अंतर्मुखी हूँ.... घमंडी हूँ.... अपने आप में रहने वाली हूं... और मुझे अकेले रहना अच्छा लगता है।
खुद से बातें करना, खुद को सराहना.... खुद को प्यार भरी नजरों से देखना और खुद से ही अपने बालों में हाथ फेरना मुझे पसंद है....मैं अपनी फेवरिट हूँ.... . इसके लिए मैं किसी की मोहताज नही... 
मैंने अपनी तमाम प्रेम कविताएं खुद के प्रेम में लिखी हैं.... 

Sunday, September 19, 2021

अन्यमनस्कता😔😔😔😔

इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नही हैं... सिवा अपने मन की खुशी के
अब तो लगता है बस वही करो जो अपना जी चाहे.... 
किसी की सुनने को मन नहीं.... 
बहुत जी लिए दूसरों की मर्ज़ी से...
 आज..... 
अजीब सुस्त सी सुबह... ठहरा सा गीला गीला सा मौसम
अलसाई चादर... औंधी तकिया
ईजल पर पेंटिंग का कैनवास अधूरा... 
रंगों की पैलेट, रंग, ब्रुश
चित्र पूरा किए जाने के लिए मेरा इंतज़ार करते हुए.... 
घर कुछ बिखरा बिखरा सा... 
पर समेटने संवारने की कोई इच्छा नहीं.... 
घड़ी की लगातार टिक टिक...
पता नहीं लगातार चलते चलते ये ऊबती भी नहीं 
दीवार पर कई दिनों की बारिश ने गजब की चित्रकारी कर दी है.... 
तरह तरह की आकृतियां बन रही हैं
कुछ चेहरे, कुछ बादल, कुछ पेड़.... 
या इससे ज्यादा मैं सोच नहीं पाती... 
मेरी दुनिया, मेरा दायरा यहीं तक है शायद...
.
फिक फिक फिक फिक.. हक हक हक हक
अजीब सी पंखे की आवाज 
निरंतरता के साथ.... 
मन मौसम मिज़ाज
कुछ ऊबा सा है  आजकल... 
और मैं तो वैसे ही इतने स्लो हूँ कि अकेले दौड़ूं तब भी सेकेंड ही आऊंगी। 😏😏😏
दो दिनों की अप्रत्याशित छुट्टी के बावजूद 
अब 
संडे का  भी कत्ल शुरु। 
लेटे बैठे  ग्रीन टी, नींबू पानी निगल चुकी... 
आंख मूंदे मूंदे 30 / 40 स्टेटस लाइक कर चुकी
अब फिर से अंगड़ाई और जम्हाई दोनो आ रही है... 
आंखें बंद करूं तो शायद सो ही जाऊँ.... 
एकदम से लग रहा कि अभी चाय पी ही नही.... 
कोई चाय बना के देने वाला नहीं.... 
जो खाना पीना है खुद ही करो. 
चंडीपाठ से लेकर मोचीगिरी तक 😏😏😏😏

काम की फेहरिस्त लंबी है जो निपटाने है पर मालूम है निपटेगा आज भी कुछ  नही।
नहा लें आज हम तो वही उपकार होगा हमारा.... खुद पर😏😏😏😏😏

काहिली की भी कोई हद होती है क्या???? 

Wednesday, August 25, 2021

यूहीं

सचमुच यार.... जब से ये गूगल पर बोल के लिखने वाली प्रथा प्रारंभ हुई है..... लोग अपनी अपनी आलतू-फालतू अरकसबथुआ भंडास यहीं निकालने लगे हैं.... टाइप करने में मेहनत लगती थी, हिज्जे की मात्राओं की गलतियां होती थीं, इन सबसे मुक्ति मिल गई है.... जो मन में हो उगल डालो यहीं पर 😡😡
अब फिर से ब्लॉग की तरफ मन खिंच रहा है.....पांच सालों से बंद पड़े ब्लॉग के दरवाजे खोले हैं कुछ दिनों पहले.... झाड़ पोंछ साफ सफाई की है, अब फिर से सक्रिय होने का मन है....फेसबुक पर जी ऊब सा रहा है 😔😔😖😖😖

यूंही

अभी अभी अपने एक फेसबुक मित्र श्री अरविन्द भट्ट जी का स्टेटस देखा....."आज क्या बनाऊँ " ??.उसी सिल सिले को आगे बढ़ाते हुए......कुछ लिखने  को मन  हो  आया  है....सचमुच  ये  दुनिया  भर  में पूछा जाने  वाला ....और सच  कहूँ  तो सबसे  ज्यादा पकाऊ प्रश्न है.....और जिसका जवाब भी बिलकुल निश्चित है जो १०० में से ९० पति अपनी पत्नियों के देते हैं....कुछ भी बना लो.....मतलब अहसान जताते हुए जैसे वो कुछ भी खा लेने को तैयार हैं.....बस पत्नी बना के दे दे.....जब कि अगर इसकी गहराई में जा के देखा जाये तो   १०० में से ५० पत्नियां तो इस प्रश्न के प्रत्युत्तर में सुनना चाहती हैं....चलो   आज कहीं बाहर चल के खाते हैं.......या  बाहर  से कुछ मंगवा  लेते हैं......रोज रोज वही प्रश्न...रोज रोज वही जवाब..... ..ना पूछने वाला ऊबता है.....ना जवाब देने वाला........और पूछा भी ऎसे जाता है मानो वे पचासों डिशेस बनाने में एक्सपर्ट हों....और जवाब भी ऐसे ही दिया जाता है जैसे उन पचासों व्यंजनों में से कुछ भी बना लो......और यदि कुछ व्यंजन विशेष का नाम भी ले लिया गया पतिदेव द्वारा.....तो उसमे  तुरंत संशोधन करते हुए बता दिया जायेगा.....ये तो है ही नहीं....या पहले से बताना चाहिए था....ये बनाने में तो पहले से तैयारी करनी पड़ती है......या ये तुम्हे तो पसंद है..पर बच्चे मुह बनाएंगे....इसमें केलोरी बहुत ज्यादा होती है....ज्यादा ऑयली तुमको नुक्सान करेगा....आखिर में घूम फिर कर फिर वही बात कि ....कुछ भी बना लो....और फिर पत्नियां अपने मन का बना लेती है.....इस पर एक अहसान और हो जाता है कि अगर पति महोदय मुंह बनाएं....तो उनसे बड़ी मासूमियत से कहा जा सकता है.....आपसे पूछा तो था.....:( :( :(

यूं ही

चोट लगते ही घाव भरने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.....और एक वक़्त आता  है  जब उस चोट के नामों निशाँ तक मिट जाते हैं....और एक दिन जैसे की दुनिया का क्रम है आंसू सूख जाते हैं....जो बीत चुका है उसे बार बार याद करके हम सिर्फ खुद को दुखी ही कर सकते हैं.....समय कभी किसी के लिए नहीं रुकता..... .जो लोग या जो पल हमसे छूट गए हैं..... वो कभी वापस तो नहीं आ सकते , इस लिए बेहतर है कि हम भी  उसे भुला कर आगे बढ़ लें......चोटें तो लगा ही करती हैं...

Thursday, August 19, 2021

यूंही एक ख्याल 😔😔

मुझे गिफ्ट देना पसन्द है, और पाना भी.... पर ये बहुत रेयरली होता है....मुझे ज्यादातर गिफ्ट्स मेरी बिटिया ने दिए हैं...(और काफी कुछ पतिदेव ने भी) गिफ्ट्स से मेरा मतलब यहां ऐसी चीजों से जो सिर्फ मेरे लिए हों....जिनके कवर, रैपर सिर्फ मैं खोल कर देखूँ.. और खुश हो जाऊँ.... चादरें, कैसरोल, टी सेट, और बर्तनों को मैं गिफ्ट नहीं मानती😏😏😏😏ये सब तो शादी में दी जाने वाली चीजें हैं..... 
मैं पहले अक्सर बुक्स बहुत गिफ्ट करती थी...बच्चों को उनकी रुचि की किताबें भी....... .पापा जी की एक बात मन में बैठी हुई थी कि पुस्तकों से बढ़कर कोई गिफ्ट नहीं..... फिर यही बात दिखी कि जिसे गिफ्ट दिया उसने उसी कीमत का कुछ फिजूल ऊलजलूल सा भेज दिया कि चलो हिसाब बराबर...... और किताब पढी भी  या नहीं पता नही....पूछने पर ये पता चला अरे यार टाइम ही नहीं मिल पाया.... ताज्जुब है कि दो - तीन सालों में भी टाइम नहीं मिल पाया??? हद्द है... ये कई बार महसूस किया....तब से मन हट गया। अब सिर्फ चुनिंदा लोगो को ही गिफ्ट भेजती हूँ वो भी उनसे पूछ कर कि बता दो क्या चाहिए??? ऐसा न हो कि मैं इतने मन से कुछ भेजूँ और अगले को पसंद ही न आए....
वैसे ये चीजों का आदान प्रदान तो हमेशा ही होता रहता है...पर मौके पर दिया गया गिफ्ट ही गिफ्ट लगता है..... 

Saturday, August 14, 2021

कोरोना काल

*याद हम आएंगे बेहद*


अब से कुछ सदियों का वक़्फ़ा
कट गुज़र जाने के बाद
खून के आंसू बहाता
ज़ख्म भर जाने के बाद
जब कभी भी
धुंध में लिपटा हुआ
माज़ी निकाला जाएगा
दर्द के गरदाये पन्नों को 
खंगाला जाएगा
याद हम आएंगे बेहद।

वो तरक्की से लबालब
लोग जब चर्चा करेंगे
और तस्वीरों पे उंगली 
रख के ये बोला करेंगे-
ये वही हैं लोग
जो खूनी वबा से
एकजुट होकर लड़े थे
एक जां होकर खड़े थे। 

जब से आदम ने ज़मीं पर 
पांव फैलाये तभी से
कट गया था
बंट गया था।
तेरा-मेरा
और मैं-तू 
ने बहुत तोड़ा हुआ था। 
जात-मजहब
खिश्तो-खित्तों
रंग, नस्लों और गुरूरों ने 
जुदा करके रखा था। 

हम कॅरोना को भले 
खुशकिस्मती कहने न पाएं 
पर यही वो पहली शय है
जो हमें है पास लाई
जिसने आदम की कड़ी को 
फिर से यकजहती सिखाई 
सारा आलम
इस वबा से
जूझने में मुब्तिला है
एक डर है
एक चिंता 
एक सा ही हौसला है। 
ख़ुद भी बचने
और बचाने
की जुगत में सब लगे हैं 
दूर रह कर 
दूसरों के पास ज्यादा आ गए हैं ।

अब से कुछ सदियों का वक़्फ़ा
कट गुज़र जाने के बाद
खून के आंसू बहाता
ज़ख्म भर जाने के बाद
जब कभी भी
धुंध में लिपटा हुआ
माज़ी निकाला जाएगा
दर्द के गरदाये पन्नों को 
खंगाला जाएगा
याद हम आएंगे बेहद।


