लिखिए अपनी भाषा में

Sunday, January 8, 2023

मुंबई से लौटते समय (7-1-19)

कुछ ही देर में इटारसी पंहुचने वाले हैं.....  हल्की हल्की ठंड का आभास होने लगा है.... साथ में कई गुजराती महिलाओं का समूह है... जो नेपाल पशुपतिनाथ का दर्शन करने निकला है....  हमारे साथ बैठी गुजराती महिला, बेहद मिलनसार और बातूनी.... भाषा कोई व्यवधान नहीं है हमारे बीच... उनकी टूटी फूटी गुजराती मिक्स हिन्दी हम अच्छी तरह समझ रहे हैं....जरूर वे बहुत ममतामयी और सुगृहिणी होंगी..... इतनी सी देर में ही अंदाजा लग गया है.... वो पूरी गृहस्थी के साथ हैं उनके बड़े से बैग से ढेरो खाने पीने का सामान निकलता ही जा रहा है 😊😊😊😊थेपला, खाखरा, पेड़ा, बेहद स्वादिष्ट हरी मिर्च का गुजराती अचार, चूडे़ की चुरमुरी नमकीन.....इलेक्ट्रिक केतली में बनाई गई चाय..... और साथ में उनका आत्मीय स्नेह भरा आमंत्रण 😍😍😍बस समझो... हमारी तो लाटरी ही निकल पडी है😂😂

