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Saturday, September 8, 2012

कभी कभी




कभी कभी 
सोचती हूँ क्यों इतना कुछ सोचा करती हूँ,
फिर लगता है  
ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता 
कि  इंसान बिना कुछ सोचे भी जीवित रह सके ,
सोचना तो हर पल हर क्षण , जीवन भर  लगा ही रहता   है ,
बस कुछ पल ढूंढती हूँ  ,जिसमे  आपको सकून  दे सकू  ,
फिर तो वही  चक्रव्यूह   ,वही  निरंतरता    ,
कोल्हू के   बैल   सा हो गया है जीवन ,
आँखों पर पट्टी बांधे  ,,
निरंतर     , घूमते  जा रहे  हैं सब  ,
एक ही चक्र में लगातार  ,
सब अपने अपने  ,चक्रव्यूह में फंसे हैं 
 और जीवन की महाभारत ख़त्म होने  का नाम ही नहीं लेती ,
समय है , कि  बीतता  जा रहा है ,
हम चुकते जा रहे हैं ,
तरकश खाली हो चुका  है 
आयुध समाप्त हो चुके हैं , 
और युध्द अभी भी बाकी है  












1 comment:

  1. Jeevan chalne ka naam , chalte raho subaho shaam .....jab tak hum is jeevan ko nahin samazate ye ek chakravyooh sa lagta hai ..aur jab hum ise samaz jaate hain to ..duniya hi ek chakravyooh jaisi lagne lagtihai ..bas us ishwar ke siway kuchh nazar nahin aata na kuchh hakikat sa hi pratit hota hai ....zindagi kaisi hai paheli haye ..kabhi ye rulaye ...kabhi ye hasaye ..!!!

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