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Thursday, December 15, 2022

मनकापुर की यादें

उस गली/घर ने सुन के ये सबर किया
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं......

         आज इतने सालों के बाद आखिरकार अब मनकापुर को अलविदा कहने का समय आ गया है.... मुझे आज भी पहले दिन से लेकर आज तक के सभी पल याद हैं.. जैसे-जैसे जाने के दिन आते जा रहे हैं...... अंदरुनी लगाव बढ़ता ही जा रहा है... एक अनोखा जुड़ाव है मनकापुर से...... ऐसा लगता है जैसे कल ही वह दिन था जब इस जगह पर मैं पहली बार आई थी..शादी के बाद .... नई नई गृहस्थी यहीं शुरू की... .  1986 में जनवरी की चौथी तारीख..... सभी लोग नये थे.... ज्यादातर  युवा पीढ़ी..... नए नए शादी शुदा जोड़े......... नए  नए बने मम्मी पापा..... नई जगह...... चारों तरफ धूल मिट्टी, नई नई इमारतों  का कंस्ट्रक्शन...नया शॉपिंग काम्प्लेक्स, नया स्वीमिंग पूल, आफिसर्स क्लब, तीन स्कूलों की इमारतें सब तैयार किए जा  रहे थे.... एक पूरा खूबसूरत शहर... बनता जा रहा था.... .
        
         आज जीर्ण शीर्ण.... बुजुर्गियत की ओर बढ रहे फ्लैट्स की नींवें खुद रही थीं उस समय..... ट्रेन से आते समय बहुत दूर से ही मनकापुर की खूबसूरत नारंगी स्ट्रीट लाइट्स की रोशनी का घेरा दिखाई देना शुरू हो जाता था...... जो छोटे छोटे पौधे ईंटों की छोटी छोटी..... कुएँ जैसी चार दीवारी लगा कर घेरे गए थे.... आज 38 सालों में पूरे घने प्रौढ़ पेड़ों में तब्दील हो चुके हैं चारों तरफ इतनी ज्यादा हरियाली है कि कहीं भी बाहर कुछ दिनों के लिए जाने के बाद ऐसा हरा भरा माहौल देखने के लिए दिल बेचैन होने लगता है....  बारिश के मौसम में तो यहां की खूबसूरती और सुकून बस्सस..... कहना ही क्या....सुबह सुबह चिडियों की मधुर चहचहाहट.......से ही नींद खुलती है....टिकरी जंगल करीब होने से लोमड़ी और सियार, साही जैसे जानवर भी आते जाते देखे.....मोर भी बिना हिचक लॉन में टहलते देखे जा सकते हैं....... बस अद्भुत ही माहौल बना रहता है....
                  एक समय था जब मनकापुर हमारे लिए एक दम अनजाना था.... बल्कि यूं कहूँ कि पतिदेव की ज्वाइनिंग से पहले कभी मनकापुर का नाम तक नहीं सुना था..... इसलिए मन में एक डर और  घबराहट सी बनी हुई थी...पढाई पूरी करने के लिए 1988-89 तक बनारस आना जाना लगा रहा....90 में जब पहली बार जॉब ज्वाइन किया तब से मनकापुर हमारा स्थाई पता बन गया...ए-208 से शुरू हुआ सफर डी-55 तक पतिदेव के पदानुसार चला..... और विगत दस वर्षों से टीचर्स को मिलने वाले अपने लिए एलॉटेड बी टाइप फ्लैट से अब ये सुंदर सफर समाप्त हो रहा है ....
        शुरूआत में थोड़ा अंतर्मुखी और व्यस्त रहने की वजह से लोगों से बहुत घनिष्ठता नहीं हुई.... पर पतिदेव के जन संपर्क अधिकारी होने के कारण. अनगिनत लोगों से मुलाकात जान-पहचान होती रही..... धीरे-धीरे मोटे तौर पर बहुत खास और अलग-अलग रिश्ते जुड़ते गए.... यदि मेरे परिवार के बाद कहीं भी मैं अपना एक खास स्थान रखती हूँ तो यह मेरा दूसरा घर है.... एक कलाकार और चित्रकार दंपति के रूप में हम पति-पत्नी को यहाँ भरपूर इज्जत और शोहरत मिली.....बेहद संतुष्ट, शांतिपूर्ण और सुखद समय बिताया है यहां हमने..... मनकापुर राजपरिवार से लेकर जाने माने साहित्यकारों कवियों, कलाकारों से भी व्यक्तिगत रुप से हम पति-पत्नी के मधुर संबंध रहे...जो अविस्मरणीय हैं....

       समय किसी के लिए रुकता नहीं है, मेरे रिटायरमेंट के अवसर पर हमारे बच्चे यहां मनकापुर आए..... मनकापुर में बिताया जीवन/बचपन बार बार खींचता है उन्हें भी...
वो अपने पुराने शिक्षकों और मेरे पुराने साथियों से मिलने के इच्छुक थे....वे सभी स्कूल आए.... स्कूल तक आने पर बहुत  से साथियों से मुलाकात हुई भी...... अब यहां से जाने के बाद संभवतः फिर सबका एक साथ एकत्र हो पाना नहीं हो पाता.....  हम सबकी भी इच्छा थी कि थोड़ा समय हम सब एक साथ बिताते.....
           पहली बार नाती  और मेरी बहूरानी के आगमन और नाती की दूसरी वर्षगांठ  पर एक छोटी सी पार्टी करने की भी दिली तमन्ना थी....... पर मेरे रिटायर होने की तारीख, बच्चों की पांच दिनों की छुट्टी, स्कूल में गांधी जयंती और दशहरे की चार-पांच दिनों की छुट्टियां सब आपस में ऐसा गड्ड-मड्ड हुईं कि मन लायक कुछ हो ही नहीं पाया...... ज्यादातर लोग ज्वाइन नहीं कर सके.... खैर जो भी आए मैं उनकी शुक्र गुजार हूँ......अब पता नहीं यहाँ से जाने के बाद फिर कभी उन सबसे जीवन में मुलाकात होगी या नहीं.... नहीं जानती........ अपनी मित्रों के इस छुअन भरे   स्नेह के  सामने मुझे धन्यवाद कहना बहुत छोटा और औपचारिक लग रहा है...... .
         अब मनकापुर छोडने का वक्त नजदीक है...... मनकापुर छोड़ते हुए.... मुझे लग रहा है जैसे  38 सालों से आज तक हमेशा हर जगह लिखा जाता रहा..मेरा स्थाई पता अब खोने वाला  है.... एक बड़ी कमी, एक अधूरापन सा महसूस हो रहा है.... जैसे मैं किसी ऐसे अनजान स्टेशन पर उतरने वाली हूँ....... जिस स्टेशन का नाम तक मुझे मालूम  नहीं है.... अब फिर से एक नया शहर.....नई शक्ल में देखूँगी...... और हर तरफ एक नई ख़ुशबू महसूस करूँगी ......लगता है फिर सबकुछ नए सिरे से शुरू करना होगा......
शायद इसी तरह मैं अपने सपनों को ज़िंदा रख सकती हूँ ......
               कई जगहों की लिस्ट बना रखी है जहां जाने की बड़ी तमन्ना है.....और आज तक कामकाजी व्यस्तता की वजह से नहीं जा सकी....पर अब मैं वो सारी जगहें  देखना चाहती हूँ....(पर शायद अब धीरे धीरे शरीर साथ नहीं दे रहा)..... मैं हर उस शख्स से मिलकर इत्मिनान से ढेरों बातें करना चाहती हूँ ,जिससे कभी न कभी मिलने का वादा किया था... कई किताबें दो- चार पन्ने पढ़ कर  रख दीं थीं ये सोचकर कि कभी किसी दिन फुर्सत में पढूँगी..... अब वो सारी किताबें फिर से और आराम से पढ़ना चाहती हूँ...... ढेर सारी पेंटिंग्स बना लेने का मन है...और कुछ जगहों पर एग्जिबिशन लगाने का भी... .
           अब रसोई में  वो हर ऊलजलूल एक्सपेरिमेंट करना चाहती हूँ जो कभी इस डर से नही किया कि कहीं गडबड़ न हो जाए.... मुझे नहीं पता कि ये सच है या मैं किसी गलतफहमी में हूँ..... पर अब लगता है कि अब तक जिंदगी का एक लंबा दौर सिर्फ दूसरों को खुश करने, रोजी कमाने या दुनिया के बोसीदा से खांचे में खुद को एडजस्ट करने की जद्दोजहद में ही बिता  दिया है पर अब ये वाली पारी तो मेरी होनी चाहिये.....अब अपनी मर्जी से बाकी बचे हुए दिन... जी लेने की इच्छा है....... बिना किसी बंदिश के.....बच्चों के बीच.... बच्चों के साथ..... अपने प्यारे दुलारों के  इर्द-गिर्द गुजरती ये जिंदगी...

शायद..जिंदगी का सबसे खूबसूरत दौर जीने का मौका मिला है अब ❤️

         
मुझे इस जगह से बहुत कुछ मिला है, जो मैं  यहां से अपने साथ ले जा रही हूं..... मैं अपने जीवन में मनकापुर से जुड़े इन 38 सालों को कभी नहीं भूलूंगी.... आखिर हम सभी को एक न एक दिन अलग होना ही था, मैं प्रार्थना करूंगी कि इतने लंबे समय के मेरे साथी सहयोगी, मेरी  सहेलियाँ, मेरे तमाम प्यारे बच्चे... मेरे छात्र - छात्राएं हमेशा खुश रहें और अपने जीवन में बहुत प्रगति करें और एक दिन वे निश्चित रूप से अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे।
मैं सभी के सुखद भविष्य की कामना करती हूं...

मैं रिटायरमेंट के बाद की मेरी जिंदगी को एक तरह से खुशनुमा छुट्टियों की तरह मान रही हूँ और आशा करती हूँ कि यहाँ के साथी गण भी हमें नहीं भुलाएंगे..... आप सब मुझे बहुत याद आएंगे...

        आज एक ऐसा दिन है जब हम इतने दिनों तक इस जगह पर बिताए गए सभी अच्छे और बुरे पलों को याद कर रहे हैं और हम यहां से अच्छे समय की यादों को अपने साथ ले जाने की कोशिश भी कर रहे हैं.....
आज आईटीआई में हमारा आखिरी दिन है, कल के बाद  यहां हम नहीं मिलेंगे या दिखेंगे........आखिरकार घर लौटना ही अंतिम नियति है और जो नही लौटते  पता नही उनके साथ क्या कैसा रहता है...... मनकापुर का बहुत मोह बना हुआ है.... शायद यहाँ के पानी- मिट्टी की ही खासियत है... .मोह छूटता ही नहीं......
मुझे भी मोक्ष नहीं चाहिए......
मैं इसी मोह-माया में ही रहना चाहती हूँ....
मोह माया जल्दी छूटती नहीं.......हर इंसान के जीवन में एक वक्त आता है जब इंसान ये समझ ही जाता है कि खुशियाँ बहुत बड़ी-बड़ी उपलब्धियों  में नहीं जिंदगी से जुड़ी छोटी-छोटी बातों में छुपी होती है........शायद अपनी व्यस्तता और कहीं मूर्खता वश भी......  मैं  यहाँ तक पहुँचने में काफी लेट हो गयी... मुझे नहीं पता ये क्या है, ये उम्र और जीवन का कौन सा पड़ाव है........ हो सकता है  ये मेरी समझ नहीं मेरा भरम भर हो पर जो भी है अच्छा है.......
अच्छा लग रहा है........ अब तो बस ऐसा ही है जैसे--

फिर बहार आई, वही दश्त-ए-नवर्दी होगी,
फिर वही पाँव , वही ख़ार-ए-मुगीलां होंगे
                            -मोमिन
दस्त-ए-नवर्दी-- वीरानों में भटकना
खार-ए-मुगीलां--बबूल के कांटे
.
.
.
(मनकापुर में आखिरी हफ्ते की डायरी)

 हमारी गली 2012-----2022

Tuesday, November 15, 2022

आजकल

खूब फुर्सत में हूँ आज कल ,
सुबहें देर से होती हैं ....
दोपहरें खूब लम्बी होती हैं.....
शामें इत्मीनान से होती हैं....
और रातें  कितनी देर से होती हैं पता नहीं......
वक़्त ही वक़्त है आजकल.....
ख़ुद के लिए वक़्त का एक सिरा ज़रूर पकड़ कर रखना चाहिए...
ख़ुद को सबसे पहले प्यार करना चाहिए...
बाक़ी सब बाद में...
जबसे बच्चे थोड़ा बड़े हुए यही जीने का तरीक़ा मेरा...
ख़ुश हूँ बेहद...खुश हैं आस-पास सब 💕
कल  जिस क्लोज़नेस को हम तरसते थे, बड़े होते बच्चों के लिए हम भी वैसे हो जाते हैं। बच्चों को मम्मी लोगों से हमेशा दुलार की क्रेविंग रहती ही है.... 
ये बात हम लोग अपने पेरेंट्स से नहीं कह पाए, 
पर हमारे बच्चे समय रहते रिमाइंड करा देते हैं बिन झिझके, 
यह कितना सही है न.....