Thursday, January 5, 2023

मन की बात😢

कभी-कभी सोचती हूँ कितना अच्छा लगता होगा जब आप अपनी देवरानी, जेठानी या ननद भौजाइयों से सास- बहू और घर गृहस्थी, बाल बच्चों वाली, चुगली एक दूसरे की बुराई, घर कच्ची और परपंच छोड़कर..... सम सामयिक प्रसंगों, ज्वलंत विषयों और किताबों की बात कर सकें..... विश्व प्रसिद्ध लेखकों, कवियों और कविताओं की, कला और साहित्य की बात कर सकें......जहां आपको कोई "बहुत एडवांस" बहुत "पढीलिखी", "बहुत मेंटेन ", "अपने को बहुत समझती हैं "वाले कमेंट या ताने न दे.... हर एक के शौक या पसंद नापसंद एक सी नही हो सकती  ये तो जगजाहिर है......... पर किसी से गुण मिले या न मिले...... उनसे धीरे-धीरे मन तो मिलने  ही लग जाता है.....उनका संग-साथ अच्छा लगने लगता है..... ..मुझे यह बात का हमेशा कचोटती रहती है कि मैं इस मामले में बहुत भाग्यहीन रही.... इतने लंबे चौड़े.... लोगों से खचाखच भरे.... छुआछूत.... पूजा-पाठ (लगभग पाखंड) और दोहरा चरित्र जीने वाले कुनबे में मुझे कोई भी अपनी जैसी रूचि वाला इंसान नहीं मिला......
       अब तो अपने बच्चे ही आपस में प्रेम से रह लें..... तो माता पिता के लिए जन्नत है .... हमारी पीढ़ी तक तो रिश्ते अब भी बहुत हद तक संभाल के रक्खे हुए हैं..... हालाँकि अब मिलना जुलना उतना नहीं होता..... सभी की अपनी अपनी व्यस्तताएं हैं......समय ही ऐसा आ गया है.... उसके लिए किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.... पर कोई वैमनस्य नहीं है...... पर हमारे बच्चे शायद  उन्हे इतना नहीं संभाल पायेंगे........ बच्चे जानते ही नहीं बहुतों को..... आमना सामना ही नहीं हुआ..... शादी विवाह में भी व्यस्तता के कारण पहुंचना - मिलना नहीं हो पाता...... अब उनके  लिये रिश्तों से ज़्यादा दोस्तों की अहमियत है....उनका अपना सर्किल है अपना समाज है...... 
          रिटायर मेंट के बाद अब यहां से शिफ्ट होने की तैयारी में आज कल बहुत सारे पुराने कचरे(!) को साफ करने में लगी हुई हूँ.....एक समय बेहद प्रिय और जरूरी चीजें..... जो बड़े प्यार से खरीदी गई थीं.... बच्चों को मिले ढेरों इनाम, कप, गिफ़्ट वगैरह को कचरा कहना  रूला रहा है.... भरसक मैं यूँ भी  बहुत  सारी एक्स्ट्रा हो गई चीजे हटाते रहने और उन्हें जरुरतमन्द लोगों को  बांटते रहने मे विश्वास करती हूं..... इससे घर भी हल्का रहता है और मन भी....... काफी हद तक बहुत कुछ बांट ही दिया है....... 
             इसी सफाई के सिलसिले में  आज बडी मेज का ड्राअर खोल कर  कर बैठी थी..... नई  के साथ साथ बहुत सारी  पुरानी फोटुएं - चिट्ठियां भी हैं यही कोई  30-40 या 50 साल पुरानी भी..... उनमें से छांट कर  कुछ एक फोटोज और चिट्ठियां तो मैंने  फाड़  कर फेंक ही दीं ...... जो अब तक भावुकतावश सम्भाल कर रखी थीं...... उसमें..... बहुत सारे चेहरे  तो अब कोई पहचानेगा ही नहीं..... मैं खुद भी नही पहचान पा रही.... फिर  भी फोटो फाड़ना नही चाहिए... चिट्ठियां फाड़ना अच्छा नही होता... ऐसा सोच के  अब तक संजो के रखा था....... 
         बस लग रहा था जैसे कि चार या साढ़े चार दशक पीछे का फ्लैश बैक देख रही हूं.... उसमे से कितने ही   चेहरे तो अब हमेशा के लिए ही   तस्वीरों में तब्दील हो चुके है.... कितनी चिट्ठियां जो कितने अरमान कितने प्यार से लिखी गई हैं.... अब उनके उत्तर कभी नही आएंगे.... कितने सारे पुराने फोन नंबरों से भरी डायरियां.. जो नंबर अब कभी नहीं लगेंगे......उन नंबरों पर मिलने वाले बात करने वाले हमेशा के लिए बहुत दूर जा चुके हैं..... 
           देर रात तक  नींद नही  आई..... फ्लैश बैक में घूम रहा था मन...... जैसे कोई बहुत पुरानी  रंग उड़ी - बदरंग सी फिल्म देख रही हूं......पर यही सोचती रही कि फिल्म का अंत सुखद रहे बस..... 
     बहुत सुखद समय तो नहीं कहूंगी पर फिर भी बहुत अच्छा समय था वो.... फिर सबके बच्चे बड़े होते गये.....सब अपने पैरों पर खड़े हुए...... सबके शादी ,ब्याह हुए..... सब,बाल बच्चेदार हुए... माँ बाप से अलग हुए... और धीरे धीरे अपनी दुनिया मे सिमट गए...... चचेरे ,ममेरे रिश्ते सिमटने लगे...... बल्कि सगे रिश्ते भी धीरे-धीरे पट्टीदारियो में तब्दील होने लगे ..... और अब तो आपस मे  अच्छाइयाँ  देखनी  छोड़ कर बुराइयों की तलाश शुरू हो गई हैं.....बल्कि किसी का भी आगे बढ़ना, तरक्की करना.... किसी को नहीं सुहा रहा...ईर्ष्या दग्ध हो उठते हैं सब.... . 
     . अनजाने में भी किसी के मुंह से निकली  नापसन्द बात और व्यवहार का नकारात्मक छिद्रान्वेषण होने लगा। मन मलीन होने लगा है  और साथ ही रिश्तों पर धूल की परत जमने लगी है.....एक अनजानी सी शून्यता आने लगी है रिश्तों पर..... बस "जब देखें तब लागे मोह" वाली बात है.... 
         कितना अजीब है न यह सब कुछ...... पर आज ऐसा ही है.....सब  आपसी रिश्ते दूर करके बस दोस्तों में सिमटने लगे हैं..... .. सबको दिखाने के लिए अंदर से बिल्कुल ठंढे होते जा रहे  रिश्तो के ऊपर भी बनावटी खुशी, बनावटी गर्माहट का लबादा चढाने लगे हैं....... 
       सचमुच उन तस्वीरों - चिट्ठियों  में से कई बहुत नजदीकी  रिश्ते आपसी राजनीति के चलते अपने मे सिमट गये......बहुत चाहते हुए भी एक फोन तक करने में डर लगता है कि पता नही सामने वाले की क्या प्रतिक्रिया हो..... उनमे से बहुत रिश्तो को तो स्वयं मैंने बहुत शिद्दत से जिया है तो मेरा मन दुखी होना तो स्वःभाविक ही है.......पर विवशता है कुछ कर नहीं सकते 😢😢

Tuesday, January 3, 2023

साल का पहला दिन

 शुरू हो गया हमारा नया साल 😊😊
 
बस फिर  एक संख्या बदल गई आज से.... 
अब 2022 की जगह 2023 लिखना है... 
वह भी अब लिखना कहां  होता है? 
न कोई पेपर लिखना है अब..... न कोई चिट्ठी.... 
कम्प्यूटर और मोबाइल पर तो सब पहले से ही लिखा रहता है...... 

