लिखिए अपनी भाषा में

Sunday, September 20, 2015

खामोशी बस यूँ ही........

   

         


        मुझे  कम  बोलना पसंद है .....चुप  रहना नहीं,    पर जब जरूरत हो  तभी.....बोलना अच्छा रहता है......और मेरी ये आदत हमेशा से है....जब कॉलेज में थी तब भी....... और  आज भी ..मेरी इस आदत की वजह से अक्सर मुझे गलत समझ लिया जाता है.....घमंडी  और गुरूर वाली....जबकि  ऐसा कत्तई नहीं है अक्सर स्टाफ़रूम में या लेडीज क्लब में ,,,,,ट्रेन में.....महिलाओं के साथ घरेलू कार्यक्रमों   में  या किसी भी अन्य भीड़भाड़  वाली जगह में भी मैं सिर्फ एक अच्छी श्रोता बनी रहती हूँ....सभी की बातें सुनती रहती हूँ    और कुछ पूछे जाने पर ही  अपनी सहमति या असहमति जाहिर करती हूँ......मुझे मौन और एकांत दोनों ही आकर्षित करते हैं....बेवजह की.... ही ही ...  ठी ठी या चिल्ल्पों  या निरर्थक बातें....मुझे बिलकुल पसंद नहीं.....मुझे शांत - गंभीर और सहज सरल व्यक्तित्व वाले लोग ही पसंद आते हैं...जिनकी बातों में कुछ सार  नजर आये.....निरर्थक, बेफजूल ..या दो अर्थी , अश्लील बातें करने वालो से मैं सख्त घृणा ( कृपया गौर करें !! घृणा ) करती हूँ.......  
               किसी के समय का ध्यान न रखना ,, सिर्फ अपनी ही हांके जाना ..बढ़ चढ़ के बोलना .....अपने आपको  बहुत रईस या पढ़ा लिखा दिखाना.....ये सब ऐसे लक्षण (!!) हैं..जिन्हे  मैं कत्तई बर्दाश्त नहीं कर सकती......
                     खैर  !!! मैं हूँ ही कौन....जो अपनी पसंद ना पसंद को  इतना महत्वपूर्ण समझ कर किसी को बताऊँ....पर मैं ये महसूस करती हूँ की चुप रहना एक जादुई  असर डालता है...आप स्वयं से बातें करके  देखिये ....तो खुद को .... खुद के बहुत करीब  पाएंगे ........कभी अपने अंदर तक उत्तर  के देखिये.....मैं कोई तत्वज्ञानी नहीं हूँ पर...मैंने महसूस किया है की सिर्फ चुप रहने  से कितना सुकून मिलता है (यहाँ चुप रहना किसी हक़ के छीने  जाने से पर भी चुप रहना नहीं है ).......यहाँ चुप रहने का मतलब शांत या मौन रहने से है.....बहुत ज्यादा    एग्रेसिव  या वाचाल होना बहुत सी समस्याओं को जन्म देता है   बहुत ज्यादा बोलने वाले लोग निरर्थक या इतना ज्यादा फालतू बोल देते हैं कि वो मुसीबत का कारण बन जाता है........और बाद   में उनको सफाई देते फिरना पड़ता है.....
                          पर कुछ लोग इतने ज्यादा चुप रहते हैं कि उन्हें चुप्पा या घुन्ना कहना ज्यादा मुनासिब होगा......उनके ऊपर किसी भी परिस्थति का कोई असर ही नहीं पड़ता   नहीं वो कोई प्रतिक्रिया दिखाते हैं....ऐसे समय  में बेहद खीझ उत्पन्न होती है.....एक अध्यापिका होने के नाते बहुत तरह के लोगों से मिलना होता है (बल्कि  कहिये पाला पड़ता है ) अलग अलग मनःस्थिति के , विचारों के , वातावरण के लोग !!....आपकी  कही साधारण सी बात को भी  .....अलग अलग ढंग से सोचने वाले लोग .....
                  एक बार की घटना याद  आती है.....पेरेंट्स टीचर मीटिंग में एक बेहद शरारती और पढ़ाई    में फिसड्डी    बच्चे    के पिता    आये.....मैं उस  बच्चे  से इस हद  तक परेशान  या कहूँ  चिढ  चुकी थी कि उनके आते ही मैंने उसकी कॉपी उनके सामने रखी और पूरी तौर पर महीनों  की भड़ास उनके सामने निकाल दी .....साथ में बैठी दूसरी साथी टीचर ने भी मेरा साथ दिया .... वे बेहद धैर्य पूर्वक सुनते रहे बिलकुल चुप....शायद ही कोई शब्द बोले होंगे....कोई आर्ग्युमेंट नहीं......जब मैं काफी बोल चुकी तो वे बोले.....अब हम जाएं ??....
सच  कहूँ मुझे तो यही महसूस हुआ कि अब तक मैं किसी उलटे घड़े पर पानी डाल रही थी...........इतना गुस्सा  आया कि क्या कहूँ.......पर उस दिन के बाद से उनके बच्चे में गज़ब का परिवर्तन दिखा.....बाद में पता चला कि उसदिन घर  जाकर उस बच्चे की  काफी कायदे से धुलाई  की गई थी......तब उनके चुप रहने का राज़ समझ में आया ......
कक्षा में दिन भर चुप रहो चुप रहो की रट्ट लगाते लगाते  अब ये स्थिति हो गई है कि जरा से भी शोर शराबे ..चीख चिल्लाहट से धड़कन बढ़ जाती है ......घर पहुँचने पर भी बिलकुल बात करने का मन   नहीं होता ....
नपी तुली हाँ हूँ वाली बातें या फिर सिर्फ टीवी की  आवाज़ ही सुनाई देती है...टीवी   में  भी  धड़ाम धुडूम या हल्ला गुल्ला सुनते ही मैं चैनल बदल देती हूँ.....
कभी कभी मैं सोचती हूँ..हफ्ते में एक दिन मौन रखा जाये.....कोई कुछ भी कहे...बिलकुल चुप रहें....कोई बेवजह प्रतिक्रिया नहीं दी जाये ....बोलें   तभी जब बहुत जरूरी हो..
.और ऐसा ही बोलें ......जो सुनने लायक हो......

