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Sunday, May 29, 2011

क्या अब हम भी बूढ़े हो चले हैं??






                       इधर कुछ दिनों से साथी अध्यापिकाओं से ये सुन सुन कर मन थोडा विचलित सा हो रहा था कि मिसेज तिवारी......अब आप भी बालों के लिए कुछ करना (रंगना) शुरू करिए न.................अब अच्छा नहीं लगता.....बहुत से बाल सफ़ेद होने लगे हैं......... जब खुद भी गौर करना शुरू किया तो लगा सचमुच  अब हम भी बुजुर्गों में शुमार होने लगे हैं.....जब आप से कुछ ही  साल ही छोटे लोग आपको आंटी या दीदी कहने लगें तो थोडा सतर्क होना ही पड़ता है...................एक समय था जब कोई आंटी कह  देता था तो लगता था कि गाली दे रहा है ..............बड़ी बेईज्जती  सी महसूस होती थी.........यही सोचती थी.............कि काश हमारे बाल कभी सफ़ेद न हों.......पति देव के पूरे परिवार में सफ़ेद  बालों का एक ट्रेंड सा चला आरहा है........ज्यादा तर लोगो के बाल बहुत कम उम्र में ही सफ़ेद हो जाते रहे हैं........तो उसका पूरा असर इनपर भी रहा है.......शादी के बाद से बहुत दिनों तक  तो हम सब पीछे पड़ कर इनको मजबूर करते रहे बाल काले करने के लिए..........पर चूंकि ये दाढ़ी भी रखते हैं इसलिए इनको डाई करने में बड़ी  चिढ  सी होती थी.........पर केवल हम      लोगों से झगडा न हो .......बच्चे नाराज न होने लगे.....इसलिए बेचारे सहनशीलता के साथ हर हफ्ते ये सजा भुगत लेते थे.........क्यों कि  कई बार बड़ी अजीब  सी  पोजीशन से भी हो कर गुजरे हैं हम लोग ............जब ट्रेन या बस या किसी दूकान पर इनके हम उम्र लोगों ने इन्हें अंकल  या चाचा कह कर पुकारा है..................सिर्फ इनके सफ़ेद और खिचड़ी    बालो की वजह से ..........बच्चे बुरी तरह चिढ जाते थे ........................और कई बार तो झगडा सा करने की नौबत आजाती थी........
                 और जब डाई करने की आदत हो जाती है तो बालो में एक अजीब सी शुष्कता आजाती है......और जब एक लम्बे समय तक रंगाई पुताई न की जाये................तो वो   जड़ों के पास से सफ़ेद बाल दिखने लगते हैं......................वो कितने बुरे लगते हैं ये कोई भुक्त भोगी ही समझ सकता है..............आसपास  ऐसे लोगो को अक्सर देखा है जो थोड़े  .....काले थोड़े  भूरे थोड़े  सफ़ेद अजीब से खिचड़ी बालों में दीखते  हैं.........कम से कम मुझे तो बहुत खराब लगता है ..........कुछ दिन बिलकुल  काले फिर कुछ दिन .........खिचड़ी बालों में दिखना.............चेहरे में सैकड़ो झुर्रियां ..........गले और हाथों की पूरी त्वचा झूलती हुई.......और बाल एक दम काले रंगे हुए............     कितना भद्दा मालूम होता है........

                  आज से करीब १५ साल पहले.......घर में किसी कि मृत्यु हो जाने पर जब इन्होने अपने बाल बनवाये थे.......और उसके बाद जब दोबारा बाल निकले तो फिर इन्होने डाई नहीं किया........और फिर आज तक कभी नहीं किया.......और आज ये कंडीशन है कि इनका एक बाल भी काला नहीं है.....शायद  कई साल तक डाई करने का ही नतीजा है ये.................अब इन्हें सफ़ेद बालो में देखते देखते सबकी वैसी ही आदत हो गई है.........इनकी पर्सनालिटी में सफ़ेद बाल ऐसे घुल मिल गए हैं......................कि इनकी अपनी एक अलग पहचान बन गई है...........या यूं कहूं कि ऐसे बाल इन पर बहुत सूट करते हैं ............
                          
