लिखिए अपनी भाषा में

Monday, March 14, 2022

यूंही

 अपने रिश्तों को लेकर बहुत भावुक हूँ.और सिर्फ रिश्ते संभालने के लिए ही  मुझसे ग़लती हो या न हो  सामने वाले के तैश मे बोलने पर मैं शांत हो जाती हूँ... बिना देरी किए माफ़ी मांग लेती हूँ.... अपनी तरफ से बातचीत की शुरुआत कर देती हूँ.... लेकिन अगर आप  हर बार, बार बार छोटी गलतियों पर माफ़ी मांग लेते हैं तो सामने वाला आपको फ़ाॅर ग्रान्टेड लेने लगता है......सच कहूँ तो आप अपनी वैल्यू खो देते हैं
      अब ऐसे रिश्ते जोड़ने से मैं बचती हूँ, जहाँ आत्म सम्मान पर बात आए और साथ ही माफ़ी भी जहाँ बेहद ज़रूरी लगे ,वहीं मांगती हूँ बस संबंधों को बनाए रखने की ख़ातिर..... माफ़ी माँग लेना , ये सोचना अरे छोड़ो जाने दो... , क्या छोटी बातों को इतना बड़ा बनाना ? जैसी कई बातें मन में उमड़ती घुमड़ती रहती  है .....पर मेरा ऐसा करना या सोचना किसी के घमंड को बढ़ा दे , मेरी सारी  अच्छाइयों को घटा दे तो क्यों ऐसा करना .....
         वक्त ने कई पाठ पढ़ा दिए हैं.... बहुत कुछ सिखाया भी है.... फिर भी माफ़ी माँग कर संबंध बच भी जाए तो ग़नीमत समझिए ..मैं भी सारी कड़वाहटें भूल कर भरसक संबंधों को सामान्य करने की कोशिश ही करती हूँ..... पर लोग इसे फॉर ग्रांटेड  ही लेते हैं अधिकतर ...मेरे सबसे खास लोग भी  इसी बात पर मुझसे ख़फ़ा रहते हैं कि मैं कैसे  इतना सह लेती हूँ.... नार्मल हो जाती हूँ पर क्या करूँ....
हाँ प्रेम के धागे में एक गाँठ तो पड़ ही जाती है लाख जोड़ने की कोशिश की जाये अपनी गलती पर माफ़ी माँग लेना ही सुख है, परन्तु किसी के अहम को तुष्ट करने के लिए माफ़ी माँगना तो अपनी ही नज़र में गिरा देता है....                           

       संबंध को बचाने के लिए कभी-कभी यह भी करना पड़ता है और यहीं से इंसान टूटना और विरक्त होना शुरू होता है। मानवी रिश्तों में अनेक जटिलताएं होती है, पर अपनी गलती का अहसास होना और माफ़ी माँगना आपको थोड़ा और ज़्यादा इंसान बनाता है।गलती है__ तो बेझिझक माफ़ी मांगी जानी चाहिए । मगर  रिश्ते को चलाने की नीयत से बिना गलती के भी बार बार माफ़ी माँगना,  संवाद स्थापित करने का प्रयत्न करना __ किसी भी रिश्ते को लंबे समय तक नहीं टिकने देगा। 
             यदि रिश्ता है तो जाहिर है दो लोगों के बीच का होगा । और कोई भी रिश्ता निभाने की शत प्रतिशत जिम्मेदारी किसी एक की नहीं हो सकती।  ऐसे में बार बार झुकने वाला इंसान ही एक दिन कुछ यूं बिखरता है कि रिश्ता तो दूर वो खुद को भी सहेज नहीं पाता........
       मगर हाँ यदि गलती है या नहीं भी है..... तो भी स्वस्थ संवाद बनाए रखना चाहिए । बस इतना ध्यान रहे कि अपनी सीमाएं भी हमें मालूम होनी चाहिए।कितने ही मौके होते हैं जब हम अपनी गलती को समझ रहे होते हैं पर किसी  झूठे अहम के चलते झुकते नहीं। अपनी अकड़ में किसी प्रिय को जाने देते हैं हाथ बढ़ा कर थामते नहीं......और जब तक ये बात समझ में आती है  समय निकल चुका होता है.... .
प        कितने ही मौके ऐसे होते हैं जब हम बस इतना कह दें कि सॉरी यार!  प्लीज मुझे माफ कर दो...... तो बहुत कुछ संभाला जा सकता है........ लेकिन अपनी गलती न मानने की ज़िद में हम तब तक पड़े रहते हैं जब तक सामने वाले का धैर्य न चुक जाए।
              सोचती हूँ क्या सही है?? माफी मांगना या आपस में बात चीत बंद कर
किसी भी तरह के स्नेहिल संबंधों को नष्ट कर देना?
या फिर ये मान लेना कि हम ही सबसे अच्छे और सही हैं हमसे  कभी गलती होती ही नहीं... 

No comments:

Post a Comment