-अशोक अग्रवाल

Wednesday, August 11, 2021

हैप्पी बर्थडे मम्मी (18.7.21)

हैप्पी बर्थडे मम्मी..... आज आपका अठहत्तरवांं जन्म दिन है.... और आपको गए हुए भी ग्यारह साल बीत चुके हैं..... कितनी जल्दी समय बीत जाता है... आज सोचती हूं कि हम अपने मां बाप की सेवा नहीं कर पाए........परिस्थितियों वश..... अब अफसोस करने से कोई फायदा नहीं.... अब इस उम्र में आकर इसका एहसास होता है....
 ज्यादातर लोग बुजुर्ग लोग बेहद आत्मीय होते हैं....(खुद से सिर्फ 18 वर्ष बड़ी को बुजुर्ग कहना अजीब सा लग रहा है पर अब तो मैं भी बुजुर्गों में शामिल हो रही हूं)  आंतरिक सुरक्षा का एहसास देते हैं ।हमारी हर तरह की समस्यायों के समाधान में सहायक होते हैं । सबसे बड़ी बात कि मन का कोना कोना भर जाता है उनके प्यार से...... उनके होने से एक ढाढस सी बंधी रहती है..... जैसे अगर हम पर कुछ  संकट आए तो वो सब संभाल लेंगे.... भले शारीरिक  या आर्थिक रूप से सक्षम न भी हों पर उनका यही कहना..... चिंता मत करो.. हम हैं न !!! बहुत तसल्ली देता है... बड़े लोगों की छांव सर पर होने से आश्वस्ति रहती हैं । सच, कुछ लोग हैं जो हर बार टूटते विश्वास को लौटा लाते है । यह दिलासा देते हैं कि अभी भी जीने लायक है यह दुनिया । 

Tuesday, July 27, 2021

टर्किश सीरियल

मनकापुर जैसी छोटी सी जगह में अक्सर नेटवर्क की दिक्कत बनी रहती है....दो चार दिन ठीक ठाक चलने के बाद एक दो दिन सुन्न मृतप्राय स्थिति में रहता है....रात में 12-1 बजे से लेकर सुबह 5-6 बजे तक तेज गति से चलता है फिर धीरे धीरे सुस्ती छाने लगती है....
      इस पूरे लॉकडाउन के दौरान कई टर्किश सीरियल देख डाले..... जब तक नेटवर्क ने साथ दिया....मुझे अच्छे लगते हैं टर्किश सीरियल.....अभी एक हफ्ते से "कोसेम सुल्तान" देख रही हूँ...तुर्की के उस्मानिया सल्तनत पर आधारित कहानी..... सभी कलाकारों का जबरदस्त अभिनय.....हद से ज्यादा खूबसूरत ड्रेसेज, जो बिल्कुल भी बनावटी नहीं लगते..... ज्यादा तर शूटिंग एपिसोड 30 तक टॉपकोपी पैलेस, इस्तानबुल में ही की गई है जो सुल्तानों के वास्तविक महल हैं..... और जो सेट्स बनाए गए हैं वो भी बेहद खूबसूरत...... डायलॉग्स उर्दू में हैं पर काफी कुछ समझे जा सकते हैं...."बेरेन साट"बेहद खूबसूरत टर्किश हीरोइन तो लाजवाब लगी हैं कोसेम सुल्तान के रोल में 😊😊😊😊
     14-15 साल की कोसेम सुल्तान का रोल एक अन्य अभिनेत्री ने किया था.... 16-17 साल की उम्र लेकर  35-36 की उम्र तक बेरेन साट ने ये रोल निभाया है.......
        अब 31 वें एपिसोड से कोसेम सुल्तान को प्रौढ़ दिखाने के लिए दूसरी हीरोइन को ले लिया गया है..... बस यहीं से मेरा मन उचट रहा है सीरियल से......ये हीरोइन न तो बेरेन साट जैसी खूबसूरत है न ही उसके जैसा अभिनय कर पा रही है 😏😏😏 डबिंग में आवाज भी बदल दी गई है.... जो एक अभिनेत्री अभी तक खलनायिका जैसा रोल कर रही थी..... उसकी आवाज़ अब कोसेम सुल्तान का रोल कर रही अभिनेत्री को दे दी गई है...इतने दिनों से जो एक आदत सी हो गई थी इस सीरियल की .....अब मन से उतर रहा है 😖😖😖.....

Saturday, July 17, 2021

🤔

कितना अच्छा होता  कि हर  इंसान की कहानी...हजारो दिक्कतें झेलते हुए........सैकड़ों मुसीबतें उठाने के बाद .....दुःख दर्द से गुजरते हुए.....इस वाक्य पर आकर ख़त्म होती......कि..... फिर वे सब सुख से रहने लगे........

Saturday, July 10, 2021

उफ्फ😏😘

सच में यार ,ये फेसबुक और वाट्सैप बहुत समय खा जाते हैं.... ....रात में 12 बजे तक आन लाइन....फिर सुबह 5 बजे  आंखें खुलते ही नेट आन....और हर पांच दस मिनट में एक बार फोन पर नजर..... स्कूल में भी जब बैग छुओ तो एक नजर फोन पर.... फ्री पीरियड में भी फोन हाथ में...... रसोई में खाना बनाते समय फोन बगल में रैक पर......कुछ लिखने पढने का काम करने बैठो तो फोन सामने.....दो महीने  से  नई नकोर 4-5 किताबें  और 2 मैग्जीन आई रखीं हैं और उन्हें सिर्फ पलट कर देख लेने के अलावा पढ़ने का समय नहीं  निकल पाया .... अभी तक😀😀😀..... ईजल पर पेंटिंग  के लिए कैनवस सेट करके रखा है अभी पेंट करने का मूड नहीं  बन रहा😕😕😕😕यहां तक कि अपनी पसंद के दो तीन सीरियल (जो जिंदगी चैनल पर आते हैं) देखते वक्त भी, फोन हाथ में.......और मैं ही नहीं  मेरे फेसबुकिये मित्र  भी बराबर जमे रहते हैं 😀😀😀😀 ये उनके थोडी थोडी देर के अपडेट देख कर पता  चलता रहता है 😂😂😂😂 टीवी  चलता  रहता है.... और सब फोन में घुसे रहते हैं....कमरे में... बेड पर.... .बालकनी में .... डायनिंग टेबल पर..... टॉयलेट में......ट्रेन में, बस में हर समय सबके हाथ में फोन..... यहां तक कि सब पलंग के उसी छोर पर सोना पसंद करते हैं जिधर स्विचबोर्ड लगा हो...... और जब तक आंखें नींद  से बोझिल न हो जाएँ  फोन हाथ में....... या पटापट हाथ से छूट कर मुंह पर न गिरने लगे फोन ताके जा रहे हैं 😕😕😕😕😕 हद हो गई है.....  एक नशा सा चढ़ा  रहता है सभी को😴😴😴पता नहीं  क्या  देखते हैं और किस चीज का इंतजार रहता है इस ससुरे फोन में..... न छोड़ते बन रहा है न रखते......बच्चों को क्या कोई डांटे ??? .... जब अपना ही ये हाल है😬😬😬 सांप छछूंदर वाली गति है..... 😯न उगला जा रहा है न निगला जा रहा है 😡😡😡😡
.
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(पुरानी पोस्ट)

Friday, July 9, 2021

स से समोसा (9-7-21)

~ समोसे की आत्मकथा ~

मैं समोसा हूँ ..... छोटा सा तिकोना समोसा

ब्रह्माण्ड के किसी भी हलवाई की दुकान पर दो चीजें होना जरूरी है वर्ना वह दूकान हलवाई की दूकान नहीं कहलाती....पहला तो हलवाई खुद और दूसरा मैं यानि कि समोसा !

मैं संसार की एकमात्र ऐसी रचना हूँ जिसके तीन कोने होने के बावजूद भी शान से सीना तान कर खड़ा हो जाता हूँ .....हलवाई की दुकान पर जब मुझे भर कर रखा जाता है तो तले जाने से पहले मैं और मेरा पूरा ग्रुप पंक्तिबद्ध रूप से यूँ ट्रे में खड़े दिखता हैं मानो सफ़ेद वर्दी पहने जवान सावधान की मुद्रा में खड़े होकर गार्ड ऑफ़ ऑनर दे रहे हों 

अपने इसी शाही अन्दाज़ के कारण करोड़ों वर्षों से मैं स्नैक फ़ूड का अघोषित सम्राट हूँ और अपनी दो महारानियों यानी कि हरी चटनी और लाल चटनी के साथ फूडीयों के दिलों में राज करता हूँ.

मैं अमीर-गरीब में फर्क नहीं करता.....एयरपोर्ट लाउंज की फैंसी लुटेरी कॉफ़ी शॉप में "टू समोसास फॉर टू हंड्रेड फिफ्टी रूपीज़" में भी मिलता  हूँ और डाकखाने के सामने टीन के पतरे को लोहे की तार के साथ बिजली के पुराने खम्भे के साथ बाँध कर बनायी गई टपरी पर “दस के दो” भी मिलता हूँ......ताज़ होटल की चाँदी की प्लेट में भी परोसा जाता हूँ और पुल के नीचे वाले ठेले पर अख़बार में लिपटा हुआ भी मिलता हूँ ......मल्लब कुल मिला कर बड़े वाले सेठ जी और सेठजी के घर का नौकर दोनो मेरा स्वाद लेते है...थ्रू देयर ऑन प्रॉपर चैनल !

सड़क के किनारे किसी ठेले पर छोले और चटनी के साथ मेरा स्वाद लेते हुए किसी नयी नयी जॉब पर लगे हुए कूरियर कम्पनी के डिलीवरी बॉय के फ़ोन पर जब कॉल आती है और वो सामने से रिप्लाई करता है कि “मैं लंच कर रहा हूँ” तो क़सम से इतना प्राउड फ़ील होता है कि मेरे अंदर के आलू “अजीमो शान शहंशाह” वाला बैकग्राउंड म्यूज़िक चला कर नाचने लगते हैं.....बस यूं समझिये कि जहाँ कुछ भी खाने को नहीं मिलता वहां पर भी मैं  यानी कि समोसा हमेशा प्राणरक्षक का काम करता हूँ. 

जिस प्रकार मनुष्य के जीवन में मौत और दूकान में ग्राहक के आने का कोई निश्चित समय नहीं होता.... ठीक ऐसे ही मुझे खाने का भी कोई निश्चित समय नहीं है.....

लखनऊ-बनारस ,फर्रुखबबद में मुझे सुबह-सुबह नाश्ते में खाया जाता है.....देशभर की फ़ैक्टरियों, कम्पनियों की कैंटीन में तो मुझे दिन भर खाया जाता है.....स्कूल कॉलेजों की कैंटीन में मैं अनगिनत बनती बिगड़ती प्रेम कहानियों का गवाह बना हूँ..... इन कैंटीनों की कड़ाही में मेरा दिन भर....निरंतर उत्पादन होता ही रहता है !

