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Thursday, November 10, 2011

हमारी मीना जिज्जी






           अपनी ससुराल में जब मैंने पहली बार  कदम  रखा....उस समय एक अजीब सा भय या संकोच जो भी कह लें...... मन मस्तिष्क पर पूरी  तरह हावी था......और वो  यह कि पता नहीं मेरी सास या ननदें कैसी होंगी.....    लोगों से किस्से सुन सुन कर एक अजीब सा हौव्वा सर पर सवार था कि एक ही ननद या सास को बर्दाश्त कर पाना मुश्किल होता है यहाँ तो  तीन  तीन  ननदें थीं .....जिनमे  से एक कुंवारी भी थी ...( ! ) फिल्मों में देखा और सुना था कुंवारी ननदें हर समय सास (माँ) को उल्टी सीधी पट्टी पढ़ाती रहती हैं....शिकायतें करती रहती हैं.......कुछ काम धाम नहीं करती ......आराम  करती रहती हैं  और भी जाने क्या क्या......पर इस मामले में मैं खुद को बहुत खुश किस्मत मानती हूँ कि मेरी तीनो ही ननदें मुझे इतनी अच्छी मिलीं हैं कि .... अब तो मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूँ कि अगर  मुझे फिर से स्त्री जन्म लेना पड़ा  और शादी करनी  पड़ी .........तो मुझे ननदों के रूप में वही चाहिए हर जनम में.......वैसे  .......मैं अपनी सबसे छोटी ननद जो मेरी हमउम्र है..........उस से सबसे ज्यादा अटैच  हूँ......मेरी शादी के  ४ साल बाद उसकी शादी हुई......इस लिए भी  उसके साथ रहने का मुझे कुछ ज्यादा अवसर मिला......

            मीना जिज्जी के बारे में लिखने जा रही हूँ.........वो भी उनके नहीं रहने पर,..  ये सोच कर थोडा दुःख सा महसूस हो रहा है.........अपनी   ससुराल के मेरे सबसे फेवरिट लोगो में मीना जिज्जी तीसरे नंबर पर हैं....( पहले नंबर पर तो पतिदेव, और दूसरे नं पर मेरी सासू माँ विराजमान हैं न . )    बेहद सामान्य शक्ल सूरत और कदकाठी की मालकिन होने के बावजूद जिज्जी दिल की बेहद सुन्दर थीं.....कभी भी किसी की बुराई उनके मुंह से नहीं सुनी न ही कभी किसी को उल्टा सीधा कहते सुना.......कभी किसी भी बात का बुरा नहीं मानना.....मैं जानती हूँ कि ऐसा  नहीं हो सकता कि उनको किसी की बात का बुरा न लगता हो.....या कोई बात बुरी न लगती हो.....पर वे कभी जाहिर नहीं करती थीं..........उनके सीधे पन को देख  कर लगता ही  नहीं था कि वे इतना पढी लिखी हैं....और अगर वो नौकरी छोड़  नहीं देतीं तो शायद आज प्रिंसिपल की पोस्ट से ही रिटायर होतीं........पहनने - ओढने.....जेवर ...चूड़ियों इत्यादि का बेहद शौक़ था उन्हें......हर साड़ी के साथ मैचिंग चूड़ी जरूर खरीदती थी.....  और उनकी साफ़ सफाई, घर का रख रखाव इत्यादि देख कर जी खुश हो जाता था सभी का.....   कोई भी काम बड़े ही इत्मीनान और धैर्य के साथ करना.....इतने धैर्य के साथ ...  कि देखने वाले धैर्य  खोने लगते थे........उनकी रसोई में....कई बार रात को ९ बजे के बाद ......खाना क्या बने ?   .....ये सोचा जाता था............जिज्जी अगर  किसी काम से अपना बक्सा खोल लें .....तो फिर कम से कम दो घंटे की छुट्टी हो जाती थी.....सारी चीजों को निकाल कर फिर से जतन के साथ वापस लगाना......उनका मनपसंद काम था..........उनके द्वारा सिर्फ तह कर के रखे हुए कपड़े किसी भी धोबी के प्रेस किये हुए कपड़ों से बराबरी  कर सकते थे.....एक एक कपडे को सिलवटें मिटा मिटा कर.... दबा दबा कर तह करना मैंने उन्ही से सीखा.....(पर कभी अमल में नहीं ला सकी जिसका मुझे अफ़सोस है )...पुरानी शीशियाँ ,बोतलें...या जार जो भी खाली होते जाते...उन्हें खूब साफ़ करके जमा करती जातीं...कि पता नहीं कब जरूरत पड़ जाये.......सैकड़ों की संख्या में  पोलीथिन बैग्स  उनके बाक्स में तह कर के रखे रहते..... ....सभी उन्हें इन कामों  के लिए बहुत चिढाते ......पर वे सिर्फ हंस कर टाल जातीं......अपनी तीनो बेटियों के लिए ........अच्छी अच्छी फ्राक्स और कपड़े सिलना उन्हें बहुत पसंद था.........सिलाई मशीन ...हमेशा तैयार पोजीशन   में .....टेबल पर  रखी रहती.......मेजपोश...चादरें...सभी अटैचियों और बक्सों के कवर ....झालर  तथा लेस लगे हुए ....सुन्दर तरीके से सजे रहते.....एक बार मैंने उनसे पूछा भी था कि जिज्जी कैसे आप सब चीजों पर कवर लगा लेती हैं......( सच पूछें तो मुझे थोडा उबाऊ. लगता है ये सब )....तो जीजा जी हँसते हुए बोले थे.....इनका बस चले तो हमारे ऊपर भी कवर चढ़ा के रख लें...... ... जिज्जी की बेटियां भी ...घरेलू कामों में उनकी तरह ही सुघड़ हैं... ....बच्चों से तो ज्यादा संपर्क नहीं रहा हमारा पर जितना भी रहा..........यही महसूस हुआ ........कि जिज्जी ने अपने सभी गुण अपनी बेटियों को सिखा दिए थे.....  किसी के भी आने पर स्वागत सत्कार की कोई सीमा नहीं ........लगता  था कि वो अंतरमन तक प्रसन्न हैं....कि क्या क्या कर दें.... क्या क्या खिला दें.....