बस्ससस

बाहर बहुत तेज बारिश हो रही है  जैसे मन भी भीग रहा है..... खिड़की का एक पल्ला खोल कर देखती हूँ..... लैंपपोस्ट की रोशनी में भीगे हुए पत्ते बड़ी खामोशी से बोलते हुए से लगते हैं "सर सर सर सर टी टी.." ..ठंडी हवाएं सराबोर कर जाती हैं.... गजब है प्रकृति के नजारे असली संपत्ति तो यही है.......
आस पास की कुछ खिड़कियों से पीली उदास सी रोशनी झांक रही है..... दूर दूर तक कोई आवाज या आहट नहीं है..... खिड़कियों के अंदर भी ज्यादा चहलपहल होगी ऐसा नहीं लगता...... सभी अब एकाकीपन के अभ्यस्त हो चले हैं..... ज्यादातर लोगों के बाल बच्चे बाहर हैं....कुछ पति-पत्नी साथ आते जाते दिखते हैं बस.....सब उम्र और किसी न किसी बीमारी - लाचारी से ग्रस्त..... बस एक दूसरे के साथ सामन्जस्य बैठाते हुए......कुछ जो अकेले हो चुके हैं वो और भी हतोत्साहित से दिखते हैं......
      मुझे लगता है, कितना ही फोन का सहारा हो,कितना ही सोशल मीडिया हो, आपको घर में दो-चार बात करने वाले चाहिए  ही चाहिए सोशल मीडिया भी बेमानी हो जाता है वह भी रद्दी का टुकड़ा हो जाता है अगर लंबे समय तक आपको अकेले रहना पड़े........ 
    

Friday, November 4, 2022

इन दिनों

अगर अपनी उम्र का हिसाब लगाने बैठूं तो ये महसूस करती हूँ कि उम्र का काफी बड़ा हिस्सा जी चुकी हूं और अब मेरे पास अब जीने के लिए समय बहुत कम बचा है... 
अब मेरे पास अंतहीन बहसों के लिए समय नहीं है , जो है सब ठीक है..... जो नहीं है वो भी ठीक है..... यह जानते हुए कि अब किसी बहसबाजी या तंज़ से कुछ भी नहीं होगा.... बातों का स्टॉक खत्म सा हो गया लगता है... चुप रहना अच्छा लगता है....एकांत प्रिय हो गई हूँ.... 

मेरे पास अब ऐसे बेतुके लोगों की बातों का जवाब देने का धैर्य नहीं रहा, जो उम्रदराज होने के बावजूद आज तक बड़े नहीं हुए हैं..... 
मैं अब सिर्फ अपनों के साथ रहना चाहती हूं,
मैं अब उन खास लोगों के साथ ही जीना चाहती हूं, ऐसे लोगों के साथ जिन्हें सचमुच मेरी जरूरत है.. जिन्हें मुझे देख कर ऊब न होती हो.... और मुझे भी जिनका साथ पसंद हो.... 

हमारे पास दो जीवन होते हैं एक जब समय भागता रहता है.... और दूसरा जब समय रेंगने लगता है....एक वो  जब हम समय के साथ दौड़ लगाते हैं पर समय आगे निकल जाता हैं और हम अक्सर पीछे छूट जाते हैं...... एक वो जब समय हमें छोड़ कर जाना ही नहीं चाहता.... बीतता ही नहीं हमें जकड़ कर बैठ जाता है..... और दूसरा जीवन तब शुरू होता है जब हमें एहसास होता है कि हमारे पास सिर्फ एक ही जीवन था...... अब मेरा वो दूसरा वाला जीवन शुरू हो चुका है.... 

Thursday, October 13, 2022

हैप्पी करवा चौथ

दुनिया के सबसे अच्छे इंसानों मे से एक  से प्रेम करना आसान नहीं..... 
बातें करते करते मुझे चिढ़ाना और किसी पुराने काण्ड को लेके झगड़ा कर लेना उनकी पुरानी आदत है। 

मेरी छोटी छोटी गलतियां गिनाने के बावज़ूद भी माफ़ करके साथ साथ बने रहते है  हमेशा मेरे साथ। 

 बहुत ही सिंपल हैं वो, एकदम सिंपल। जैसे  घरेलू दाल - भात /आलू का चोखा होता है न बिलकुल वैसे ही। कितना भी पार्टी कर लो..... दुनिया भर का चटरपटर अल्लम गल्लम खा लो पर दो दिन बाद बिना दाल भात के पेट नहीं भरेगा आपका....एक दम ऐसा ही इंसान जिसे कोई शिकायतें नही होती! बस मुस्कान होती है। किसी से कोई अपेक्षा नही होती!

हैप्पी करवा चौथ पतिदेव ❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️

Thursday, October 6, 2022

रिटायरमेंट का अवसर

मेरे रिटायरमेंट के अवसर पर हमारे बच्चे यहां मनकापुर आए..... 
 वो अपने पुराने शिक्षकों और मेरे पुराने साथियों से मिलने के इच्छुक थे....स्कूल तक आने पर कुछ एक से मुलाकात हुई भी...... अब यहां से जाने के बाद संभवतः फिर सबका एक साथ एकत्र हो पाना नहीं हो पाता.....  हम सबकी भी इच्छा थी कि थोड़ा समय हम सब एक साथ बिताते.....
           पहली बार नाती  और मेरी बहूरानी के आगमन और नाती की दूसरी वर्षगांठ  पर एक छोटी सी पार्टी करने की भी दिली तमन्ना थी....... पर मेरे रिटायर होने की तारीख, बच्चों की पांच दिनों की छुट्टी, स्कूल में गांधी जयंती और दशहरे की चार-पांच दिनों की छुट्टियां सब आपस में ऐसा गड्ड-मड्ड हुईं कि मन लायक कुछ हो ही नहीं पाया...... ज्यादा तर लोग ज्वाइन नहीं कर सके.... खैर जो भी आए मैं उनकी शुक्र गुजार हूँ......अब पता नहीं यहाँ से जाने के बाद फिर कभी उन सबसे जीवन में मुलाकात होगी या नहीं.... नहीं जानती........ अपनी मित्रों के इस छुअन भरे   स्नेह के  सामने मुझे धन्यवाद कहना बहुत छोटा और औपचारिक लग रहा है...... .
         अब मनकापुर छोडने का वक्त नजदीक है...... मनकापुर छोड़ते हुए.... मुझे लग रहा है जैसे आज तक हमेशा हर जगह लिखा जाता रहा....... मेरा स्थाई पता खो गया है.... एक बड़ी कमी एक अधूरापन सा महसूस हो रहा है.... जैसे मैं किसी ऐसे अनजान स्टेशन पर उतरने वाली हूँ....... जिस स्टेशन का नाम तक मुझे मालूम  नहीं है.... अब फिर से एक नया शहर.....नई शक्ल में देखूँगी...... और हर तरफ एक नई ख़ुशबू महसूस करूँगी ......लगता है फिर सबकुछ नए सिरे से शुरू करना होगा......
शायद इसी तरह मैं अपने सपनों को ज़िंदा रख सकती हूँ . 
               आठ -दस जगहों की लिस्ट बना रखी है जहां जाने की बड़ी तमन्ना है..... कामकाजी व्यस्तता की वजह से नहीं जा सकी..... अब मैं वो सारी जगहें  देखना चाहती हूँ....(पर शायद अब शरीर साथ नहीं दे रहा)..... मैं हर उस शख्स से मिलकर इत्मिनान से बात करना चाहती हूँ ,जिससे कभी न कभी मिलने का वादा किया था... कई किताबें दो- चार पन्ने पढ़ कर  रख दीं थीं ये सोचकर कि  किसी दिन फुर्सत में पढूँगी..... अब वो सारी किताबें आराम से पढ़ना चाहती हूँ...... ढेर सारी पेंटिंग्स बना लेने का मन है.... 
           अब रसोई में  वो हर उल्टा पुल्टा एक्सपेरिमेंट करना चाहती हूँ जो कभी इस डर से नही किया कि शायद गडबड़ न हो जाए.... मुझे नहीं पता कि ये सच है या मैं किसी गलतफहमी में हूँ..... पर अब लगता है कि अब तक जिंदगी का एक लंबा दौर सिर्फ दूसरों को खुश करने, रोजी कमाने या दुनिया के बोसीदा से खांचे में खुद को एडजस्ट करने की जद्दोजहद में ही बिता  दिया है पर अब ये वाली पारी तो मेरी होनी चाहिये.....अब अपनी मर्जी से बाकी बचे हुए दिन... जी लेने की इच्छा है....... बिना किसी बंदिश के..... 
          हर इंसान के जीवन में एक वक्त आता है जब इंसान ये समझ ही जाता है कि खुशियाँ बहुत बड़ी-बड़ी उपलब्धियों  में नहीं जिंदगी से जुड़ी छोटी-छोटी बातों में छुपी होती है........शायद अपनी व्यस्तता और कहीं मूर्खता वश भी......  मैं  यहाँ तक पहुँचने में काफी लेट हो गयी... मुझे नहीं पता ये क्या है, ये उम्र और जीवन का कौन सा पड़ाव है........ हो सकता है  ये मेरी समझ नहीं मेरा भरम भर हो पर जो भी है अच्छा है.......
 अच्छा लग रहा है........ 

Tuesday, September 6, 2022

टीचर्स डे (5-9-22)

अब बच्चों को भनक लग गई है कि इस महीने  मेरा  रिटायर मेंट  है। कल टीचर्स डे  बीत गया.......आज सुबह  स्कूल जाते वक्त पर्स में से ये कुछ कार्ड निकाल रही थी और पढ़ कर भावुक हो रही थी।  दो तीन ही दिन में इतने बच्चों ने इतने कार्ड और चिट्ठियां दे दी हैं  कि विश्वास नहीं होता..... सुबह सुबह कार्ड में बच्चों की मासूमियत देखी तो मन भर आया।अब मुझे किसी भी तरह के सर्टिफिकेट और ईनाम की जरूरत नहीं!!! बाकी का जीवन इन प्यारे छोटे बच्चों के स्नेह की जुगाली करते बीत जाएगा.... 
एक अध्यापक का शायद यही प्राप्य होता है कि उसे सरकार सम्मानित करे या न करे, उनके विद्यार्थी अपने अध्यापक से जुड़ जाएं और उनके जाने पर उन्हें पीड़ा हो। 

Saturday, September 3, 2022

मोहभंग

ताज्जुब है ....मोहभंग होने में इतने साल लग गए ???..जानती हूँ ये एक दिन होना ही था......पर वक़्त और अवसर दोनों सही नहीं थे.......खैर !!!!!......पता नहीं अभी कितना  जीवन शेष है....... पर जो भी हुआ....व्यथित करने के लिए काफी है........चोट  लगते ही  घाव भरने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.......पर कुछ जख्म कभी नहीं भरते.....पपड़ी  सूख जाने पर भी अंदर से वो ताज़े बने रहते हैं......ये भी एक ऐसा ही जख्म  है........