Friday, September 4, 2015

यूं ही.……।

                             





                                        ताज्जुब है ....मोहभंग होने में इतने साल लग गए ???..जानती हूँ ये एक दिन होना ही था......पर वक़्त और अवसर दोनों सही नहीं थे.......खैर !!!!!......पता नहीं अभी कितना जीवन शेष है....... पर जो भी हुआ....व्यथित करने के लिए काफी है........चोट लगते ही घाव भरने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.......पर कुछ जख्म कभी नहीं भरते.....पपड़ी सूख जाने पर भी अंदर से वो ताज़े बने रहते हैं......ये भी एक ऐसा ही जख्म है........

Sunday, August 23, 2015

यूं ही.……

 




              अगर भगवान हमारी इच्छाएं पूरी करता है........  तो वह हमारा यकीन  बढ़ाता  है। …अगर इच्छाएं पूरी करने में   देर लगाता है। …… तो यही समझना चाहिए  वो हमारा सब्र बढ़ा  रहा है। …और  अगर वो  हमारी प्रार्थनाओं का कोई जवाब ही नहीं दे रहा तो इसका मतलब है कि  वो हमें आजमा रहा है …

Monday, August 17, 2015

यूँ ही …।





                 हम जैसे सीमित आमदनी वाले  लोगों के यहाँ कितनी ही योजनाएं बनती  बिगड़ती रहती है.… कितने दिन तो उस योजना की कल्पना में ही बिता लिए जाते है…। शेखचिल्ली वाले सपने। ।लेकिन  सबसे अच्छी बात ये है कि  यदि ये कल्पनायें या योजनाएं पूरी  न भी हों तो  ज्यादा तकलीफ नहीं होती    क्यों कि   हम    इनके अभ्यस्त हो  चुके  हैं    