               वैसे    सभी भाई बहनों प्रति  अगाध प्रेम  रहा है उनका.............पर हम पति -पत्नी उनके कुछ विशेष स्नेह के पात्र रहे हैं  ...... मैंने अपने विवाह से पहले .....उन्हें एक साडी  पेंट करके  दी  थी.....मुझे याद है गुलाबी  रंग  की वो साडी  ......जिस पर पंख फैला कर नाचते हुए मोर बनाये थे मैंने......... मैंने सिर्फ पेंट ही  किया था.......जब  कि वो साड़ी उन्ही की  भेजी हुई   थी......पर वो सबको यही बताती थीं कि.........  गुडिया ने मेरे लिए साड़ी बना कर भेजी है.......दोबारा भी कई बार जिक्र हुआ  पेंट करने का पर अफ़सोस है कि  ....मैं पुनः नहीं भेज पाई.....आजकल -आजकल की प्रतीक्षा में ही समय निकल गया.............अब इतने प्यार और इच्छा के साथ कौन कहेगा..... कि एक साड़ी फिर से पेंट कर दो  हमारे  लिए......?? 
                  .पतिदेव बताते हैं........कि बचपन में जिज्जी ने अपने हाथ से कपड़े सिल कर पहनाये हैं उन लोगों को.....और किसी भी जरूरत पर हमेशा साथ खड़ी  रही हैं.......मेरी शादी के बाद से ये सिर्फ चिढाने  के लिए उन्हें फोन पर भी बार बार कहते रहे  हैं........कि जिज्जी बहुत दिनों से कोई कपड़ा नहीं दिया हमको........और एक दो सूट सिलवा दो हमारे लिए........और वो हमेशा हंस कर यही कहती रहीं ..देंगे .... देंगे.....जरा ये काम हो लेने दो ......जरा ये काम निबट जाने दो.....और ये बार बार कहते .....अभी हमारा सूट बाकी है..... .... प्रतिउत्तर   में जिज्जी का खुल कर हँसना याद आता है.......संयोग ही कहेंगे.....   कि अभी कुछ दिन पहले ही जिज्जी ने इनके लिए पैंट  शर्ट का कपडा और मेरे लिए ....बहुत सुन्दर सी साडी भेजी थी......    और वो उनका अंतिम उपहार हो गया हमारे लिए.....

           इधर करीब दो तीन साल  से जिज्जी कुछ ज्यादा अस्वस्थ रहने लगीं थीं.....सभी के और डाक्टरों  के बहुत मना  करने के बाद भी ...  .......वे अपनी मिर्च और सुपारी खाने   की आदत पर कंट्रोल नहीं कर पा रही थीं......चुपके से खाती रहतीं.....ताज्जुब है की इतनी मिर्च खाने के बावजूद जिज्जी इतनी मीठी कैसे थीं.......  