Sunday, August 28, 2022

पुरानी डायरी, पुराने एल्बम

                इधर कुछ  रातें  पुरानी डायरियों और पुराने एल्बम से गुज़रते हुए बीतीं...... कुछ सूखी पत्तियाँ,  झड़ चुके बालों वाले मोर पंख, छोटे छोटे कार्टूनों वाले स्टिकर्स शायद किसी ख़ास नीयत से डायरी के भीतर रख दी होंगी मैंने..... . पुरानी डायरी पढ़ते हुए समझ आता है कि कितना कुछ बदल गया है.... जैसे वे  अब से बहुत अलग मौसम थे.....जैसे मैं कोई और थी..... उस वक्त मेरी ख़ुशियां, मेरी उदासियां अब से कितनी फ़र्क़ थीं...... हम धीरे-धीरे कितना बदलते चले जाते हैं और हमें पता भी नहीं चलता... अचानक कोई पुरानी डायरी मिलती है और सालों की  यह  हेरफेर सदियों जैसी जान पड़ती है.... एक एक पन्ने पढते पलटते मैं एक हैरानी से भरती गई ... यहाँ कॉलेज में किसी बात हंसते -हंसते पेटदर्द हो जाने की बात लिखी है... मैं सोचती हूँ कि मैं आख़िरी बार मैं कब ऐसा खिलखिला कर हंसी हूंगी?? बात बात पर हँस पडने वाली आदत, बात बात पर रो पडने वाली आदत... अजीब आदतें थीं यार!!!!! अब नहीं रही.....बल्कि अब तो जैसे हँसी ही नहीं आती....कभी-कभी सोचती हूँ किसी बात पर खूब हँसू इतना हँसूं कि सब कुछ भूल जाऊँ...... पेट में दर्द होने लगे, बेदम हो जाऊँ..... लोट-पोट हो जाऊँ बच्चों की तरह..... पर........ फेसबुक, वाट्सैप पर रील देखते समय भी बस होंठ जैसे  हंसने का अभिनय कर के रह जाते है बस.... .  वह उल्लास  वो खुशी अब बनावटी सा लगता है.... हां अब भी आंसू बहुत जल्दी आ जाते हैं..... बात करते करते आवाज रूंध जाती है....आँसुओं पर कंट्रोल करना आज तक नहीं सीख पाई.... जरा सा भी उदास होने पर आँसू बेसाख्ता बह निकलते हैं.... डायरी में कुछ उदास शामों का जिक्र भी है....... पर वो उदासी किस कारण से थी इसकी बाबत कुछ नही लिखा.... बहुत जोर देने पर भी याद नहीं आता.... एक खास उदास शाम की बात भी है...... जिस पर अब मैं सिर्फ़ मुस्करा  सकती  हूँ...... उन दिनों की  खुशी और उदासी सब कुछ अब अपरिचित सी लगती है । '   कितनी ही बचकानी बातें यादें और अनाड़ी पन से भरी कविताएं लिखी हैं... जिनमें से मेरी लिखी कौन सी है पहचान नहीं पाई.... जो भी पंक्तियां छू जाती थीं या मेरे मनोभावों से मिलती जुलती होती थीं फौरन लिख लेती थी.. ऐसा क्यों करती थी..... पता नहीं....पढ कर मैं देर तक मुस्कराती रही..... 
             अब आँखों में वैसी चमक नहीं रही। चश्मे का नं लगातार बढता जा रहा है... चेहरे के भराव में, आँखें अब उतनी अच्छी नहीं लगतीं.. जिन आँखों की तारीफ सुनने की आदत सी पड़ चुकी थी.... .. बालों में चांदी भरती जा रही है..... वज़न लगातार बढ़ रहा है...... कोई न कोई बीमारी परेशान करती रहती है..... कहते हैं  ढलते हुए लोगों को उनका विगत बहुत सुख देता है..... मैं सोचती हूँ - अपनी लिखी चिट्ठियों का एक कलेक्शन बना डालूँ. 
कितनी प्यारी चिट्ठियाँ…कितवी भावभरी सुंदर हस्तलिपि में सजा के चिट्ठी लिखते थे उस समय....... अब तो चिट्ठी लिखने का रिवाज ही नही रहा...... 
             हम  जब खुद के, मां पापा के, अपने बच्चों के बारे में लिखते हैं तब कितने प्योर .., ईमानदार … ओरिजनल होते हैं........ एक बात में मैं  हमेशा से ऐसी ही थी, मुझे हमेशा अपना कल पसंद था पर मेरा लौट कर बीते पलों में जाना कभी नहीं हो पाया, किसी के याद दिलाने और कभी कभी अपने आप याद आने तक ही रही मेरी याद... जिस भी उम्र में रही उससे बड़े होने की ख्वाहिश की और अब इतनी उम्र बीतने का भी मलाल नहीं..... ईमानदारी से बिना किसी आरोप आक्षेप के बूढ़े होते जाना भी एक कला ही है शायद!!! 
हम किसी की जिंदगी में सुख दुख की स्थिति देख कर तो उसकी परिस्थितियों का अंदाजा नहीं लगा सकते..... 
               सबके पास कुछ न कुछ शिकायत है..... जिनके पास सब कुछ है उसके पास भी....... जिसके पास कुछ नहीं है उसे भी.......... हमारे मन में मोह के साथ थोड़ा सा ही सही लेकिन वैराग्य भी होना ही चाहिये...... किसी के जाते वक्त उससे लिपट कर रोना चाहें...तो रो लेना चाहिए .. अगर उसे भींच कर उसके दिल की धड़कन सुनना चाहें तो सुन लेना चाहिए..... पर अगले ही पल उसे मुस्कुरा कर विदा करने की भी ताकत होनी चाहिये....                   सोचती हूँ कि अगर हम चीजों से मोह छोड़ना नहीं सीखेंगे तो एक वक्त के बाद बेमतलब के ढेरों  बोझ से हमारे कंधे झुक जायेंगे और हम एक कदम भी आगे चल नहीं सकेंगे।

   ये थोड़ा सा वैराग्य.... और मुस्कुरा कर मुठ्ठी में भींच कर रखी चीजों को छोड़ देने से ही जिंदगी के अंत तक पहुँच पायेंगे....... 

आजकल मैं सबकी सुनती हुई खुद को शांत रखने की कोशिश करती हूं....बहुत ज्यादा समझ में आना बंद हो गया है अब जैसे  .....या अब मैं समझना ही नहीं चाहती..... बस आंखे बंद कर अतीत में गोता लगाना अच्छा लगता है. या आंखे खोल कर डायरियों, एल्बमों और किताबों में सुकून तलाशती हूँ... 

शायद इसलिए मुझे पुरानी तस्वीरें और डायरियां बहुत सुकून देती हैं....... 

Saturday, August 27, 2022

मेरी प्रिय किताबें


प्रिय किताबों की श्रृंखला में पापा जी के बहुत अच्छे मित्र श्री चंद्र किशोर जायसवाल की पुस्तकों का नाम न लूं  ऐसा नहीं हो सकता..... उनके कई। उपन्यास और कहानी संग्रह पढने का सौभाग्य मुझे मिला है... जिनमें से कई मेरे संग्रह में हैं.... उनकी भाषा शैली और कहानी कहने का अंदाज गजब का है..... मैं अक्सर जोर जोर से पढ़ कर सुनाती थी और मम्मी पापा बडी ही दिलचस्पी से सुनते थे.... एक दो बार जब वे घर पर आये तो उनकी वाणी में ही उनकी रचनाएं सुनी गईं.... "नकबेसर कागा ले भागा", "मैं नहि माखन खायो"..."गवाह गैरहाजिर"... "मर गया दीपनाथ" सब एक से बढ़कर एक हैं....
 

यूं ही


 आज हर कोई  कुछ न कुछ बेच रहा  है। मैं सुबह वाट्सैप खोलने के बाद से लेकर रात को सोने के वक्त तक दिन भर कुछ न कुछ खरीदने का ही सोच रही होती हूँ....अक्सर खरीदती भी रहती हूँ..... . पहले कभी भी ऐसी जरूरत नहीं महसूस होती थी.. मुझे अक्सर वो दिन याद आता है जब मैं नौकरी नहीं करती थी और दिन में एक बार भी सिवाए किताबों, रंगों और कला से संबंधित चीजों के कुछ और खरीदने का नहीं सोचती थी...... 

 

नौकरी और मैं

          मुझे अपनी नौकरी से बहुत  प्यार तो कभी नहीं था हां पर नफरत भी नहीं थी..... बस थोडा व्यस्त रहने का एक जरिया सा था..... जब मुझे अनावश्यक से कुछ कारण बता कर दूसरे सत्र में जॉब देने से मना कर दिया गया तभी नौकरी से पहली नफ़रत ठीक उसी समय हो गयी थी...... दोबारा नौकरी ज्वाइन करने से लेकर आज तक निभाए चले जाने तक का एक लंबा सफर है.....कभी कभी लगता है बिना किसी मंजिल का ये सफर बहुत निरर्थक तो नहीं रहा..... बहुत से फायदे भी रहे.... पर जीवन भर की इस तपस्या को फायदे नुकसान की तराजू में नहीं  तोला जा सकता..... इसका कोई मापदंड नहीं है......
               माँ बनना मतलब पूरी दुनिया बदल जाने जैसा होता है किसी भी औरत के लिए...... और जब ऐसे में फैमिली सपोर्टिव न हो..... नई नई नौकरी हो... तब बिल्कुल एक चक्रव्यूह में घुसने और निकलने जैसा होता है.... मेरी बिटिया कब पैदा हुई और कब पाल पोस कर स्कूल में पढने की एज में मुझे सौंप दी गई .... मुझे पता भी नही चला........ मैं मम्मी की कृतज्ञ हूँ.... मेरी बिटिया की उस उम्र की सारी जिम्मेदारी उठाने, मेरी पढ़ाई पूरी करवाने में मम्मी का बहुत सहयोग रहा......पता नहीं मैं इतनी सहयोगी दादी-नानी बन पाऊंगी  या नहीं😕😕
            दूसरी डिलीवरी के बाद मैं भी बहुत डिप्रेस होने लगी थी। कुछ हार्मोन्स का असर, कुछ अपने घर की हालत देखकर...... ट्रेडिशनल फैमिलीज ऐसे में और हताश करती हैं.... "500/_रुपए के लिए लड़िका के जान के पीछे परी हैं" (तब मेरी सेलेरी 500/_से शुरू हुई थी)बिना किसी सहयोग के ऐसे कमेंट्स सुनने को मिले... नतीजा जॉब छोडनी ही पडी....सारी सीनियारिटी खत्म हो गई...जब किसी ने मेरे  ज़रा से बच्चे को  ज़्यादा खास प्रियॉरिटी नहीं दी ..... मदद करने के बजाय कमेंट मारने को सब तैयार....  तमाम जली कटी भी सुनी,  बच्चे के लिए कोई कुछ करने को तो तैयार नहीं लेकिन मेरे काम मे नुक्स निकालने को सब के मुंह खुले हुए...... मैं उसकी माँ हूँ तो मैं उसका ध्यान अच्छे से अच्छा ही रखूंगी ये तो स्वाभाविक है .....सब मिला कर नतीजा यही रहा ...अभी तक संभल नहीं सकी हूं...."जॉब में हूँ और सैटिस्फाई हूँ".... इस बात की बस तसल्ली देनी पडती है मन को......अगर पतिदेव का सहयोग न मिला होता तो शायद ये संभव नहीं होता.... और तभी से.. .सभी से....... जैसे मन खट्टा सा हो गया मेरा हमेशा के लिए..... और अब तो जैसे किसी से कोई घनिष्ठता और आत्मीयता ही नही रही...ये जरूर है कि चेष्टा करती हूँ........ सबके सामने  सामान्य बनी रहूं.... अपने मनोभावों को छिपा ले जाऊँ.....पर कभी-कभी असफल भी हो जाती हूँ....अंतर्मुखी और अल्पभाषी होने के कारण घमंडी तो पहले से ही प्रचारित हूँ.....पर  अब तो  मुझे जो ठीक लगता है... हर हाल में वो ही करती हूँ....... मुझे अब किसी की कोई चिंता नहीं है...... 
           इतना होने पर भी मैं भूलना चाहती हूँ सब........ कि छोड़ो अब याद करने से कोई फायदा नहीं पर..... कभी कभी मन में ये कसकने सा लगता है.... . ज़िंदगी में मैंने बहुत से लोगों को माफ़ किया ...... क्यूँकि मैं "छोड़ो जाने दो" में  यक़ीन करती हूँ ..
लेकिन कुछ लोगों को कभी माफ़ नहीं करूँगी …

रिश्तों की भी कोई "एक्सपायरी डेट" होती है क्या???
___________________________

 

Tuesday, August 23, 2022

बाप के जीते, घर में बेटी की स्थिति

*

जब तक बाप जिंदा रहता है, बेटी मायके में हक़ से आती है और घर में भी ज़िद कर लेती है और कोई कुछ कहे तो डट के बोल देती है कि मेरे बाप का घर है। पर जैसे ही बाप मरता है और बेटी आती है तो वो इतनी चीत्कार करके रोती है कि सारे रिश्तेदार समझ जाते है कि बेटी आ गई है।

और वो बेटी उस दिन अपनी हिम्मत हार जाती है, क्योंकि उस दिन उसके पिता ही नहीं उसकी वो हिम्मत भी मर जाती हैं।

आपने भी महसूस किया होगा कि पिता की मौत के बाद बेटी कभी अपने भाई- भाभी के घर वो जिद नहीं करती जो अपने पापा के वक्त करती थी, जो मिला खा लिया, जो दिया पहन लिया क्योंकि जब तक उसके पिता थे तब तक सब कुछ उसका था यह बात वो अच्छी तरह से जानती है।

आगे लिखने की हिम्मत नहीं है, बस इतना ही कहना चाहती हूं कि बाप के लिए बेटी उसकी जिंदगी होती है, पर वो कभी बोलता नहीं और बेटी के लिए बाप दुनिया की सबसे बड़ी हिम्मत और घमंड होता है, पर बेटी भी यह बात कभी किसी को बोलती नहीं है। 

बाप बेटी का प्रेम समुद्र से भी गहरा है
       🌹 #🌹

Monday, August 22, 2022

एक टीचर का दर्द

आपके एक या दो बच्चे हैं और कभी कभार आप उनकी शरारतों पर झल्ला कर उनकी कनपटी तक सेंक देते है तो ज़रा सोचिएगा कि एक शिक्षक इतने सारे बच्चों को कैसे संभालता है...