Saturday, August 8, 2015

यूं ही……



                                   
                                विगत १२-१३ दिनों से मेरा एयरटेल नेट अर्ध चेतनावस्था में है.. .कभी कभी होश में आता है..तो कुछ हल्की फुल्की हरकतें कर लेता हैं... कोई खिड़की खोल के झलक दिखा देता है.....कुछ लोड करना चाहो तो घंटे दो घंटे में लोड भी कर देता है. . कई प्रख्यात जानकार लोग अपने अपने अनुसार इलाज बता चुके हैं..और ये अनुमान भी लगा चुके हैं कि बीमारी क्या है.....वैसे मनकापुर मे ये घातक बीमारी काफी समय से है.... सभी कंपनियों के नेट वर्क बहुधा मरणासन्न स्थिति में ही रहते हैं.....सबसे सहज अनुमान यही हो रहा है कि...अब ३जी इतना .स्लो कर दिया जाय कि लोग ४जी लेने को बाध्य हो ही जांयें..... मेरे बहुत से प्रिय मित्र जो सचमुच मेरे बिना कुछ. कमी महसूस कर रहे हैं....उनसे मैं विनम्रता से कहना चाहती हूं कि मैं जल्दी ही कुछ व्यवस्था करती हूं .. कि फिर से सक्रिय हो सकूं.... . क्योंकि मैं स्वयं भी बहुत..... दु:खी महसूस कर रही हूं......आप सब के बिना.....गूगल के बिना....मनकापुर बहुत छोटी सी जगह है...यहां ये सब दिक्कतें लगी रहती हैं.. .....

Friday, July 17, 2015

यूँ ही....





कितना अच्छा होता कि हर इंसान की कहानी...
हजारो दिक्कतें झेलते हुए........
सैकड़ों मुसीबतें उठाने के बाद ....
.दुःख दर्द से गुजरते हुए....
इस वाक्य पर आकर ख़त्म होती.....
.कि.....
फिर वे सब सुख से रहने लगे........
और फिर हम सब 
चैन से सो जाते ……

Wednesday, May 13, 2015

हाय ये छुट्टियां …


      






        नौकरी में छुट्टियों का कितना महत्त्व होता है ये कोई भुक्तभोगी ही जान सकता है .......अक्सर लोगों को ये कॉमेंट करते सुनती हूँ...कि  टीचरों के तो मजे ही मजे हैं...साल में ४५ छुट्टियां गर्मी की ...और दीवाली ,दशहरा ..होली ,ईद ,रक्षाबंधन और ये और वो सब अल्लम गल्लम मिला कर कम  से कम  ७० ..७५ छुट्टियां तो हो ही जाती हैं....इसके साथ ही १४ सी एल और ७ एम एल ...फिर  भी हम टीचरों को छुट्टी के लाले पड़े रहते  हैं....हमेशा छुट्टियों का रोना रोते रहते हैं.....किसी भी अप्रत्याशित छुट्टी (जैसे इन दिनों भूकम्प की वजह से  या कुछ अनगिनत जयंतियों की वजह से)..की .घोषणा होते ही हम इतने खुश हो जाते हैं  जैसे पहली बार छुट्टी मिल रही हो या फिर आखिरी बार छुट्टी मिल रही हो.....

