चित्र गुप्त पूजन के दिन लिखना पढ़ना मना होता है तो ....फेस बुक पर लिखना पढ़ना ..सही है क्या ????..बचपन में हम लोग जान बूझ कर उस दिन जरूर किताब लेकर बैठ जाते थे कि मम्मी ..लोग बार बार कहें कि आज मत पढ़ो....ट्यूशन टीचर को कई दिन पहले से बता दिया जाता था कि दीवाली के तीसरे दिन मत आइयेगा........उस दिन किताब कॉपी नहीं छूते हैं......(जैसे बाकी के दिन किताब कॉपी हर समय ले के बैठे रहते हों......)..कितने भोले दिन थे वे.....:( :( :(
कुछ अनकहे पल ..कुछ अनकही बातें ......कुछ अनकहे दर्द कुछ अनकहे सुख ......बहुत कुछ ऐसा जो सिर्फ महसूस किया .....किसी से बांटा नहीं . ...बस इतना ही .......
लिखिए अपनी भाषा में
Saturday, October 24, 2020
Monday, October 19, 2020
लौटना बनारस से
बनारस से वापस लौट आई हूँ... ..
मुठ्ठी भर चावल ..
गाँठ भर हल्दी ..
मांग भर सिंदूर...
आँख भर गंगा ..
और मन भर याद लेकर .....
मम्मी नहीं हैं
फिर भी दिखाई देती रहती हैं..... ..
सुनाई देती रहती हैं.......
घर की हर चीज में शामिल....
हर कोने में उनके होने का अहसास.....
मेरा अपने आप को वजह बेवजह
व्यस्त रखते हुए, इधर उधर घूमना.....
भरे हुए जी....
डबडबाई आँखों
और भर्राई आवाज का कुछ नही होने वाला .....
बात करते करते निकल आने वाले
आँसुओं का क्या करूँ?
छोटा भाई कुछ नही बोलता हुआ भी
दिखता है परेशान .....
आस पास बना रहता है
अचानक से बोल देता है .......
कुछ न कुछ...
एकांत में खुला हुआ बैग......
पसरे सामान को सहलाता......
गले लगाता ये बावला मन.....
पैकिंग करने का बिल्कुल मन नहीं.....
बल्कि मुझे पैकिंग करना ही पसंद नहीं 😢
( लौटना बनारस से)
बचपन के दिन
बहुत सुंदर, जरूर पढ़ें, आप पहली लाइन पढ़ते ही खुद इसके मुख्य नायक हो जाएंगे!
बचपन में स्कूल के दिनों में क्लास के दौरान टीचर द्वारा पेन माँगते ही हम बच्चों के बीच राकेट गति से गिरते पड़ते सबसे पहले उनकी टेबल तक पहुँच कर पेन देने की अघोषित प्रतियोगिता होती थी।
जब कभी मैम किसी बच्चे को क्लास में कापी वितरण में अपनी मदद करने पास बुला ले, तो मैडम की सहायता करने वाला बच्चा अकड़ के साथ "अजीमो शाह शहंशाह" बना क्लास में घूम-घूम कर कापियाँ बाँटता और बाकी के बच्चें मुँह उतारे गरीब प्रजा की तरह अपनी चेयर से न हिलने की बाध्यता लिए बैठे रहते। टीचर की उपस्थिति में क्लास के भीतर चहल कदमी की अनुमति कामयाबी की तरफ पहला कदम माना जाता था।
उस मासूम सी उम्र में उपलब्धियों के मायने कितने अलग होते थे...
A) टीचर ने क्लास में सभी बच्चो के बीच गर हमें हमारे नाम से पुकार लिया।
B) टीचर ने अपना रजिस्टर स्टाफ रूम में रखकर आने बोल दिया तो समझो कैबिनेट मिनिस्टरी में चयन का गर्व होता था।
आज भी याद है जब बहुत छोटे थे, तब बाज़ार या किसी समारोह में हमारी टीचर दिख जाए तो भीड़ की आड़ ले छिप जाते थे। जाने क्यों, किसी भी सार्वजनिक जगह पर टीचर को देख हम छिप जाते है?