आप खुद tv या mobile में व्यस्त हैं। आपका बच्चा आपके पास आता है। आप उस अधखिले फूल को झिड़क देते है-- "जाओ भागो पढ़ाई करो।"  ज़रा मन को शांत करके विचारियेगा कि एक मास्टर किस तरह अलग-अलग बुद्धिलब्धि वाले और अलग अलग अभिरुचि वाले बच्चों को 45 मिनट तक एक सूत्र में बाँध के रखता है।

आपका बच्चा दिनभर गेम खेलता है, घर पर पढ़ता नही है। इसकी भी शिकायत आप टीचर से करते हैं--- "क्या करें, हमारा मुन्ना तो हमारी बात ही नही सुनता। ज़रा डराइये इसे।"
(अरे भाई बच्चे को डराना है तो उसे किसी बाघ के सामने ले जाओ।)

आप "गुरु ब्रह्मा" टाइप की बातें रटते है पर आप भगवान तो छोड़िए, टीचर को इंसान तक नही मानते। आप ये मानने को तैयार ही नही कि टीचर का व्यक्तिगत जीवन भी है, उसकी भावनाएं भी है, उसकी लिमिटेशंस भी हैं।

आप कहते है कि बच्चे को डांट-डपट के रखिये। सरकार कहती है कि किसी बच्चे को मारना तो दूर, अगर गधा-उल्लू-पाज़ी भी कहा तो मास्टरजी की मास्टरी भुलवा दी जाएगी।

अन्य विभागों के कर्मचारियों की तरह शिक्षक सिर्फ एक वेतन-भोगी नही होता। इसमें सिर्फ सेवा का आदान प्रदान नही होता छात्र-शिक्षक के बीच तमाम मानवीय मूल्यों का भी लेन-देन होता है।

आप अपने छोटे-मोटे काम कराने के लिए सरकारी कर्मचारियों के आगे दाँत चियारते रहते है। हाथ जोड़ते है, पैर पकड़ते है। लेकिन टीचर जो कि आपकी सन्तान को शिक्षा दे रहा है, उसकी एक गलती आपसे बर्दाश्त नही होती।

आप का बच्चा, वो बच्चा जिसके लिए आपने मंदिरों और अस्पतालों के जाने कितने चक्कर काटे होंगे, अगर एक ही चीज़ 3-4 बार पूछ लें तो आपके शरीर का तापमान बढ़ जाता है। अब जरा सोचिये कि टीचर किस धैर्य के साथ बताता है कि 3+1 और 1+3 दोनों बराबर होते है भले ही ये एक दूसरे के विपरीत नज़र आते हैं।

टीचर ने रात में किसी टॉपिक की तैयारी की। सुबह 45 मिनट तक तन-मन से उस टॉपिक को क्लास में प्रस्तुत किया। पूरे आत्मविश्वास के साथ वो क्लास से पूछता है--- अब तो समझ गए सब लोग!

और पीछे वाली बेंच पर बैठे रवि और पंकज उदास होकर बोलें-- सर एक बार और बता दीजिए....

खैर टीचर की नौकरी करने का एक फायदा ये है कि मूर्खता पूर्ण सवालों, कटाक्षों, व्यंग्योक्तियों और नासमझों की बातों पर गुस्सा तो बिल्कुल नही आता। हँसी भी नही आती। आती है सिर्फ दया। आता है सिर्फ प्यार।

(अगर आपने अपने जीवन में किसी से, कभी भी, कहीं भी, कुछ भी सीखा है तो वो आपका शिक्षक ही है। )

सभी शिक्षक बंधुओ को समर्पित एवं सभी सम्मानित अविभावकों को चिंतन करने हेतु प्रेषित।

Monday, July 11, 2022

श श श श

मुशीबत को दूर रखने के लिए मोबाइल से शिम निकाल कर रख दें...किशी शे जब भी बात करें तो बहुत बिश्तार शे और बिश्तृत बात मत करें.....शादा भोजन करें, शिंपल कपड़े पहनें, शंयुक्त होकर रहना शबशे बड़ा शमाधान है आज शमाज में.... हंशमुख परिवार के लिए शावधानी रखें...😂😂😂
ये बाबाजी बता रहे हैं कि #ग्रहण  लगने पर हंसना बोलना भी नहीं चाहिए।
सोना नहीं चाहिए
खाना नहीं चाहिए 
पानी नहीं पीना चाहिए 
मोबाइल नहीं चलाना चाहिए
आदि आदि....अब भइया 
मेरे से इतना बोझ निर्वहन नहीं होगा.... 
इसमें से कुछ भी.... ना पति मानने वाले हैं ना बच्चे..... 
फिर कौन सा उपाय करूं ग्रहण के दोष से मुक्त होने का?

हमने इन बाबा जी से कहा 

"इतनी विश्तृत और शंपूर्ण जानकारी देने के लिए धन्यवाद"
😂😂😂😂😂😂😂😂

Saturday, July 9, 2022

बारिश कब होगी यार🙄🙄

गर्मी के मारे प्राण सांसत में हैं...... आपकी तरफ भी अगर बारिश नहीं हो रही हो तो इसका रोना रोने के बजाय एक बार पूरे घर के पर्दे, बेडशीट, अपने सूट, साड़ियां, पतिदेव के पैंट शर्ट सहित ढेरों कपड़े धोकर...... या बिना धोए  ऐसे ही धूप में सुखाने डालने वाला टोटका आज़माइए...... .रजाई और कंबल भी डाल सकते हैं... कोई पाबंदी नहीं है... ..अचार के जार, बड़ियां, दालें वगैरह भी सूखने को फैला दें तो और भी जल्दी बारिश होगी.....मेरे लिए हमेशा असरदार रहा  है ये टोटका...और धूप में कपड़े फैला कर मेरी तरह छः आठ घंटे के लिए स्कूल चले जाइए.....तब आंधी के साथ मूसलाधार बारिश होने की पूरी संभावना है😁😁😁सच्ची ये टोटका कभी फेल नहीं हुआ आज तक✌️✌️

Tuesday, June 28, 2022

ऊहापोह

अतीत से बहुत प्यार नहीं करना चाहिए..... इन दो सालों में जीवन में इतना उतार चढाव देख लेने के बाद मन दिग्भ्रमित सा हो गया है..... याद में जो बातें थीं, उनसे अधिक लगभग बेहिसाब बातें सोच लेना एक तरह से खुद को गले तक लबालब भर लेना ही तो है ...... अक्सर आधी रात को नींद उचट जाती है.... डर लगता है कि ये तो अभी  आधी रात ही बीती है .... अब नींद न आई तो?  और अक्सर नहीं ही आती.. जागती ही रह जाती हूँ.....

 वे सारी जगहें, जो सालों पहले  पीछे छूट चुकीं.. उस समय का अब कोई मित्र साथी भी नहीं..... वहां तक सिर्फ सपनों में लौटा जा सकता है...... वास्तव में उन सभी जगहों का तो जैसे अस्तित्व ही मिट चुका है......वो सारी जगहें एक नये कलेवर, नए रूपरंग और नई खुशबू के साथ मौजूद हैं जिन्हें मैं नहीं पहचान पाती... और वो भी शायद मुझे नहीं पहचान सकें.... 

जीवन के अवसान के बारे में कुछ नहीं सोचती हूँ........मगर चीज़ें इस तरह की शक्ल लेती हैं कि उनमें उलझी खोई सिहरती रहती हूँ.....आज सुबह सुबह एक साथी स्टाफ के पति का अचानक देहावसान..... आंखें खुलते ही पहला समाचार यही मिला..... तब से अजीब सा मन हो रहा है... इतने किस्से सुनाई दे रहे हैं  कि दिल दहल जाता है.... पता नही क्या हो रहा है ये सब?? बहुत मन दुखी हो गया है...... हे भगवान् 🙏सबपर कृपा दृष्टि बनाए रखो😢😢
          ये  भी बीत गया, वो भी चला गया और जाने कौन कितना बचा है? डर सा बैठ गया है मन में...... अजीब सा संदेह, अनजाना भय और अंतहीन पीड़ा। बस इतना भर ही जो तंद्रा या अधखुली जागती सी नींद में होता है... 
शायद बेमतलब और बेवजह की बातों की तलाश में ही अतीत में इतना गहरा  डूबती  उतराती रहती हूँ..... हर चीज को शक्ल देने की दोबारा कोशिश क्यों करती हूँ......जैसा चल रहा है वैसा ही चलने क्यों नहीं  देना चाहती.... ये ही सब सोचती हुई रोज सुबह से पहले के वक़्त में सो जाना चाहती हूँ। आजकल की रातें बहुत गर्म है। बेचैन सी   ऊहापोह से भरी....एसी की हवा भी बस छू कर ही गुजरती रहती है... तृप्त नहीं करती...... 

         बहुत अच्छा लिख पाना मुझे अभी तक आया नहीं है...  पर कोशिश है कि अच्छा लिख सकूं.... हां मैंने  अगर किसी से कुछ कह दिया हो तो उसके लिए माफी मांग लेना चाहती हूँ और ऐसी सभी गलतियों के लिए भी जो मैने कभी की ही नहीं.... 
              सबकुछ छलावा सा लगता है मगर मैं बार बार कोशिश करती हूँ कि काश एक मुलाक़ात हो सके.... बस एक बार... . मां से.... पापा से.... भाई से...... जाने किस से...क्या सबके मन में भी ऐसी बातें आती  हैँ? 
        ऊपर वाले की क्रोनोलॉजी धरती से अलग होती हैँ......यहां का जन्मदिन वहां एप्लाई नहीं होता.. जिस दिन पर्ची कटेगी, न कोई जान/समझ पायेगा और न कुछ कर पायेगा, जिनके लिए सारी उम्र खपे हैं......प्राणपण से चाहा है जिन्हें... हजारों आंसू बहाए हैं जिनके लिए..... वो भी कहेंगे " शुभस्य शीघ्रम् "......
.
.
(नोयडा - 13-6-22)

Wednesday, June 15, 2022

एक दिन अचानक

ज़रा सा फर्क होता है,
रहने में और ना रहने में

ये इतने सारे लोग जो अचानक चले गए हैं
क्या इनको देखकर कभी ऐसा लगा था  
कि ये, यूं ही चले जायेंगे 
बिना कुछ कहे, बिना कुछ बताए...... 

उन सब से कुछ लगाव था हमें
कुछ शिकायतें थी, 
कुछ नाराजगी भी हो सकती थीं।
जो कभी , कही नहीं हमने..... 

