लिखिए अपनी भाषा में

Wednesday, August 25, 2021

यूहीं

सचमुच यार.... जब से ये गूगल पर बोल के लिखने वाली प्रथा प्रारंभ हुई है..... लोग अपनी अपनी आलतू-फालतू अरकसबथुआ भंडास यहीं निकालने लगे हैं.... टाइप करने में मेहनत लगती थी, हिज्जे की मात्राओं की गलतियां होती थीं, इन सबसे मुक्ति मिल गई है.... जो मन में हो उगल डालो यहीं पर 😡😡
अब फिर से ब्लॉग की तरफ मन खिंच रहा है.....पांच सालों से बंद पड़े ब्लॉग के दरवाजे खोले हैं कुछ दिनों पहले.... झाड़ पोंछ साफ सफाई की है, अब फिर से सक्रिय होने का मन है....फेसबुक पर जी ऊब सा रहा है 😔😔😖😖😖

यूंही

अभी अभी अपने एक फेसबुक मित्र श्री अरविन्द भट्ट जी का स्टेटस देखा....."आज क्या बनाऊँ " ??.उसी सिल सिले को आगे बढ़ाते हुए......कुछ लिखने  को मन  हो  आया  है....सचमुच  ये  दुनिया  भर  में पूछा जाने  वाला ....और सच  कहूँ  तो सबसे  ज्यादा पकाऊ प्रश्न है.....और जिसका जवाब भी बिलकुल निश्चित है जो १०० में से ९० पति अपनी पत्नियों के देते हैं....कुछ भी बना लो.....मतलब अहसान जताते हुए जैसे वो कुछ भी खा लेने को तैयार हैं.....बस पत्नी बना के दे दे.....जब कि अगर इसकी गहराई में जा के देखा जाये तो   १०० में से ५० पत्नियां तो इस प्रश्न के प्रत्युत्तर में सुनना चाहती हैं....चलो   आज कहीं बाहर चल के खाते हैं.......या  बाहर  से कुछ मंगवा  लेते हैं......रोज रोज वही प्रश्न...रोज रोज वही जवाब..... ..ना पूछने वाला ऊबता है.....ना जवाब देने वाला........और पूछा भी ऎसे जाता है मानो वे पचासों डिशेस बनाने में एक्सपर्ट हों....और जवाब भी ऐसे ही दिया जाता है जैसे उन पचासों व्यंजनों में से कुछ भी बना लो......और यदि कुछ व्यंजन विशेष का नाम भी ले लिया गया पतिदेव द्वारा.....तो उसमे  तुरंत संशोधन करते हुए बता दिया जायेगा.....ये तो है ही नहीं....या पहले से बताना चाहिए था....ये बनाने में तो पहले से तैयारी करनी पड़ती है......या ये तुम्हे तो पसंद है..पर बच्चे मुह बनाएंगे....इसमें केलोरी बहुत ज्यादा होती है....ज्यादा ऑयली तुमको नुक्सान करेगा....आखिर में घूम फिर कर फिर वही बात कि ....कुछ भी बना लो....और फिर पत्नियां अपने मन का बना लेती है.....इस पर एक अहसान और हो जाता है कि अगर पति महोदय मुंह बनाएं....तो उनसे बड़ी मासूमियत से कहा जा सकता है.....आपसे पूछा तो था.....:( :( :(

यूं ही

चोट लगते ही घाव भरने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.....और एक वक़्त आता  है  जब उस चोट के नामों निशाँ तक मिट जाते हैं....और एक दिन जैसे की दुनिया का क्रम है आंसू सूख जाते हैं....जो बीत चुका है उसे बार बार याद करके हम सिर्फ खुद को दुखी ही कर सकते हैं.....समय कभी किसी के लिए नहीं रुकता..... .जो लोग या जो पल हमसे छूट गए हैं..... वो कभी वापस तो नहीं आ सकते , इस लिए बेहतर है कि हम भी  उसे भुला कर आगे बढ़ लें......चोटें तो लगा ही करती हैं...