                  एक समय था जब  ....मेरे बाल बहुत सुन्दर हुआ करते थे (ऐसा सभी कहते हैं).......और ये मेरी प्यारी माँ की बदौलत था...........नियम से तेल लगाना और रीठा शिकाकाई से धोना  ........जब से हम लोग अपने आप करने के काबिल(!!!!!) हुए ये सब छूट गया.................. अब सब कुछ फटाफट होने वाली बातें शुरू हो गई हैं........चाहे वो समय का अभाव हो...........या मिलावटी खाद्य पदार्थ का प्रदूषण हो........सबसे ज्यादा बालों और सेहत पर ही इसका असर दिखाई देता है...........इसमें सबसे ज्यादा नुक्सान बालों का ही हो तो क्या कहा जा सकता है......और इन सबसे ज्यादा उम्र का तकाज़ा तो है ही...........अब धीरे धीरे नानी दादी बनने की उम्र हो रही है सबकी ........या हम लोग कोई अभिनेता या अभिनेत्रियाँ  तो हैं नहीं की अपनी इमेज बनाए रखने के लिए रंगे सियार बने रहे............टीवी सिरिअल्स देख देख कर खुद को जवान दिखाने की एक होड़ सी लगी हुई है.....जहाँ पता ही नहीं चलता कि कौन सास है और  कौन बहू..........आखिर जब हम जवान बच्चो के माँ बाप हैं....किशोर उम्र के बच्चो के दादा दादी हैं.......तो सभी जानते हैं की हमारी असली उम्र क्या है.......फिर क्या दिखाना चाहते हैं हम???????........इंसान को अपने विचारों से और मानसिकता से युवा होना चाहिए......नई...... पीढी के साथ मिल के चलना है तो..............................सिर्फ बालों को रंगने से क्या होगा?????..............

                                    समझ में नहीं आता कि क्यों हम लोग सच्चाई से मुंह  मोड़ना चाहते हैं.......सभी जानते हैं कि अब सबकी उम्र हो गई है   ......चेहरे पर वक़्त और हालात ने लकीरों के जाल बुन दिए हैं.....इन जालों को नकारा तो नहीं जा सकता.......बालों को  कितना भी रंग लें......या भारी  गरम इस्तरी से दबा दबा कर झुर्रियां मिटाने कि कोशिश की जाये....ये सिर्फ खुद को तसल्ली देने जैसा  ही है.....या जरा कड़े शब्दों में कहें तो......सींग कटा कर बछड़ा बनने की कोशिश जैसा ही है ................उस से सच्चाई तो छिप  नहीं जाएगी.........पीठ पीछे लोगो को चुटकी लेने या मजाक उड़ाने से नहीं रोका जा सकता.......इस से अच्छा तो यही है कि वस्तु स्थिति को जैसी भी हो खुले मन और पूरे आदर के साथ .........स्वीकार करना चाहिए बुढ़ापा स्वयं में एक अत्यंत ग्रेस फुल अनुभव है...........................




Friday, May 27, 2011












गर्मी की छुट्टियाँ 


             
            गर्मी की छुट्टियाँ .......ओह्ह्ह्ह.... सुन कर ही कितना अच्छा लगता है   .......और वो भी पूरे १/२ महीने की......सचमुच पूरे  साल इंतज़ार रहता है इन छुट्टियों का......जब की ऐसा नहीं है की हम इन छुट्टियों में कहीं विदेश चले जाते हैं या किसी हिल स्टेशन पर चले जाते हैं............बस ये अच्छा लगता है की कहीं जाना नहीं है सिर्फ घर में ही रहना है........सुबह उठने की कोई जल्दी नहीं........आराम से उठो.......आराम से तीन चार बार  चाय पियो...........आराम से टीवी देखो........जब मन हो नाश्ता करो..........जब मन हो नहाओ......क्या सुख है ये भी........किसी बात की हड़बड़ी नहीं..........घर में रहने का कितना बड़ा सुख है..........ये सिर्फ ८ घंटा घर से रोज बाहर  रहने वाला समझ सकता है..................और मुझे अपने घर से ज्यादा अच्छी जगह दुनिया में कोई नहीं लगती....कहीं से भी घूम के आओ ...अपने घर का ताला खोलते वक़्त जो संतुष्टि मिलती है उसका कोई जवाब नहीं है..........मेरा अपना कमरा .........अपना ...बिस्तर .....अपनी  किताबों  से  भरी  आलमारी   (मेरी लाइब्रेरी )   अपना कंप्यूटर........   मेरी अपनी रसोई  ..............देख लिया मैंने जग सारा...अपना घर है सबसे प्यारा........