पर कहा तो हमने वो भी नहीं,
जो उनमें, बेहद पसंद था हमें ।
 
फिर अचानक एक दिन खबर आती है।
'ये नहीं रहे', 'वो नहीं रहे।'

नहीं रहे मतलब , कैसे नहीं रहे  ?
कैसे एक पल में सब कुछ बदल जाता है।
वही सारे लोग, जिनसे हम अक्सर मिला करते थे कल तक।
वे इतनी जल्दी कैसे गायब हो सकते है, कि दोबारा मिलेंगे ही नहीं।

जैसे कोई बेजान खिलौना,
जिसकी चाबी खत्म हो गयी हो।

कितना कुछ कहना रह गया था उनको।
कहीं घूमने जाना था उनके साथ, 
खाना भी खाना था , पार्टियां भी करनी थी।
कुछ बताना था, कुछ कहना भी था उनको। 
बहुत सी बातें करनी थी 
चाहे  फ़िज़ूल की ही सही।
पर वो भी कहाँ हो पाया।
सब कुछ रह गया , वो चले गए।

न हम ही तैयार थे।
न वो ही तैयार थे,
विदा के लिए

ऐसे ही एक दिन 
हम सब की भी खबर आनी है, 'एक सुबह कि वे नहीं रहे'।
लोग 
ओहहह! अरे! 
क्या हो गया था?? 
ऐसे??
अचानक?? 
कह कर एक मिनिट खामोश हो जाएंगे..... 
कुछ समय तक चर्चाएं होंगी, 
हमारी अच्छाइयों - बुराइयों का जिक्र होगा, 
दो चार दिन हम चर्चा का विषय रहेंगे.... 
फिर धीरे धीरे सब भूलने लगेंगे, 
और फिर 
जीवन बढ़ जाएगा आगे।

इसलिए आओ तैयारी कर लेते हैं,
सब नाराज़गी, 
शिकायतों और तारीफों का 
हिसाब चुकता करते हैं..... 
ज़िंदगी हल्की हो जाएगी,  
तो आखिरी सांस पर, मलाल  नहीं रहेगा..... 

क्योंकि

बस ज़रा सा फर्क होता है,
जिंदा रहने में, 
और एक दिन 
ना रहने में…

Thursday, June 2, 2022

रजाई और मैं

बिस्तर और रजाई से मेरा जरा भी लगाव नही है...... बहुत कर्मशील हूँ मैं..... 
परंतु रजाई से बिछड़ते वक्त रजाई की नम आंखे देख फिर से उसे गले लगा लेती हूँ.....आखिर रोज ही तो सुबह-सुबह उसे छोड़ कर चली जाती हूँ न.....कम से कम इतवार के दिन तो बेचारी को पूरा समय देना चाहिए न😀😀😀😀😀😀😀

Tuesday, May 31, 2022

मम्मी....

कभी सोचती हूँ कि कोई जाए तो आपकी तरह ही जाय अचानक। न किसी से कोई सेवा ली न किसी का एक पैसे का एहसान लिया.... बस खुद की जमापूंजी भर से इलाज हो गया.....कुल हफ्ते भर के अंदर सारा खेल खत्म हो गया....  और बस चली गईं हम सबको  ये जताकर कि रखो  तुम लोग अपनी कमाई अपने एहसान..... सही एटीट्यूड है ये एकदम.... 
 
खैर किस्मत में यही था शायद.... अच्छा है हम लोग शायद कुछ कर देते तो बड़ा गुमान हो जाता खुद पर और क्या पता क्या समझने लगते खुद को। ठीक ही है जिंदगी ने आपके जाने के बाद ही सब कुछ दिया जो हमने सोचा था.... कम से कम अकेलेपन और संघर्ष के दिनों में तो आपका पूरा साथ रहा..... एक हिम्मत रही कि यार कोई नहीं...... मम्मी हैं न..... हम लोग सब संभाल लेंगे..... 
सोचती हूँ आपके रहते तक एक अलग ही जिद थी कुछ करने की ,अपनी गृहस्थी बनानी थी.... घर का सामान जोड़ना था... एक घर लेना था खुद की कमाई से...... बिटिया की शादी करनी थी...... पर आपके जाने के बाद ये सब हुआ अच्छी तरह हुआ पर आपके सामने होता तो कुछ और बात होती....... कभी-कभी बहुत बड़ी लगने वाली चीजें अब बहुत छोटी चीजें लगने लगी हैं..... 
पापा जी को तो प्राण छोड़ने के घण्टों बाद देखा था पर आपकी साँसे रुकते हुए तो सामने से देखा है। उस वक्त के बाद सपने, जिद सब बहुत छोटे लगते हैं.... लगता है जैसे जीवन का कोई बड़ा सत्य खोज लिया है.....! 
अब लिखने बैठो तो केवल यही टीस यही भारीपन निकल ही आते हैं कलम से..तो क्या ही लिखना..... बस  मन ही मन बड़बड़ा लेती हूँ तो मन थोड़ा सम्हल जाता है,लिख लेती हूँ तो थोड़ा मन की भड़ास निकल जाती है बस यही कर रही हूँ। 

सच कहूँ तो जिंदा हूँ ..खुश भी हूँ...... बहुत खुश हूँ अपने  जीवन में..... सबका लाड़ मिलता है...... बच्चे बहुत ध्यान रखते हैं..... सारे नखरे झेलते हैं... अब किसी से कोई शिकायत नहीं..... आपकी बहुत एहमियत थी हमारे जीवन में..... कितना कुछ किया.... दिया हमको लेकिन आप जाते-जाते मेरा कुछ हिस्सा तो ले गईं मम्मी .....
❤️

Monday, May 30, 2022

टूअर होना

                आज भी कंधे पर  कश्मीरी कढ़ाई वाले सूट, शाल का गठ्ठर लिए फेरी वाले चक्कर लगाया करते हैं.....और हमारे स्कूल - कॉलेज के दिनों में भी आया करते थे.... और वो जानते थे कि हमारे घर मे उनका दो चार आइटम तो जरूर निकल जाएगा..... पुराने कपड़े लेकर स्टील के बरतन या प्लास्टिक के बने टब, बाल्टी जैसी चीजें बदल कर लेने  का रिवाज था तब...... दो चार छः चीजें ..... ये मम्मी थीं जो जरूर खरीद लेती थीं..... ले लेती थी..... उनका मोलभाव करने का अपना ही तरीका था.... सौ रूपए की चीज को पचीस रूपए में कैसे लेना है.....उनको बखूबी आता था..... और वो बंदे वाकई पचीस तीस में देकर ही जाते थे...सिर्फ उनके बात करने के तरीक़े से.... बिना जरूरत भी वो तमाम छोटी बड़ी चीजें खरीद कर सहेज लेतीं और मौके मौके पर किसी किसी को देने के लिए ढेरों सामान रहता उनके कलेक्शन में....बाजार में कितने ही दुकानदारों से खूब अच्छा व्यवहार रहा उनका.... मुझे याद है दो सरदार बच्चे एक बार हमें गोदोलिया में मिले.... जो छिटपुट बनियान रूमाल जैसी चीजें हाथ में लेकर बेच रहे थे...उनसे थोड़ा प्यार से बातचीत कर लेने पर वो हमारे पीछे ही पड गए और साथ साथ चलने लगे फिर उन्होंने बताया कि कुछ पहले हुए दंगे में उनके माता-पिता  को मार दिया गया था और बस वही दोनो बच्चे हैं अब घर में.... मुझे याद है हम लोग उनकी मार्मिक कथा से द्रवित हो उठे थे.... उनसे कुछ सामान लिया और काफी दिनों तक गोदोलिया जाने पर उनसे सामान लेते भी रहे.... धीरे-धीरे वो बच्चे संभल गए और अपनी छोटी सी दुकान भी खोल ली....एक बार काफी दिनो बाद जाना हुआ तब भी वो हमें भूले नहीं थे...... मम्मी को देखते ही आवाज लगाई उसने... फिर तमाम कपड़े लिए गए वहां से.... बहुत अच्छा लगा... आज भी बाजार वही है, गोदोलिया भी वही है, दुकानें भी वही हैं पर अब मम्मी अब कभी उधर नहीं जाएंगी कि मेरे  लिए छोटा मोटा समान खरीद कर सहेज लेंगी..... 
           उनके  के रहते..... हम उपस्थित न होते हुए भी उस घर में हमेशा बने रहते थे.... वो जोड़ती थीं...... सबको जोड़ के रखना जानती थीं....कितने ही लोगों का आना जाना लगा रहता था..... . हमारा होना उस घर में पुख्ता करने वाली मम्मी ही थीं....हमारा हाल चाल पूछने वाली मम्मी थीं..... कौन त्योहार कब आ रहा, कब कब क्या क्या करना है ये सब बताने वाली मम्मी ही थीं..... और वो सारे उपक्रम करते हुए हमको उनकी ही सबसे ज्यादा याद आई.....रिश्तों की अहमियत बताने वाली....  सभी को  याद करते रहने वाली मम्मी ही थीं..... 

         अब तो ये ही लगता है जैसे जब माँ नहीं होती.... तो हम मांँ के घर से घटने लगते है और घटते घटते धीरे धीरे लुप्त हो जाते हैं.....घनिष्ठता समाप्त सी होने लगती है शायद एक समय के बाद कभी कभार दूर दराज की बातों में हमारा जिक्र भर सुनाई देता है.....या शायद वो भी नहीं... 
खुद नानी दादी बन जाने के बाद भी.....  औरते जब भी तकलीफ में होती हैं... खुद को टूअर समझने लगती हैं..... 
माँ नहीं है तो लगता है हमारा दुख दर्द सुनने वाला कोई नहीं......किससे कहें?? 

Saturday, May 28, 2022

टाइटैनिक की यादें

"टाइटैनिक" मेरी पसंदीदा फिल्मों में सबसे खास स्थान रखती है...अभी तक कितनी ही बार देख चुकी हूँ और अभी भी बिना ऊबे देख सकती हूँ....लेकिन अफसोस है कि अभी तक मैने थियेटर में जाकर ये फिल्म नहीं देखी है... जिस समय ये रिलीज हुई... सभी देखने वालों ने ये बताया कि बड़े पर्दे पर समुद्र के दृश्य बहुत ही विकराल और भयावह रूप में दिखते हैं.... (विकराल और भयंकर डायनासोर वाली "जुरासिक पार्क" कुछ ही दिनों पहले देखी थी.... और कई दिनों तक सो नहीं पाई थी)इस लिए हिम्मत नहीं जुटा पाई हाल में जाकर देखने की🙄🙄 पर एक दिन अपने घर पर ही पेंटिंग क्लास के दरम्यान टीवी पर वीडियो कैसेट लगा कर अपनी छात्राओं के साथ देखा..... सभी बेहद रूचि और तन्मयता के साथ देखते रहे.... और आखिरी दृश्यों में जब जैक के ठंड से अकड़े हुए हाथ उस तख्ते को (जिस पर रोज़ लेटी हुई सितारों को देख रही है..)छोड़ देते हैं और वो धीरे-धीरे समुद्र में समाता चला जाता है....ये दृश्य देख कर हम सभी एक साथ रोए थे.....सचमुच गजब के भावुक दृश्य थे... 
😢😢😢😢😢

Wednesday, May 18, 2022

डायरी का एक पेज

मैने बाहर जाकर दूसरे लोगों से मिलने को.... खुशी महसूस करने का जरिया नहीं समझा कभी... . मुझे लंबी लंबी शामों को चाय पीते हुए अपनी आराम कुर्सी में अधलेटे बैठ कर कुछ पढना या लिखना और घर में शांति से समय बिताना ज्यादा पसंद है...... मुझे पतिदेव और बच्चों के साथ घर में रहने से ज्यादा खुशी किसी और चीज से नहीं मिलती है.'

Monday, May 16, 2022

क्या पता....


क्या पता, किसी और को भी ऐसा महसूस होता हो कि एक शून्यता सी आने लगी है संबंधों में, वह जड़ता, निष्क्रियता जब हम कुछ फ़ील करना ही नहीं चाहते। जब लगने लगता है कि सब-कुछ जोड़कर, सम्भालकर रखने की कोशिश में ख़ुद टूटते-बिखरते जा रहे हैं.... सबकी अपनी-अपनी व्यस्तताएं हैं, अपने संघर्ष हैं, अपनी चुनौतियां हैं और सबसे बड़ी बात, अपनी प्राथमिकताएं हैं और अपने-अपने एहसास है..... 
अपनी बात करूँ तो मैं इज़ी टू कनेक्ट हूँ (बेशक़ सबसे नहीं, जिनसे मेरी  अंडरस्टैंडिंग है, दोस्ती है, उनके लिए) लेकिन टच में रहने के मामले में बेहद-बेहद आलसी हूँ.... ख़ुद से कॉल/मैसेज, हाल-चाल जानना, मैं नहीं कर पाती ज्यादा.... मैं कभी दावा नहीं करती कि मै अवेलेबल हूँ हमेशा, क्योंकि पता है, नहीं रह सकती......फिर भी अपने दोस्तों के लिए कोशिश करती हूँ.....चमचागिरी होती नहीं, इसलिये जिनसे ट्यूनिंग नहीं, वहाँ जाने से बचती हूँ ...... 
पता हम किसकी स्टोरी में हीरो हैं, किसकी स्टोरी में विलेन। सबकी ही  अपनी-अपनी सोच  है..... फिर भी  अच्छा लगता है यह सोचकर कि कुछ तो हैं हम भी..... चाहे मिलें न मिलें, बात होती हो, न होती हो, फिर भी हमारी कुछ तो परवाह है, याद तो किया जाता है, ज़हन में रखा जाता है हमें भी.......हम भी चर्चाओं में रहते हैं......चाहे मन से याद किए जाएं या बेमन से...... 