          ज्यादा सर्दी हो तो छुट्टी चाहिए...ज्यादा धूप या गर्मी हो तो छुट्टी चाहिए.....ज्यादा बरसात हो तो रेनी डे चाहिए......जब   हम छोटे   थे   तो बरसात के दिनों    में रोज  भगवान  से मनाते  थे  ...की आज  खूब   बारिश हो और रेनी डे हो जाये....  पर जब से अध्यापिका बनी हूँ और जिस स्कूल में पढ़ाना शुरू किया यहाँ रेनी डे का कोई रिवाज़ नहीं है...चाहे मूसलाधार बारिश हो रही हो...आसमान फटा पड़ रहा हो.....बच्चे डूबते तैरते पहुंच ही जाते हैं..........और चाहे २५-५० बच्चे ही क्यों न हों पूरे स्कूल में (अक्सर ऐसा बहुत कम ही होता है )टीचर्स को तो पहुंचना ही होता है......भयानक सर्दी और भयानक बरसात में भी (आखिर तनख्वाह किस चीज की मिलती है )....कई बार बल्कि हर साल ही जनवरी की कड़ाके की ठण्ड में भी  बच्चों  के लिए स्कूल बंद कर दिए जाते हैं पर हम अध्यापिकाओं  को दो तीन घंटों के लिए ही सही पर जाना पड़ता है......…       
        परन्तु इतने पर भी  कुछ अध्यापिकाओं को हर साल   फुल  अटेंडेंस का प्राइज़ मिलता है ........मैं आज तक नहीं समझ पाई की आखिर वे कैसे इस तरह मैनेज कर पाती हैं  .....कि उनके घर में कभी कोई जरूरी काम नहीं पड़ता ...कोई शादी ब्याह नहीं होता..…। या कोई मूडन-छेदन का कार्यक्रम नहीं होते...और न ही कभी वे बीमार पड़ती हैं......पूरे साल विद्यालय में उपस्थित ..और साल के अंतिम रिजल्ट वाले दिन...नकद हज़ार रुपयों का लिफाफा इनाम मिलता है .....जो मुझे तो आज तक नहीं मिला न ही भविष्य में इसकी कोई आशा है......
             इसके साथ ही कुछ ऐसी अध्यापिकाएं  और अध्यापक भी  हैं...जो किसी भी महत्वपूर्ण अवसर पर..रुआंसा ...... दयनीय और भावपूर्ण चेहरा बनाये रखते  हैं..और बिलकुल भी छुट्टी नहीं लेते....चाहे दिन भर कांख कराह कर सबके ऊपर..खास  तौर से प्रिंसिपल के ऊपर अपेक्षित प्रभाव डालते रहें ......पर  जब  उनसे  ये  कहा  जाये ..कि  अगर  तबियत  इतनी  ज्यादा  खराब  है  तो  वे  छुट्टी  क्यों  नहीं  ले  लेते    ?   तो वे सबके ऊपर अहसान सा करते हुए..    साफ़ इंकार कर देंगे...  .और प्रिसिपल पर ये अहसान रौब    और प्रतिक्रिया दिखाएंगे कि  देखिये ..   कितने सिंसियर हैं हम     कि इस बुरी (?) कंडीशन में भी छुट्टी नहीं ले रहे   ....जैसे स्कूल उन्ही के बलबूते पर चल रहा हो........और उनके छुट्टी ले लेने से बंद हो जायेगा....... साथ की सभी  टीचर्स और यहाँ तक की प्रिंसिपल भी अच्छी  तरह  जानते  हैं..कि ये बंदा  या बंदी  पक्का  १०० % झूठ  बोल  रहा है ....पर उनकी  एक्टिंग इतनी ज़बरदस्त और बहाना  इतना तगड़ा होता है कि बड़े बड़ों के छक्के छूट जाएँ.....सभी संशय    में पड़ जाएं   कि अब  कहें   तो क्या कहें   ?? इन लोगों की कल्पना शक्ति    इतनी तीव्र और जबरदस्त होती है जिसका जवाब नहीं......अपनी कल्पना को दूसरो पर मढ़ देने या साकार करने में वे बिलकुल विलम्ब नहीं करते.....दूसरो की अत्यंत मजबूरी में ली हुई छुट्टी भी उन्हें बहाना लगती है  क्यों कि  वे अक्सर (हमेशा तो नहीं कहूँगी )ऐसी ही छुट्टियां लेते  हैं.....

जिंदगी में और कोई टेंशन न हो आराम ही आराम हो तो हज़ारों आइडिआज आते ही रहते हैं....और उसमे कोई खर्चा भी नहीं लगता .... 