                        इधर जब से बच्चे पढ़ाई के लिए बाहर  निकल गए हैं......तो हर साल गर्मी में उनके पास जाने का कार्यक्रम बन जाता है.........हमारे लिए भी थोडा स्थान परिवर्तन हो जाता है और बच्चे भी खुश हो लेते हैं........ये छोटी छोटी खुशियाँ हमारे जीवन में एक बहुत बड़े सकून का कारण हैं........व्यस्त जीवन से कुछ ऐसे पल चुरा लेना.....जो सिर्फ हमारे हों.......ओह्ह्हह्ह......कितना अच्छा  लगता है...........

                   यह सच है की अपने सपने ....अपने शौक़ ....... मान्यताएं......उम्मीदें......और अपने आदर्श.......एक जैसे न हो तो पति पत्नी की नहीं निभ सकती......कितना भी प्रगाढ़ रिश्ता या आत्मीयता हो....पति पत्नी सिर्फ पास पास होते हैं साथ साथ नहीं............और इस मामले में मैं खुद को खुशनसीब मानती हूँ की हम दोनों की सभी बातें बहुत मिलती जुलती हैं........... ये जरूर है की ये मुझसे ज्यादा बातूनी हैं.......जहाँ मैं एक अच्छी श्रोता हूँ....ये अच्छे वक्ता हैं........अगर कोई अच्छा श्रोता मिल जाये तो इन वक़्त बहुत अच्छा बीत जाता है.......और जहाँ तक मेरा सवाल है.............. मुझे बोर  होने का  वक़्त ही नहीं मिलता........एक नियमित दिनचर्या..........पेंटिंग...............फिर ये किताबें.........इंटरनेट.......और फिर आराम..........

             हाँ तो मैं गर्मियों की छुट्टियों की बात कर रही थी.......इस बार बिटिया रानी की बहुत इच्छा थी की हम दोनों हवाई जहाज से उसके पास आयें........अपनी पहली तनख्वाह उसने हमारे लिए गिफ्ट और हवाई जहाज का टिकट खरीदने में लगा दी........सचमुच उसका उत्साह देख कर हमने भी अपना मन बना लिया .........और  मितव्ययिता पर उसे भाषण नहीं दिया........
                      सचमुच हम जीवन भर जोड़ने घटाने में ही लगे रहते हैं...........अपने मर्जी का कुछ कर ही नहीं पाते..........अब लगता है की कभी कभी समय के साथ बहना चाहिए.............जब उम्र होती है हम जोड़ते रहते हैं..................और जब इस लायक होते हैं..................की अपनी मर्जी से कुछ कर सकें तो उम्र उस लायक नहीं रहती.........स्वास्थ्य साथ नहीं देता.......दवाइयों की पोटली साथ लेकर चलनी पड़ती है........और ये सबसे बड़ा कष्ट है..........अब ये सोच कर अच्छा लगता है की बच्चे अब इस लायक हो गए हैं...........की उनको हमारी तरह या हमारे माँ बाप की तरह हाथ बाँध कर नहीं चलना पड़ेगा................जी भर कर कमाओ और जी भर कर खर्च करो........किसी चीज के लिए इच्छा होते हुए भी मन को मत दबाओ..............

                   इस बार  हमारे हैदराबाद आने के लिए बिटिया ने हवाई यात्रा का प्रोग्राम बना दिया.......लखनऊ से दिल्ली होते हुए हैदराबाद......दिल्ली से बेटे को भी हमारे साथ ही जाना था........पहली हवाई यात्रा.........वो भी हम ..सबकी.....बड़े ही रोमांचित थे हम सब.........कहाँ और कैसे जाना है कैसे क्या करना है ..ये सभी जानकारियाँ मेरी बेटी कई दिन पहले से दे रही थी.....या यू कहूं कई दिन से हमारी क्लास ली जा रही थी........सिर्फ २० किलो सामान ले जाना है.........तो ये समझ में नहीं आ   रहा था की क्या ले जाएँ और क्या न ले जायें........हर बार की तरह मिठाई...लड्डू....खुरमा और मठरी की तो कोई गुंजाइश ही नहीं थी...... ...यहाँ तक की अपने पेड़ के आम भी नहीं ला पाई........पतिदेव की सख्त मनाही थी.....की फालतू सामान नहीं ले जाना है.....आम हर जगह मिलता है.......पर उनको कैसे समझाती की अपने पेड़ के आम और अपनी बनाई हुई चीजो की बात ही कुछ और होती है .................खैर मन मार .कर ............. कुछ नहीं लाई ............बिटिया थोडा दुखी भी हुई पर क्या करूँ..??

