लिखिए अपनी भाषा में

Tuesday, May 31, 2022

मम्मी....

कभी सोचती हूँ कि कोई जाए तो आपकी तरह ही जाय अचानक। न किसी से कोई सेवा ली न किसी का एक पैसे का एहसान लिया.... बस खुद की जमापूंजी भर से इलाज हो गया.....कुल हफ्ते भर के अंदर सारा खेल खत्म हो गया....  और बस चली गईं हम सबको  ये जताकर कि रखो  तुम लोग अपनी कमाई अपने एहसान..... सही एटीट्यूड है ये एकदम.... 
 
खैर किस्मत में यही था शायद.... अच्छा है हम लोग शायद कुछ कर देते तो बड़ा गुमान हो जाता खुद पर और क्या पता क्या समझने लगते खुद को। ठीक ही है जिंदगी ने आपके जाने के बाद ही सब कुछ दिया जो हमने सोचा था.... कम से कम अकेलेपन और संघर्ष के दिनों में तो आपका पूरा साथ रहा..... एक हिम्मत रही कि यार कोई नहीं...... मम्मी हैं न..... हम लोग सब संभाल लेंगे..... 
सोचती हूँ आपके रहते तक एक अलग ही जिद थी कुछ करने की ,अपनी गृहस्थी बनानी थी.... घर का सामान जोड़ना था... एक घर लेना था खुद की कमाई से...... बिटिया की शादी करनी थी...... पर आपके जाने के बाद ये सब हुआ अच्छी तरह हुआ पर आपके सामने होता तो कुछ और बात होती....... कभी-कभी बहुत बड़ी लगने वाली चीजें अब बहुत छोटी चीजें लगने लगी हैं..... 
पापा जी को तो प्राण छोड़ने के घण्टों बाद देखा था पर आपकी साँसे रुकते हुए तो सामने से देखा है। उस वक्त के बाद सपने, जिद सब बहुत छोटे लगते हैं.... लगता है जैसे जीवन का कोई बड़ा सत्य खोज लिया है.....! 
अब लिखने बैठो तो केवल यही टीस यही भारीपन निकल ही आते हैं कलम से..तो क्या ही लिखना..... बस  मन ही मन बड़बड़ा लेती हूँ तो मन थोड़ा सम्हल जाता है,लिख लेती हूँ तो थोड़ा मन की भड़ास निकल जाती है बस यही कर रही हूँ। 

सच कहूँ तो जिंदा हूँ ..खुश भी हूँ...... बहुत खुश हूँ अपने  जीवन में..... सबका लाड़ मिलता है...... बच्चे बहुत ध्यान रखते हैं..... सारे नखरे झेलते हैं... अब किसी से कोई शिकायत नहीं..... आपकी बहुत एहमियत थी हमारे जीवन में..... कितना कुछ किया.... दिया हमको लेकिन आप जाते-जाते मेरा कुछ हिस्सा तो ले गईं मम्मी .....
❤️

