हमारा अमित द ग्रेट
मानव जीवन में इतने परिवर्तन होते रहते हैं,.............जीवन की चढ़ाई उतराई में कौन कहाँ छिटक जाता है , पता ही नहीं चलता ..है ,कितने घनिष्ट लोग ऐसे बिछड़ते हैं कि जीवन में फिर कभी उनसे मुलाकात नहीं होती,...........और कितने अनजान लोग ऐसे घनिष्ट हो जाते हैं मानो वे हमेशा से हमारे हों .......ज़िन्दगी के सफ़र में हम बहुत से लोगों से मिलते हैं ......बिछड़ते हैं ,,,,,,,,फिर कभी नहीं मिलते ,...............पर उनमे से कुछ लोग हमारे अपने बन कर हमारे दिल के करीब जगह बना लेते हैं हमारी दिनचर्या में , हमारी बात चीत में ऐसे शामिल हो लेते हैं, जैसे वो हमेशा से वहीँ थे ........
इन्ही में एक अमित है,,,,,,अमित शर्मा ,,,,अमित का अर्थ है,......जिसका मित या परिणाम न हो,......असीम , , ...या लिमिटलेस ,..यथा नाम ..... , ..यथा गुण,.....असीम धैर्यवान ,...बेहद सज्जन ,....बेहद संवेदनशील ,....व्यावहारिक और अनलिमिटेड क्वालिटीज़ ( नहीं , नहीं ज्यादा नहीं हुआ , ये सब गुण हैं अमित में ,......) और लगभग 6 फीट ऊँचाई के साथ गोरा चिट्टा प्रभावशाली व्यक्तित्व .........
अमित से मेरी मुलाकात कब हुई ,...तारीख तो याद नहीं , पर सन, जरूर याद है, शायद ,2003 की बात है , हमारा नेट तब नया नया लगा था ..... मुझे भी बहुत ज्यादा शौक़ उमड़ रहा था ,.... और उस समय कंपनी की तरफ से नेट सुविधा सिर्फ रात को 9 से 11.30 बजे तक ही मिलती थी और उन दो , ,ढाई घंटों के लिए मुझमे और बच्चों में इंटरनेट पर बैठने के लिए होड़ लगी रहती थी ,......और उन ढाई घंटों में भी नेट कितनी बार कटता था,.....उस वक़्त कितना क्रेज़ था नेट के लिए,.....नया नया चैटिंग करना सीखा था जल्दी ही अनगिनत दोस्त बन ,गए .....जिनसे बराबर बातचीत होने लगी,.... कुछ दिनों बाद सभी ऑफिसर्स के लिए नेट का समय कुछ बढ़ा दिया गया ,,,,,,,,, रात को करीब 1.30 बजे तक ,....और तब पतिदेव के नाराज होने के बावजूद मेरा 1.30 बजे तक का समय नेट के सुपुर्द हो गया ..............इन्ही दिनों में एक दिन मेरी अमित से मुलाकात हुई और सिर्फ बनारस का होने के नाते मेरी उस से बात होने लगी ,.... फिर क्रिकेट के प्रति उसकी रूचि देख कर अच्छा लगा ,....एक समय मुझे भी क्रिकेट के लिए बड़ी दीवानगी थी ,.....अब सोचती हूँ तो हंसी आती है ,,.....
और अमित का ये हाल था कि चैटिंग करने में उसने रिकार्ड बना रखा था कई कई घंटे, रात रात भर बैठ कर चैटिंग की है उसने (ऐसा उसने मुझे बताया था )
लगभग रोज ही बात होती रही उस से , विश्वनाथ गली की उसकी पारिवारिक दुकान पर भी मैं और मेरी बेटी गए ,,......कुछ सामान भी खरीदा (पर अफ़सोस है ,..कुछ कन्सेशन नहीं मिला )......
