इधर कुछ दिनों से साथी अध्यापिकाओं से ये सुन सुन कर मन थोडा विचलित सा हो रहा था कि मिसेज तिवारी......अब आप भी बालों के लिए कुछ करना (रंगना) शुरू करिए न.................अब अच्छा नहीं लगता.....बहुत से बाल सफ़ेद होने लगे हैं......... जब खुद भी गौर करना शुरू किया तो लगा सचमुच अब हम भी बुजुर्गों में शुमार होने लगे हैं.....जब आप से कुछ ही साल ही छोटे लोग आपको आंटी या दीदी कहने लगें तो थोडा सतर्क होना ही पड़ता है...................एक समय था जब कोई आंटी कह देता था तो लगता था कि गाली दे रहा है ..............बड़ी बेईज्जती सी महसूस होती थी.........यही सोचती थी.............कि काश हमारे बाल कभी सफ़ेद न हों.......पति देव के पूरे परिवार में सफ़ेद बालों का एक ट्रेंड सा चला आरहा है........ज्यादा तर लोगो के बाल बहुत कम उम्र में ही सफ़ेद हो जाते रहे हैं........तो उसका पूरा असर इनपर भी रहा है.......शादी के बाद से बहुत दिनों तक तो हम सब पीछे पड़ कर इनको मजबूर करते रहे बाल काले करने के लिए..........पर चूंकि ये दाढ़ी भी रखते हैं इसलिए इनको डाई करने में बड़ी चिढ सी होती थी.........पर केवल हम लोगों से झगडा न हो .......बच्चे नाराज न होने लगे.....इसलिए बेचारे सहनशीलता के साथ हर हफ्ते ये सजा भुगत लेते थे.........क्यों कि कई बार बड़ी अजीब सी पोजीशन से भी हो कर गुजरे हैं हम लोग ............जब ट्रेन या बस या किसी दूकान पर इनके हम उम्र लोगों ने इन्हें अंकल या चाचा कह कर पुकारा है..................सिर्फ इनके सफ़ेद और खिचड़ी बालो की वजह से ..........बच्चे बुरी तरह चिढ जाते थे ........................और कई बार तो झगडा सा करने की नौबत आजाती थी........
और जब डाई करने की आदत हो जाती है तो बालो में एक अजीब सी शुष्कता आजाती है......और जब एक लम्बे समय तक रंगाई पुताई न की जाये................तो वो जड़ों के पास से सफ़ेद बाल दिखने लगते हैं......................वो कितने बुरे लगते हैं ये कोई भुक्त भोगी ही समझ सकता है..............आसपास ऐसे लोगो को अक्सर देखा है जो थोड़े .....काले थोड़े भूरे थोड़े सफ़ेद अजीब से खिचड़ी बालों में दीखते हैं.........कम से कम मुझे तो बहुत खराब लगता है ..........कुछ दिन बिलकुल काले फिर कुछ दिन .........खिचड़ी बालों में दिखना.............चेहरे में सैकड़ो झुर्रियां ..........गले और हाथों की पूरी त्वचा झूलती हुई.......और बाल एक दम काले रंगे हुए............ कितना भद्दा मालूम होता है........
आज से करीब १५ साल पहले.......घर में किसी कि मृत्यु हो जाने पर जब इन्होने अपने बाल बनवाये थे.......और उसके बाद जब दोबारा बाल निकले तो फिर इन्होने डाई नहीं किया........और फिर आज तक कभी नहीं किया.......और आज ये कंडीशन है कि इनका एक बाल भी काला नहीं है.....शायद कई साल तक डाई करने का ही नतीजा है ये.................अब इन्हें सफ़ेद बालो में देखते देखते सबकी वैसी ही आदत हो गई है.........इनकी पर्सनालिटी में सफ़ेद बाल ऐसे घुल मिल गए हैं......................कि इनकी अपनी एक अलग पहचान बन गई है...........या यूं कहूं कि ऐसे बाल इन पर बहुत सूट करते हैं ............
एक समय था जब ....मेरे बाल बहुत सुन्दर हुआ करते थे (ऐसा सभी कहते हैं).......और ये मेरी प्यारी माँ की बदौलत था...........नियम से तेल लगाना और रीठा शिकाकाई से धोना ........जब से हम लोग अपने आप करने के काबिल(!!!!!) हुए ये सब छूट गया.................. अब सब कुछ फटाफट होने वाली बातें शुरू हो गई हैं........चाहे वो समय का अभाव हो...........या मिलावटी खाद्य पदार्थ का प्रदूषण हो........सबसे ज्यादा बालों और सेहत पर ही इसका असर दिखाई देता है...........इसमें सबसे ज्यादा नुक्सान बालों का ही हो तो क्या कहा जा सकता है......और इन सबसे ज्यादा उम्र का तकाज़ा तो है ही...........अब धीरे धीरे नानी दादी बनने की उम्र हो रही है सबकी ........या हम लोग कोई अभिनेता या अभिनेत्रियाँ तो हैं नहीं की अपनी इमेज बनाए रखने के लिए रंगे सियार बने रहे............टीवी सिरिअल्स देख देख कर खुद को जवान दिखाने की एक होड़ सी लगी हुई है.....जहाँ पता ही नहीं चलता कि कौन सास है और कौन बहू..........आखिर जब हम जवान बच्चो के माँ बाप हैं....किशोर उम्र के बच्चो के दादा दादी हैं.......तो सभी जानते हैं की हमारी असली उम्र क्या है.......फिर क्या दिखाना चाहते हैं हम???????........इंसान को अपने विचारों से और मानसिकता से युवा होना चाहिए......नई...... पीढी के साथ मिल के चलना है तो..............................सिर्फ बालों को रंगने से क्या होगा?????..............
समझ में नहीं आता कि क्यों हम लोग सच्चाई से मुंह मोड़ना चाहते हैं.......सभी जानते हैं कि अब सबकी उम्र हो गई है ......चेहरे पर वक़्त और हालात ने लकीरों के जाल बुन दिए हैं.....इन जालों को नकारा तो नहीं जा सकता.......बालों को कितना भी रंग लें......या भारी गरम इस्तरी से दबा दबा कर झुर्रियां मिटाने कि कोशिश की जाये....ये सिर्फ खुद को तसल्ली देने जैसा ही है.....या जरा कड़े शब्दों में कहें तो......सींग कटा कर बछड़ा बनने की कोशिश जैसा ही है ................उस से सच्चाई तो छिप नहीं जाएगी.........पीठ पीछे लोगो को चुटकी लेने या मजाक उड़ाने से नहीं रोका जा सकता.......इस से अच्छा तो यही है कि वस्तु स्थिति को जैसी भी हो खुले मन और पूरे आदर के साथ .........स्वीकार करना चाहिए बुढ़ापा स्वयं में एक अत्यंत ग्रेस फुल अनुभव है...........................