कैसे भूल सकते है, अपने उन गणित के टीचर को जिनके खौफ से 17 और 19 का पहाड़ा याद कर पाए थे।
कैसे भूल सकते है उन हिंदी शिक्षक को जिनके आवेदन पत्रों से ये गूढ़ ज्ञान मिला कि बुखार नहीं ज्वर पीड़ित होने के साथ सनम्र निवेदन कहने के बाद ही तीन दिन का अवकाश मिल सकता है।
अपने उस कक्षा शिक्षक को कैसे भूले जो शोर मचाते बच्चों से भी ज्यादा ऊँची आवाज़ में गरजते:- "मछली बाज़ार है क्या?”
मैंने तो मछली बाज़ार में मछलियों के ऊपर कपड़ा हिलाकर मक्खी उड़ाते खामोश दुकानदार ही देखे है।
वो टीचर तो आपको भी बहुत अच्छे से याद होंगे जिन्होंने आपकी क्लास को स्कूल की सबसे शैतान क्लास की उपाधि से नवाज़ा था।
उन टीचर को तो कतई नही भुलाया जा सकता जो होमवर्क कापी भूलने पर ये कहकर कि “कभी खाना खाना भूलते हो?” बेइज़्ज़त करने वाले तकियाकलाम से हमें शर्मिंदा करते थे।
टीचर के महज़ इतना कहते ही कि "एक कोरा पेज़ देना" पूरी क्लास में फड़फड़ाते 50 पन्ने फट जाते थे।
क्या आप भूल सकते है गिद्ध सी पैनी नज़र वाले अपने उस टीचर को जो बच्चों की टेबल के नीचे छिपाकर कापी के आखरी पन्नों पर चलती दोस्तों के मध्य लिखित गुप्त वार्ता को ताड़ कर अचानक खड़ा कर पूछते "तुम बताओ मैंने अभी अभी क्या पढ़ाया?"
टीचर के टेबल के पास खड़े रहकर कॉपी चेक कराने के बदले यदि मुझे सौ दफा सूली पर लटकना पड़े तो वो ज्यादा आसान था।
क्लास में टीचर के प्रश्न पूछने पर उत्तर याद न आने पर कुछ लड़कों के हाव भाव ऐसे होते थे कि उत्तर तो जुबान पर रखा है बस जरा सा छोर हाथ नही आ रहा। ये ड्रामेबाज छात्र उत्तर की तलाश में कभी छत ताकते, कभी आँखे तरेरते, कभी हाथ झटकते। देर तक आडम्बर झेलते झेलते आखिर टीचर के सब्र का बांध टूट जाता - you, yes you, get out from my class!
सुबह की प्रार्थना में जब हम दौड़ते भागते देर से पहुँचते तो हमारे शिक्षकों को रत्तीभर भी अंदाजा न होता था कि हम शातिर छात्रों का ध्यान प्रार्थना में कम, और आज के सौभाग्य से कौन कौन सी टीचर अनुपस्थित है, के मुआयने में ज्यादा रहता था।
आपको भी वो टीचर याद है न, जिन्होंने ज्यादा बात करने वाले दोस्तों की सीट्स बदल उनकी दोस्ती कमजोर करने की साजिश की थी।
मैं आज भी दावा कर सकता हूँ, कि एक या दो टीचर्स शर्तिया ऐसे होते है जिनके सर के पीछे की तरफ़ अदृश्य नेत्र का वरदान मिलता है, ये टीचर ब्लैक बोर्ड में लिखने में व्यस्त रहकर भी चीते की फुर्ती से पलटकर कौन बात कर रहा है का सटीक अंदाज़ लगाते थे।
वो टीचर याद आये या नही जो चाक का उपयोग लिखने में कम और बात करते बच्चों पर भाला फेक शैली में ज्यादा लाते थे?