                    जीजाजी ने बहुत सेवा की उनकी.....जिज्जी की बेटियों और दामादों का भी बराबर आनाजाना  लगा रहता  था...... ......कभी कभी बेटा न होने का दुःख उन्हें सालता था.....तीनो बेटियाँ बेहद प्यारी होने के बावजूद भी ..............आखिर दूसरो के घरों की ही अमानत हैं....हमेशा तो साथ नहीं रह सकतीं.... ...........कभी कभी उनकी बात से यही जाहिर होता की काश एक बेटा भी होता उनको.......
                 तीसरी बेटी की संतान को भी ......अपने सामने ही पैदा  होते देखना चाहती थीं.जिज्जी....और इतनी तबियत ख़राब होने के बाद भी   .....उन्होंने उसे पहले महीने  से ही उसे अपने पास बुला लिया था.....जब उसका आठवां महीना चल रहा था....तभी अचानक उनकी तबियत खराब हो गई.......और ऐसी स्थिति हो गई कि ..... फ़ौरन रायबरेली से लखनऊ ले जाना पड़ा.....कोमा जैसी स्थिति   शुरू हो गई थी.......यहाँ करीब एक हफ्ते तक जूझने के बाद डाक्टर्स ने उन्हें वापस ले जाने की सलाह दी...........और सिर्फ दुआओं का सहारा लेने को कहा.....पर अनोखा संयोग रहा कि ऐसी स्थिति में आने के बाद भी जब वो रायबरेली वापस पहुंची......तो सिर्फ अपनी इच्छाशक्ति के बल पर दोबारा ठीक हुईं .............उस वक़्त हम सब उनसे मिलने गए थे......तब बिलकुल सुस्त लेटी हुई जिज्जी धीरे धीरे उठ कर बैठीं......फिर कुर्सी पर आकर बैठीं......      उनकी सजगता  देख कर बहुत  अच्छा लगा.....हम सभी को देख  कर वो इतना अधिक ...खुश थीं  कि लगता ही नहीं था कि..... अभी वो एक हफ्ता पहले    ही   कोमा से वापस आई हैं.....कुछ दिनों बाद ही राखी का त्यौहार था ....और बहुत सालों बाद मेरे पतिदेव राखी के आसपास जिज्जी के साथ थे......इन्होने सिर्फ एक बार कहा.....जिज्जी अबकी अभी ही राखी बाँध दो.........और वे तुरंत उठ खड़ी हुईं.....राखी बाँधने  के लिए......बेटियों के बहुत खोजने पर भी कहीं रक्खी हुई राखी नहीं मिली तो वे स्वयं खोजने लगीं ..... उन्हें बहुत दुःख हुआ जब राखी नहीं मिली........सबके बावजूद उनका उत्साह देखते ही बनता था.....हम सभी को बाहर गेट तक छोड़ने आई........उनका वो बड़े स्नेह से कहना ......जल्दी ही आना .....और हाथ हिलाना........कभी नहीं भूलता......