Monday, May 30, 2022

टूअर होना

                आज भी कंधे पर  कश्मीरी कढ़ाई वाले सूट, शाल का गठ्ठर लिए फेरी वाले चक्कर लगाया करते हैं.....और हमारे स्कूल - कॉलेज के दिनों में भी आया करते थे.... और वो जानते थे कि हमारे घर मे उनका दो चार आइटम तो जरूर निकल जाएगा..... पुराने कपड़े लेकर स्टील के बरतन या प्लास्टिक के बने टब, बाल्टी जैसी चीजें बदल कर लेने  का रिवाज था तब...... दो चार छः चीजें ..... ये मम्मी थीं जो जरूर खरीद लेती थीं..... ले लेती थी..... उनका मोलभाव करने का अपना ही तरीका था.... सौ रूपए की चीज को पचीस रूपए में कैसे लेना है.....उनको बखूबी आता था..... और वो बंदे वाकई पचीस तीस में देकर ही जाते थे...सिर्फ उनके बात करने के तरीक़े से.... बिना जरूरत भी वो तमाम छोटी बड़ी चीजें खरीद कर सहेज लेतीं और मौके मौके पर किसी किसी को देने के लिए ढेरों सामान रहता उनके कलेक्शन में....बाजार में कितने ही दुकानदारों से खूब अच्छा व्यवहार रहा उनका.... मुझे याद है दो सरदार बच्चे एक बार हमें गोदोलिया में मिले.... जो छिटपुट बनियान रूमाल जैसी चीजें हाथ में लेकर बेच रहे थे...उनसे थोड़ा प्यार से बातचीत कर लेने पर वो हमारे पीछे ही पड गए और साथ साथ चलने लगे फिर उन्होंने बताया कि कुछ पहले हुए दंगे में उनके माता-पिता  को मार दिया गया था और बस वही दोनो बच्चे हैं अब घर में.... मुझे याद है हम लोग उनकी मार्मिक कथा से द्रवित हो उठे थे.... उनसे कुछ सामान लिया और काफी दिनों तक गोदोलिया जाने पर उनसे सामान लेते भी रहे.... धीरे-धीरे वो बच्चे संभल गए और अपनी छोटी सी दुकान भी खोल ली....एक बार काफी दिनो बाद जाना हुआ तब भी वो हमें भूले नहीं थे...... मम्मी को देखते ही आवाज लगाई उसने... फिर तमाम कपड़े लिए गए वहां से.... बहुत अच्छा लगा... आज भी बाजार वही है, गोदोलिया भी वही है, दुकानें भी वही हैं पर अब मम्मी अब कभी उधर नहीं जाएंगी कि मेरे  लिए छोटा मोटा समान खरीद कर सहेज लेंगी..... 
           उनके  के रहते..... हम उपस्थित न होते हुए भी उस घर में हमेशा बने रहते थे.... वो जोड़ती थीं...... सबको जोड़ के रखना जानती थीं....कितने ही लोगों का आना जाना लगा रहता था..... . हमारा होना उस घर में पुख्ता करने वाली मम्मी ही थीं....हमारा हाल चाल पूछने वाली मम्मी थीं..... कौन त्योहार कब आ रहा, कब कब क्या क्या करना है ये सब बताने वाली मम्मी ही थीं..... और वो सारे उपक्रम करते हुए हमको उनकी ही सबसे ज्यादा याद आई.....रिश्तों की अहमियत बताने वाली....  सभी को  याद करते रहने वाली मम्मी ही थीं..... 

         अब तो ये ही लगता है जैसे जब माँ नहीं होती.... तो हम मांँ के घर से घटने लगते है और घटते घटते धीरे धीरे लुप्त हो जाते हैं.....घनिष्ठता समाप्त सी होने लगती है शायद एक समय के बाद कभी कभार दूर दराज की बातों में हमारा जिक्र भर सुनाई देता है.....या शायद वो भी नहीं... 
खुद नानी दादी बन जाने के बाद भी.....  औरते जब भी तकलीफ में होती हैं... खुद को टूअर समझने लगती हैं..... 
माँ नहीं है तो लगता है हमारा दुख दर्द सुनने वाला कोई नहीं......किससे कहें?? 