Sunday, May 15, 2022

उम्र के साथ

उम्र गुज़रने के साथ जो सबसे तकलीफ़देह बात होती है, अपने सबसे प्रिय लोगों को बूढ़े, कमज़ोर और बीमार होते देखना.... उनको एक एक करके दुनिया से जाते हुए देखना..... बचपन में जिन्होंने हमें गोदों में खिलाया, हमारी फ़रमाइशें, मनमानियां पूरी कीं, जिनको सेहतमंद, ताक़तवर, ख़ूबसूरत देखा, उनको ढलते और मरते देखना...... 
फिर भी इस छोटी सी , अनिश्चितताओं से भरी ज़िन्दगी को भी हम ग़ुस्से, नफ़रत, साज़िश, जलन, ग़लतफ़हमियां, ईगो में बर्बाद कर रहे  हैं, क्योंकि यही हम सबकी फ़ितरत है.... किसी भी बात के प्रति वैराग्य भी बस कुछ समय का होता है, फिर सब अपनी-अपनी दिनचर्या में लग जाते हैं क्योंकि मन ही मन में उम्मीद होती है कि हमें तो अभी जीना है बहुत। और इसी उम्मीद पर ही दुनिया टिकी है..... भविष्य है, सब कुछ अच्छा होगा, यही सोचकर उसे बेहतर बनाने की जुगत में ही लगे रहते है।
ख़ुश-नसीब होते हैं वे लोग, जो बिन किसी तकलीफ़-परेशानी के दुनिया छोड़ जाते हैं, और पीछे छोड़ दिया गया परिवार भी सेटल्ड होता है। वरना अचानक चले जाने वालों के परिवार तिनकों की तरह बिखर भी जाते हैं।

लेकिन बहुत यंत्रणादायक होता है ज़िन्दगी के पचास-साठ साल की कमाई उठा कर अस्पताल में दे आना.. 
बस हाथ-पैर चलते रहें और सबसे अहम, शरीर और दिमाग़ के बीच तालमेल और संतुलन बना रहे, किसी की मोहताजी न हो, किसी पर डिपेंडेंसी न हो, बस उतनी भर ज़िन्दगी सबसे अच्छी... 

Sunday, May 1, 2022

बस्सससस

इतने दिनों से यहां रहने के बावजूद यही लगता है कि आज कल मैं जहाँ हूँ वो एक छोटा सा शहर  है , थोडे से लोग हैं  कुछ पहचाने से.. कुछ अनजाने से..... एक रास्ता है... जो घर से स्कूल और स्कूल से घर को जाता है.... थोड़ी सी नींद है और ढेर सारी उनींदी  रातें हैं।

मुझे लगता है  जैसे मैं सफर में हूँ और सफर करते करते थक गई हूँ।  हर दिन इस  दर्द को सुन सुन कर और महसूस करते करते थक गई हूँ। क्या कोई मुझे बता सकता है....हम कहां से चले थे??? हम  कहाँ जा रहे है? और कहाँ से आ रहे हैं? 

मेरे  सिरहाने  कुछ सफ़ेद पन्ने और कैनवास रखे हैं, जिनपर क्या लिखूं, क्या रचूं... कुछ समझ ही नहीं आता। मैं मन में कल्पना की उंगलियों से  हवाओं में चेहरे बनाती हूँ.... बिगाड़ती हूँ, सफेद कागज पर सिर्फ हाथ फेरती हूँ। 

 एक वक्त था जब जी में आता मैं आंखे बंद करते ही नींद को बुला लेती थी।  चांद, तारे सब मेरे मित्र थे जैसे.... पर अब सब तारे मेरी तरह बूढ़े हो चले  हैं.... और चांद ने मुझसे दोस्ती छोड़ दी है।

  जिंदगी के हिस्से में आज  एक और दिन आया है! नहीं  , यह कहना ठीक नही है, दरअसल मेरे  हिस्से में एक सुबह, एक दोपहर, एक शाम और एक  रात आई है। 

मुझे लगता है जब आप किसी से मिलते है तो  थोड़ी सी खुशी,थोड़ी सी हंसी... थोड़ा सा प्यार ,थोड़ा सा विश्वास भी होना चाहिए साथ में..... आजकल मैं अनजान लोगों के बीच हूँ जैसे....

Wednesday, April 27, 2022

इन दिनों

इन दिनों घर से स्कूल के रास्ते पर जगह जगह सूखे पत्तों के ढेर मिलते हैं  एक उदास करने वाली चरमराते पत्तों वाली आवाज़ के साथ  गोल-गोल चक्कर काटते हुए लम्बी-लम्बी सड़कों को चूमते आखिरी विदा का गीत गाते हुए।
इन पत्तों को अभी चंद दिनों पहले तक ही तो हरा-भरा देख सब  विस्मित थे....आशान्वित थे.. खुश थे, कैसे वर्षों से स्थिर खड़े पेड़ों पर खूबसूरत झालरों जैसे  झिलमिलाते थे और आज हवा इन्हें बुहार कर जाने किस दिशा लिए जा रही  है... 
कोई पूछे कि ये तो जीवनक्रम है इसमें नया क्या है? उदासी क्यों ?? मगर पतझड़ का यह उदास दृश्य आँखों पर हर बरस  नमी सी भर देता है..... आप पत्तों का टूटना देखते हैं और बस.... कुछ भी नहीं कर सकते।

 कभी आप संसार के सबसे उदासीन मनुष्य में बदलने लगते हैं..  धीरे-धीरे यह समझने लगते हैं कि  संसार का हर सुख इतना क्षणिक है कि हवा के एक झोंके से ही तहसनहस  हो जाता है...... या फिर आप हरेक बात को हल्के में लेने लगते हैं...... गम्भीर से गम्भीर बात पर भी पर हँसने लगते हैं। ऐसा महसूस होता है कि यहाँ सब कुछ  हँसी में उड़ा देने योग्य है... कुछ भी सीरियस नहीं है 

जिस  ने राह में रूक कर, ठहर कर.. टूटते हुए पत्ते नहीं देखे कभी, वो कभी नहीं समझ पाता कि यह संसार कैसे कैसे असहनीय दृश्यों से भरा पड़ा है। 


Monday, April 25, 2022

😔

बच्चों का दूर जाना जिस तरह आज हमें सताता है , ये बात याद दिलाता है कि जब हम अपने माँ पापा से दूर गए थे तो बिल्कुल ऐसे ही दर्द से वो लोग भी गुजरे होंगे । अपने कलेजे के टुकड़े कोई अपने से दूर  नहीं भेजना चाहता है , पर दुनियां का यही दस्तूर है कि धान का पौधा अपना स्थान परिवर्तन नहीं करेगा तो पौधा कैसे बनेगा ।

कोरोना काल

कितना अजीब सा समय है..... लग ही नहीं रहा कि सिर्फ हफ्ते भर पहले हम सब कितने उत्साहित थे.... खुशी के पलों को एन्जॉय करते हुए...... पर इन चार छः दिनों में ही जैसे जैसे कोरोना अपना रौद्र रूप से दिखाता जा रहा है.... सब आकुल व्याकुल होते जा रहे हैं.... कुछ पल के लिये घोर अंधेरा छा जाता है आँखों के सामने। एक अंजान डर आकर बैठ जाता है मन में।अब भी कभी देर रात अचानक उठ कर बैठ जाती हूँ और ठंड में भी पसीने से तरबतर हो जाती हूँ...... सब सही सही  होता रहे तो भी एक डर नही पता क्यों हमेशा लगा रहता है। 
    दूसरे ही पल सोचती हूँ ..
  सब छूटता सा जा रहा है जैसे और मैं छटपटाती रह जा रही हूँ.... कुछ कर तो नहीं पा रही हूँ..... मुठ्ठियों को पूरी ताकत से भींच कर रखती हूँ कि कुछ भी गलती से भी न छूटे लेकिन हाथों की लकीरों में जो नहीं होता उसे मुठ्ठियों की ताकत भी बांध नहीं सकती..... हर बार मोह के उस भंवर में फँसती जाती हूँ जिससे कई बार निकल चुकी हूँ..... अपने आस-पास सब फिर से वैसा ही घटता हुआ देखती हूँ फिर खुद को देखती हूँ ..अगर सबकुछ फिर से वैसा ही घट भी रहा है तो क्या...भगवान मेरे परिवार को सुरक्षित रखना....मेरे भाई की उम्र लंबी करो प्रभु.....रोज रोज भयावह खबरें सुन सुन कर बहुत मन खराब हो रहा है...... सब कुछ बदल रहा है जैसे..... क्या फिर सब कुछ पहले जैसा हो पाएगा??? मैं सोचकर घबराती हूं कि जब सब कुछ नॉर्मल हो जाएगा... कुछ साल बीत जाएंगे, जब हम कभी अपने खोए हुए लोगों को याद करेंगे उनमें कौन कौन होंगे?? ❤️😭🙏  ऐसा लगता है जैसे..... मैं भी तो अब वो नहीं रही जो पहले थी..
आंखें खोलती हूँ.... मुस्कुराने की नाकाम सी कोशिश करती हूँ..खुद को नजर भर निहारती हूँ ,सांसें भरती हूँ तो याद आता है कि ये तो अब भी अपनी गति से चल ही रहीं हैं और बस दिल पर हाथ रख के निकल जाती हूँ इस अंजान डर से..
(26-4-21)

😔😔

अक्सर मन में यह ख्याल आता है . . .
कि जैसा सामने वाले ने हमारे साथ व्यवहार किया 
अगर वही व्यवहार हम उसके साथ करें तो उसे
क्या और कैसा महसूस होगा। 
क्या वह भी रिश्ते को बनाए रखने के खातिर इतना अनुचित व्यवहार और कटाक्ष सहन करेंगें अथवा नहीं?

रिश्ता दो लोगो के मध्य होता है . . .
एवं उसे बनाए रखने की जिम्मेदारी तथा प्रयास भी 
दोनो की तरफ से ही होना चाहिए अन्यथा वह रिश्ता 
धीरे धीरे खत्म होने लगता है।।

ये खाली खाली मन...

मन जैसे खाली खाली सा... उचाट सा होने लग गया है..... कुछ भी ठहरता नहीं बहुत देर तक..... गुस्सा जितनी जल्दी आता है उतना ही जल्दी शांत भी हो जाता है... रोना कुछ देर का ही है फिर "अच्छा छोडो.... क्यों सोच रही हूँ इतना? सब ठीक है" कहकर चीजें हटा देना चाहती हूँ दिल और दिमाग से... कहने को बहुत से लोग हैं साथ...... पर अब  एकांत ज्यादा सुखद लगता है अब......अब अपने शौक और मनपसंद कामों को ही पूरा वक्त देना चाहती हूँ.... किसी के दबाव में कुछ करने की न जरूरत है न इच्छा.... 
                      नहीं पता कि अब इस उम्र में ज्यादा समझदार हो चुकी हूँ या दिनों दिन बेवकूफ होती जा रही हूं..... बेहद नॉर्मल - फॉर्मल चीजें ,जो करनी भी जरूरी है वो भी करने की इच्छा नहीं होती... किसी जान पहचान वाले को देख कर भी कोई खास उत्साहित नहीं होती... अब बातें ही शुरू नहीं करना चाहती....सिर्फ सुनती ही रहती हूँ.... चाहे घर पर रहूं या स्टाफ रूम में... महज एक दर्शक और श्रोता ही बनी रहती हूँ..... बड़बोली तो मैं खैर कभी नहीं रही.... पर अब कुछ अजीब ही स्थिति है.... मन ही नहीं होता..कुछ भी करने का ..सबसे मन खिन्न सा हो गया है जैसे.... हर जगह वही हाल है..... कोई भी चीज बस थोड़ी ही देर तक अच्छी लगती है... 
लगता है जो छूट गया सो छूट गया...... जो है सो है..... नहीं है तो भी कोई गम नहीं और है भी तो क्या.... क्या पता कल न हो....... कुछ सपने जो कभी देखे थे अब निरर्थक से महसूस होते हैं... ना खुद.... से ना दुनिया से... कोई शिकायत रही...... ना ही उन लोगों से कोई शिकवा है जिनकी बातों पर रो पडी़ हूँ ....... सभी को  दिल से माफ कर दिया है ..... ये तो नहीं कह सकती.... पर बस्ससस....... 
अब फर्क नहीं पड़ता कि किसने क्या कहा.... क्या दिया..... क्या लिया.. ... छोड़ो.... अब सब अपनी अपनी दुनिया में मग्न हैं तो ठीक है....अब मुझे किसी से ज्यादा उम्मीद भी नहीं..... 
खैर सब ठीक ही है..... 

