लिखिए अपनी भाषा में

Tuesday, November 15, 2022

आजकल

खूब फुर्सत में हूँ आज कल ,
सुबहें देर से होती हैं ....
दोपहरें खूब लम्बी होती हैं.....
शामें इत्मीनान से होती हैं....
और रातें  कितनी देर से होती हैं पता नहीं......
वक़्त ही वक़्त है आजकल.....
ख़ुद के लिए वक़्त का एक सिरा ज़रूर पकड़ कर रखना चाहिए...
ख़ुद को सबसे पहले प्यार करना चाहिए...
बाक़ी सब बाद में...
जबसे बच्चे थोड़ा बड़े हुए यही जीने का तरीक़ा मेरा...
ख़ुश हूँ बेहद...खुश हैं आस-पास सब 💕
कल  जिस क्लोज़नेस को हम तरसते थे, बड़े होते बच्चों के लिए हम भी वैसे हो जाते हैं। बच्चों को मम्मी लोगों से हमेशा दुलार की क्रेविंग रहती ही है.... 
ये बात हम लोग अपने पेरेंट्स से नहीं कह पाए, 
पर हमारे बच्चे समय रहते रिमाइंड करा देते हैं बिन झिझके, 
यह कितना सही है न.....

बस्ससस

बाहर बहुत तेज बारिश हो रही है  जैसे मन भी भीग रहा है..... खिड़की का एक पल्ला खोल कर देखती हूँ..... लैंपपोस्ट की रोशनी में भीगे हुए पत्ते बड़ी खामोशी से बोलते हुए से लगते हैं "सर सर सर सर टी टी.." ..ठंडी हवाएं सराबोर कर जाती हैं.... गजब है प्रकृति के नजारे असली संपत्ति तो यही है.......
आस पास की कुछ खिड़कियों से पीली उदास सी रोशनी झांक रही है..... दूर दूर तक कोई आवाज या आहट नहीं है..... खिड़कियों के अंदर भी ज्यादा चहलपहल होगी ऐसा नहीं लगता...... सभी अब एकाकीपन के अभ्यस्त हो चले हैं..... ज्यादातर लोगों के बाल बच्चे बाहर हैं....कुछ पति-पत्नी साथ आते जाते दिखते हैं बस.....सब उम्र और किसी न किसी बीमारी - लाचारी से ग्रस्त..... बस एक दूसरे के साथ सामन्जस्य बैठाते हुए......कुछ जो अकेले हो चुके हैं वो और भी हतोत्साहित से दिखते हैं......
      मुझे लगता है, कितना ही फोन का सहारा हो,कितना ही सोशल मीडिया हो, आपको घर में दो-चार बात करने वाले चाहिए  ही चाहिए सोशल मीडिया भी बेमानी हो जाता है वह भी रद्दी का टुकड़ा हो जाता है अगर लंबे समय तक आपको अकेले रहना पड़े........ 
    

Friday, November 4, 2022

इन दिनों

अगर अपनी उम्र का हिसाब लगाने बैठूं तो ये महसूस करती हूँ कि उम्र का काफी बड़ा हिस्सा जी चुकी हूं और अब मेरे पास अब जीने के लिए समय बहुत कम बचा है... 
अब मेरे पास अंतहीन बहसों के लिए समय नहीं है , जो है सब ठीक है..... जो नहीं है वो भी ठीक है..... यह जानते हुए कि अब किसी बहसबाजी या तंज़ से कुछ भी नहीं होगा.... बातों का स्टॉक खत्म सा हो गया लगता है... चुप रहना अच्छा लगता है....एकांत प्रिय हो गई हूँ.... 

मेरे पास अब ऐसे बेतुके लोगों की बातों का जवाब देने का धैर्य नहीं रहा, जो उम्रदराज होने के बावजूद आज तक बड़े नहीं हुए हैं..... 
मैं अब सिर्फ अपनों के साथ रहना चाहती हूं,
मैं अब उन खास लोगों के साथ ही जीना चाहती हूं, ऐसे लोगों के साथ जिन्हें सचमुच मेरी जरूरत है.. जिन्हें मुझे देख कर ऊब न होती हो.... और मुझे भी जिनका साथ पसंद हो.... 

हमारे पास दो जीवन होते हैं एक जब समय भागता रहता है.... और दूसरा जब समय रेंगने लगता है....एक वो  जब हम समय के साथ दौड़ लगाते हैं पर समय आगे निकल जाता हैं और हम अक्सर पीछे छूट जाते हैं...... एक वो जब समय हमें छोड़ कर जाना ही नहीं चाहता.... बीतता ही नहीं हमें जकड़ कर बैठ जाता है..... और दूसरा जीवन तब शुरू होता है जब हमें एहसास होता है कि हमारे पास सिर्फ एक ही जीवन था...... अब मेरा वो दूसरा वाला जीवन शुरू हो चुका है....