Sunday, May 10, 2015

यूँ ही






             मातृ दिवस पर अपनी अपनी माँ को याद करने से एक अतिरिक्त लाभ ये हुआ..कि अभी तक के अपने सभी फेसबुक मित्रों की आदरणीया माँओं से भी परिचय हुआ.......सभी के चरण छूने का अवसर मिला....और ये अंतर्मन से महसूस हुआ कि उन सभी का आशीर्वाद भी हम सबको प्राप्त हुआ.....हम कितना कुछ भी पश्चिमी लोगो को भला बुरा कह लें....पर इतना तो मान ना ही पड़ेगा .....कि इन दिवसों (मातृ दिवस ...पितृ दिवस.. पुत्र या पुत्री दिवस ) के दिन कम से कम हमारा पूरा ध्यान और चिंतन अपने स्नेहिल जनों के प्रति बना रहता है.......इसी बहाने हम कुछ दिन पहले से कुछ दिन बाद तक उनकी यादों में डूबे रहते हैं.......
            कोई कुछ भी कहे मुझे तो बहुत अच्छा लगता है........नहीं तो आज की भागमभाग भरी दुनिया में किसी के पास समय कहाँ है ?.... जीवित माँ बाप से बात कर पाने का .....
तो जो अब संसार में नहीं है उन्हें कौन याद करे ??


 आज फेसबुक ..वाट्सएप ..इत्यादि के होने और आज की पीढ़ी जो अपने पेरेंट्स से इतना घुली मिली या फ्री है कि अपनी भावनाएं व्यक्त करने में उन्हें जरा भी झिझक नहीं .....ये उनका सौभाग्य है ..
          हमें तो याद भी नहीं कि मम्मी पापा से अथाह प्रेम करने के बावजूद हम उनसे कभी कह पाएं हो कि हम उनसे बहुत प्यार करते हैं.......यदि  आज उनके   नहीं रह   जाने   पर ही  सही  .....  ये    अवसर    हमें मिला   है तो कहने   में कैसी    झिझक......

Saturday, May 9, 2015

यूं ही…







          आज कल वॉट्सएप्प और फेसबुक पर भी लोगों से बार बार ये गुज़ारिश की जा रही है कि कोल्ड ड्रिंक और मिनरल वाटर की बोतलें फेंके नहीं......फ्रिज में भर कर रखे और बाहर निकलते समय ..."गरीबो"को दे दें....उनकी मुस्कराहट आपका दिन बना देगी....... ऐसा कर के देखा था एक परिचित ने......जिन "गरीबो" कि बात आप कर रहे हैं.....उन पर से इस क़दर यकीन उठ चुका है जिसकी हद नहीं.......उन्होंने ४ बोतलें दी... एक भीख मांगने वाले को....और उसने पीते ही इस तरह का तमाशा शुरू कर दिया कि...उनके पास भागने के सिवा और कोई चारा नहीं बचा था.....उनसे ५०० /- रुपये लेकर ही छोड़ा उस "गरीब " ने.....नहीं तो थाना पुलिस तक का चक्कर लगवा देता......तब से हमने तो कसम खा ली है ऐसा कुछ करने की........कोई घर आजाये तो भले ही अपने सामने पानी पिला दें.......पर सिर्फ उनकी मुस्कुराहटें देखने के लिए ??? तौबा तौबा !!!!!!