Thursday, August 19, 2021

यूंही एक ख्याल 😔😔

मुझे गिफ्ट देना पसन्द है, और पाना भी.... पर ये बहुत रेयरली होता है....मुझे ज्यादातर गिफ्ट्स मेरी बिटिया ने दिए हैं...(और काफी कुछ पतिदेव ने भी) गिफ्ट्स से मेरा मतलब यहां ऐसी चीजों से जो सिर्फ मेरे लिए हों....जिनके कवर, रैपर सिर्फ मैं खोल कर देखूँ.. और खुश हो जाऊँ.... चादरें, कैसरोल, टी सेट, और बर्तनों को मैं गिफ्ट नहीं मानती😏😏😏😏ये सब तो शादी में दी जाने वाली चीजें हैं..... 
मैं पहले अक्सर बुक्स बहुत गिफ्ट करती थी...बच्चों को उनकी रुचि की किताबें भी....... .पापा जी की एक बात मन में बैठी हुई थी कि पुस्तकों से बढ़कर कोई गिफ्ट नहीं..... फिर यही बात दिखी कि जिसे गिफ्ट दिया उसने उसी कीमत का कुछ फिजूल ऊलजलूल सा भेज दिया कि चलो हिसाब बराबर...... और किताब पढी भी  या नहीं पता नही....पूछने पर ये पता चला अरे यार टाइम ही नहीं मिल पाया.... ताज्जुब है कि दो - तीन सालों में भी टाइम नहीं मिल पाया??? हद्द है... ये कई बार महसूस किया....तब से मन हट गया। अब सिर्फ चुनिंदा लोगो को ही गिफ्ट भेजती हूँ वो भी उनसे पूछ कर कि बता दो क्या चाहिए??? ऐसा न हो कि मैं इतने मन से कुछ भेजूँ और अगले को पसंद ही न आए....
वैसे ये चीजों का आदान प्रदान तो हमेशा ही होता रहता है...पर मौके पर दिया गया गिफ्ट ही गिफ्ट लगता है..... 

Saturday, August 14, 2021

कोरोना काल

*याद हम आएंगे बेहद*


अब से कुछ सदियों का वक़्फ़ा
कट गुज़र जाने के बाद
खून के आंसू बहाता
ज़ख्म भर जाने के बाद
जब कभी भी
धुंध में लिपटा हुआ
माज़ी निकाला जाएगा
दर्द के गरदाये पन्नों को 
खंगाला जाएगा
याद हम आएंगे बेहद।

वो तरक्की से लबालब
लोग जब चर्चा करेंगे
और तस्वीरों पे उंगली 
रख के ये बोला करेंगे-
ये वही हैं लोग
जो खूनी वबा से
एकजुट होकर लड़े थे
एक जां होकर खड़े थे। 

जब से आदम ने ज़मीं पर 
पांव फैलाये तभी से
कट गया था
बंट गया था।
तेरा-मेरा
और मैं-तू 
ने बहुत तोड़ा हुआ था। 
जात-मजहब
खिश्तो-खित्तों
रंग, नस्लों और गुरूरों ने 
जुदा करके रखा था। 

हम कॅरोना को भले 
खुशकिस्मती कहने न पाएं 
पर यही वो पहली शय है
जो हमें है पास लाई
जिसने आदम की कड़ी को 
फिर से यकजहती सिखाई 
सारा आलम
इस वबा से
जूझने में मुब्तिला है
एक डर है
एक चिंता 
एक सा ही हौसला है। 
ख़ुद भी बचने
और बचाने
की जुगत में सब लगे हैं 
दूर रह कर 
दूसरों के पास ज्यादा आ गए हैं ।

अब से कुछ सदियों का वक़्फ़ा
कट गुज़र जाने के बाद
खून के आंसू बहाता
ज़ख्म भर जाने के बाद
जब कभी भी
धुंध में लिपटा हुआ
माज़ी निकाला जाएगा
दर्द के गरदाये पन्नों को 
खंगाला जाएगा
याद हम आएंगे बेहद।


-अशोक अग्रवाल

Wednesday, August 11, 2021

हैप्पी बर्थडे मम्मी (18.7.21)

हैप्पी बर्थडे मम्मी..... आज आपका अठहत्तरवांं जन्म दिन है.... और आपको गए हुए भी ग्यारह साल बीत चुके हैं..... कितनी जल्दी समय बीत जाता है... आज सोचती हूं कि हम अपने मां बाप की सेवा नहीं कर पाए........परिस्थितियों वश..... अब अफसोस करने से कोई फायदा नहीं.... अब इस उम्र में आकर इसका एहसास होता है....
 ज्यादातर लोग बुजुर्ग लोग बेहद आत्मीय होते हैं....(खुद से सिर्फ 18 वर्ष बड़ी को बुजुर्ग कहना अजीब सा लग रहा है पर अब तो मैं भी बुजुर्गों में शामिल हो रही हूं)  आंतरिक सुरक्षा का एहसास देते हैं ।हमारी हर तरह की समस्यायों के समाधान में सहायक होते हैं । सबसे बड़ी बात कि मन का कोना कोना भर जाता है उनके प्यार से...... उनके होने से एक ढाढस सी बंधी रहती है..... जैसे अगर हम पर कुछ  संकट आए तो वो सब संभाल लेंगे.... भले शारीरिक  या आर्थिक रूप से सक्षम न भी हों पर उनका यही कहना..... चिंता मत करो.. हम हैं न !!! बहुत तसल्ली देता है... बड़े लोगों की छांव सर पर होने से आश्वस्ति रहती हैं । सच, कुछ लोग हैं जो हर बार टूटते विश्वास को लौटा लाते है । यह दिलासा देते हैं कि अभी भी जीने लायक है यह दुनिया ।