लेबर को ओवरटाइम का पैसा भले ही बीस रुपए कम दे दो पर बीच में एक ब्रेक लेकर चाय के साथ दुई समोसा खिला दो फिर देखी कैसे लेंटर डलने का काम भाँय से निपटता है.

दिल्ली में मुझे मैश किए हुए आलू से भरा जाता है तो पंजाब में कटे हुए चौकोर आलुओं से.....मुम्बई वाले मुझे पाव के बीच में रख कर “समोसा पाव” बना देते हैं और चेन्नई-बैंगलोर वाले मेरा रूप बदल कर प्याज़ की भरावन के साथ मेरे खोल को एनवेलप की तरह चपटा आकार देते हुए बंद करते हैं और बिल्कुल क्रंची रखते हैं.....वहीं भारत के बाहर खाड़ी देशों में मुझमें कीमा भर कर मांसाहारी रूप भी दिया जाता है तो दूसरी ओर Haldiram's International वाले मुझे मटर समोसा, काजू समोसा, पनीर समोसा आदि जैसे अटरंगी वेरीयंट में बनाते हैं !

देश भर में कहीं भी किसी स्कूल में निरीक्षक आ जाएँ, किसी कम्पनी में ऑडिटर आ जाएँ, दुकान पर कोई पुराना ग्राहक ख़रीदारी करने आ जाए तो ट्रे में चाय के कप के साथ मेरा होना उतना ही स्वाभाविक है जितनी कि सेटमैक्स पर बार बार सूर्यवंशम का आना......फिर चाहे चाय के साथ चिप्स, बिस्किट, भुजिया कुछ भी हो पर अतिथि के लिए “अरे ! एक समोसा तो लीजिए” का आग्रह सम्बोधन एक सम्मान सूचक वाक्य माना जाता है.

भारत के राष्ट्रीय स्नैक की पदवी के लिए चाहे तो कोई सर्वे करवा लीजिए चाहे वोटिंग, मेरा दावा है कि इस पदवी पर मेरा चुनाव होना 100% पक्का है......यह मैं नहीं कह रहा हूँ बल्कि विश्व भर में मेरे करोड़ों चाहने वाले कह रहे हैं ! 

आपका अपना ..... समोसा साथी..😊

🙏🙏🙏🙏

Wednesday, July 7, 2021

😔😔

आज कल
 शब्द मौन से हो रहे हैं मेरे 
कुछ लिखने का मन ही नहीं हो रहा है
 बस समय बीत रहा है... 
जैसे तैसे..... 
बस यही सुकून है, 
कि कोई तकलीफ नहीं....
किसी भी तरह की...
जब रिश्तों से 
गर्माहट कम होने लगे वैसी कंडीशन 
एक ऊबा हुआ 
उकताया हुआ सा पल 
जब रिश्ते कुम्हलाने से लगते हैं
और उनके फिर से 
हरा होने की 
कोई गुंजाइश नजर नहीं आती 
कुछ पुराने दोस्त 
परिचित 
जिनसे मिलना टलता ही जा रहा है.... 
पता नहीं ये टाल-मटोल कब तक चलेगी?? 
पता नहीं हम उन्हें टाल रहे हैं 
या वो हमें.... 
प्रतीक्षा समय को खींच कर 
लंबा बहुत लंबा कर देती है... 

Sunday, July 4, 2021

शोभा का ट्रांसफर (4.7.16)

आज गर्मी की लंबी (!!) छुट्टियों के बाद स्कूल का पहला  दिन...... खुशी कम अपनी एक प्यारी सखी से थोड़ा  दूर होने का दुःख ज्यादा  है.... पति के स्थानांतरण के कारण उन्हें बेंगलुरु जाना पड़ा है.... बच्चों की आगे की पढ़ाई के लिए  भी संभवतः वहां अच्छा माहौल मिलेगा.... उम्र में मुझसे  काफी  छोटी होते हुए भी शोभा से बहुत अधिक अटैचमेंट रहा है हम सबका....कुछ दिनों पूर्व  मेरे गुड़गांव  प्रवास के दौरान फोन पर ही रो पडना मुझे अंतर्मन तक भिगो गया...... सभी टीचर्स  की दुलारी... मैं ही नहीं  मुझे लगता है सभी  उसे मिस कर रहे होंगे😊😊😊खैर ये तो जीवन है.... मिलना बिछुड़ना तो लगा ही रहता है...... अब तो संपर्क  के इतने साधन हैं कि सैंकड़ों  मीलों  की दूरी पलक झपकते पार की जा सकती  है...... बस अफसोस यही है कि जाते समय मुलाकात नहीं  हो सकी😑😑😑😑😑 चलो कोई  नहीं ..... जल्दी ही मुलाकात  होगी... इसी उम्मीद  में हूं😁😁😁😁😁😁😁😁 आगत का स्वागत  करो.....

Monday, June 28, 2021

नेपाल यात्रा (23जून2017)

बेहद खूबसूरत नेपाल...... शायद ये मौसम बहुत सही नहीं था इतनी सुन्दर जगह जाने के लिए 😨 क्यों कि बेहद तीखी धूप के कारण इच्छा होते हुए भी बार बार कार से बाहर निकलकर वहां के नैसर्गिक सौंदर्य को आंखों में समेट पाना संभव नहीं था 😒😒😒 फिर भी बिना किसी विशेष परेशानी के जितना हो सका उतना बटोर ही लिया....... पहली बार दुख रहा कि  फोटो ग्राफी की छात्रा रहने के बावजूद मेरे पास इस समय बढिया कैमरा नहीं है........(पतिदेव का मंहंगा निकॉन कैमरा जो एक समय हमारी सबसे बड़ी पूंजी हुआ करता था लगभग 30-32 साल पहले ये बहुत बड़ी बात थी कम से कम हमारे लिए) हजारों फोटोज खींची गई हैं उस कैमरे से...... अब थक कर लपेट लपूट कर आलमारी में पडा है....अपने ढेरों अटैचमेंट.... लेंसेज. और कई चीजों के साथ 😢😢😢😢😢😢 बेचारा!!!!! अब फोटो ग्राफी की पूरी जिम्मेदारी मोबाइल फ़ोन के कैमरे ने ले ली है.....😁😁😁😁 अब जल्दी ही मुझे बढिया कैमरा लेना है

Friday, June 18, 2021

फादर्स डे(2017)

हमारे बप्पा जी😊😊(मेरे श्वसुर जी) का प्रिय ट्रांजिस्टर आज पुनः अपनी उपस्थिति दर्ज करा गया...... सालों पहले मेरी  जेठानी जी ने उन्हें उपहार दिया था और जो हमेशा उनके साथ रहा.... कुछ दवाओं के रिएक्शन के फलस्वरुप उन्होंने अपना काफी समय नेत्रविहीनता की स्थिति में बिताया......परिवार के लगभग सभी भाई बहनों..... बाल बच्चों के विवाह, उनकी संतानों का जन्म आदि बप्पा अपनी आंखों से तो नहीं देख सके...... पर स्पर्शानुभूति से सभी को महसूस किया...... कितने प्यार और उत्सुकता से सभी बहुओं दामादों और नाती पोतों के लिए पूछते रहते थे 😢😢😢आज भी याद आता है तो आंखें भर आती हैं..... लगभग 26-27 साल तक अम्मा ही उनकी आंखें बनी रहीं.....इतना समर्पित जीवन मैंने तो अपने जीवन में नहीं देखा....वो चाहे कहीं भी हों और बप्पा चाहे कितनी भी धीमी आवाज में बोलें अम्मा को सुनाई दे जाता था...... सभी हैरत में पड़ जाते थे....अपनी युवावस्था में रायबरेली के और खजुरगांव स्टेट के बहुत प्रतिष्ठित वकील रहे थे बप्पा जी......पर अंतिम समय में बहुत एकाकी  और लगभग सन्यासी सा जीवन हो गया था उनका......बहुत दुःख होता है कि अपने अपने कार्यों नौकरियों में बंधे हम सब अधिक समय नहीं बिता सके उनके साथ 😩😩😩 पर जब भी आना जाना होता था..... हम दोनों ज्यादा तर समय उनके सान्निध्य में बिताने की चेष्टा करते थे..... ऐसे ही बैठे बैठे श्लोकों की रचना करना... अपने जीवन संघर्ष के विषय में बताना उन्हें अच्छा लगता था 😊 अपने अंतिम समय में काफी रुग्ण हो गये थे.... पूरी तौर पर अम्मा पर निर्भर..... याद आता है उनके दिवंगत होने पर अम्मा बार बार यही कहती थी "पंडित जी हमको भी ले चलिये अपने साथ... वहां आपका ख्याल कौन रखेगा? 😢😢😢शायद इसी वजह से अपने प्रस्थान के ठीक तीन महीने बाद ही उन्होंने अम्मा को भी बुला लिया अपने पास....आज घर के सामानों की झाड़ पोंछ के दौरान बप्पा का ये ट्रांजिस्टर बहुत सारी यादों से रूबरू करा गया 😊😊😊 
फादर्स डे पर बप्पा जी और अम्मा को हम सभी भरे हृदय और नम आँखों से याद कर रहे हैं..... हम सब पर अपना आशीर्वाद बनायें रखें🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Monday, June 7, 2021

7जून20

हमेशा अच्छी ही आशा रखना चाहिये।अगर हर आदमी सिर्फ खुद अपने-आप  को ही बचा कर रखने की कोशिश करे तो सब बदल सकता है..... इस समय बस अच्छी खबर और सकारात्मक बातें ही सुनने की इच्छा है.... बस.... पर कुछ लोग इतना बढ़ा चढ़ा कर पैनिक क्रियेट कर के बातें कर रहे हैं कि चिढ़ और दहशत होने लगती है....जब आप खुद तो और कुछ नहीं कर सकते तो हौआ तो मत बनाएं.... हद से ज्यादा ज्ञान मत बांटें...जिसे भी देखो वैज्ञानिक और डॉक्टर बना हुआ है 😡😡😡😡यहां भी कोई अनपढ़ या मूर्ख नहीं है.... ..अब जो भी होगा सामने आएगा ही..... अरे जितना कर पा रहे हैं कर ही रहे हैं....पर प्लीज इस तरह की बातें करके ख्वामख्वाह डराएं मत...और टेंशन न दें..... 🙏🙏🙏

Saturday, June 5, 2021

लाक डाउन डेज़...