उस समय अमित किसी गैर मुल्की कन्या के प्रभाव में अपने आप को भुलाए हुए था,........(सब इंटरनेट बाबा का प्रभाव था ),.....और वो कन्या भी उसे अच्छा बना रही थी ,........(यहाँ अच्छा बनाने से मतलब उसे सुधारना नहीं ,...बल्कि बना रही थी,......मतलब बेवकूफ बना रही थी ,....ऐसा मेरा मानना है,....हो सकता है मैं गलत हूँ ,,.......पर मुझे ऐसा लगता था ,......)कुछ एक बार मेरी भी उस से बात हुई,...पर अपने अनुभव के आधार पर मैंने ये माना कि , वो बिलकुल भी गंभीर नहीं थी , और ये यहाँ शहीद होने पर उतारू थे ,.....खैर बहुत दिनों तक बातें और चर्चा होने के बाद मैंने अमित को बहुत समझाया , और पता नहीं मेरे समझाने , या धमकी देने (कि अब वो कभी मुझसे बात न करे )या स्वयं सदबुध्धि आजाने से बात वहीँ के वहीँ ख़त्म हो गई ,.......मुझे लगता है कि मैंने जीवन में यदि कुछ अच्छे काम किये हैं,,,तो उनमे से एक ये भी है,...कि उस वक़्त मैंने अमित को अच्छी सलाह दी और उसने मानी भी ,.............(और अभी भी इस बात के लिए मैं उसे चिढाती हूँ )
अमित से जब मेरी बातचीत शुरू हुई थी ,....उस समय मेरी बेटी शायद आठवीं में और बेटा पाचवीं में पढ़ते थे,.... नेट पर बात करने के दरम्यान एक दिन उसने मुझसे फोन पर बात करने की इच्छा जाहिर की तो मुझे कुछ बहुत अच्छा सा नहीं लगा था ,.. क्यों कि उस समय ऐसे बहुत से किस्से सुनाई देते थे ,कि लोग अकारण ही महिलाओं को तंग करते हैं,....मुझसे भी बहुत से लोगो ने फोन नंबर की मांग रखी थी और मैंने हर किसी को मना कर दिया था ....
पर मुझे याद है मैंने सिर्फ दो लोगो को ही इस काबिल (!!! ) समझा था कि
उनसे फ़ोन पर बात करूँ , ,, एक अमित और दूसरा अंशु ,,,,
(अंशु भी हमारा अच्छा पारिवारिक मित्र है,) शुरू में मुझे थोड़ी हिचक
महसूस होती थी कि कहीं पतिदेव नाराज़ न हों,....पर बाद में सिर्फ मुझसे ही नहीं ,...मेरे बच्चों और मेरे पतिदेव से भी बहुत घनिष्टता हो गई अमित की,,,,,,और कितनी कितनी ही देर बातें होने लगी,.......मजेदार बात ये रही कि बातों के दरम्यान ....हम सब सिर्फ सुनते थे स्पीकर की आवाज़ बढ़ा कर .......बोलता सिर्फ अमित था।,,,,,,, क्यों कि उसके जितनी स्पीड से ,,,, बोलने वाले बिरले ही मिलते हैं।,,,,,,,,,,,,(लगभग 25 से 30 शब्द प्रतिसेकेंड )........
मुझे याद है अपने किसी आवश्यक काम से अमित कानपुर आया हुआ था और हम ( मैं , बेटू , और बाबू ) अपने मेडिकल चेकअप के लिए लखनऊ गए हुए थे,.... बहुत अच्छा लगा जब अमित हम लोगों से मिलने लखनऊ तक आया और बेहद आदर और स्नेह के साथ हम सबसे मिला,...यह मुलाकात क्षणिक ही रही,.... पर बहुत अच्छा अनुभव रहा,........
कुछ दिनों बाद उसकी अपनी एक चैट फ्रेंड से ही शादी हुई ( पर गनीमत है इंडिया में ही हुई है ) और कुछ समय बाद उसे एक बेहद खूबसूरत बच्चे का पिता बनने का भी सौभाग्य मिला,.....पर सिर्फ 10 या 12 दिनों के बाद ही उस बच्चे की असामयिक मृत्यु से हम सब स्तब्ध रह गए,.....खैर ईश्वरेच्छा बलीयसी ....
