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Thursday, July 30, 2020

लॉकडाउन के बोझिल दिन

पता नहीं कैसा क्रूर समय है ये उफ्फ्फफफफफ
ज़िन्दगी के इस बोझिल वातावरण में  हम सब अपने अपने घरों में क़ैद हैं.... पता नहीं किस जुर्म की सजा मिली है सबको....नाक मुंह बांध के अपने अपने घरों में कैद रहने की 😢😢😢😢
रात के एक बज रहे हैं नींद आँखों से ग़ायब है । अपने बिस्तर से लगी खिड़की के पारदर्शी काँच से बाहर झांकने की कोशिश करती हूँ बाहर...... अजीब सा सन्नाटा पसरा है...... बाहर रोशनी तो है पर एकदम ख़ामोश दूर तक कहीं कोई कोलाहल नहीं । सामने बिल्डिंग की खिड़की से एक झीनी सी रौशनी तैरती हुई झाँकती है बीमार और उदास मरियल सी रोशनी..... जिसे देख कर मन खुद ही उदास सा हो जाए.... सिर्फ एसी की आवाज सुनाई दे रही है.... पतिदेव भी तंद्रा की अवस्था में हैं...... बेचारे दिन भर बैठे बैठे उकता से जाते हैं..... मैं तो तब भी दिनभर कुछ कुछ चुकचुक चलनी किया करती हूं...खुद को व्यस्त रखने की असफल कोशिश जारी है..... भरसक मेरी मदद करने का प्रयास करते हैं वो भी..... पर मुझे पसंद नहीं उनसे रसोई के काम कराना......  और हफ्ते दस  दिन में बाहर बाजार की खरीदारी वो कर ही आते हैं.... पर वो तो सचमुच थक जाते हैं बैठे बैठे..... बच्चों ने उनके फोन में मूवीज देखने का जतन बना दिया है... बढ़िया इंग्लिश मूवीज से थोड़ा मन बहला रहता है 😍😍

रात के सन्नाटे में अनायास ही थोड़ी हलचल सी सुनाई देती है,  मन में कुछ खटकता है , खिड़की से बाहर झांकती हूँ , मन में ढेरों विचार कौंध जाते हैं , बाहर बिखरी रौशनी ज़्यादा बीमार लगने लगती है । खिड़की बंद कर सोने का उपक्रम करने लगती हूँ ।

देखते ही देखते इतने दिन बीत गए और बिना आहट ही अगस्त का महीना भी आ गया ।आज जुलाई की आखिरी तारीख़ है, पूरी दुनियाँ में प्राय: सब कामकाज ठप्प हैं ,  हालाँकि अपनी क्षमताओं के अनुरूप सभी कोशिश कर रहे हैं यथा वत और पूर्व वत बने रहने की..... और इसके अलावा कर भी क्या सकते हैं??और शायद इंसानियत का तक़ाज़ा भी यही है ।
           
               सुबह के सात बज रहे हैं लगता है अभी वक्त ही क्या हुआ है? थोड़ी देर अभी भी सोया जा सकता है... पतिदेव तो दस-ग्यारह के पहले उठने से रहे.....लेटती हूँ पर दोबारा नींद नहीं आती.... घूम फिर कर फिर वही मोबाइल हाथ में.... और फेसबुक पर ऊलजलूल बातें या फिर वाट्सैप पर सैकड़ों बार देखे हुए फारवर्डेड मैसेज....गुड मॉर्निंग और गुड डे विशिंग के कार्ड..... जिन्हें देख देख कर अब कोफ्त होने लगी है 😔😔नॉर्मल बातचीत बंद है... बस सब इधर का उधर चेंपने में लगे हुए हैं..... हद है...... बिना देखे बहुत से वीडियो और पोस्ट डिलीट करती जाती हूं.....काश मन में या दिमाग में भी डिलीट कर पाने का कोई अॉप्शन होता..... हजारों ऐसी चीजें हैं ऐसी बातें हैं  जिन्हें परमानेंट डिलीट करना चाहती हूँ..... और बहुत से ऐसे लोग जिन्हें ब्लॉक कर देने का मन है😏😏😏😏😏