जब टीचर एग्जाम हाल में प्रश्न पत्र पकड़कर घूमते और पूछते "एनी डाउट्" तब मुझे तो फिजिक्स पेपर में हमेशा एक ही डाउट रहता है कि हमें ये ग्राफ पेपर क्यो मिला है जबकि प्रश्रपत्र में ग्राफ किसमें बनाना है मुझे तो यही नही समझ आ रहा। मैं अपनी मूर्खता जग जाहिर ना करके चारों ओर सर घुमाकर देखते चुप बैठा रहता।
हर क्लास में एक ना एक बच्चा होता ही था, जिसे अपनी बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन करने में विशेष महारत होती थी, और ये प्रश्नपत्र थामे एक अदा से खड़े होते हैं... मैम आई हैव आ डाउट इन कोश्च्यन नम्बर 11... हमें डेफिनेशन के साथ एग्जाम्पल भी देना है क्या? उस इंटेलिजेंट की शक्ल देख खून खौलता।
परीक्षा के बाद जाँची हुई कापियों का बंडल थामे कॉपी बाँटने क्लास की तरफ आते शिक्षक साक्षात सुनामी लगते थे।
ये वो दिन थे, जब कागज़ के एक पन्ने को छूकर खाई 'विद्या कसम' के साथ बोली गयी बात, संसार का अकाट्य सत्य, हुआ करता थी।
मेरे लिए आज तक एक रहस्य अनसुलझा ही है कि खेल के पीरियड का 40 मिनिट छोटा और इतिहास का पीरियड वही 40 मिनिट लम्बा कैसे हो जाता था?
सामने की सीट पर बैठने के नुकसान थे तो कुछ फायदे भी थे। मसलन चाक खत्म हुई तो मैम के इतना कहते ही कि "कोई भी जाओ बाजू वाली क्लास से चाक ले आना" सामने की सीट में बैठा बच्चा लपक कर क्लास के बाहर, दूसरी क्लास में "मे आई कम इन" कह सिंघम एंट्री करते।
"सरप्राइज़ चेकिंग" पर हम पर कापियाँ जमा करने की बिजली भी गिरती थी, सभी बच्चों को चेकिंग के लिए कापी टेबल पर ले जाकर रखना अनिवार्य होता था। टेबल पर रखे जा रहे कापियों के ऊँचे ढेर में अपनी कापी सबसे नीचे दबा आने पर तूफ़ान को जरा देर के लिए टाल आने की तसल्ली मिलती थी।
हर समय एक ही डायलाग सुनते “तुम लोगो का शोर प्रिंसिपल रूम तक सुनाई दे रहा है।" अमा हद है यार! अब प्रिंसिपल रूम बाज़ू में है इस बात पे हम बच्चों की लिप्स सर्जरी कर सिलवा दोगे या जीभ कटवा दोगे क्या? हमें भी तो प्रिंसिपल रूम की सारी बातें सुनाई देती है। हमने तो कभी शिकायत नहीं की।
वो निर्दयी टीचर जो पीरियड खत्म होने के बाद का भी पाँच मिनिट पढ़ाकर हमारे लंच ब्रेक को छोटा कर देते थे।
चंद होशियार बच्चे हर क्लास में होते है जो मैम के क्लास में घुसते ही याद दिलाने का सेक्रेटरी वाला काम करते थे। "मैम कल आपने होमवर्क दिया था।" जी में आता था इस आइंस्टीन की औलाद को डंडों से धुन के धर दो।
तमाम शरारतों के बावजूद ये बात सौ आने सही है कि बरसों बाद उन टीचर्स के प्रति स्नेह और सम्मान बढ़ जाता है, अब वो किसी मोड़ पर अचानक वो मिल जाए तो बचपन की तरह अब हम छिपेंगे नहीं।
आज भी जब मैं स्कूल या कालेज की बिल्डिंग के सामने से गुजरता हूँ, तो लगता है कि एक दिन था जब ये बिल्डिंग मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा थी। अब उस बिल्डिंग में न मेरे दोस्त है, न हमकों पढ़ाने वाले वो टीचर्स। बच्चो को लेट एंट्री से रोकने गेट बंद करते स्टाफ भी नही जिन्हें देखते ही हम दूर से चिल्लाते थे “गेट बंद मत करो भैय्या प्लीज़” वो बूढ़े से बाबा भी नहीं हैं जो मैम से सिग्नेचर लेने जब जब लाल रजिस्टर के साथ हमारी क्लास में घुसते, तो बच्चों में ख़ुशी की लहर छा जाती “कल छुट्टी है”।