मुझे याद है,,......उस बच्चे के आगमन की प्रतीक्षा में मुझसे अमित बराबर पूछता रहा था,....कि किन किन उपायों से बच्चे सुन्दर और स्वस्थ होते हैं,... ,,दीदी आपके बच्चे इतने प्यारे कैसे हैं , मुझे बताइए कि , मानू को क्या खाना चाहिए , किन बातों का ध्यान रखना चाहिए,,,,,,दीदी मुझे बताती रहिये , और मैं उसे बताती भी रहती थी,......पूरे समय पर एक स्वस्थ और सुन्दर संतान देने के बाद भी , पता नहीं क्यों ,......ईश्वर ने इतनी निर्दयता दिखाई उनके साथ ,....यकीं नहीं होता ,.......खैर कोई बात नहीं,......शायद उसे यही मंजूर था ,....ईश्वर उन्हें पुनः ऎसी ख़ुशी पाने का मौका दें यही प्रार्थना है ,.....
2007 में हमारा दिल्ली जाने का कार्यक्रम बना और अमित के बार बार निमंत्रित करने के कारण मैंने उसे अपने आने का कार्यक्रम बता दिया ,......बेहद ख़ुशी हुई कि उसने हम लोगों को हमारी उम्मीद से अधिक समय दिया और मेरे पतिदेव के मन में अपना एक विशिष्ट स्थान बना लिया ,.....इन्हें उसका व्यवहार , सहजता ,चुस्ती , और खुशमिजाजी बहुत पसंद आई ,....
2009 में काफी बीमार होने के बाद अब वो पूर्णतया स्वस्थ है,......,बीमारी के दरम्यान जब कभी उस से बात हुई तो विशवास ही नहीं होता था कि ............. हम अमित से ही बात कर रहे हैं,...बोलने में उसे इतना कष्ट होता था कि कई बार बात करते करते मैं ही रो पड़ी हूँ,.........भगवान् की बड़ी कृपा है कि अब फिर से उसके बोलने में वही स्पीड आगई है ,, जिसके लिए हम लोग उसे जानते हैं,,,,,,,( बिना फुल स्टाप ,कामा लगाये),,,,,,,
पिछला साल उसके लिए थोडा कष्टप्रद रहा।।उसने अक्तूबर में अपने युवा छोटे भाई को खो दिया। ,.... पर होनी पर किसी का वश नहीं .........
इस वर्ष अप्रैल माह में अपनी बिटिया की शादी की ,...मुझे बहुत अच्छा लगा जब सिर्फ मेरे कहने पर अमित मनकापुर तक आया और यहाँ से हमारे साथ ही फ़तेह पुर तक गया ,,,,,,, जरा सा भी ये महसूस नहीं हुआ कि उसे किसी तरह की कोई असुविधा हुई हो या कोई अनजानापन महसूस हुआ हो ,....( हुआ भी हो तो उसने जाहिर नहीं किया ) उसके हमारे साथ होने से हमारे घर के सभी सदस्य बहुत निश्चिन्त और प्रसन्न रहे ,.... .एक बेहद जिम्मेदार व्यक्ति की तरह उसने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई ,......बच्चों में बच्चा और बड़ों में बड़ा बन कर शामिल रहना उसकी खासियत है।,,, उसके हंसमुख व्यवहार को सभी ने बहुत पसंद किया ,......
मई माह में हम कुछ दिनों के लिए बिटिया के पास गुडगाँव गए थे,... ,..वहां .. भी अमित ने अपने व्यस्त और बहुमूल्य समय में से काफी समय हमारे साथ बिताया अभी राखी पर मेरी बिटिया ने उसे मेरी तरफ से राखी भी बांधी है,.......
अमित से अब हमारा इतना प्यारा और स्नेहमय रिश्ता बन चुका है , जिसके लिए कोई शब्द ही नहीं ,......जिसमे कोई खुदगर्जी या लालच का स्थान नहीं है ,,ईश्वर से यही प्रार्थना है ,..........कि ये स्नेहिल रिश्ता ऐसे ही बना रहे,.....और भगवान् उसे लम्बी उम्र और ढेर सारी खुशियाँ दे,......आमीन .........