पता नही, आज कल मेरा तो मन ही नहीं लग रहा पढने में...ना चित्र बनाने में, ना और कुछ करने में भी..... अजीब सी हताशा जैसी छाई रहती है..... .. चार छः पेज पढने  के बाद बस मन उचट सा जाता है.....इस समय अपनी दिन चर्या से घोर असंतुष्ट हूँ.... जो मेरा सर्वाधिक मन पसंद कार्य है उसे ही बिल्कुल समय नहीं दे पा रही.... दो तीन कैनवस ईजल पर इंतजार कर रहे हैं रंगे जाने का..... देखो कब तक..... 
सबके मन का पंछी खुली हवा में उड़ान भरने को बेकल है, जिसे देखो कहीं न कहीं घूमने की प्लानिंग में लगा है इस मौसम में, एक मैं हूँ, मेरे मन में  लॉक डाउन लगा हुआ है... एकदम कर्फ्यू लगा है.....  कहीं घूमने जाने की या घर से बाहर तक निकलने की कतई इच्छा नहीं हो रही। घर में बंद बंद... अब क्या समझूँ, पंछी को पिंजरे से प्रेम सा हो गया है??? .😒 😖😖😖😖

मैगी बैन(5जून2015)

मैगी पर आरोप लगते ही सब लोग ऐसे पल्ला झाड़ के किनारे हो जा रहे हैं..जैसे मैगी जैसी जहरीली और जानलेवा चीज कोई है ही नहीं.....एक स्कूल टीचर होने के कारण बहुत दिनो से देखती आ रही हूं कि ज्यादातर माताएं.सबसे आसान..जल्दी बनने वाली..और सबसे बड़ी बात बच्चों को बेहद पसंद आने वाली मैगी ही टिफिन में देती रही हैं... ....पर अब देख रही हूं..कि वे ही माताएं...सरासर झूठ बोलती नज़र आ रही हैं....हम तो पौष्टिक भोजन पर विश्वास करते हैं.....अब हमने मैगी लाना बंद कर दिया है....हे भगवान!!!!!!....हर मुंह से मैगी की बुराई......एक दूसरे का सुन सुन.के.....अब हर किसी को मैगी से नफरत......हदहै......यही जनता है ...जो किसी एक के अफवाह उड़ा देने पर.....लाखों लीटर दूध गणेश जी की मूर्ति को पिला डालती है....मुझे पूरा यकीन है कि ये मैगी विवाद किसी सोची समझी साजिश का नतीजा है....इसके जैसा कोई प्रोडक्ट मार्केट में लाने की पूरी तैयारी है........जल्दी ही सामने आयेगा.....

Wednesday, June 2, 2021

आलसी नं वन

हर छुट्टी के एक दिन पहले या शनिवार को यही सोचकर सोती हूँ कि कल सुबह धमाका कर दूँगी...... जरा भी आलस नहीं करूंगी........ सारे बकाया काम निपटा दूँगी जैसे:महीनों से बंद वाशिंग मशीन में सारे कपड़े धुल डालूंगी.......घर का कोना कोना चमका कर रख दूंगी..... . हफ्तों से बुकमार्क लगा कर रखी कोई किताब पढ़ कर ख़त्म कर दूँगी..... ,  ईजल पर लगी अधूरी पेंटिंग्स को पूरा कर डालूंगी....... कोई बढिया सी फिल्म भी देख लूंगी , इनसे-उनसे मिल लूँगी, उनको - उनको कॉल कर लूँगी, रेसिपी कलेक्शन देख कर या निशा मधुलिका से पूछकर कोई स्वादिष्ट सी डिश भी बनाऊँगी, सोमवार को स्कूल में जमा करने वाली टीचर्स डायरी भी तैयार कर लूँगी......... अधूरे पडे ब्लॉग के लिए लेख लिख डालूंगी .......बालों में मेंहदी लगाऊंगी..खूब फ्रेश मूड में दोपहर में दो घंटे सो भी लूंगी...... ये करूंगी वो करूंगी.......(और कुछ भी नहीं करती) 😉😉😉😉😉.. पर अफ़सोस! सारा रविवार पसरे हुए 😑😑सोते हुए या टीवी देखते हुए निकल जाता है........... अब इस उम्र में हॉस्टल लाइफ का आनंद 😂😂😂😂😂😂😂😂😂

है कोई मेरे जैसी आलसी नं वन??? हर समय थकी हुई बिना किसी काम के 😥😥😥😥😥😥हद ही हो गई है उफ्फ!!!!!!! 😟😟😟😟

यादें

हमारा प्रिय "मधुबन"(एक समय में फाइन आर्ट्स कॉलेज और मंच कला संकाय वालों की अपनी कैंटीन... जो हमारे आदरणीय चंचल दाChanchal Bhu द्वारा उनके कार्यकाल में बनाई और बसाई गई थी) 😊😊😊अब"MADHUBAN CAFE " बेहद सुंदर बन गया है.... अब अनगिनत स्वादिष्ट व्यंजन मिलने लगे हैं..किसी भी बाहरी फैशनेबल रेस्तरां की बराबरी करते हुए... .पर वो पहले वाली मासूमियत और शान्ति अब नहीं रही.... अब वहां छोटी सी कैंटीन नही है... और एक रूपये के दो गर्मागर्म समोसे और पानी वाली खट्टी चटपटी चटनी  और चमचम नहीं मिलते.... ..झुंडों में बैठे मुकेश और रफी के गाने गाते हुए फाइन आर्ट्स कॉलेज के छात्र नहीं दिखे☹️☹️ वो दिन नहीं रहे.... अब शायद हम भी तो वो नहीं रहे😢

Monday, May 31, 2021

यूंही

दुनिया भर की 
किताबें पढ़ीं
बस
जो दिल की अलमारी में 
धूल खाती रहीं..
उन्हें पढ़ने की
फुरसत 
नहीं निकाल पाई कभी.....😢😢😢😢

Sunday, May 30, 2021

हाय बुढ़ापा

बुढ़ापे ने सिर्फ दस्तक ही नहीं दी...बल्कि दरवाजा जोर जोर से भड़भड़ाना शुरू कर दिया है....ये जाना जा सकता है....जब आप दरवाजे की घंटी बजने पर....या फोन बजने पर ये इंतजार करने लगते हैं कि कोई और जा के दरवाजा खोल दे...या फोन उठा ले.......ट्रेन का सफर हो तो एक डेढ घंटे पहले स्टेशन पंहुच जाएं  और भगवान् से ये मनाएं कि ट्रेन प्लेटफार्म नं एक से ही जाती हो और आती भी एक नं पर ही हो.... ताकि पुल पर भागा दौड़ी न करना पड़े...क्योंकि अक्सर लास्ट टाइम पर प्लेटफॉर्म बदल देना तो भारतीय रेल का सबसे पसंदीदा काम है...😏😏
..जब आप  हर बिल्डिंग में, मॉल में, में लिफ्ट की जगह तलाश लें😊😊😊
.. जब आप एस्केलेटर पर बेहद डरते हुए भी हिम्मत बांध कर चढना उतरना सीख लें😖😖
.. जब आप ट्रेनमें, फ्लाइट में या होटल /रेस्तरां वगैरह में किसी के आंटी कह देने पर बहुत बुरा मानते हुए भी जाहिर न होने दें.. 😏😏
..जब आप  यू ट्यूब पर बाल काले करने और झुर्रियां कम करने का सबसे सरल उपाय खोजने लगें.. 😢😢
..जब कितनी भी रूचिकर बातों के बीच आपकी बातों का रूख घूम फिर कर कब्ज, गैस, जोड़ों के दर्द, और बीपी पर आ जाए.. 😨😨
.. और सबसे ज्यादा तो तब महसूस होता है...जब आप.. किसी बहुत प्राचीन...सुंदर ....ऐतिहासिक जगह घूमने जायें..और वहां कोई सायेदार पेड़ या जगह ढूंढ कर बैठ जायें और साथ के लोगों को बोलें....जाओ तुम लोग घूम के आओ....सामान और चप्पल यहीं रख दो...हम देखते हैं...हमारा तो सब देखा हुआ है.......😂😂😂😂😂😂😂😂

Friday, May 28, 2021

आज रवीश कुमार की एक पोस्ट पढ कर दिल भर आया..... हे भगवान🙏🙏🙏🙏प्रभु सरदार जी की आत्मा को शान्ति प्रदान करे.... बनारस मेरा मायका है और मुझे अच्छी तरह पता है बनारस के लोग कितने आत्मीय हैं..... मुझे अपने पापा की याद आ गई... हर साल आम का मौसम आते ही उनका मनीआर्डर आ जाता था आम खाने के लिए..... पापा जी को गए 13 साल हो गए..... तब से  मनीआर्डर नहीं आया 😢😢😢😢

टाइटैनिक

"टाइटैनिक" मेरी पसंदीदा फिल्मों में सबसे खास स्थान रखती है...अभी तक कितनी ही बार देख चुकी हूँ और अभी भी बिना ऊबे देख सकती हूँ....लेकिन अफसोस है कि अभी तक मैने थियेटर में जाकर ये फिल्म नहीं देखी है... जिस समय ये रिलीज हुई... सभी देखने वालों ने ये बताया कि बड़े पर्दे पर समुद्र के दृश्य बहुत ही विकराल और भयावह रूप में दिखते हैं.... (विकराल और भयंकर डायनासोर वाली "जुरासिक पार्क" कुछ ही दिनों पहले देखी थी.... और कई दिनों तक सो नहीं पाई थी)इस लिए हिम्मत नहीं जुटा पाई हाल में जाकर देखने की🙄🙄 पर एक दिन अपने घर पर ही पेंटिंग क्लास के दरम्यान टीवी पर वीडियो कैसेट लगा कर अपनी छात्राओं के साथ देखा..... सभी बेहद रूचि और तन्मयता के साथ देखते रहे.... और आखिरी दृश्यों में जब जैक के ठंड से अकड़े हुए हाथ उस तख्ते को (जिस पर रोज लेटी हुई सितारों को देख रही है..)छोड़ देते हैं और वो धीरे-धीरे समुद्र में समाता चला जाता है....ये दृश्य देख कर हम सभी एक साथ रोए थे.....सचमुच गजब के भावुक दृश्य थे... 
😢😢😢😢😢

Tuesday, May 25, 2021

22-5-19(पटना)