Thursday, May 7, 2015

यूँ ही.…





               फेसबुक पर हम ऐसे अनजाने लोगो से मिलते हैं ..जिनसे पता नहीं जीवन में कभी मुलाकात हो न हो....पर उनके सुख दुःख......उनकी खुशियों ...उनके गम में शामिल हों......यही तो सोशल मीडिया का मतलब है......हमारी बातों से कोई खुश हो.... हम भी किसी की बातों में खुश हो....मैं तो बस इसमें ही खुश हो जाती हूँ....... मैंने भी देखा है हलकी फुलकी खुशनुमा सी बातों से अपने दिन सुकून से बीत जाते हैं ....पहले से ही जिंदगी में इतना तनाव और टेशन है ...की अब कोई किसी के विचार नहीं जानना चाहता....यहाँ बैठ कर सिर्फ दूसरों पर कमेंट्स मारने या गाल बजाने से कुछ हासिल नहीं होता...सिर्फ कुछ लाइक्स या शेयर से कोई क्रांति नहीं होने वाली... कभी कभी कुछ लोग इतनी तीखी प्रतिक्रिया करते हैं..यहाँ की बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती.....एक नार्मल सी बात इतना तूल पकड़ लेती है कि आरोप प्रत्यारोप..और अंत में बात गाली गलौज तक पहुंच जाती है..और नतीजा कुछ नहीं निकलता.....तो आखिर फायदा क्या है....इतनी बहसबाजी का..........अपने आप को ज्यादा काबिल और बुद्धिजीवी दिखाने के लिए ....दूसरों पर उंगली उठाना ही कुछ लोगों का मकसद है......फेसबुक ....सिर्फ अपनी भड़ास निकलने का ही माध्यम रहगया है कुछ लोगों के लिए........यही सोशल मीडिया का मतलब है क्या??......दिनभर के थके मांदे लोग कुछ पल शांति से .....स्नेह से एक दूसरे के साथ बिताना चाहते हैं तो क्या हर्ज है ??...इसमें कौन से पैसे खर्च हो रहे हैं??//......यहाँ पहले से ही इतने ज्ञानी लोग हैं कि अब और ज्ञान और विचार देने की न जरूरत है न हिम्मत......कम से कम मुझमे तो नहीं..............

Saturday, April 18, 2015

ऐसे ही.……।



           कितनी मशीनी और बेरंग हो चली है हमारी जिंदगी..जिसमे न दूसरों  के लिए वक़्त है न खुद  के लिए........कई बार इस तनाव भरी जिंदगी से दूर भागने का मन करता है .....जहाँ पर सिर्फ  अपनों का प्यार हो सुकून हो....पर जीना तो इसी जिंदगी में है ......लिहाजा इसी को थोड़ा रंगीन बनाना  होगा....थोड़ा आत्मीय बनाना होगा.... ताकि कुछ पल हम अपनों के साथ बिता सकें.....कभी कभी याद करती हूँ कि कैसे  मम्मी कहा करती थीं कि उन्होंने अपने लिए तो कोई सपना देखा ही नहीं......जो कुछ देखा वो हमारे लिए ही देखा .....हमें खुल कर जीने का अवसर देना ...और हमारी महत्वाकांक्षाओं में रंग भरना ही ........उन्होंने अपनी जिम्मेदारी समझ ली थी.....और अब शायद मैं भी वही करना चाहती हूँ.......या काफी हद तक किया भी है......शायद एक उम्र में आकर सभी माँएं ऐसा ही करती हैं...अपने बच्चों के लिए एक बेहद खूबसूरत सुनहरे कल का सपना देखती हैं ......भले ही उसके लिए उन्हें अपना आज दांव पे लगा देना पड़े....अपने शौक़....अपनी इच्छाएं...अपनी तमन्नायें...अपना कैरियर....सब दरकिनार कर सिर्फ और सिर्फ अपने बच्चों ....अपने परिवार के लिए जीने लगती हैं....उनकी आंखो  मे बस यही सपना घर बना लेता है....कि  मेरा बेटा... खूब बड़ा अफसर बने ....बेटा  बेटी खूब अच्छी नौकरी में आजायें.......उनकी खूब अच्छी शादी हो और उन्हें      उनका मनचाहा दुनिया का हर सुख   हर ख़ुशी मिले......

बच्चे धीरे धीरे    कब माँ के सपनों की दुनिया से निकल कर अपनी अपनी दुनिया बना लेते हैं......पता ही नहीं चलता.....वो बच्चे जो हमसे पूछे बिना एक पेंसिल तक नहीं खरीदते थे......बड़े  बड़े  डिसीजन्स  खुद लेने  लगते  हैं...बिना हमारे साथ गए...पास के .बाज़ार तक नहीं जाते थे.....वो विदेशों तक हो आते हैं.....वहीँ जाकर बस जाते हैं......पेरेंट्स का बोलना उन्हें ख्वामख्वाह की दखलंदाजी लगने लगता है .....आस पास ऐसा माहौल देखते हुए खुद को भाग्यशाली पाती हूँ...कि कम से कम हमारी जिंदगी  में तो अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ....और भविष्य में भी ऐसा न हो यही उम्मीद करती हूँ
…।

Friday, April 17, 2015

काश !!!!