Sunday, April 24, 2022

हमारे पास...

ज़िन्दग़ी में,
एक समय के बाद...
खोने के लिए हमारे पास
केवल,
इक उम्र के अलावा
और कुछ भी तो नहीं बचता...

और आज, हम सब
लगभग उसी मुहाने पर खड़े हैं
शायद...
उसी कग़ार के इर्द-गिर्द...

अब, इस पड़ाव पर पहुँच
सोचती हूँ,
अभी तक जो बीत गया,
कितना सार्थक रहा वह,
और कितना निरर्थक भी...

अब तो यही लगता है,
खुद को... 
बहुत ही बारीक़ी से
और बचा बचा कर
ख़र्च करना चाहिए..... 

मन जिद्दी है बहुत
समझौता करना नहीं चाहता.. 
बच्चों को मालूम नहीं.... कि उनका जीवन बनाते बनाते हमने हमारी कितनी इच्छाएं तिरोहित कीं उन पर..... उस समय कमाई कम और खर्च  अनगिनत... मन को कितनी ही  बार मार कर बच्चों को इस मुकाम तक पहुंचाया। उनकी हजारों तरह की ख्वाहिशों के बाद भी..... सिर्फ उनकी जरूरतें ही पूरी कर पाए.... अब उनके  सामने अपनी किस अधूरी इच्छा की फेरहिस्त थमाएं.... बस मन यही चाहता है कि वो खुश रहें..... हर वो चीज उन्हें मिले..... जिसके लिए उनका मन जरा भी तरसा है..... 

Tuesday, April 19, 2022

पता नहीं क्यों...

पता नही क्यों
कुछ दिनों से मनकापुर की रातों में..
स्मृतियों की फिल्म कुछ ऐसे भागती है.... .
कि मैं सपनों में रात भर दौड़ लगाती रहती हूँ.......
पता नहीं सपनों में दौड़ लगाना कैसा होता है.....
पर सपनों में दौड़ पाना बहुत मुश्किल है....
पांव जकड़ से जाते हैं....
मुंह से आवाज भी नहीं निकलती...
चीखना चाहूं तो चीख गले में ही घुट के रह जाती है...

मुझे आजकल अपने बचपन के
बिछड़े दोस्तों की बहुत याद आती है ,
उनके साथ बिताए गए पल
अनगिनत लम्हे
मुझे उनमे से कई के चेहरे याद है तो कई के नाम.....
पर अक्सर होता यही है
कि हम जिन्हें याद रखना चाहते हैं बस वही चेहरे याद रहते हैं

कितना आसान  है किसी को भूल जाना....
और शायद सबसे कठिन भी...
और सबसे पीड़ा दायक तो
यह सोचकर उदास होना है कि जब हमें सब भूल गए हैं
तो हम  ही क्यों उन्हें याद कर कर के परेशान  हैं ...
और याद करने से होगा भी क्या?

क्या वो जो  बिछड़ गए हैं वो फिर कभी मिल पाएंगे?
इस दुनिया में सबसे मुश्किल काम है
किसी को याद रखना,
और
यह जानते हुए भी
कि अब हम उसकी स्मृतियों में शामिल नहीं हैं.....

(15.4.2022)

Monday, March 14, 2022

यूंही

 अपने रिश्तों को लेकर बहुत भावुक हूँ.और सिर्फ रिश्ते संभालने के लिए ही  मुझसे ग़लती हो या न हो  सामने वाले के तैश मे बोलने पर मैं शांत हो जाती हूँ... बिना देरी किए माफ़ी मांग लेती हूँ.... अपनी तरफ से बातचीत की शुरुआत कर देती हूँ.... लेकिन अगर आप  हर बार, बार बार छोटी गलतियों पर माफ़ी मांग लेते हैं तो सामने वाला आपको फ़ाॅर ग्रान्टेड लेने लगता है......सच कहूँ तो आप अपनी वैल्यू खो देते हैं
      अब ऐसे रिश्ते जोड़ने से मैं बचती हूँ, जहाँ आत्म सम्मान पर बात आए और साथ ही माफ़ी भी जहाँ बेहद ज़रूरी लगे ,वहीं मांगती हूँ बस संबंधों को बनाए रखने की ख़ातिर..... माफ़ी माँग लेना , ये सोचना अरे छोड़ो जाने दो... , क्या छोटी बातों को इतना बड़ा बनाना ? जैसी कई बातें मन में उमड़ती घुमड़ती रहती  है .....पर मेरा ऐसा करना या सोचना किसी के घमंड को बढ़ा दे , मेरी सारी  अच्छाइयों को घटा दे तो क्यों ऐसा करना .....
         वक्त ने कई पाठ पढ़ा दिए हैं.... बहुत कुछ सिखाया भी है.... फिर भी माफ़ी माँग कर संबंध बच भी जाए तो ग़नीमत समझिए ..मैं भी सारी कड़वाहटें भूल कर भरसक संबंधों को सामान्य करने की कोशिश ही करती हूँ..... पर लोग इसे फॉर ग्रांटेड  ही लेते हैं अधिकतर ...मेरे सबसे खास लोग भी  इसी बात पर मुझसे ख़फ़ा रहते हैं कि मैं कैसे  इतना सह लेती हूँ.... नार्मल हो जाती हूँ पर क्या करूँ....
हाँ प्रेम के धागे में एक गाँठ तो पड़ ही जाती है लाख जोड़ने की कोशिश की जाये अपनी गलती पर माफ़ी माँग लेना ही सुख है, परन्तु किसी के अहम को तुष्ट करने के लिए माफ़ी माँगना तो अपनी ही नज़र में गिरा देता है....                           

       संबंध को बचाने के लिए कभी-कभी यह भी करना पड़ता है और यहीं से इंसान टूटना और विरक्त होना शुरू होता है। मानवी रिश्तों में अनेक जटिलताएं होती है, पर अपनी गलती का अहसास होना और माफ़ी माँगना आपको थोड़ा और ज़्यादा इंसान बनाता है।गलती है__ तो बेझिझक माफ़ी मांगी जानी चाहिए । मगर  रिश्ते को चलाने की नीयत से बिना गलती के भी बार बार माफ़ी माँगना,  संवाद स्थापित करने का प्रयत्न करना __ किसी भी रिश्ते को लंबे समय तक नहीं टिकने देगा। 
             यदि रिश्ता है तो जाहिर है दो लोगों के बीच का होगा । और कोई भी रिश्ता निभाने की शत प्रतिशत जिम्मेदारी किसी एक की नहीं हो सकती।  ऐसे में बार बार झुकने वाला इंसान ही एक दिन कुछ यूं बिखरता है कि रिश्ता तो दूर वो खुद को भी सहेज नहीं पाता........
       मगर हाँ यदि गलती है या नहीं भी है..... तो भी स्वस्थ संवाद बनाए रखना चाहिए । बस इतना ध्यान रहे कि अपनी सीमाएं भी हमें मालूम होनी चाहिए।कितने ही मौके होते हैं जब हम अपनी गलती को समझ रहे होते हैं पर किसी  झूठे अहम के चलते झुकते नहीं। अपनी अकड़ में किसी प्रिय को जाने देते हैं हाथ बढ़ा कर थामते नहीं......और जब तक ये बात समझ में आती है  समय निकल चुका होता है.... .
प        कितने ही मौके ऐसे होते हैं जब हम बस इतना कह दें कि सॉरी यार!  प्लीज मुझे माफ कर दो...... तो बहुत कुछ संभाला जा सकता है........ लेकिन अपनी गलती न मानने की ज़िद में हम तब तक पड़े रहते हैं जब तक सामने वाले का धैर्य न चुक जाए।
              सोचती हूँ क्या सही है?? माफी मांगना या आपस में बात चीत बंद कर
किसी भी तरह के स्नेहिल संबंधों को नष्ट कर देना?
या फिर ये मान लेना कि हम ही सबसे अच्छे और सही हैं हमसे  कभी गलती होती ही नहीं... 

यूँ ही

ये विशुद्ध घरेलू औरतें हैं....
इनके मन से कभी भी आपसी ईर्ष्या नही जाती।अपनी ही सगी बहन, नन्द या सहेली भी अगर ज्यादा सज धज के साथ आ जाएं तो इनसे नहीं देखा जाता...... इनकी नजरों में कुढ़न - जलन साफ दिखने लगती  है..... ये पास बैठ कर भी जैसे मीलों की दूरी बना लेती हैं।
किसी के रंगरूप से लेकर पहनने ओढने तक, रीति-रिवाज, घर परिवार, रहन सहन पर  हिकारत भरी बातें सुनाना, अपने परिवार, अपने रस्म रिवाज को ही सर्वश्रेष्ठ समझना....पता नहीं क्या साइकोलॉजी है.....खुद को बहुत कुछ और सामने वाले को नगण्य समझना..... हर जगह बस ये ही सही हैं...छुआ छूत... भरी भावना... जाति धर्म विशेष के लोगों के प्रति नफरत भरी कटूक्तियां करना......खुद को सर्वश्रेष्ठ समझने वाली प्रवृत्ति........

मैं लगातार इनके चेहरे देखती हूँ...... कभी लगता है इनके भगवान, इनके गुरू जी, इनके व्रत त्योहार - पूजा न होती तो ये और क्या करतीं..... हर किसी में अनगिनत कमियां निकालना....वो भी बिना समय. या स्थान देखे..... मैं तो कभी भी  नहीं कर पाती..... यही इतनी बाहर की दुनिया है इनकी.....

मैं कभी किसी ऐसे अवसर पर न मुखर हो पाती हूँ न बात चीत में हिस्सा ले पाती हूँ.... मेरे पास बस एक मरियल सी बेचारगी भरी मुस्कराहट है.... सबके लिए...... सबकी तरफ देख अभिवादन करने की......चुपचाप सबकी बातें सुनते रहने की..... और बस यहीं मैं घमंडी साबित कर दी जाती हूँ......
.
मैं कभी कभी इन्हें देखते हुए सोचती हूँ क्या इनको कभी  चिडियों की सुमधुर चहचहाहट सुनने और झिर झिर गिर रही बारिश की बौछार में भीगने की तमन्ना नहीं होती या  कभी इनको जी भर कर खुला खूबसूरत नीला आसमान देखने की चाहत नहीं होती होगी या  ये किसी खिलते फूल के रूप रंग पर मोहित नहीं होतीं, क्या कोई प्यारी सी नर्म मुलायम बिल्ली पर प्यार नहीं आता??? क्या कोई सुंदर सुरीला गीत इन्हें अच्छा नहीं लगता....किसी साहित्य, किसी कहानी-कविता, किसी सार्थक सामाजिक गतिविधियों में कोई रूचि नहीं.....
दुनिया कहां से कहां पंहुच गई...... पर वो आज भी उसी फटीचर दकियानूसी चारदीवारी में बंद हैं........
छोटी बड़ी शिकायतें, हर किसी की चुगली एक नशा है जैसे इनके लिए....और बाकी समय  तो बस खाना बनाने, खिलाने... बड़ी, पापड़ बनाने, गेंहूं धुलने सुखाने, साड़ियां ,कपड़े तहाने, चूड़ियां संभालने में ही  लगी रहती हैं....
दुनिया कितनी बड़ी और सुंदर है.... कितनी चीजें हैं यहां....... पर हम ज्यादा तर औरतें झड़ते बालों, ठहरी उम्र, अलाने-फलाने के मोटापे, तरह तरह की डिशेज, डायटिंग, फैशन और मेकअप और दूसरों की बुराई से अलग बातें  क्यों नहीं करतीं??.....