अब स्कूल के सामने से निकलने से एक टिस सी उठती है जैसे मेरी कोई बहुत अजीज चीज़ छीन गयी हो। आज भी जब उस ईमारत के सामने से निकलता हूँ, तो पुरानी यादो में खो जाता हूं।
स्कूल/कालेज की शिक्षा पूरी होते ही व्यवहारिकता के कठोर धरातल में, अपने उत्तरदाईत्वों को निभाते , दूसरे शहरो में रोजगार का पीछा करते, दुनियादारी से दो चार होते, जिम्मेदारियों को ढोते हमारा संपर्क उन सबसे टूट जाता है, जिनसे मिले मार्गदर्शन, स्नेह, अनुशासन, ज्ञान, ईमानदारी, परिश्रम की सीख और लगाव की असंख्य कोहिनूरी यादें किताब में दबे मोरपंख सी साथ होती है, जब चाहा खोल कर उस मखमली अहसास को छू लिया।
***🌹🌹🌹***
Sunday, October 18, 2020
कभी कभी ऐसा होता है कि बिना किसी कारण हमारा मन काम करने में नहीं लगता.....हम अपनी हालत किसी से बता नहीं पाते....खुद ही कारण खोजते रहते हैं....छोटी मान कर बात को टालते रहते हैं......बल्कि अपने तक ही सीमित रखते हैं.....पर मैं समझती हूँ कि बेहतर होगा कि हम अपनी उलझनों को दूसरो से बाटें........कोई न कोई उपाय अवश्य निकल आएगा .....
Saturday, October 17, 2020
🤔🤔
कुछ मसरूफियत सी रही कई दिनों से ..
वक़्त ही नहीं मिला ,
अपने आप से मिलने का
कि दो चार गुफ्तगू करूँ बैठकर ....
.अपने आप से ....
आज हर कोई व्यस्त है ,
किसी न किसी काम में
मैं भी इसी दुनिया की बाशिंदा हूँ ,
और शायद व्यस्त भी .....
आज के दौर में औरों से तो मिल लेते हैं
हम
पर खुद अपने लिए ....
वक़्त निकलना बहुत मुश्किल होता है ..
कल कोशिश करूंगी कुछ और कहने की
कुछ और लिखने की....
बस ये दुआ करती हूँ
कि हर कोई मिलता रहे
अपने आप से ..बस ............
😖😖😖
आज भी मेरे पापा के घर पर उन्हीं की नेमप्लेट लगी है जबकि उनको गए बरसों बीत गए हैं.... न पापा हैं न मम्मी ☺जाने वाले अपने पीछे अपने निशां छोड़ जातें हैं.....अब ये उनके पीछे रह गए लोगों पर ही निर्भर करता है... कि वो उनकी यादों को संजो कर रख पाते हैं या वक़्त की निर्मम परतों के पीछे अदृश्य होने देते हैं....वैसे आज की पीढी इस मामले में इतनी भावुक नहीं है....जिन चीजों को वर्तमान और एक या दो पीढ़ी तक बहुत आत्मीयता और हिफाजत से सहेज कर रखा जाता है.... वो उसके बाद वालों के लिए कबाड़ मे गिनी जाने लगती है.....😟😟😟😟ये मेरा निजी अनुभव है
Wednesday, October 14, 2020
हम्मममम
आज सोने का मूड नहीं है...बेहद खुशगवार सा मौसम है.....बहुत दिनों के बाद....हलकी हलकी ठण्ड .....बारिश की धीमी टिपटिप सुनाई दे रही है....देर रात में होने वाली बारिश ...जब कोई भी डिस्टर्बेंस न हो ....सिर्फ एक ख़ामोशी में लिपटी हुई , लगातार सुनाई देती एक सी धुन........मुझे हमेशा से बहुत प्रिय है........एक कप कॉफ़ी और राहत इंदौरी को पढ़ना......इस समय यही अच्छा लग रहा है.......