        लॉकडाउन के इस दौर में  सब कुछ ठहरा सा प्रतीत होता है..... ख़ामोश सड़के ,उदास सा माहौल, नीला साफ सुथरा आकाश बस इतना ही देख पाती हूँ अपनी खिडकी से..... बाहर बरामदे में भी कुछ क्षणों के लिए ही जाना होता है..... कपड़े फैलाने जाती हूँ या सारे जगत को रोशनी देने वाले सूर्य देवता से अपने लिए, अपने परिवार, और अपने मित्रों के साथ साथ सारी दुनिया के लिए प्रार्थना करती हूँ कि बस अब बहुत हो गया.... अब बस करिए प्रभु.... हमारे आसपास के अनगिनत फ़्लैटों में जाने कितने लोग रहते हों पर सब ओर बेचैनी पसरी दीखती है , एकरसता का अहसास होता है , एक व्याकुल सी  अनिश्चितता सी दीखती है । स्थिति सामान्य होने की कामना लिए सभी सिमट गए हैं अपने - अपने दायरों में । यूँही गुज़र रही है ज़िन्दगी.......बस , दूर पास के सारे पेड़ों पर खूबसूरत हरियाली छाई है..... हजारों आम लटक रहे हैं.... जरा सी हवा चलती है.... पटापट गिरने लगते हैं.... पूरी सडक पट जाती है.... ढेरों ढेर आम..... पर कोई उत्सुकता नहीं जगती.... देख कर भी अनदेखी कर देती हूं.... उफ्फ्फफफफफ......
       भाई से बात हुई.... ज़रा थकी सी आवाज़ थी मन बदहवास हो गया , उसकी तबियत ठीक नहीं है.... अचानक ही जाने कैसे , हैरान हूँ ।कितना कठोर समय है कितना निष्ठुर ! दिन भर भतीजे भतीजियां से बात होती है.... चाहे मैसेज पर ही..... एक दूसरे के संपर्क में बने रहने का एहसास होता है..... बच्चों से भी जुड़ी रहती हूँ....सब हमेशा साथ होने का भरोसा देते रहते हैं.... अच्छा लगता है अब इससे ज्यादा की न ख्वाहिश है न उम्मीद....

चाह कर भी भाई को देखने नहीं जा सकती।यहाँ तो घर की चौखट तक लाँघना मना है , मन पिघल रहा है , उड़ना चाहता है, जाना चाहता है अपने बीमार भाई के पास । आँखें भींचकर सचमुच पहुँच जाती हूँ भाई के सिरहाने , सहला देती हूँ उसे  , प्यार से छूती हूँ उसका ललाट ........ बैठती हूँ वहीं उसके पास अपनी ढेरों दुआओं के साथ , इस उम्मीद के साथ कि  जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा.... भगवान् सब पर कृपा दृष्टि बनाए रखें.... आमीन

  वर्ष आधा खिसक गया पर समय की गति नहीं बदली.... कमरे में ही सूरज निकलता है और कमरे में ही डूब जाता है..... चार महीने हो गए हैं घर से बाहर निकले..... कितनी बदल सी गई है ज़िन्दगी, बदल गए हैं सारे मायने ।
 
बाहर हल्की बारिश होने लगी है, मन भीग रहा है और आँखें भी । बस बाहर और भीतर के बीच एक झीनी सी दीवार है ,.... इस दीवार को ढाहना चाहती हूँ मैं..... एक अजीब सी बेचैनी और उलझन का आलम है इन दिनों, जैसे चैन ही नहीं पड़ता कहीं भी..... चाय बनाने की इच्छा होते हुए भी मैं रसोई में जाकर सिर्फ एक गिलास पानी लेकर बाहर आ जाती हूँ ।पानी पीकर प्यास तो बुझती है पर मन की परतों में जाने कैसी प्यास बरक़रार है ।

         किताबें पढ़ना चाहती हूँ..... किताबों में डूबना चाहती हूँ , अपने सिरहाने ढेरों किताबों और डायरियों को देखती हूँ.....छूती हूँ....और रख देती हूँ..... मन ही नहीं हो रहा कुछ करने को..... तीन किताबें शुरू कीं इस बीच पर एक भी पूरी नहीं की..... ऐसा लग रहा है जैसे इन लेखकों ने इतनी बोरिंग और बेकार किताबें क्यों लिखी होंगी????
दो तीन पेंटिंग्स के लिए सब कुछ तैयार करके रखा है.... कंसंट्रेट नहीं कर पा रही हूँ कि काम शुरू करूँ.....अपने सबसे प्रिय और मनपसंद काम के लिए समय नहीं निकाल पा रही हूँ.... सोच कर ग्लानि सी होती है....रोज रात में तय करती हूँ.... कल से जरूर शुरू करूँगी.... पर सुबह के बाद फिर हिम्मत जवाब देने लगती है....फिर सबकुछ अगले दिन पर टल जाता है..... हद्द है... लानत है मुझ पर....पतिदेव का भी यही हाल है..... क्या कहूँ?

सोचती हूँ इस कमरे में यदि खिड़की ना होती तो क्या होता , इतने बड़े घर में भी अकेले रहते रहते इस कदर ऊबने लगी हूँ कि कभी कभी ये मन में आता है कि लोग जेलों में कैसे रहते होंगे....जब कि हमारे पास मनोरंजन के इतने साधन हैं....मन लगाने के इतने उपकरण हैं..... सबसे संपर्क बनाए रखने के लिए हर वक्त मोबाइल फोन है..... और सबसे बड़ी बात हमारा सबसे मनपसंद इंसान चौबीसों घंटे हमारे पास हमारे साथ है तब इस कदर ऊब???? तभी खिड़की से झांकता आसमान का एक टुकड़ा भीतर तक सहला जाता है उसके भव्यता और नीली शांति में पाती हूँ अपना वजूद.....

          पर सच कहूँ तो अब तो सिर्फ़ और सिर्फ़ कोविड-19 से बचाव के सिवा कुछ और नज़र नहीं आ रहा ।  सब ऐसा ही करेंगे और हिम्मत से समय का सामना करेंगे , सबसे यही वादा चाहती हूँ..... और सबने मुझसे वादा किया है ।