सामने ही कैलेंडर टँगा है.... 
जिसमें केवल बारह पन्ने हैं..... 
एक एक कर के कब सारे पन्ने खत्म हो गए.... 
पता ही नहीं चला.....
दिन,महीने,साल खत्म होते जा रहे हैं... 

 और अब फिर से शुरू होंगी नए ढंग से वही तारीखें....... 
 वही सब दुहराया जायेगा जो कल तक होता चला आया.... 
 
बस एक ही फर्क होगा कि हमारी ज़िंदगी का 
एक और मूल्यवान वर्ष समाप्त हो गया 😔

Monday, January 2, 2023

ऐसी ही हूँ मैं

               उम्र के इस मोड़ पर आ के  मैं अब चीजों से मोह नहीं रखना चाहती और न ही नई चीजों को पाने या लेने की कोई ललक रहती है....... कबर्ड  में ज़्यादा कपड़े देख कर अब उलझन होने लगी है.... बहुत  सोच समझ कर ही लेती हूँ कि पहन पाऊँगी या नहीं क्योंकि अब सिर्फ़ कम्फर्टेबल ढीले-ढाले कपड़े ही पहन पाती हूँ........ 
           बचपन मे मैंने भी कम खिलौनो से खेला....... गिने चुने ही खिलौने रहे मेरे पास....... ज़्यादा की चाह रही भी नहीं। न दूसरे बच्चों के खिलौनों को देख कर कभी  जी ललचाया...... 
            बेहिसाब लापरवाह होने के बाद भी अपनो की निशानियों को बचपन से ही सहेज सहेज कर रखना आ गया था..... बेस्ट फ्रेंड की ढेर सारी चिट्ठियां और ग्रीटिंग कार्ड बरसों संभाल के रखे रही..... वो ग्रीटिंग कार्ड कॉलेज के टाइम तक थी मेरे पास......अपने 32 वर्षों के अध्यापन कार्य काल के दौरान छात्र छात्राओं बच्चों के दिए अनगिनत प्यारे प्यारे कार्ड्स.... आज भी मेरे पास धरे हैं..... .  कितनी प्यारी प्यारी चीजें..... सहेलियों के दिए छोटे छोटे गिफ़्ट मेरे बनाए तमाम स्केचेज ड्राइंग्स....कितने क्रिकेटर्स, चार छः फिल्म कलाकारों कुछ लेखकों, कवियों के आटोग्राफ से भरी मेरी आटोग्राफ बुक..... . सब कुछ सम्भाल कर रखती थी....... बनारस की भयावह बाढ़ में मेरा ट्रंक 20 दिन तक डूबा रहा और उसमे कितने सारे मेरे सपने और खूबसूरत चीजें  गीले कीचड और मलबे में बदल गईं......
          अंतर्मुखी स्वभाव के चलते.... दोस्त भी बहुत कम बनाए... ... उन्हीं से दोस्ती होती जो दिल मे घर कर जाते....और जिंदगी में अगर सचमुच किसी को चाहा और जिससे प्यार हुआ बस उसी के हो कर रह गए........ बस ऐसी ही हूँ मैं... खुल कर लडाई झगड़ा करने का कभी नेचर नहीं रहा..... किसी के कुछ कह देने पर रो धो कर चुप हो जाती रही हूँ..... 
               अब जाकर 2-4 साल से कुछ चेंज करने की कोशिश की है  ख़ुद को.... मैं मजाक नहीं करती कभी और दिल दुखाने वाले और अश्लील मजाक तो कभी नहीं...... और ये भी कभी पसंद नहीं किया कि  कोई मेरा मजाक बनाए या उड़ाए...... अब बहुत प्रैक्टिकल हो गयी हूँ.... मैंने भी कुछ समय पहले कुछ लोगों का व्यवहार बहुत बुरा महसूस किया..... और हमेशा के लिए उनसे संपर्क तोड़ लिया..... मैं अपने आप से बहुत प्यार करती हूँ...... अब ख़ुद को गिफ्ट देती हूँ कभी कभी.....अब कोई लालसा सी नहीं रही जैसे.... बहुत बचा लिया.... बच्चे अब समर्थ हैं अपने पांवों  पर खड़े हैं...... 
किसके लिए बचाना है? जिसे ज़रूरत होगी अपने लिए कमा लेगा..... 
                  गम नही करती अब मैं...... खुद को समझा बुझा कर खुद ही नॉर्मल कर लेती हूँ...... मैं तो हमेशा से ही ऐसी रही....... मिनिमम में काम चलाने वाली....... भंडार भरकर कभी रखा ही नहीं......पर चाहे अनचाहे.... नौकरी के चक्कर में साडियों /कपडों का ढेर लग गया......कपडों का शौक रहा है बचपन से ही और बचपन में जो शौक पूरे नहीं हो सके...... वो अब तक गाहे-बगाहे करती रही......खूब बांटा भी.... बिना किसी से पूछे.... बस उठाया और दे दिया......जब तक चीजें सामने दिखती रहती हैं मोह लगता है पर अब एकदम निर्मोही बन कर आंखे बंद कर लेती हूँ...... अब तक  जितना सम्भालकर जो भी रखा....... दे दिया..... 