..........खैर अब और आगे.........बड़े खुश मूड में हम लोग लखनऊ आये .....और अमौसी हवाई अड्डे तक पहुचे ..........सारी फोर्मेलीटीज़ करते करते चलने का वक़्त आया.......जब अनाउंस मेंट  हुई कि अब हमारा जहाज जाने के लिए तैयार है तो एक बड़ी अजीब सी घबराहट महसूस होने लगी.......लगा की हमारा डिसीजन सही तो है न उड़ के  जाने वाला.........शायद सभी के साथ ऐसा होता होगा......पर बेटी के बारबार फ़ोन करते रहने से एक हिम्मत सी बंधी हुई थी.......आखिरकार आखिरी  दरवाज़ा खुला और हम लोग बाहर रन वे पर आये.........जीवन में कभी इतने पास से हवाई जहाज  नहीं देखा था.........वहां खड़े कई जहाज देख कर अच्छा लगा......फिर हमारे वाले जहाज से सीढ़ी   लगा दी गई........और हम लोग ऊपर पहुंचे........वहां बहुत अच्छे तरीके से मुस्कुरा कर एयर होस्टेस ने हमारा स्वागत किया........और हमारी सीट बताई.........अपनी अपनी जगह पर इत्मिनान से बैठ गए हम लोग........फिर एक एयर होस्टेस ने विमान में क्या क्या करना है और क्या क्या नहीं करना है सब समझाया .........कुछ बाते तो समझ में आई और कुछ  नहीं.......पर कोई बात नहीं......अगली बार सही.......

                बनारस से बार बार भतीजी और भाई का फ़ोन आरहा था.......क्या हुआ??? अभी जहाज उड़ा कि  नहीं ???? ...जब उड़े तो बताना ........खैर उसे मेसेज किया कि अब फ़ोन बंद करना है......और दिल्ली पहुच कर बात होगी...........सभी के पेट पर बेल्ट बंधवाई गई.......फिर जहाज ने रनवे पर दौड़ना शुरू किया.......तो हालत ख़राब होने लगी........मेरे पतिदेव जो कभी झूले पर भी नहीं बैठ सकते.......सांस रोक कर बैठे थे ........फिर जहाज ने ज़मीन छोड़ दी............बेटी के कहने के अनुसार हमारे कान बंद से होने लगे थे........तुरंत कान में रुई लगाई गई....... ...दिल की धड़कने बढती जा रही थीं....................मैं तो बहुत उत्साह के साथ खिड़की से नीचे देखती रही.....और सुन्दर नजारो का पूरा मज़ा लेती रही..... ...............और अपने मोबाईल कैमरे से फोटोज भी लेती रही.......जिनमे से कुछ फोटोज बहुत सुन्दर आई हैं............बीच में एक बार दो एयर होस्टेज एक ट्राली  पर कुछ खाने पीने का सामान और गिफ्ट देने लायक सामान लेकर आई.......जो इतने ज्यादा दाम के थे...की हमने सिर्फ पानी पिया.......और अपने साथ में लाया हुआ कुछ पापड़ी दालमोठ आदि खाया.........पतिदेव ने कुछ नहीं खाया   ..............उनकी हालत देख कर बहुत हंसी आ  रही थी और साथ ही तरस भी आरहा था......क्यों कि  जब भी कभी हम लोग मेले आदि में बड़े वाले झूले में चढ़ते थे....तो  वे  हमारी तरफ देखते भी नहीं थे.......इतना डर लगता है उन्हें.......और आज उन्हें कुछ ऐसी ही परिस्थितियों से दो चार होना पड़ रहा था..........
                   