इस बार का पटना प्रवास दो तीन मायनों में बेहद अच्छा रहा....सबसे पहला तो छोटी मौसी को उनके मेजर अॉपरेशन के बाद स्वस्थ और प्रसन्न देखना.... दूसरा लगभग 40 - 41 साल बाद फाइन आर्ट्स कॉलेज के अपने पतिदेव के भी सीनियर @Ashok Tiwari दादा से सुखद मुलाकात और फेसबुक की कुछ लाजवाब शख्सियतों में से एक हमारे प्रिय Dhruv Guptभइया से बेहद आत्मीय मुलाकात 😊😊😊😊.....मौसा जी के छोटे भाई Yashwant Mishra जी के साथ ध्रुव भइया के निवास पर उनकी खूबसूरत लाइब्रेरी में बिताए दो ढाई घंटे अविस्मरणीय रहेंगे..... मैं उनके लिए अपनी बनाई हुई एक छोटी सी पेंटिंग ले गई थी...भइया ने  जितने प्यार और उत्साह के साथ उस गिफ्ट पैक (मेरे पतिदेव द्वारा बनाया गया) को खोला और उठ कर अपने हाथों से दीवार पर सजा दिया....वो मेरे लिए पुरस्कार से कम नहीं है 😍😍😍 बहुत देर तक ढेरों बातें हुईं...कुछ बढ़िया यात्रा प्रोग्राम बनाए गए.... मुझे बेसब्री से इंतजार है...उस प्रेरक यात्रा का😊😊
ध्रुव भइया की शानदार लंबाई, भव्य पर्सनैलिटी और बेहद सरल और सहज स्वभाव ने हम दोनों को बहुत प्रभावित किया....भाभी जी, उनकी अच्छी सी बहू और  बेटे से भी मुलाकात हुई.... दुलारी अनाहिता बहुत ही सुंदर और प्यारी है...
भइया की दो पुस्तकें जो मैं काफ़ी दिनों से तलाश रही थी....वो भी मुझे उनके हस्ताक्षर सहित प्राप्त करने का सौभाग्य मिला 😊

Thursday, May 20, 2021

पटना यात्रा (21.5.19)

ओफ्फोह टूऊऊऊऊऊ मच बोरिंग यात्रा.... 😏😏😏😏 गोंडा से  चले हुए दस घंटे बीत चुके हैं.... एक कप चाय और एक बोतल पानी ही मयस्सर हो पाया है अभी तक.... 😢😢😢😢😢😢😢😢 न कोई वेंडर न कोई चाय वाला.... थ्री टियर एसी में यात्रा करना दंड ही लग रहा है.... एसी भी लगभग मरणासन्न है....लगभग साढ़े तीन घंटे लेट चल रही ट्रेन, सीतलपुर में एक घंटे से खड़ी है.....ताज्जुब हो रहा है कि यहां भी खाने के लिए कुछ उपलब्ध नहीं....चाय तक नहीं.... . स्टेशन पर भी 🤔🤔🤔🤔 एक हमारा मनकापुर रूट है... पैसेंजर से उन्नीस बीस ही, वेंडर्स मिलते हैं....सुबह 4 बजे के जागरण के बाद इस समय तक दो भूखे ब्राह्मण बैठे बैठे थक कर चूर हैं.... गनीमत है नेटवर्क काम कर रहा है ☹️☹️☹️☹️दोपहर 2. 50पर पटना पंहुचने वाली ट्रेन 6.30 बजे तक पटना से 28 किमी दूर धंसी पड़ी है... कोई तार टूट जाने से रुकी हुई है.... अब जब तार बने तो ट्रेन सरके😡😡😡😡😡😡 बहुत सारे लोग अपने सामान के साथ ट्रेन से उतर गए हैं और अपनी अपनी व्यवस्था से भागने के मूड में हैं....हम भी..... मौसा जी को कार लेकर आने के लिए बोल दिया है.... ननिहाल का सुख उठाना शुरू.... 😏😏😏😏जय हो🙋‍♀️🙋‍♀️🙋‍♀️🙋‍♀️

Friday, May 14, 2021

उफ्फ्फफ वो डरावने दिन....कोरोना के

महीनों के इंतजार के बाद और बेहद उत्साहित वातावरण के साथ बेटे का वैवाहिक कार्यक्रम समाप्त हुआ और गिने-चुने अतिथियों के जाने के बाद ...जब थोड़ा आराम करने के लिए सोचा तभी जैसे किसी की नजर सी लग गई.......पहले बिटिया और फिर मैं संक्रमित हो गए.... जब बुखार के बाद अचानक मुँह का स्वाद और सूंघने की शक्ति समाप्त हुई तो चिंता थोड़ी बढ़ गई। 5-7 दिन तक स्वाद, खुशबू, बदबू सब लापता थे। ऐसी स्थिति में घबराना स्वाभाविक है लेकिन अब यही सोचती हूँ कि सबसे पहली बात यह कि हमें बिल्कुल भी घबराना नहीं है, शांत रहना है। क्योंकि आगे चलकर हमें कई सारी चीज़ें परेशान करती हैं
सबसे पहले भूख ख़त्म हो जायेगी मुँह का स्वाद पहले ही चला जाता है ....
खानपान बहुत सीमित हो जायेगा.. मुझे तो खाने की कल्पना मात्र से उल्टी कर देने की इच्छा हो रही थी... जिसका सीधा प्रभाव आपके शरीर पर दिखाई देगा आपके गाल पिचकने लगेंगे आँखों में गड्ढे दिखेंगे जिससे अब आपको और घबराहट होगी लेकिन आपको अब भी नहीं घबराना है। यह सब इसलिए है क्योंकि आपके शरीर को जितना भोजन चाहिए आप उतना नहीं ले रहे हैं तो इसलिए आप ख़ूब खाइये जितना खा सकते हैं। सवाल आता है क्या खाना है? धरती पर जो भी खाने योग्य है अपनी-अपनी औकात और सुविधानुसार आप सब खा सकते हैं। शरीर में थकावट, कमज़ोरी दिखाई देगी इससे भी नहीं घबराना है यह कुछ समय रहेगी फिर ठीक हो जायेगी। नींद बहुत अधिक आयेगी तो जितना सो सकते हैं सोइये जितना ज़्यादा सोएंगे उतना ही कम सोचेंगे।मैने तो यही किया..... खूब सोई... सोने जगने मे जैसे कोई अंतर ही नहीं था.... या दवाओं की ड्राउजीनेस भी रही होगी....

ठंडी चीज़ों से थोड़ा परहेज़ करें यह भी ज़रूरी नहीं है कि हर वक़्त गर्म पानी पीना है आप नार्मल पानी पी सकते हैं। मैंने काढ़ा जैसा कुछ नहीं पिया बस चाय कभी दूध वाली कभी काली नींबू वाली चाय और सबमे सिर्फ अपना बनाया हुआ काढ़े नुमा चूर्ण आधा चम्मच बस...... । यह आपके ऊपर निर्भर करता हैकि आप क्या लें.... यदि सांस लेने में दिक्कत महसूस कर रहे हैं भारी-भारी सा लग रहा है तो कुछ देर इस ओर ध्यान न दें कुछ और सोचें फिर देखें अभी भी वही स्थिति है या सामान्य है..... यदि अब भी सांस लेने में ज्यादा दिक्कत है तो डॉक्टर से संम्पर्क करें।

      गूगल, यूट्यूब, फेसबुक टीवी और नरेंद्र मोदी  से उचित दूरी बना कर रखें। फ़िल्म देखें किताबें पढ़ें जो आपका मन करे वो हर काम करें। प्रेमी या प्रेमिका है तो उससे ख़ूब बातें करें। दूसरे लोगों से मशवरा कम लें ज़रूरत पड़ने पर ही डॉक्टर के पास जाएं।आज हर कोई डॉक्टर बना हुआ है..... सभी ज्ञान बांट रहे हैं.....
              जैसा कि आप जानते हैं कोई भी बीमारी एक दिन में ठीक नहीं होती है इसलिए खुद को समय दें.... बहुत ज़्यादा न सोचें आप अंदर से खुद को जितना मज़बूत रखेंगे बीमारी इतनी ही जल्दी ठीक होगी। यदि मानसिक रूप से मजबूत नहीं हैं तो फेसबुक और टीवी और अखबार की डराने वाली खबरों से दूरी बना कर रख सकते हैं, क्योंकि उनका तो काम ही टीआरपी बढाने के लिए चीख चीख कर उन्माद पैदा करना......

यह मुमकिन नहीं है कि आप खाली लेटे हैं और आप कुछ न सोचें.... आप उस समय के बारे में सोचिए जो समय आपके जीवन में सबसे ज़्यादा खुशनुमा था। दोस्तों के साथ बिताए पल स्कूल, कॉलेज, ऑफिस की शरारतें। आप अपने अंदर खोजिए बहुत कुछ सकारात्मक है जो आपको मिल जायेगा। जो आपको बीमारी से लड़ने में मदद करेगा।ईश्वर का कोटिशः धन्यवाद, आप स्वस्थ हैं। 🙏🏻🙏🏻🌺🌺 मुझे लगता है कि महामारी भयानक तो है ही फिरभी लोग और हमारे चैनल हमें डरा अधिक रहे हैं, जो हमारी मानसिक अवस्था पर कुप्रभाव डाल रही है।मेरे घर कुछ दिन पहले मुझे, मेरी बेटी, दामाद, उसकी बहन,सभी संक्रमण के शिकार हुए.... सबको को बुखार आया, मेरे बेटे ने बिना प्रतीक्षा किए हमारे फैमिली डाक्टर के नोटिफिकेशन के अनुसार पूरा कोर्स कराया..... थोड़ी दिक्कत और टाइम लगा पर ईश्वर की कृपा से सभी अब स्वस्थ हैं।.
साँसों की ये जंग बड़ी डरावनी थी..सभी की कोरोना नेगेटिव रिपोर्ट ले कर बहुत राहत मिली है... लेकिन इस हाहाकार से बेहद व्यथित हूँ .... इस मौत के तांडव में बहुत घबराहट है .... जीवन के लक्षण से नदारद इस फेसबुक को देख कर स्तब्ध और संज्ञाशून्य हो जाती हूँ .....फेसबुक पर से सभी डराने वाली पोस्ट और वीडियो डिलीट कर देती हूँ..... न वो दिखें न मुझे डराएं..... मैं बस वही देखूंगी जो मैं देखना चाहती हूँ....... हां मैं शुतुरमुर्ग हूँ... बस...
        इस बीच खोने वाले मित्रों की सूची भी गड्डमड्ड हो रही ... जाने कितने इस बीच साथ छोड गए .... जीवन का पतझर धरती पर इस तरह देखूँगी सोचा न था ..... पलायन नहीं कर रही लेकिन बहुत बहुत बुरा महसूस कर रही हूँ ..... सभी बिछड़े मित्रों को हार्दिक श्रद्धाजंलि ,  सभी बीमार लोगों को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की शुभकामनाएं और  स्वस्थ लोगों को सुरक्षित रहने की दिल से दुआएँ ..
      उस समय मैं  खुद को मानसिक रूप से बहुत कमजोर और असहाय महसूस कर रही थी और अभी भी डरती हूँ .... रोज नियमित प्राणायाम करती हूँ...और हृदय से गायत्री मंत्र का जाप भी.... . और भगवान् से यही विनती करती हूँ कि सब पहले सा हो जाए.... अब रहम कर दो भगवान्.... बहुत हो गया ..... तुम तो सचमुच केवल तमाशा देख रहे हो.... इतने निष्ठुर मत बनो प्लीज 😢सब शुभ शुभ हो भगवान्..... सबकी रक्षा करो प्रभु...... इस कठिन समय से उबारो सबको.... रहम करो ईश्वर 🙏🙏🙏🙏कोई गलती हुई हो तो क्षमा करो सबको.....सभी देवी-देवताओं से गिड़गिड़ा कर विनती करती  हूँ.... सबको स्वस्थ कर दो भगवान्...
फिर से सब पहले जैसा हो जाए...... बहुत हुआ अब 🙏🙏🙏
जिंदगी में वैक्यूम बन रहे हैं। बीमारी तो एक बहाना होती है। अपने और अपने आसपास के लोग जाकर एक खालीपन सा छोड़ कर जाते हैं।
किसी की दु:ख की घड़ी में
भले ही इन्सान कुछ भी न कर पाए
लेकिन फिर भी आकर , साथ खड़ा हो जाए उतना ही बहुत है....  उससे बड़ी हिम्मत बंधवाने की बात कोई और नहीं हो सकती..
. अंत में इतना याद रखिए संसार में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे आप जीत नहीं सकते। इसलिए हमें न घबराना है और न ही निराश होना है।
मुझे पूरा विश्वास है कि बहुत जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा...... आमीन🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Monday, May 10, 2021