Saturday, May 28, 2022

टाइटैनिक की यादें

"टाइटैनिक" मेरी पसंदीदा फिल्मों में सबसे खास स्थान रखती है...अभी तक कितनी ही बार देख चुकी हूँ और अभी भी बिना ऊबे देख सकती हूँ....लेकिन अफसोस है कि अभी तक मैने थियेटर में जाकर ये फिल्म नहीं देखी है... जिस समय ये रिलीज हुई... सभी देखने वालों ने ये बताया कि बड़े पर्दे पर समुद्र के दृश्य बहुत ही विकराल और भयावह रूप में दिखते हैं.... (विकराल और भयंकर डायनासोर वाली "जुरासिक पार्क" कुछ ही दिनों पहले देखी थी.... और कई दिनों तक सो नहीं पाई थी)इस लिए हिम्मत नहीं जुटा पाई हाल में जाकर देखने की🙄🙄 पर एक दिन अपने घर पर ही पेंटिंग क्लास के दरम्यान टीवी पर वीडियो कैसेट लगा कर अपनी छात्राओं के साथ देखा..... सभी बेहद रूचि और तन्मयता के साथ देखते रहे.... और आखिरी दृश्यों में जब जैक के ठंड से अकड़े हुए हाथ उस तख्ते को (जिस पर रोज़ लेटी हुई सितारों को देख रही है..)छोड़ देते हैं और वो धीरे-धीरे समुद्र में समाता चला जाता है....ये दृश्य देख कर हम सभी एक साथ रोए थे.....सचमुच गजब के भावुक दृश्य थे... 
😢😢😢😢😢

Wednesday, May 18, 2022

डायरी का एक पेज

मैने बाहर जाकर दूसरे लोगों से मिलने को.... खुशी महसूस करने का जरिया नहीं समझा कभी... . मुझे लंबी लंबी शामों को चाय पीते हुए अपनी आराम कुर्सी में अधलेटे बैठ कर कुछ पढना या लिखना और घर में शांति से समय बिताना ज्यादा पसंद है...... मुझे पतिदेव और बच्चों के साथ घर में रहने से ज्यादा खुशी किसी और चीज से नहीं मिलती है.'

Monday, May 16, 2022

क्या पता....


क्या पता, किसी और को भी ऐसा महसूस होता हो कि एक शून्यता सी आने लगी है संबंधों में, वह जड़ता, निष्क्रियता जब हम कुछ फ़ील करना ही नहीं चाहते। जब लगने लगता है कि सब-कुछ जोड़कर, सम्भालकर रखने की कोशिश में ख़ुद टूटते-बिखरते जा रहे हैं.... सबकी अपनी-अपनी व्यस्तताएं हैं, अपने संघर्ष हैं, अपनी चुनौतियां हैं और सबसे बड़ी बात, अपनी प्राथमिकताएं हैं और अपने-अपने एहसास है..... 
अपनी बात करूँ तो मैं इज़ी टू कनेक्ट हूँ (बेशक़ सबसे नहीं, जिनसे मेरी  अंडरस्टैंडिंग है, दोस्ती है, उनके लिए) लेकिन टच में रहने के मामले में बेहद-बेहद आलसी हूँ.... ख़ुद से कॉल/मैसेज, हाल-चाल जानना, मैं नहीं कर पाती ज्यादा.... मैं कभी दावा नहीं करती कि मै अवेलेबल हूँ हमेशा, क्योंकि पता है, नहीं रह सकती......फिर भी अपने दोस्तों के लिए कोशिश करती हूँ.....चमचागिरी होती नहीं, इसलिये जिनसे ट्यूनिंग नहीं, वहाँ जाने से बचती हूँ ...... 
पता हम किसकी स्टोरी में हीरो हैं, किसकी स्टोरी में विलेन। सबकी ही  अपनी-अपनी सोच  है..... फिर भी  अच्छा लगता है यह सोचकर कि कुछ तो हैं हम भी..... चाहे मिलें न मिलें, बात होती हो, न होती हो, फिर भी हमारी कुछ तो परवाह है, याद तो किया जाता है, ज़हन में रखा जाता है हमें भी.......हम भी चर्चाओं में रहते हैं......चाहे मन से याद किए जाएं या बेमन से...... 