                 खैर ५० मिनट के अन्दर हम लोग  दिल्ली पहुच ही गए.......और वहां करीब एक घंटा रुकने के बाद हैदराबाद की तरफ जाना था........दिल्ली से बेटा हमें ज्वाइन करने वाला था........वो भी आ   गया     ............वहां पर हमने घूम कर पूरा जहाज देखा और कुछ फोटोज भी खींचे........दिल्ली का इन्द्रा गाँधी इंटरनेश्नल हवाई अड्डा बहुत बड़ा और सुन्दर है........वहां से दूसरी एयर होस्टेज आई......फिर से वही सब दोहराया गया......और जहाज फिर से उड़ चला..........वहां से करीब २ घंटे का रास्ता है हैदराबाद का..........इस बार का अनुभव बहुत अच्छा रहा ........ बहुत खूबसूरत दृश्य देखने को मिले........कितना अच्छा लगता है बादलो के ऊपर हो कर उड़ना.......उसे महसूस करना.........शायद स्वर्ग ऐसा ही लगता होगा......मैं और मेरे साथ एक परिचिता खूब एन्जॉय कर रहे थे और मैं सोचती हूँ कि .........उस दिन अगल बगल के सभी लोग शायद जान गए होंगे......कि हम लोग पहली बार जहाज में बैठे हैं...........पर हम लोग झिझक और शर्म छोड़ कर खूब हँसे और मजे लिए........अपने पतिदेव की भी खूब खिंचाई की........बेटे को भी थोडा सा परेशानी हुई.......पर उसे भी बहुत मजा आया............

              
                     आखिरकार हम सात बजे हैदराबाद राजीव गाँधी एयर पोर्ट पहुच गए.......बिटिया हमें लेने आई थी......बेहद खूब सूरत और साफसुथरा एअरपोर्ट है यहाँ......यहाँ भी कुछ फोटोज ली हमने..............और इस तरह हमारी पहली हवाई यात्रा का अंत हुआ...................

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Sunday, May 8, 2011

मेरी मम्मी मेरे पापा .....


                        वैसे   मुझे बार बार  पीछे  मुड़  कर  देखना  ज्यादा  पसंद  नहीं  लेकिन  अपनी  जड़ों  को   याद  रखने  के  लिए पीछे  जरूर  देखना  पड़ता  है  और  ये  जरूरी  भी  है .......इसलिए  बार  बार  पीछे  देखती  हूँ ..... 

        पिछली दीवाली में बनारस जाना हुआ.....वही घर जहाँ मैंने २३ साल  बिताए हैं......कितनी यादें जुडी हैं वहां से......वो घर वो कमरे  वही ऊपर दीवार पर लगी हुई  बाबाजी और दादी जी की तस्वीरें....जिनपर  कभी बहुत शौक़ से हमने चन्दन की छिलकों वाली मालाएं चढ़ाई थीं......एक कमरे में इंदिरा जी के साथ खड़े हुए हैं पापा जी....(ये चित्र हमें एक समय में अपने दोस्तों के सामने बहुत गर्व से भर देता था..)मुझे लगता है आज के कुछ नेताओं के साथ अगर गलती से भी हमारे चित्र खिंच जायें..तो कम से कम मैं तो अपने बारे में यही कह सकती हूँ....की मैं वो चित्र छुपा कर रख दूँगी....की कल को ऐसी  कोई बात हुई....तो कम से कम ये तो नहीं कहा जा सकेगा की मैं भी किसी घोटाले में अमुक नेता के साथ शामिल हूँगी......खैर....

मेरे बनाये कुए कुछ चित्र आज भी वैसे ही लगे हुए हैं.....घर का निचला हिस्सा किराए पर देते हुए भी मुझे याद है मम्मी ने वे चित्र हटाने नहीं दिए थे.....वो सब सजावट वैसे ही थी......और आज इतने साल बीत जाने पर भी सब कुछ वैसा ही है......लगता है जैसे वक़्त इस घर में आकर रुक गया है.......जिन्होंने एक एक ईंट जोड़ी थी इस घर के लिए...वो लोग तो अब नहीं है.....पर हर समय हर क्षण मुझे यही लगता रहता है की अभी मम्मी या पापा जी आवाज देंगे......डाइनिंग  टेबल की वो खास कुर्सी जिस पर पापा जी बैठा करते थे....और थोडा तिरछे होकर बैठते थे.......मम्मी के बनाये हुए कम से कम ५ या ६ तरह के अचार और चटनी......हमेशा टेबल पर मिलते थे......( पिंकी ने ये सिस्टम बरकरार रखा है अभी तक..)...