 काश !!!!




कभी कभी सोचती हूँ कि काश !!! सुबह सो के उठूँ ...और शीशे में देखूं   कि  एक दम दुबली पतली..खूबसूरत हो गई हूँ....बाल फिर पहले के जैसे काले और कमर तक लम्बे हो गए हों......सारे धर दिए गए कपडे ...फिर से अँटने लगे .....कोई भी चीज खाते वक़्त ये ख़याल न आये कि कितनी केलोरी खा रही हूँ...... हाथ रोकने की जरूरत न पड़े...खाने की इच्छा होते हुए भी मन मसोस कर न रह जाना पड़े......दौड़ दौड़ कर सारे काम निबटा डालूँ.........खूब पोज़ मार मार कर ढेर सारी फोटोज.....सेल्फ़ी ले डालूँ.......:( :( :(...पर वही है न काश !!!!

Tuesday, April 7, 2015

भाग्यशाली

भाग्यशाली 

आज करीब एक हफ्ते बाद मैंने अपना ईमेल इनबॉक्स खोलकर देखा। करीब 10 बैंक मुझे आसान शर्तों और कम ब्याज पर लोन देना चाहते हैं। मुझे बिना किसी कारण के 10 लाख पाउंड और 50 लाख अमेरिकी डॉलर की लॉटरी लग चुकी है। 10 कंपनियों के पास मेरे लिए बेहतरीन नौकरियां है। पांच मैट्रीमोनियल साइट्स को मेरा परफेक्ट लाइफ पार्टनर मिल गया है। डॉक्टर चंद्रा ने दावा किया है कि वे मेरे बालों के झड़ने की समस्या का समाधान कर देंगे और तीन यूनिवर्सिटी मुझे घर बैठे ही किसी भी विषय की डिग्री देने को तैयार हैं। बड़ा भाग्यशाली महसूस कर रही  हूं मैं आज खुद को!

Wednesday, February 25, 2015

यूँ ही ……


  



अभी कुछ दिनों पहले ..किसीकी (नाम बताना मना है )   गाड़ी से गोंडा तक जाना हुआ.....उस गाड़ी में जो म्यूजिक सिस्टम लगा हुआ था.....उसमे कोई ऐसी प्रॉब्लम   थी....कि..एक गाना पूरा बज जाने के बाद यदि किसी कारण से गाड़ी रुक गई..तो वो गाना फिर से पूरा बजता था...यहां तक कि कोई हल्का सा झटका  भी लग जाये तो भी म्यूजिक   सिस्टम खुद से बंद होके  फिर से स्टार्ट हो जाता था...और फिर वही गाना चालू.......करीब ३  घंटे के सफर में हमने (मैं मेरा बेटा और मेरे पतिदेव )एक पुराना गाना "शीशा हो या दिल हो आखिर टूट जाता है " कम से कम २० बार तो सुना ही होगा ......पहली और दूसरी बार तो ये कहा गया कितना अच्छा और मधुर गाना है....पहले कितनी सुरीली धुन के गाने बनते थे..वगैरा वगैरा.........फिर तो सुनते सुनते  हद्द हो गयी...शायद उस सीडी के अलावा उनके पास और कोई सीडी नहीं था......नतीजा ये हुआ....कि वो गीत मुझे  अच्छी तरह याद हो गया है.....अब अगर किसी परीक्षा में ये गीत लिखने को आ जाये तो मुझे पूरे अंक मिल सकते हैं......और ये भी पता चल गया है कि शीशा हो या दिल हो आखिर टूट जाता है.....