10 मई 2120

मातृ दिवस पर अपनी अपनी माँ को याद करने से एक अतिरिक्त लाभ ये हुआ..... कि अभी तक के अपने सभी फेसबुक मित्रों की आदरणीया माँओं से भी परिचय हुआ.......सभी के चरण छूने का अवसर मिला....और ये अंतर्मन से महसूस हुआ कि उन सभी का आशीर्वाद भी हम सबको प्राप्त हुआ.....हम कितना  कुछ  भी पश्चिमी  लोगो को भला बुरा  कह लें....पर इतना तो मानना ही पड़ेगा .....कि इन दिवसों (मातृ दिवस ...पितृ दिवस.. पुत्र या पुत्री दिवस )    के दिन कम से कम हमारा पूरा ध्यान और चिंतन अपने स्नेहिल जनों के प्रति बना रहता है.......इसी बहाने हम कुछ दिन पहले से कुछ दिन बाद तक उनकी यादों में डूबे रहते हैं.......
             कोई कुछ भी कहे मुझे तो बहुत अच्छा लगता है........नहीं   तो आज की   भागमभाग   भरी   दुनिया   में किसी   के पास   समय   कहाँ   है ?.... जीवित माँ बाप से बात कर पाने का .....
  तो जो अब संसार में नहीं है उन्हें कौन याद करे ??
 आज फेसबुक ..वाट्सएप ..इत्यादि के होने से.... और आज की पीढ़ी जो अपने पेरेंट्स से इतना घुली मिली या फ्री है कि अपनी भावनाएं व्यक्त करने में उन्हें जरा भी झिझक नहीं .....ये उनका सौभाग्य है ..... हमें तो याद भी नहीं कि मम्मी पापा से अथाह प्रेम करने के बावजूद हम उनसे कभी कह पाएं हो कि हम उनसे बहुत प्यार करते हैं.......यदि  आज उनके नहीं रह जाने   पर ही  सही  .....  ये अवसर    हमें मिला है तो कहने में कैसी    झिझक......
बिलकुल.. सच कह रही हूँ ...... मुझे उनका नजरिया बिल्कुल पसंद नहीं... .जो ये सब मनाने को ..पश्चिमी चोंचलेबाजी कहते हैं......पर मुझे तो ये चोंचले बाजी बहुत पसंद है भई 😊😊😊

Wednesday, May 5, 2021

हद्द हो गई है 😡😡😡

आजकल फेसबुक पर इतने नकली और ज़ाहिल लोग इकठ्ठे हो गए हैं.....कि क्या कहा जाये.......जिन्हे अपनी पहचान तक बताने में शर्म महसूस होती है.....वो यहाँ क्या करने  आते हैं पता नहीं........मुझे भी एक जन मिले .."जन" इसलिए कह रही हूं कि....उनकी भी कोई प्रोफाइल पिक्चर नही है. यहां तक कि उनकी टाइम लाइन पर भी जा कर देखा कोई भी ऐसा संतोष जनक परिचय नहीं मिला जिस पर यकीन किया जा सके. . खुद को टीचर बताया. ..शायद मेरी नकल में. ............और अपनी उमर भी गलत बताई... .मैने पूछा कि आपने अपनी कोई प्रोफाइल पिक्चर क्यों नहीं लगाई तो उनका जवाब था कि...कोई मिस यूज कर लेगा........मेरे पति ने मना किया है....... हद है ....... और मुझसे पूछा उन्होंने कि आपके प्रोफाइल पर आपकी पिक्चर है...????....मैने कहा हां.....तो उनकी प्रतिक्रिया थी..."आप लगती तो नही हैं ५२ की......आप तो कयामत लग रही हैं......छि: . .बात करने का ये तरीका.....तभी मुझे शक हुआ कि ये कोई फेक प्रोफाइल है.....अब पता नहीं सच क्या है...पर फिर मैने उन "जन" से बात नहीं की......बार बार उन "जन" के माफी   मांगने के बाद भी मुझे इतनी घृणा हुई कि क्या बताऊँ .......शायद उन्होंने सोचा होगा कि इस तरह कि घटिया तारीफ़ से हर महिला खुश हो जाती होगी.....पर अपने आपको मुझसे आधी उम्र का बता रहे या बता रही....उस घटिया पर्सनाल्टी ने ये भी नहीं सोचा कि हर महिला वैसी नहीं होती........मैं जानती हूँ...और मानती भी हूँ कि मैं कोई बदसूरत नहीं हूँ....पर आपकी खूबसूरती को कोई इस तरह से एक्सप्लेन करे.....ये सोच कर भी वितृष्णा होती है......
 अगर वो "जन " ये पढ. रहे हों .. तो शर्म महसूस करें....क्यों कि उनकी प्रोफाइल पर आज तक कोई तस्वीर नहीं है......

कुछ यादें

मैंने अपने पापा और माँ के दरमियान बहुत घनिष्ठ तोता मैना वाला प्रेम कभी नहीं देखा। दोनों बहुत सी बातों में बेमेल थे। पापा बेहद खूबसूरत,गौर वर्ण स्मार्ट और शानदार प्रभावशाली व्यक्तित्व के स्वामी..... और मां बेहद खूबसूरत आंखों वाली पर सामान्य शक्ल सूरत, कद काठी और  सांवली सलोनी.....पापा जी की तुलना में कम पढी लिखी और साधारण ज्ञानवान....हालांकि बाद के वर्षों में ये पढ़ने वाला शौक काफी डेवेलप कर लिया था उन्होंने.... हां लिखना नहीं शुरू किया... जब कि उनकी कल्पना शक्ति बेहद तीक्ष्ण थी.... नानी बनने के बाद मेरी बिटिया को रोज दो तीन कहानियां उसे सुनाना उनकी दिनचर्या का महत्वपूर्ण कार्य था... और बेटी की उत्कट इच्छा रोज नई कहानी सुनने की रहती थी.... वो रोज एक दो नई कहानी बनातीं ,जोड़तीं और उसे सुनाती..... अफसोस है कि  उन कहानियों का कोई संग्रह नहीं बन पाया....किसी भी घटना का बेहद सजीव चित्रण करना..... उनको बखूबी आता था......संभवतः ये गुण थोड़ा बहुत मुझमें भी आया है... पर उनके जैसा नहीं.... न लिखने के पीछे उनकी मात्रा संबंधित अशुद्धियों का ही हाथ था इस बात पर मैं बिल्कुल सहमत हूं क्योंकि शुरुआती पढाई चम्पारण बिहार (उनके ननिहाल) में होने से इस पक्ष पर संभवतः बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया.... मैने महसूस किया है कि मात्रा की अशुद्धि पर बिहार में बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता....और इसी टोकाटाकी और लज्जा वश उन्होंने लिखना छोड़ दिया था....बाद में जब हम सब भाई बहन लिखने पढने योग्य हुए तो उनका चिट्ठी, डायरी का हिसाब भी लिखना भी छूट गया....
          शायद वो लोग कभी इस वस्तु स्थिति को  अपना नहीं पाए। मैं बड़ी हुई तो बहुत सारी बातों में पिता से उलट रही। ज्यादातर बातों में उनसे असहमत..... ज्यादातर उन बातों में जिनमें मम्मी की बातों को काटा जा रहा हो... या उनकी बेइज्जती हो रही हो..... मैं मम्मी के निकट ज्यादा थी... उनसे हर तरह की बातें शेयर करती थीं और बहुत सी बातें हम दोनों पापा जी तक पंहुचने ही नहीं देते थे ये सोच कर ही कि वो नाराज होंगे..... लेकिन इसके बावजूद वे दुनिया के सबसे अच्छे पिता थे । जिनके न रहने को मैं हर ख़ुशी हर दुःख में महसूस करती हूँ।

कितनी सुंदर सुखद स्मृतियां हैं उनके साथ.... बचपन में उनका मेरी हर बात को सबसे ज्यादा महत्व देना.... उनके दो चार दिनों वाले अॉफिशियल टूर में अपनी दो चार फ्रॉकों के साथ लटक जाना....अब समझ सकती हूँ कि वो कितना परेशान हो जाते होंगे...एक घटना तो मुझे अच्छी तरह स्मरण भी है..... जब एक बार ट्रेन में वो मेरे घने लंबे बालों की चोटी बनाने की असफल कोशिश कर रहे थे तो साथ में बैठी महिला ने उनसे कंघी लेकर मेरी कसी कसी दो चोटियां गूंथ दी थी जो दो तीन दिनों तक नहीं खुली थी....रोज अपनी हथेली के बित्ते से नापना कि रात भर में  मैं कितनी लंबी हो गई हूँ.....अभी भी आंखों में आंसू ला देने के लिए काफी है...... उनकी
और यह बात दिल को छू जाती थी कि, " अब तुम बड़ी हो  गई हो....ऐसे रोअनी कब तक बनी रहोगी??" .... मेरी बात बात पर रो देने वाली और आंसू भर लेने वाली आदत आज भी बरकरार है.....
पापा से बचपन में सबसे ज़्यादा बात मैं करती थी, या यूं कहूँ कि उनसे कुछ मनवाना होता तो मुझसे ही कहा जाता था....... अब कुछ बदल सा गया है, अब वैसी बातें नही हो पाती। मैं सबके सामने अब रो नही पाती...  शायद मैं अब "बड़ी" हो गयी हूँ!
जन्मदिन पर उन्हें प्रणाम करना चाहती हूं आज भी...जबकि वो दोनों ही लोग अब नहीं हैं... . बस सोचती रह जाती हूँ .... क्या कहूँ?

अब देखो न! कितना कुछ कह गयी हूँ यहां........मैं भी पापा की प्रिय बिटिया रही हूं.....घर में सिर्फ एक मैं थी जो किसी भी बात को लेकर उनसे बहस कर सकती थी... और अपनी मनमानी करा लेती थी..... ये लिखते समय मुस्कुराती  रही हूँ ...... लेकिन आखिरी पंक्ति तक आते ही आँखें भर आई हैं। कोई तो होता जो ये कहता अब "तुम बड़ी हो गई हो। रोअनी बेटी और नकचतनी(नाक से मिनमिना के बोलने वाली) पतोह ठीक नहीं होती "

कितना कुछ छीन लेता है ये बड़ा होना भी ।कोई कहीं नहीं जाता..सब यहीं रहते हैं❤️
इतने प्यारे पापा को पुनः नमन करती हूं
.