             पूरा महीना...... वे बड़ी ही बेताबी से  ...............रोमी के बच्चे की प्रतीक्षा करती रहीं.....उसके लिए झबले, गद्दियां सिलीं..... ३  सितम्बर को सुबह ६ बजे के करीब....    बहुत ख़ुशी  और उत्साह से भरी उनकी आवाज फोन पर सुनाई दी......रामू  टुल्लू आ  गये......   टुल्लू नाम उन्हें और जीजा जी को बहुत पसंद था......और जिज्जी की इच्छा थी की अगर उन्हें नाती हुआ ......तो वे उसका नाम टुल्लू  ही रखेंगी ..... ..हम सबने भी ईश्वर से यही प्रार्थना की थी...कि भगवान् इस बार उनकी नाती देखने की इच्छा जरूर पूरी कर देना....और यही हुआ भी........उसके लिए ढेरों लंगोटिया...झबले...और गद्दियाँ जिज्जी ने बना डाले थे......इतनी तबियत खराब होने के बाद भी    वे पूरा समय .....नाती के रख रखाव में व्यस्त रहीं........जब दशहरे में रोमी अपने ससुराल गई ... तो कुछ दिनों तक जिज्जी बहुत उदास  रहीं......नाती  के वियोग में.....
  करवाचौथ इस बार १५ अक्टूबर को पड़ा था......सब के बहुत मना करने के बाद भी वे व्रत रहीं...जीजा जी ने ही अपने हाथों से पूजा इत्यादि कराई....... उनका व्रत खुलवाया   .....पर इसके अगले दिन से ही उनकी तबियत बिगड़ना शुरू हुई......जो फिर कभी नहीं संभल पाई ..... वो फिर से कोमा में चली गईं..... लखनऊ अस्पताल में २  दिन रखने के बाद उन्हें वापस रायबरेली लाना पड़ा....यहाँ २ दिन किसी तरह उन्हें आक्सीजन के भरोसे रोके रखा गया.....वहां  धीरे धीरे सभी  आत्मीय  पहुंचे... आखिरी पहुँचने  वाली मैं ही थी........मेरे पहुँचने  के कुछ देर बाद ही.... उनका आक्सीजन सिलिंडर हटा दिया गया...... जिज्जी की हालत भी काफी कुछ मेरी मम्मी जैसी ही महसूस हो रही थी..........जिज्जी को घर लाया गया.....रात भर सभी सिरहाने बैठे रहे........दूर दराज से आने वाली सभी औरतें  उनके जैसा सौभाग्य पाने की कामना में उनके पैर छूती रहीं......जिज्जी ने बड़े शौक़ से करवाचौथ पर पहनने के लिए   नई   साड़ी ब्लाउज  तैयार  कराया था.....वही उन्हें पहना कर विदा किया गया.........

                 खैर होनी पर तो किसी का वश नहीं...........सब कुछ ऐसे ही चलता रहता है....सभी अपनी अपनी ज़िन्दगी में फिर से व्यस्त होते जा रहे हैं..... ..........बस समय रुक गया है तो जीजा जी के लिए.........जिज्जी का जोड़ा हुआ सब कुछ.....  उनका सामान....उनकी गृहस्थी....जिसे अब उनके जाने के बाद कोई बरतने वाला कोई नहीं है...... जीजा जी देख देख कर उदास हो जाते हैं.....फोन पर रो पड़ते हैं.......हर जगह उनकी यादें बसी हुई हैं....... उस दिन जीजा जी ने कितनी उदासी से कहा.....वो कुछ नहीं करती थीं.....सिर्फ बैठी रहती थी..........वैसी   ही बैठी रहती....हम सब   करते .....उनको कुछ नहीं करने देते.....अगर देने लायक होता तो....... हम अपनी    सांस तक दे देते उनको....पर वो न जातीं......कैसे रहेंगे हम उनके बिना.......क्या विधान है....३६ साल जिसके साथ रहे.....उसी के मुंह में आग लगा के फूंक आये  हम.......सुन कर कलेजा....मुंह को आगया......रोंगटे  खड़े हो गए......

           पर क्या किया जाये...रहना तो पड़ेगा ही....यही तो जीवन है....जिज्जी सभी की प्रिय थीं.....हैं...और हमेशा रहेंगी.....हम कभी नहीं भूल पाएंगे उन्हें..........





Wednesday, November 9, 2011

मेरे जन्मदिन का उपहार











                  आप  सबको  बताते  हुए  अच्छा  लग  रहा  है  की ...कल  मेरे  जन्मदिन  की  पूर्व  संध्या   पर  मुझे  मेरे  पतिदेव  द्वारा  एक  कवि  गोष्ठी  का  उपहार  और  करीब  १५००  /_ की  बहुत   अच्छी  साहित्यिक  पुस्तकें  ....मिली ......कुल  १५  कवियों  के  सानिध्य  में  बैठ  कर  लगभग  ४  घंटे  कैसे   बीत  गए  पता  ही  नहीं  चला .....अवनींद्र  विनोद ....सतीश  आर्य ... इशरत  जहाँ ....खालिद  भाई ....आदि  बहुत  बेहतरीन  लिखने  वाले  शायरों  और  कवियों  की  रचनाओं  का  रसास्वादन  किया  गया .....और  उनके  सम्मुख  ही  मेरा   जन्मदिन  भी  सेलिब्रेट    किया  गया ......अंत  में  डिनर   के  साथ  गोष्ठी  समाप्त  हुई ......मैं  बहुत  खुश  हूँ .......आशा  ही  नहीं  पूरी  उम्मीद  है  की  आप  सभी  को  भी  ये  जान  कर  अच्छा  लगा  होगा  .......(25.9.11)