Tuesday, October 13, 2020
नवरात्र व्रत
17 अक्टूबर से शुरू हो रहा है नौ दिन तक चलने वाला नवरात्र व्रत... ..जिसे व्रत का नाम क्यों दिया गया है....ये समझना मुश्किल है.....दिन भर तले मखाने...मूंगफली...चिप्स...कुटू और सिंघाड़े की पूड़ी हलुआ..दही....रबड़ी...मलाई......भुने आलू....आलू टमाटर रसेदार...कुटू के आटे का दोसा...दहीबड़ा...आलू की चाट....कचौड़ी... और सब शुद्ध घी में तरबतर माल......खोये की मिठाई....दूध...शरबत....जूस....फलों का रस......दिन भर में कई बार चाय..... इतना सब खाते रहने के बाद भी ये बताते रहना. कि "भूखल हईं न!!..नौ दिन के बरत है न!"".... इहे कुल खाइल जाई........अरे व्रत का क्या मतलब जब दिन भर खाते ही रहना है......जब कि औसत दिनों मे लोग इतना कभी नहीं खाते..... ये कहने में क्यों इतना संकोच ??...कि नौ दिन सिर्फ जिह्वा के स्वाद बदलने के सरंजाम हैं.......व्रत करना ही है... तो नौ दिन तक सचमुच व्रत करना चाहिये.....पता तो चले कि भूखा रहना क्या होता है ???
कैसे भूलूँ..
मम्मी,
कैसे भूलूँ....???
आपके चले जाने के बाद,
.
रसोई की आलमारी में विराजे
दुनियाभर के भगवान,
मेरा बनाया हुआ संकट मोचन का चित्र
लक्ष्मी - गणेश, शंकर जी की
छोटी बड़ी मूर्तियाँ,
..
रसोई घर की
काठ की आलमारी में रखे
तरह तरह के अचार,
..
आपका बक्सा.
आपकी साड़ियां
आपके कपड़े,
आपकी पढी़ , अन पढी़ किताबें
आपकी ढेरों चीजें....
..
आपका पर्स बनाम झोला बनाम बैग
जो कभी मैने अपने हाथों सिला था,
आपकी सुपारी की डिबिया,
आपका छोटा सा सरौता,
आपका रूमाल,
छोटी सी गिलसिया,
विश्वनाथ ज्वैलर्स का नन्हा सा जिप वाला पर्स सब वैसे ही अपनी जगह पर थे.
बस हम सब
अपनी अपनी जगह
झकझोर कर हिला दिए गए थे .....
और शायद आज तक स्थिर नहीं हो पाए हैं....
.
मेरे आते समय
आज भी भाभी हल्दी,
दूब और चावल से खोंइछा भरती है
और फेर लेती है...
थोड़ा सा चावल
पांच बार ये कह कर...
" आती रहिएगा दीदी" ....
बड़ा संतोष और सुकून मिलता है सुनकर...
पर इस विदाई में.....
एक अजीब सी कमी महसूस होती रहती है.....
. .
आते समय आप दोनों की तस्वीर को प्रणाम करती हूँ तब,
जैसे दिल को कोई मुट्ठी में जकड़ लेता है.....
कहना चाहती हूँ आपसे....
जैसे हमेशा कहती थी.
..
मम्मी जल्दी प्रोग्राम बनाइएगा आने का....
इस बार ज्यादा दिन के लिए...
.
जल्दी आइएगा मम्मी .
.
जल्दी ही...
. ठीक है न ??? ..
..
(अकेली बेटियों का अकेलापन अकथनीय होता है मम्मी ....... वो कभी बड़ी नहीं हो पातीं.... )
Sunday, October 11, 2020
सच
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ये तो सच है,
अतीत कभी
वापस नहीं आता।
.
लेकिन स्मृतियाँ जरूर बार बार
लौट लौट कर आती हैं।
.
घर वही रहता है,
किन्तु हमारे भीतर भी...
एक पुराना घर हमेशा रहता है...
जो अचानक ही कभी कभी
सामने आ खड़ा होता है......
.