Sunday, May 2, 2021

यूंही 😢😢

आज थोडा मन  उदास सा है., कोई ऐसी चीज जो आपको बहुत प्रिय हो , उसकी ऐसी दुर्गति देख कर जी उमड़ आना स्वाभाविक है.....नहीं जानती थी कि इतने दिनों से संभाल कर रखी हुई मेरी कुछ आयल पेंटिंग्स का ऐसा हश्र होने वाला है........आज दीवाली के लिए घर की साफ़ सफाई के दौरान.....जब अपना कुछ सामान अपनी जगह से हटाया , तो बाँध कर रखी हुई कुछ पेंटिंग्स पर ध्यान गया ..और ये देख कर बड़ी ही पीड़ा हुई कि वो सारी पेंटिंग्स दीमको द्वारा बुरी तरह क्षतिग्रस्त की जा चुकी थीं.....और इतनी ख़राब हालत में थीं कि उनका कोई भी हिस्सा छूने लायक तक नहीं था......लाचार हो कर अपने माली से कह कर उन्हें अपने लान के ही पिछले हिस्से में आग के हवाले कर दिया.....तब से इतना मन खराब हो रहा है कि क्या कहूं .......बस इसी बात कि तसल्ली है कि उन सभी पेंटिंग्स के चित्र मेरे संग्रह में हैं........अब यही सोच रही हूँ कि क्या उनकी यही नियति थी ????

मम्मी 😟

मम्मी जिस दिन लौट जाती थीं.... वो दिन जरूरत से ज्यादा लंबा हो जाता था....स्कूल से वापस आने के बाद....अपने आप ताला खोलना और सूनी डायनिंग टेबल देखना बेहद कष्टप्रद होता था.... रसोई में भी जैसे सारे बर्तन सुन्न पडे होते थे.... हफ्ते दस दिन तो एकाकी पन को एडजस्ट करने में ही बीत जाते थे... मम्मी चली जाती थीं तब पता चलता था न उनसे ढेर सारी बातें कर पाई न उनसे लिपट कर प्यार कर पाई। मम्मी जब तक रहती थीं, मैं डरती रहती थी कि वो  बीमार न पड़ें... कुछ भी न हो उन्हें..... हमेशा यही लगता रहा कि मम्मी बस बीमार न पड़ें।

मम्मी जब तक रहती थीं तब तक रोज सबेरे एक ही बात कहती थी तुम्हारे यहां नींद बहुत अच्छी आती है । पढने की बेहद शौकीन होने के कारण ढेरो मैग्ज़ीन्स और मेरी लाइब्रेरी की किताबों की संगत में ही उनका दिन बीतता... जिस दिन उनको जाना होता था तो बीती रात न वो सो पाती थीं न हम सब... सो नही पाती थीं, शायद  जाने की इच्छा नहीं होती होगी... इसलिए नींद नही आती होगी।

उनसे दूर हमारी उम्र बढ़ रही थी.... हमसे दूर उनकी उम्र बढ़ रही थी। थोड़ी सी गुंजाइश होती तो हम सबकी की उम्र बढ़ने से रोक देते। काश!!!

कोई भी चीज़ उन्हें पसंद आ जाती थी और हम ये महसूस कर लेते थे.... तो शुरू होता था  हमारा आग्रह और उनकी ना नुकुर.... शायद वो   संकोच करने लगी थीं..... आते समय ढेरों सामान लेकर आना.... और जाते समय ढेरों सामान खरीद कर रख जाना उनका सबसे बड़ा शौक था....
उनके   होते हुए हम उन्हें उतना प्यार नही कर पाए जितना करना था...... अब उनके जाने के बाद उनकी याद बहुत आती है। यह अफसोस हमारे साथ जिंदगी भर रहेगा.... कि हमने लोगों के जाने के बाद उन्हें याद करना सीखा, साथ रह रहे लोगों को प्यार करना और जताना शायद  नहीं सीख पाए.....

यूंही 😟😟

करीब छः साल से डायरी लिखने लगी हूँ..... डायरी क्या बस यूंही सा रोजाना मचा....बस दिनभर में क्या किया.... क्या महसूस किया... इमानदारी से इसे बता देती हूँ... कोई वाक्य विन्यास नहीं.... कोई भाषा का चमत्कार नहीं.. बस जो भी सोचती जाती हूँ लिखती जाती हूँ...... मेरी डायरी पढ़कर कोई मेरे बारे में क्या सोचेगा?
मैंने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं। जाने क्यों?
डायरी ही अब मुझे ऐसी लगने लगी है जो चुपचाप बिना कोई आर्ग्यूमेंट किए मेरी सारी कड़वी मीठी बातें सुनती रहती है.... कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करती....मेरी अच्छी सखी है ये.....
जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है
पर मैं बार बार सब भूल जाती हूं..... या शायद याद रखना ही नहीं चाहती... ..मेरे सबसे अच्छे मित्र वो हैं जिन्होंने इस बात का कभी बुरा न माना कि मैं उनका फोन क्यों नही उठाती? मैंने उनके मैसेज का जवाब क्यों नही दिया? यकीन मानिए वैसे भी वक्त के साथ साथ मैंने फोन पर बातें करना कम कर दिया है ज्यादातर बातें फोन, व्हाट्सएप  पर ही हो जाती हैं। लेकिन कई बार यह भी नही हो पाता ।  मैं बहुत फोन फ्रेंडली कभी न रही...... पतिदेव की तरह घंटों लंबी लंबी बातें वैसे भी नही कर पाती। सुख दुख का बंटवारा फोन पर बेमानी सा लगता है। मैंने पिछले कई वर्षों में सबसे ज्यादा बातें खुद  से की हैं।
फेसबुक पर बहुत ज्यादा लिखना पढ़ना भी. अब कभी कभी कोफ्त भरा और ऊबाऊ लगने लगा है......
इस छोटी सी जगह पर   मैं जहां हूँ फेसबुक से इतर मेरे दोस्तों की संख्या बहुत कम है।अपनी शिक्षक सखियों के अलावा..... स्कूल के बाद उनसे भी मिलना यदा कदा हो पाता है। मेरा ज्यादातर वक्त खुद के साथ ही गुजरता है....अपने फोन.... अपनी किताबों या फिर अपनी नींदों के साथ...... सोना मेरा सबसे प्रिय टाइमपास है..... मैं बिना किसी तैयारी के कभी भी सो सकती हूँ....पर बेवजह बिस्तर पर लेट कर समय नहीं बिता सकती.....एकदम नींद से चूर होने पर ही अपनी कुर्सी से हटती हूँ..... पढने लिखने की किसी हद तक शौकीन होने के बावजूद आज तक मेरी अपनी कोई निजी स्टडी टेबल नहीं है..... मूलतः एक चित्रकार होने के बाद भी आज इस उम्र तक मैं अपना कोई स्टूडियो नहीं बना पाई जहाँ मैं इत्मीनान से अपने ईजल पर एकांत में मनचाहे चित्र बना सकूं.....अनगिनत ढेरों मनपसंद किताबों का संग्रह होने के बाद भी मेरे पास उन्हें सजा कर खूबसूरत ढंग से रखने के लिए कोई कोना या आलमारी नहीं है....इधर उधर, बिस्तर पर, टेबल पर कहीं भी किताबें मिल सकती हैं....पता नही दो सालों से कैसा समय है ,किताबें सिरहाने ,फ्रिज के ऊपर ,टेबल पर  यूं ही धरी रह जाती हैं ,पत्रिकाओं के पेज तक नही पलटे जाते ... यह नहीं कि पापड़ ,चिप्स बनाने का समय नही मिलता लेकिन मैं आलू सिर्फ सब्जी बनाने के लिए ही खरीदती हूँ ।पेंटिंग करने के लिए मंगाई पेंट्स कलर किट धूल फांक रही..... फोन, फेसबुक ,वाट्सएप में भी रुचि खत्म हो रही..... यह भी नही कि पूजा पाठ ,अध्यात्म में रुचि बढ रही.... बस मन किसी बात में लग ही नही रहा... पौधों को पानी भी बस इसलिए डालती हूँ कि वह सूखें नही... कोई बागवानी का शौक नहीं पनप रहा...सिलाई, कढ़ाई, बुनाई सबका शौक पाले हुए हूँ.... पर एक दो दिनों में ही उकता जाती हूँ..... पता नहीं ये मेरे साथ ही हो रहा है या मेरी जैसी सब बूढ़ी लेडीज के साथ होता है.....वैसे 59-60 की उम्र ऐसी बूढ़ी भी नहीं होती...... बस यही इच्छा है कि सब ठीक ठाक से समय बीत जाए.... कठिन समय है पर बीत ही जाएगा.... भगवान् सब पर कृपा दृष्टि बनाए रखें........ जाने अभी कितनी यात्राएं शेष हैं, कितना कुछ कहना बाकी है। कितना कुछ पढा जाना बाकी है...
हंसते हुए भी आंखे भर आती है अपनी तो....
कोई तकलीफ थोड़े ही है....

Friday, April 23, 2021

😊

पुस्तकों के प्रति मेरा रुझान कब से है ......मुझे स्वयं भी याद नहीं.......बचपन से ही पढने का बहुत शौक रहा...अक्षर ज्ञान होते ही रास्ता चलते हर दीवार हर बोर्ड पढ़ती चलती थी........किताबों से मेरी दोस्ती बचपन में ही हो गई थी......दूसरे सभी लालचों पे लगाम लगा के किताबें खरीदती थी........ये जरूर याद है कि किताबों की दूकान , रेलवे के बुक स्टाल , फुटपाथ पर सजी किताबों की दुकानें .....मुझे हमेशा से आकर्षित करती रही हैं,,......आज भी जब भी मौका मिलता है..... मैं हर समय कुछ न कुछ पढ़ती ही रहती हूँ.......मनपसंद पुस्तकें भी एक लम्बे अरसे बाद भी पढने से नई ही लगती हैं..........एक किताब ख़तम होती है ,.....तो तुरंत दूसरी शुरू कर देती हूँ....एक चेन स्मोकर की तरह ........लगातार सोते ,   जागते उठते बैठते बेडरूम से लेकर रसोई तक और ड्राइंग रूम से लेकर बाथरूम तक ,    मेरा पढने का कोई नियत स्थान नहीं है.......और इस वजह से अक्सर डांट भी खा जाती हूँ......   पर आदत है कि कमबख्त छूटती नहीं ........  समझिये अब ये मेरा स्वभाव ही बन चुका है......और आदत बदली जा सकती है स्वभाव नहीं......    मेरे पर्स में भी  हमेशा कोई न कोई किताब होती है और कार में भी ......स्कूल में खाली पीरियड में ..........बैठ कर गप्पें हांकने से ज्यादा....... मुझे कुछ न कुछ पढ़ते रहना ही पसंद है........छुटती नहीं है मुंह से ये काफ़िर लगी हुई.......कभी कभी सोचती हूँ कि अगर मुझे पढना नहीं आता , ......या मैं भी ...अम्मा या सोना ( हमारी मेड्स ) की तरह होती तो क्या होता ???