अब बनारस जाना बहुत कम ही हो पाता है.....कुछ अपनी व्यस्तता और कुछ आलस    ...लगभग एक या दो बार ही.... साल भर में....पर जब भी जाती हूँ कभी ऐसा  नहीं महसूस होता की बहुत दिन के बाद आई हूँ पता नहीं ऐसा क्यों है...... बस अब यही बदलाव आया है की अब जाने पर मम्मी और पापा जी नहीं मिलते.........और ये ऐसा बदलाव है की .......सोचने से ही   मन उदास हो जाता है...... घंटो घंटो कितने ही अलग अलग टॉपिक्स पर पापा जी से बातें करना ......मेरा और मेरे पतिदेव का शौक़ रहा है......स्टेशन से कई कई बढ़िया  साहित्यिक किताबें खरीद कर हम लेजाते थे पापा जी के लिए....और जब वो पढ़ लेते थे...तब अगली बार जाने पर वापस ले आते थे और फिर मैं पढ़ती थी......मुझे याद है अपनी अंतिम अस्पताल यात्रा में पापा जी गाँधी बनाम महात्मा पढ़ रहे थे.......काफी तबियत ख़राब होने की वजह से वो खुद नहीं पढ़  पा  रहे थे तो उन्होंने मम्मी को पढने के लिए कहा हुआ था....और वो सुन रहे थे........लेकिन वो पूरी नहीं हो पाई..........जिस पृष्ट पर उन्होंने बुकमार्क लगा कर छोड़ दिया था..........वो  पृष्ठ  मैंने आज भी वैसे ही रख छोड़ा  है...........बुक मार्क लगा हुआ............वो किताब मेरे लिए एक बहुत प्यारी चीज हो गई है........


                      मेरे लिए ये बहुत ही कचोटने वाली बात है और शायद मैं अब जीवन भर इस बात के लिए शर्मिंदा रहूंगी की......मैंने आखिरी बार पापा जी से मिलते वक़्त उन्हें बहुत कम समय दिया......  सिर्फ ३ दिन के लिए हम लोग बनारस गए थे..  और उनमे भी परिस्थितियों वश २ दिन दूसरे दूसरे कामो में व्यस्त रहे.........   जब हम लोग वापस मनकापुर आये   तो हमारे पीछे पापा जी ने मम्मी से ये बात कही थी......की पता नहीं क्यों....गुडिया ने मुझे जरा भी समय नहीं दिया......तिवारी जी भी बहुत व्यस्त दिखे......अब शायद पापा जी की जरूरत नहीं लगती.......किसी को........


                   हम ही कहाँ  जानते  थे की अब कभी पापा जी से मिलना  नहीं होगा ......मुझे बहुत तकलीफ होती है सोच सोच कर.....हमारे आने के सिर्फ एक हफ्ते बाद ही पापा जी चले गए..........कभी  वापस  न  आने के लिए .......
                   अब लगता है की इंसान अन्दर से कितना खुदगर्ज़ सा होता है......भले  ही ये खुद गरजी जान के न की गई हो.......पर बाद में सिवा हाथ मलने के कोई चारा नहीं रह जाता.........कभी कभी हमारी ज़िन्दगी में ऐसा कुछ घट जाता है की सब कुछ बदल जाता है......ज़िन्दगी फिर वैसी ही नहीं रह जाती......ऐसे में फिर हमें नए सिरे से सोचना पड़ता है.......