इन औरतों के बीच मेरी जैसी बोर और "पता नहीं मुझे क्या चाहिए"टाइप वाली औरतें बड़ी मिसफिट साबित हो जाती हैं..
चुगली में आखिर क्यों मजा नहीं  आता मुझे यार??? 

शौक अपने अपने

मुझे लिपस्टिक लगाने, मेकअप करने, डाई करने से हमेशा से संकोच रहा। अपनी ही सूरत अनजानी और अजीब सी लगती है। दूसरा.... मेकअप पतिदेव को भी कतई पसंद नहीं हैं। उनकी पसन्द का ख़याल करते भी कभी मेकअप या लिपस्टिक लगाने का मन नहीं बना। शादी ब्याह , उत्सवों तक में सारी सजधज चूड़ी, साड़ी के बावजूद, लीपापोती में ही  कंजूसी ही बरती गई । सभी बचपन से ही कहते थे"चुन्नू की बिटिया बड़ी गुनी है, सुघड़ है , देखने में सुन्दर है बस्स तनी रंग दबा है.... मालती  पर पड़ा है।" सांवले रंग पर नक़ली रंग चढ़ाने से अलिप्त रहना ही बेहतर लगा। गनीमत है मेरी बिटिया - बहू साफ रंग की हैं....... बिटिया के बहुत जिद करने और साथी अध्यापिकाओं के रंगे-पुते  दिखते रहने पर भी मुझ पर कभी कोई असर नहीं पड़ा....कॉलेज टाइम से अब तक सिर्फ सुंदर पेस्टल शेड्स की नेलपॉलिश का शौक अब तक बरकरार है.... पर इधर कुछ दिनों से जब उम्र गुज़र चली है तो अब फेशियल कराने, हेयर कटिंग कराने, एंटी एजिंग सीरम लगाने, बालों में मेंहदी लगाने, पर्ल ज्वेलरी और डिजाइनर कंगन खरीदने की ख़ब्त चढ़ी है। चुन -चुनकर रंग ख़रीदने का और मौक़े -बेमौक़े लिपस्टिक का इस्तेमाल करने का भी मन हो रहा है। (बूढ़ मुंहां मुंहासे) यह ख़ब्त कितने दिन रहेगी  मालूम नहीं।😖😖😖😖😖😖

Friday, March 11, 2022

मेरा दिल ❤️

मेरा दिल तो इतनी बार टूटा … आए दिन टूटता है. कई बार ऐसा लगा कि बस्सस बहुत हो गया...अब आइंदा नहीं सुनूंगी या सहूंगी कुछ भी पर फिर भी तू तड़ाक या जवाब - सवाल करना न तो आया न मैने सीखना चाहा.... . .  एक महिला ऐसी जिसका दिल उसके दोस्त , यार , घर बाहर सब तोड़ते चलते हैं… फिर भी वो ज़िंदा है.आराम से जिंदा है..... 
कैसे… ??😝
किस मिट्टी की बनी है… 
अपने भावुक और रोंदू स्वभाव की वजह से … 
दूसरों को बहुत ज्यादा महत्व देने की वजह से … 
नॉन डिजर्विँग कंडीडेट को भी सिर पर चढा लेने की वजह से
या 
इस सोच की वजह से कि जैसी वो है, सामने वाले भी वैसे ही हों… वैसा ही सोचते हों.वैसा ही मानते हों.पर 90%बार ये सोच गलत ही साबित हो जाती है यार...... 
अब तो दिल इतना ठोस बन चुका है कि क़सम से … अब कोई असर ही नहीं होता... या मैं जाहिर ही नहीं होने देती.... . 🙏☺️

Thursday, February 24, 2022

सच

दुनिया को ढेर सारे अंतर्दृष्टिपूर्ण उद्धरण देने वाले सत्रहवीं सदी के मशहूर निबंधकार फ्रांसिस बेकन ने अपने लेख 'ऑन रीडिंग' में लिखा है- 'कुछ किताबें बस चखने के लिए होती हैं, कुछ भकोस जाने के लिए, लेकिन बहुत कम किताबें चबा-चबा कर पचाने के लिए होती हैं।' 
किताबों की एक और क़िस्म होती है जिनके बारे में लेकिन बेकन ने नहीं लिखा। ये वे किताबें होती हैं जिन्हें घूंट-घूंट पिया जाना चाहिए- उनका पूरा रस लेते हुए, उनके नशे में डूबते हुए और उनके साथ खुद को कुछ ‌बदलते हुए। 

Friday, February 18, 2022

सपने

मेरे बहुत सारे सपनो में से एक घर के एक कमरे को रंग बिरंगे कलर्स और ईजल्स  के साथ पेंटिंग स्टूडियो और ढेर सारी किताबों से भरी लाइब्रेरी बनाना भी था...काश  ये सपना  पूरा हो पाता..... बार बार नींद ही खुल जाती है..... सपना पूरा कैसे हो?? 😔😔😔😔😔कितना अजीब है..ना जाने क्यों हर एक की जिंदगी में शौक के कुछ अधूरे किस्से जरूर होते हैं।ऐसी कितनी ही ख्वाहिशें हैं जो 'बाद में पूरी कर लेंगे' के लिए रह गईं। डांस, गाना, पेंटिंग, और भी बहुत कुछ.... मेरी ये भी एक तमन्ना है कि   मिस्र की वादियों में घूमने जाऊँ❤️
सोचती हूँ.. सपने कभी पुराने नहीं पड़ने चाहिए जब मौका मिले पूरा कर लेना चाहिए.... 

Thursday, January 27, 2022

😔😔😔😔

अब किसी की बातें बुरी नहीं लगती....... छोड़ दिया है किसी की तीखी चुभती बातों पर ध्यान देना..... कोशिश करती हूँ कि अनसुनी कर दूँ ऐसी बातों को जो चीर देती हैं... टुकड़े टुकड़े कर देती हैं...अब किसी की बातों से दिल नहीं दुखता..... क्योंकि इस दरम्यान हमने एक चीज बहुत पास से देखी है वो है  अपने किसी  खास का जाना....... उनका हमेशा के लिए चले जाना...... जिन्हें खोने के डर से ही हम सहम जाते थे। जिनके लिए गिड़गिड़ा कर प्रार्थनाएँ की थीं !किसी भी तरह की कटुताएं मन में नहीं रखने का प्रण लिया था.....
ये तो सभी जानते हैं.... और ये शाश्वत सत्य है.... निःसंदेह हर जीव ईश्वर का बनाया हुआ है और अंततः उसी की ओर लौट जाना है उसे..... और अब सब लौटने की राह पर ही अग्रसर हैं.... 
  पर  हम जैसे लोग, उम्र के इस मोड़ पर अब सिर्फ बटोरना चाहते हैं , सहेजना चाहते हैं.... जो भी कुछ बच गया है। जो हमारे साथ है.. उसके साथ एक- एक पल को संजो कर रख लेना चाहते हैं बस..... जिंदगी अब तक जहाँ सफलता - असफलता, अमीरी - गरीबी, ऊँच-नीच के बीच झूल रही थी अब केवल अपने लोगों को अपने आसपास खुश और  स्वस्थ देखना ही जिंदगी का हासिल लगता है।  हमने जाने वालों की यादें संजो रखी हैं, हर अपने की जगह दिल में रह जाती है । जैसे हम कभी कभी उनसे मिलते थे...... वैसे ही कभी कभी उनकी याद भी आती रहेगी। लेकिन किसी के भी जाने का समय बहुत कठिन  होता है....... 
      अब किसी चीज से डर नहीं लगता,किसी चीज से फर्क नहीं पड़ता ..बस अपने सामने.. अपना परिवार ,अपने लोग हमेशा साथ साथ बने रहें.. स्वस्थ रहें केवल यही मन से दुआ निकलती है..... वो हमेशा सलामत रहें..... . जिनकी दुनिया हम हैं या जो हमारी दुनिया हैं.... 

🙏

Monday, January 3, 2022

2021 का अंतिम दिन.


🙏 
    विगत दो वर्षों  से  खुशियां कम , और दुःख अधिक  आ रहे हैं  जीवन में....पता नहीं कैसा समय है ये.... 
  आज 31 दिसंबर  का सूर्य भी अस्त हो ही  गया....दो तीन दिनों की बेचैनी और उलझन का बहुत ही निर्मम अंत हुआ..... रात बीत चली है.... उसके साथ ही  2021 कहीं अतल गहराइयों में डूब  गया और बस रह गईं  हैं कुछ चीर डालने वाली धुंधली यादें.... यादें उनकी जो असमय ही चले गए ....इस साल कई अभिन्न लोगों ने साथ छोड़ दिया.… . कुछ अच्छी यादें भी रहेंगी इस साल की..... पर बुरी यादों की कसक लंबे समय तक बनी रहेगी.. 
           आज की सुबह हमारे लिए काला सूरज लेकर आई...आज  मैने अपने प्राणों से प्रिय सहोदर भाई को खो दिया.... विगत तीन चार सालों की अस्वस्थता के कारण वो बहुत परेशान था......उसकी तकलीफ़ देख कर जी उमड़ा आता था...पर उसका ये कष्ट कोई बाँट नहीं सका... परिस्थितियों से जकड़े हम बस दूर दूर बैठे तमाशा ही देखते रह गए..... बस उसके छोटे छोटे बच्चों का ख्याल दिल मरोड़ कर रख देता है...खैर धैर्य रखने के सिवा हम कुछ नही कर सकते...दिन भर में सैकड़ों बार हाथ जोड़कर याद करती हूँ भगवान को... क्षमा मांगती हूँ...... की गई और कभी न की गई  गलतियों के लिए भी... पर वो ध्यान नहीं दे रहे🙏🙏🙏🙏🙏बहुत हुआ..... जो कष्ट देने थे दे दिये अब बस  करो प्रभु..... 
मन..को दो मिनट के लिये कहीं और लगाने की कोशिश कर रही हूँ तो फिर खींच  कर वहीं ले जाता है जहाँ सब शून्य है..... जीवन का ऐसा रूप देख आत्मा कलपती है एक बार...... फिर दूसरे ही पल सोचती हूँ कि कैसे  मृत्यु सारे दुखों को एक साथ, एक झटके में खत्म कर देती है..... कोई मोह नहीं, कोई जिम्मेदारी नहीं....... जाने वाले तो चले जाते हैं पर जो पीछे छूट जाते हैं उनका क्या..... बच्चे असमय ही बड़े हो जाते हैं.... छोटे छोटे कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ लद जाता है.....
 भगवान मेरे भाई के बच्चों को, पिंकी को और हम सबको धैर्य और साहस दो..... अभी तो कुछ भी नहीं देखा उन्होंने.... जीवन जीने की शुरुआत ही की है बस....और ऐसे में इतने प्रिय और प्रेमिल पिता का साया सर से हट जाना, कितना तोड़ देता है इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है..... .
                आज तक   हर साल उसके जन्मदिन पर, वैवाहिक वर्षगांठ पर ढेरो शुभकामनाएं देती रही हूँ.....आज ईश्वर से बस यही प्रार्थना है.. बस प्रभु उसे अपने चरणों में स्थान दे दें....हमारे पास धैर्य रखने के अलावा और कुछ नहीं हैं.... जितना बन पडेगा हमसब साथ हैं... सबको स्वस्थ संपन्न रखो प्रभु ... सब पर  कृपा दृष्टि बनाए रखो बस..... हिम्मत दो सबको 🙏🙏
 2021...बस जाओ अब.... जाते जाते अपने संग .. पीड़ा, कष्ट, व्यथा, वेदना, संताप, संकट, क्लेश, शोक और यातना..... सब ले  जाओ... बहुत सह चुके सब🙏🙏🙏🙏अब सबको सुकून से रहने दो प्रभु......अब सब अच्छा अच्छा हो...सब शुभ शुभ हो...
बस इससे ज़्यादा की इच्छा  नहीं है...... मन बहुत बोझिल है....साल का अंतिम दिन बहुत कष्टप्रद रहा...
   चाहे सारी  उम्र  नंबर  मिलाते  रहेंगे, लेकिन अब उस नंबर पर वो कभी नहीं मिलेगा ,जिस से हम सचमुच  मिलना  चाहते  हैं........😢😢😢
(1-1-22)