            हजरतगंज से खरीदी हुई एक एक रुपये वाली बाल पाकेट बुक्स या फिर 20 पैसे दिन के किराए पर ली गई कहानियों की किताबें मेरी यादों में हमेशा तरोताज़ा हैं..... मुझे याद है जब मैं कक्षा ४ की छात्रा थी......तब मेरे लिए पहली बार दो बाल पाकेट बुक्स के दो उपन्यास........ जिनकी साइज ४ बाई २ इंच रही होगी....उनके नाम आज तक मुझे याद हैं.......मेरे जीवन के प्रथम उपन्यास........भूतों की रानी और दयालु राजा.........उन्हें पढने के बाद से ही मुझे उपन्यास पढने का शौक शुरू हुआ ..... और उसके बाद तो कम से कम ४०० , ५०० . बाल उपन्यास पढ़ ही लिए होंगे.....सहेलियों से उनका आदान प्रदान होता रहता था..........बाल पाकेट बुक्स जो उस समय एक रुपये की आती थीं...और दो दिन के लिए किराए पर लेकर पढने पर २० पैसा किराया देना पड़ता था...हम बच्चो में बराबर इसका लेन देन चलता था,,,....अदल बदल कर सैकड़ों बुक्स पढ़ ली जाती थीं............लोट पोट, दीवाना...पराग., मिलिंद , बाल भारती..नंदन. चंदामामा ..कहाँ तक नाम गिनाऊ ??....थोड़ी उम्र और रूचि में विविधता आने पर... .....फिल्मी पत्रिकाओं का भी चस्का लगा, ..फिर फिल्म फेयर. स्टार डस्ट, माधुरी ...भी पसंद आने लगी...........बचपन से ही अपने आस पास पुस्तकें देखी हैं,,, ...उस वक़्त जितनी भी पत्रिकाएँ बाजार में उपलब्ध होती थी.............धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान., दिनमान, रविवार, इलेस्ट्रेटेड वीकली ,फेमिना .....सभी पापा जी अपने ऑफिस की लाइब्रेरी से लाते थे....... बाद में कुछ कहानियाँ मैंने भी लिखीं,,,....पर यह जारी नहीं रह सका.....शायद छ या सात कहानियों तक ही सीमित रह गया....जिनमे से ३ या ४ छपी भी....एक दो बार अपनी कहानी आकाशवाणी के युवा वाणी कार्यक्रम में भी पढ़ी........लिखने का शौक भी बना रहा पर कहानी फिर नहीं लिखी जा सकी.... (फिर से प्रयास में हूँ कि शायद कुछ लिख सकूं )...कभी कभी कुछ पंक्तियाँ लिख लेने का मन होता है तो लिख लेती हूँ.......कभी कभी कहीं मूड आने पर चुटकी पुर्जे इत्यादि पर भी लिखा गया ......पर उन्हें संभाल कर नहीं रख पाई .......और वे इधर उधर हो गए....पढने के लिए मुझे कुछ भी चाहिए.......बहुत उत्कृष्ट साहित्य ही हो ये जरूरी नहीं .........हाँ प्रथम श्रेणी में मैं उसे ही रखना चाहूंगी,,,,,,पर सामान्य या ......... इमानदारी से कहूं तो निकृष्ट साहित्य भी मैंने पढ़ा है ,,,... दूकान पर खड़े खड़े ......आते जाते ट्रेन में.......अगलबगल..........यहाँ तक कि झाडू लगते वक़्त भी ....अगर कोई अखबार या मैगजीन का टुकड़ा मिल जाये तो..... बिना पढ़े उसे नहीं फेंकती......कई बार बड़ी इंट्रेस्टिंग सी चीजे भी मिल जाती है यहाँ वहां.........अभी तक कितने उपन्यास , कितनी कहानियां, कितने आर्टिकल्स मैंने पढ़े हैं याद नहीं........
पुस्तकों  की दूकान में घुस जाने पर .......मैं समझ नहीं पाती कि क्या छोडू क्या ले लूं ?? काश !! मेरे पास इतना पैसा होता , कि मैं जी भर कर पुस्तकें खरीद पाती...

कॉलेज में पढ़ते वक़्त वहां  की लाइब्रेरी  की लगभग ७५% पुस्तकें मैंने पढ़ डाली थीं....और कुछ संयोग भी अच्छा रहा कि शादी के पश्चात पतिदेव का सहयोग भी बराबर मिला......यदि मुझे पढने का शौक़ रहा है तो उन्होंने भी मुझे पूरी तौर पर पुस्तकें खरीद कर देने में कोई कोताही नहीं बरती उन्हें ज्यादा पढने का तो नहीं....पर अच्छी किताबें खरीदने का बहुत शौक़ है.....(वैसे आज कल पढना भी शुरू कर दिया है उन्होंने...).....इसी का नतीजा है कि आज मेरे घर में मेरी अपनी निजी लाइब्ररी है...जिसमे करीब २००० पुस्तकों का संकलन है ज्यादातर साहित्यिक कृतियाँ हैं.....वैसे तो मुझे हर तरह कि किताबें पसंद हैं पर साइंस या फिक्शन से ज्यादा लगाव नहीं.....आत्मकथाएं या जीवनियाँ पढना ज्यादा भाता है......अच्छे साहित्यिक उपन्यास साथ ही रशियन साहित्य भी......हर तरह की मैगजींस पढ़ती हूँ ......
बल्कि हालत ये है कि कोई भी मैगजीन देख कर मैं ललचा उठती हूँ....रहा नहीं जाता जब तक उन्हें पूरा न देख डालूँ....पत्रिकाओं का भी बहुत बड़ा संग्रह है मेरे पास....सभी तरह की पत्रिकाएँ.......अपने अखबार वाले से.....हर महीने कई पत्रिकाएँ मंगाती हूँ.......अब ये अलग बात है कि वे खरीदती नहीं हूँ....पढ़ कर वापस कर देती हूँ.....

मुझे लगता है कि हर इंसान को अपने अन्दर पढने की आदत डालनी चाहिए या पैदा करनी चाहिए......क्यों कि इस से कल्पना शक्ति भी प्रखर होती है...किसी ने कहा है कि पुस्तकें एक बहुत अच्छी गुरु हैं,....ऐसा गुरु जो न डांटता है न शिकायतें करता है न ही हमारी कोई परीक्षा लेता है और न ही हमारी असफलता का मूल्यांकन करता है......वे बस एक स्नेहमयी माँ की तरह सहजता से हमें पढ़ाती रहती हैं....उनके पढ़ाने का तरीका भी तो निराला है , मूक भाव से , बिना कुछ कहे , बिना बोले....
किताबें हमारे व्यक्तित्व में बदलाव लाती हैं ये तो तय है ....छोटे छोटे बच्चे भी नई चमकती सुन्दर किताबो के प्रति लालायित होते हैं......न पढना जानते हुए भी सुन्दर चित्रों से सुसज्जित पुस्तकें देखकर उनके चित्रों से स्वयं को जोड़ते हैं.....एक अध्यापिका होने के नाते........मैंने यह महसूस किया है कि पुस्तकों के प्रति ,बच्चों का एक स्वाभाविक लगाव होता है.....और अनदेखे अनजाने चित्रित पात्रों को देख कर वो ऐसी ऐसी कहानियां गढ़ कर सुनाते हैं कि ............उनकी कल्पना शक्ति पर ताज्जुब होता है....                                               

  बच्चों को   इसी लिए किताबें थमाई जाती हैं.....
हम किस तरह के व्यक्ति बनना चाहते हैं ?....समाज और दुनिया के लिए हम क्या क्या कर सकते हैं ?? इन सबके बारे में किताबों से बढ़ कर कौन मदद कर सकता है ??

मेरा बहुत सा एकांत इनके साथ ही बीत ता है ..किताबों की एक खास तरह की महक मुझे बहुत अच्छी लगती है.....उनकी छुवन उनका अहसास ....सिरहाने रख कर सोना ,,,..पढ़ते पढ़ते कब सो जाती हूँ, पता ही नहीं चलता , कई बार ऐसा हुआ है चश्मा पहने पहने ही सो गई हूँ.....और उसके लिए पतिदेव नाराज भी हुए हैं......स्कूल से आकर जब कोई नई ताज़ा मैगजीन टेबल पर रखी हुई मिलती है तो जी खुश हो जाता है .......

स्कूल की... चख चख , शोर और तनाव सब भूल जाती हूँ....खाना खा कर आराम करने का वक़्त (जो अमूमन २ घंटे से तीन घंटे के बीच होता है ) सिर्फ मेरी किताबों को और नींद को समर्पित है इसमें मुझे किसी भी तरह का व्यवधान पसंद नहीं.........
मेरे जीवन में अच्छे बुरे अनुभवों के बाद के बचे हिस्से पर सिर्फ पुस्तकें ही काबिज हैं ….. सिर्फ वे ही हैं जो मेरे एकाकी और उदास पलों की साक्षी रही हैं......मेरा मन बहलाती हैं.......ऊब थकान और हताशा से मुक्ति दिलाती हैं.........कितनी भी चिंता में या तनाव में रहूँ,........पर सिर्फ कुछ पृष्ठ पढ़ लेने से ही जैसे शांति सी मिल जाती है........
अब जब से मैं नेट से जुड़ गई हूँ, ....... बहुत से ऐसे साहित्य कारों ,... कवियों, ....और लेखकों से संपर्क हुआ जो मेरे प्रेरणा स्त्रोत रहे हैं, .....बहुत सी रचनाएँ जो नेट पर उपलब्ध हैं पढ़ती रहती हूँ........कई इ- मैगजींस के साथ भी जुडी हूँ .......उनके लिए कुछ कुछ कार्य करती रहती हूँ..........पर बात फिर घूम फिर कर वहीँ आ जाती है......किताबों के प्रति प्रेम की,....तो उनका कोई जवाब नहीं......कितनी भी किताबें नेट पर हों.. पर उनको पढने में मुझे ज्यादा आनंद नहीं आता , किताबों की बात ही कुछ और है,..... वे हमेशा अपनी सी लगती हैं........मेरे प्रिय लेखक निर्मल वर्मा जी के शब्दों में ...
"किताबें मन का शोक , दिल का डर , या अभाव की हूक कम नहीं करतीं , सिर्फ सबकी आँख बचा कर चुपके से दुखते सर के नीचे सिरहाना रख देती हैं."........😊😊😊