मम्मी पापा के जीवित रहते
हम जितने भरे पूरे, निर्द्वंद और निश्चिंत रहते हैं....
.
वो निश्चिंतता... वो नींद
फिर जीवन भर कभी नहीं आती ...
चाहे हम कितने ही अमीर क्यों ना हो जाएंँ......
.
अमीरी से निश्चिंतता और नींद नहीं खरीदी जा सकती.....
.
हमेशा सोचती हूँ....
कि मम्मी पापा का हाथ शायद नहीं छूटना चाहिए था......
.
वे हमेशा हमारे आगे आगे चलते रहते
और हम उनके थोड़ा पीछे पीछे
उनका हाथ थामे चलते रहते.....
.
कभी भी दुनिया की
बेतहाशा भीड़ भरे मेले में..
असहाय,
असमर्थ और अकेले छूट जाने
जैसा महसूस नहीं होता........
..
इतनी निश्चिंतता का मूल्य
माता- पिता के नहीं रहने पर ही समझ में आता है......
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Friday, October 2, 2020
स्वच्छता दिवस
साफ़ सुथरी सड़कों पर... नए नए झाड़ू लेकर ..पोज़ देते हुए..फोटो खिंचाने और रोज अपने घर द्वार की ही सफाई करने में बहुत अंतर है....एक से एक बनठन कर मेकअप से पुते चेहरों का ....घर , रसोई और उसके आसपास पड़ी गन्दगी को भी देखा है.......अभी अपने ही घर में झाड़ू पोंछा लगाना पड़े तो आंधी आ जाए..........अगर हर कोई सिर्फ अपने घर ... अपने घर के आसपास...अपने मोहल्ले.... ही सफाई करने जा जिम्मा उठा ले..तो इतनी नौटंकी करने की जरूरत ही क्या पड़े.......आखिर हम लोग स्कूल में भी एक चार साल के बच्चे तक को ये सिखा ही देते हैं..की टॉफी खाने के बाद छिलका....और पेंसिल की छीलन या कागज की कतरन को क्लास में रखे कूड़ेदान में ही डालना है......तो ये बात स्कूल से बाहर निकल कर सड़क पर पड़े कूड़ेदानों में कूड़ा डालने में कहाँ चली जाती है....सड़कों के किनारे भी दुनिया भर का कचरा चारो तरफ फेंका जाता है (सिर्फ कूड़ेदान में नहीं डाला जाता).....
Thursday, October 1, 2020
हुंह!!!!!
आज मैं अपने फ्रेंड लिस्ट में काट -छाँट करने जा रही हूँ.....क्यों की बहुत से ऐसे लोग हैं जो सिर्फ नाम मात्र के लिए मेरी लिस्ट में शामिल हैं....उनको जब तक मैं कभी कोई मेसेज न भेजूँ.......अपनी तरफ से कभी ये कष्ट नहीं उठाते.....और कई बार तो मेरे मेसेज का जवाब भी "हाँ बिलकुल ठीक ठाक...तुम सुनाओ....नहीं ऐसी कोई बात नहीं.....सब बढ़िया ही चल रहा है.....कोई नया समाचार नहीं....ओके ...बाद में मिलते हैं.......और वो बाद कभी नहीं आता ......जब तक के मैं स्वयं मेसेज न भेजूँ.....जब की मैं उनको बराबर ऑनलाइन देखती हूँ......अब मैं इतना फालतू भी नहीं हूँ कि .....उनकी प्रतीक्षा में बैठी रहूँ.....तकलीफ की बात तो ये है....फ्रेंडरिक्वेस्ट भी उन्ही कि भेजी हुई होती है...... ...जब आपके पास फुर्सत नहीं है...तो सिर्फ अपनी फ्रेंड लिस्ट लम्बी करने के लिए रिवेस्ट भेजना ......मुझे सख्त चिढ है ऐसे लोगो से.....समझने वाले समझ गए होंगे.....मैं किसी का नाम नहीं ले रही हूँ....अगर वो खुद को ब्लॉक या अन्फ्रेंड किया हुआ देखें तो समझ जाएं......(मेरी तरफ से भाड़ में जाएं ).......