           एक    समय    के बाद सभी    के साथ    ऐसा होता    है की माता   पिता  हमें सँभालने  वाले नहीं रहते....अब वे हमारी ज़िम्मेदारी बन जाते हैं....हर बार बनारस जाने के बाद ....ये तो महसूस होने लगा था......या यूं   कहूं  कहीं  पूरा  अहसास  होने लगा था....अब  पेड़  के हरे  पत्ते  पीले  से होने लगे  हैं......इन  परिस्थितयों  में उन  लोगो  को  खो  देने  का  अहसास  हिला  देने  वाला  तो नहीं था......पर यक़ीनन  कहीं  ऐसा कुछ खो  रहा  था जो  फिर कभी नहीं मिल  सकता  था......अब हम  सब ऐसी  उम्र  में पहुच  चुके  हैं...जहाँ  ये सभी  के साथ  होना  एक  सच  है...पर मन  कभी यकीं   नहीं करना  चाहता .......जब  तक  माता  पिता  जिंदा  रहते हैं.....तब  तक  हमारा  बचपन  भी  जिंदा  रहता  है......पर उनके  जाने के बाद अचानक  ये बचपन  कहीं  खो  जाता है.............एक  दम  से ..........प्रौढ़ता   आजाती   है......जिम्मेदारियों  का  अहसास  होने लगता  है.....
            मुझे याद आता है की अभी थोड़े दिनों  पहले तक जब भी मैं बनारस जाती थी.....बात ....व्यवहार में.....दूकान पर मम्मी के साथ   खरीदारी  करते समय ............मुझे अपने इतने बड़े होने का अहसास ही नहीं रहता था......सारा फासला मिट गया सा लगता था....लगता था मम्मी मैं और मेरी बिटिया तीनो दोस्तों जैसे ही हैं............हर बात पर खुल के बात कर लेना.....मजाक कर लेना .....टी वी देखते समय हर तरह की बातें  करना.......पापा जी के साथी  मित्रो के आने पर फुर्ती से दौड़ दौड़ कर काम   करना  लगता ही नहीं था  की मैं भी  किशोर वय  के दो बच्चो की माँ हूँ......
         पर अब  ऐसा  नहीं है........ लगता है  एक दम से    बड़ी  हो  गई   हूँ ....एक उम्रदराज़     होने  का आभास   होता है..... 
              बस यही सोचती हूँ.....की माता पिता आजीवन तो बच्चो के लिए दुआए करते ही हैं........पर उनके जाने के बाद भी कई बार ऐसा महसूस होता की............. लगता है की कोई अदृश्य हाथ हमारा हाथ पकड़ के सही रास्ता दिखा रहा है...................उनके जाने के बाद भी उनकी बेशुमार दुआओं का सिलसिला ख़त्म नहीं होता............यही विश्वास है की हमेशा ये सिलसिला बरकरार रहे..... ....न हम कभी उन्हें भूलें..........न वो कभी हमें भूलें.....






Friday, May 6, 2011

मेरे पतिदेव ने मेल की है मुझे आज ही ये सुन्दर कविता ..... ..

            


     
       शायद ज़िंदगी बदल रही है!! जब मैं छोटा था, शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी.. मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता, क्या क्या नहीं था वहां, चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ, अब वहां "मोबाइल शॉप", "विडियो पार्लर" हैं, फिर भी सब सूना है.. शायद अब दुनिया सिमट रही है... . . . 
                 जब मैं छोटा था, शायद शामें बहुत लम्बी हुआ करती थीं... मैं हाथ में पतंग की डोर पकड़े, घंटों उड़ा करता था, वो लम्बी "साइकिल रेस", वो बचपन के खेल, वो हर शाम थक के चूर हो जाना, अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है. शायद वक्त सिमट रहा है.. . . .
                 जब मैं छोटा था, शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी, दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना, वो दोस्तों के घर का खाना, वो लड़कियों की बातें, वो साथ रोना... अब भी मेरे कई दोस्त हैं, पर दोस्ती जाने कहाँ है, जब भी "traffic signal" पे मिलते हैं "Hi" हो जाती है, और अपने अपने रास्ते चल देते हैं, होली, दीवाली, जन्मदिन, नए साल पर बस SMS आ जाते हैं, शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं.. . . 
                जब मैं छोटा था, तब खेल भी अजीब हुआ करते थे, छुपन छुपाई, लंगडी टांग, पोषम पा, कट केक, टिप्पी टीपी टाप. अब internet, office, से फुर्सत ही नहीं मिलती.. शायद ज़िन्दगी बदल रही है. . . .              
                    जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है.. जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर लिखा होता है... "मंजिल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते" . . . 

                   ज़िंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है. .. कल की कोई बुनियाद नहीं है और आने वाला कल सिर्फ सपने में ही है.. अब बच गए इस पल में.. तमन्नाओं से भरी इस जिंदगी में हम सिर्फ भाग रहे हैं.. कुछ रफ़्तार धीमी करो, मेरे दोस्त, और इस ज़िंदगी को जियो... खूब जियो मेरे दोस्त, और औरों को भी जीने दो.. .

(कहीं  पढ़ी  हुई  बहुत  सुन्दर  कविता .....).