                  भावुक हूँ बहुत...... भुला नहीं पाती..... अगर दुःखी भी हूँ तो किसी को ज़ाहिर नहीं करती.... लेकिन फ़र्क़ न पड़े,.... ऐसा नहीं होता.... बहुत पड़ता है,...बहुत ज़्यादा पड़ता है.... .. कभी किसी ने कुछ भी किया हो मेरे लिए, अपनी ताक़त से ज़्यादा ही उसके लिए कुछ करने की कोशिश करती हूँ...... हमेशा एहसानमन्द रहती हूँ...... कुछ अच्छा कहा हो तब भी..... और अगर कभी किसी ने मुझे रुलाया हो या चोट पंहुचाई हो तो उस समय अवाइड तो कर देती हूँ, पर दिल से भुला नहीं पाती....... अपना ग़म अपने तक ही रखा हमेशा.... मेरा मन मुझसे जुड़ी हर चीज़ में अटका रहता है..... कितनी लिमिटेड चीजें थीं बचपन में......पर  कभी नई नई चीज़ें दूसरों के पास देख कर ललचाई नहीं.....  जो कुछ भी मेरे पास है, जब तक वह ठीक-ठाक काम दे रहा, नए का क्या ढेर लगाना....... खिलौने हों, चप्पल-8 जूते हों, घड़ियां, हैंड बैग, बरसों चलाया...... सिलाई करने का शौक चढा तो कितने ही दिनों तक खुद के सिले हुए ही सलवार कुर्ते पहने....... भले वो कैसे भी सिले हों.... यूनिवर्सिटी में उन्हीं सूट्स को पहन के जाती रही निःसंकोच बिना शर्माए.......जब कि उस समय बेलबॉटम और डॉगकॉलर वाली नीतूसिंह टाइप शर्टस खूब फैशन में थीं..... बहुत चीज़ों का ढेर नहीं लगाया लेकिन जो भी पास था, प्यार से सहेजा......शो आफ करने की आदत नहीं रही..... 
            इंसानों के लिए भी यही भावना रही..... जिसने दिल में जगह बना ली, बस बना ली..... नाराज़ होना, शिकवे करना नहीं आया.... कभी उदास हुई या रूठी भी तो किसी से मनाने की उम्मीद नहीं लगाई....कभी हक़ जताना, धौंस जमाना नहीं आया...... 
               मेरा चीजों को सहेज कर रखने की, हिफ़ाज़त करने की,  ये सब कुछ बहुत अच्छी आदतें हैं... मुझमें भी यह मेरी मम्मी से आया है.... 
    अपनी चीजों से बहुत लगाव रहता है मुझे...कभी किसी की चीज छीनने की मंशा नहीं रही..... भले मेरी ही कितनी चीजें बिन पूछे ले ली गईं....और आजतक वापस नहीं मिलीं.... . 
पर अब चाहती हूँ बदल जाऊँ...... रिश्ते,सामान....हर चीज बहुत संभल कर रखी  ..मैंने ...पर अब  सीख  रही   हूं थोड़ा बहुत "छोडो जाने दो यार"... करना..... 
               आदमी जिंदगी भर ये सोचकर पैसा बचाता है कि मुसीबत में काम आएगा और ये ही सोचकर जिंदगी भर मुसीबत में ही रहता है..... 

31-12-22

मन बहुत भारी भारी सा है.......सब कुछ जानते हुए भी कि जीवन का सत्य है ये फिर भी मन नहीं मानता... 
आज भी मुझे नहीं लगता कि मेरा भाई अब मेरे साथ नहीं है.....
 मैं उसको सदा महसूस करती हूं.....गहन प्रेम में ये अहसास बना ही रहता है...... 
उसकी याद हमेशा हमेशा दिल में रहेगी..... 
            जिन्दगी चलती रहती है ....  पर भीतर कुछ है जो ठीक नहीं होता....... कुछ खोने की पीड़ा और मन का एक कोना खाली होना बड़ा अजीब सा अनुभव कराता है... बस व्यस्तता के बहाने उसका एहसास कम से कम करना ही ठीक रहता है.... पिछले  साल आज के ही  दिन मैने अपने भाई को खोया दिया था..... 

तुम जहाँ भी हो ऐसे ही मुस्कुराते रहो 😔😔😔 बस्सस