Sunday, May 15, 2022

उम्र के साथ

उम्र गुज़रने के साथ जो सबसे तकलीफ़देह बात होती है, अपने सबसे प्रिय लोगों को बूढ़े, कमज़ोर और बीमार होते देखना.... उनको एक एक करके दुनिया से जाते हुए देखना..... बचपन में जिन्होंने हमें गोदों में खिलाया, हमारी फ़रमाइशें, मनमानियां पूरी कीं, जिनको सेहतमंद, ताक़तवर, ख़ूबसूरत देखा, उनको ढलते और मरते देखना...... 
फिर भी इस छोटी सी , अनिश्चितताओं से भरी ज़िन्दगी को भी हम ग़ुस्से, नफ़रत, साज़िश, जलन, ग़लतफ़हमियां, ईगो में बर्बाद कर रहे  हैं, क्योंकि यही हम सबकी फ़ितरत है.... किसी भी बात के प्रति वैराग्य भी बस कुछ समय का होता है, फिर सब अपनी-अपनी दिनचर्या में लग जाते हैं क्योंकि मन ही मन में उम्मीद होती है कि हमें तो अभी जीना है बहुत। और इसी उम्मीद पर ही दुनिया टिकी है..... भविष्य है, सब कुछ अच्छा होगा, यही सोचकर उसे बेहतर बनाने की जुगत में ही लगे रहते है।
ख़ुश-नसीब होते हैं वे लोग, जो बिन किसी तकलीफ़-परेशानी के दुनिया छोड़ जाते हैं, और पीछे छोड़ दिया गया परिवार भी सेटल्ड होता है। वरना अचानक चले जाने वालों के परिवार तिनकों की तरह बिखर भी जाते हैं।

लेकिन बहुत यंत्रणादायक होता है ज़िन्दगी के पचास-साठ साल की कमाई उठा कर अस्पताल में दे आना.. 
बस हाथ-पैर चलते रहें और सबसे अहम, शरीर और दिमाग़ के बीच तालमेल और संतुलन बना रहे, किसी की मोहताजी न हो, किसी पर डिपेंडेंसी न हो, बस उतनी भर ज़िन्दगी सबसे अच्छी... 

Sunday, May 1, 2022

बस्सससस

इतने दिनों से यहां रहने के बावजूद यही लगता है कि आज कल मैं जहाँ हूँ वो एक छोटा सा शहर  है , थोडे से लोग हैं  कुछ पहचाने से.. कुछ अनजाने से..... एक रास्ता है... जो घर से स्कूल और स्कूल से घर को जाता है.... थोड़ी सी नींद है और ढेर सारी उनींदी  रातें हैं।

मुझे लगता है  जैसे मैं सफर में हूँ और सफर करते करते थक गई हूँ।  हर दिन इस  दर्द को सुन सुन कर और महसूस करते करते थक गई हूँ। क्या कोई मुझे बता सकता है....हम कहां से चले थे??? हम  कहाँ जा रहे है? और कहाँ से आ रहे हैं? 

मेरे  सिरहाने  कुछ सफ़ेद पन्ने और कैनवास रखे हैं, जिनपर क्या लिखूं, क्या रचूं... कुछ समझ ही नहीं आता। मैं मन में कल्पना की उंगलियों से  हवाओं में चेहरे बनाती हूँ.... बिगाड़ती हूँ, सफेद कागज पर सिर्फ हाथ फेरती हूँ। 

 एक वक्त था जब जी में आता मैं आंखे बंद करते ही नींद को बुला लेती थी।  चांद, तारे सब मेरे मित्र थे जैसे.... पर अब सब तारे मेरी तरह बूढ़े हो चले  हैं.... और चांद ने मुझसे दोस्ती छोड़ दी है।

  जिंदगी के हिस्से में आज  एक और दिन आया है! नहीं  , यह कहना ठीक नही है, दरअसल मेरे  हिस्से में एक सुबह, एक दोपहर, एक शाम और एक  रात आई है। 

मुझे लगता है जब आप किसी से मिलते है तो  थोड़ी सी खुशी,थोड़ी सी हंसी... थोड़ा सा प्यार ,थोड़ा सा विश्वास भी होना चाहिए साथ में..... आजकल मैं अनजान लोगों के बीच हूँ जैसे....