लिखिए अपनी भाषा में

Wednesday, May 13, 2015

हाय ये छुट्टियां …


      






        नौकरी में छुट्टियों का कितना महत्त्व होता है ये कोई भुक्तभोगी ही जान सकता है .......अक्सर लोगों को ये कॉमेंट करते सुनती हूँ...कि  टीचरों के तो मजे ही मजे हैं...साल में ४५ छुट्टियां गर्मी की ...और दीवाली ,दशहरा ..होली ,ईद ,रक्षाबंधन और ये और वो सब अल्लम गल्लम मिला कर कम  से कम  ७० ..७५ छुट्टियां तो हो ही जाती हैं....इसके साथ ही १४ सी एल और ७ एम एल ...फिर  भी हम टीचरों को छुट्टी के लाले पड़े रहते  हैं....हमेशा छुट्टियों का रोना रोते रहते हैं.....किसी भी अप्रत्याशित छुट्टी (जैसे इन दिनों भूकम्प की वजह से  या कुछ अनगिनत जयंतियों की वजह से)..की .घोषणा होते ही हम इतने खुश हो जाते हैं  जैसे पहली बार छुट्टी मिल रही हो या फिर आखिरी बार छुट्टी मिल रही हो.....

          ज्यादा सर्दी हो तो छुट्टी चाहिए...ज्यादा धूप या गर्मी हो तो छुट्टी चाहिए.....ज्यादा बरसात हो तो रेनी डे चाहिए......जब   हम छोटे   थे   तो बरसात के दिनों    में रोज  भगवान  से मनाते  थे  ...की आज  खूब   बारिश हो और रेनी डे हो जाये....  पर जब से अध्यापिका बनी हूँ और जिस स्कूल में पढ़ाना शुरू किया यहाँ रेनी डे का कोई रिवाज़ नहीं है...चाहे मूसलाधार बारिश हो रही हो...आसमान फटा पड़ रहा हो.....बच्चे डूबते तैरते पहुंच ही जाते हैं..........और चाहे २५-५० बच्चे ही क्यों न हों पूरे स्कूल में (अक्सर ऐसा बहुत कम ही होता है )टीचर्स को तो पहुंचना ही होता है......भयानक सर्दी और भयानक बरसात में भी (आखिर तनख्वाह किस चीज की मिलती है )....कई बार बल्कि हर साल ही जनवरी की कड़ाके की ठण्ड में भी  बच्चों  के लिए स्कूल बंद कर दिए जाते हैं पर हम अध्यापिकाओं  को दो तीन घंटों के लिए ही सही पर जाना पड़ता है......…       
        परन्तु इतने पर भी  कुछ अध्यापिकाओं को हर साल   फुल  अटेंडेंस का प्राइज़ मिलता है ........मैं आज तक नहीं समझ पाई की आखिर वे कैसे इस तरह मैनेज कर पाती हैं  .....कि उनके घर में कभी कोई जरूरी काम नहीं पड़ता ...कोई शादी ब्याह नहीं होता..…। या कोई मूडन-छेदन का कार्यक्रम नहीं होते...और न ही कभी वे बीमार पड़ती हैं......पूरे साल विद्यालय में उपस्थित ..और साल के अंतिम रिजल्ट वाले दिन...नकद हज़ार रुपयों का लिफाफा इनाम मिलता है .....जो मुझे तो आज तक नहीं मिला न ही भविष्य में इसकी कोई आशा है......
             इसके साथ ही कुछ ऐसी अध्यापिकाएं  और अध्यापक भी  हैं...जो किसी भी महत्वपूर्ण अवसर पर..रुआंसा ...... दयनीय और भावपूर्ण चेहरा बनाये रखते  हैं..और बिलकुल भी छुट्टी नहीं लेते....चाहे दिन भर कांख कराह कर सबके ऊपर..खास  तौर से प्रिंसिपल के ऊपर अपेक्षित प्रभाव डालते रहें ......पर  जब  उनसे  ये  कहा  जाये ..कि  अगर  तबियत  इतनी  ज्यादा  खराब  है  तो  वे  छुट्टी  क्यों  नहीं  ले  लेते    ?   तो वे सबके ऊपर अहसान सा करते हुए..    साफ़ इंकार कर देंगे...  .और प्रिसिपल पर ये अहसान रौब    और प्रतिक्रिया दिखाएंगे कि  देखिये ..   कितने सिंसियर हैं हम     कि इस बुरी (?) कंडीशन में भी छुट्टी नहीं ले रहे   ....जैसे स्कूल उन्ही के बलबूते पर चल रहा हो........और उनके छुट्टी ले लेने से बंद हो जायेगा....... साथ की सभी  टीचर्स और यहाँ तक की प्रिंसिपल भी अच्छी  तरह  जानते  हैं..कि ये बंदा  या बंदी  पक्का  १०० % झूठ  बोल  रहा है ....पर उनकी  एक्टिंग इतनी ज़बरदस्त और बहाना  इतना तगड़ा होता है कि बड़े बड़ों के छक्के छूट जाएँ.....सभी संशय    में पड़ जाएं   कि अब  कहें   तो क्या कहें   ?? इन लोगों की कल्पना शक्ति    इतनी तीव्र और जबरदस्त होती है जिसका जवाब नहीं......अपनी कल्पना को दूसरो पर मढ़ देने या साकार करने में वे बिलकुल विलम्ब नहीं करते.....दूसरो की अत्यंत मजबूरी में ली हुई छुट्टी भी उन्हें बहाना लगती है  क्यों कि  वे अक्सर (हमेशा तो नहीं कहूँगी )ऐसी ही छुट्टियां लेते  हैं.....

जिंदगी में और कोई टेंशन न हो आराम ही आराम हो तो हज़ारों आइडिआज आते ही रहते हैं....और उसमे कोई खर्चा भी नहीं लगता .... 

Sunday, May 10, 2015

यूँ ही






             मातृ दिवस पर अपनी अपनी माँ को याद करने से एक अतिरिक्त लाभ ये हुआ..कि अभी तक के अपने सभी फेसबुक मित्रों की आदरणीया माँओं से भी परिचय हुआ.......सभी के चरण छूने का अवसर मिला....और ये अंतर्मन से महसूस हुआ कि उन सभी का आशीर्वाद भी हम सबको प्राप्त हुआ.....हम कितना कुछ भी पश्चिमी लोगो को भला बुरा कह लें....पर इतना तो मान ना ही पड़ेगा .....कि इन दिवसों (मातृ दिवस ...पितृ दिवस.. पुत्र या पुत्री दिवस ) के दिन कम से कम हमारा पूरा ध्यान और चिंतन अपने स्नेहिल जनों के प्रति बना रहता है.......इसी बहाने हम कुछ दिन पहले से कुछ दिन बाद तक उनकी यादों में डूबे रहते हैं.......
            कोई कुछ भी कहे मुझे तो बहुत अच्छा लगता है........नहीं तो आज की भागमभाग भरी दुनिया में किसी के पास समय कहाँ है ?.... जीवित माँ बाप से बात कर पाने का .....
तो जो अब संसार में नहीं है उन्हें कौन याद करे ??


 आज फेसबुक ..वाट्सएप ..इत्यादि के होने और आज की पीढ़ी जो अपने पेरेंट्स से इतना घुली मिली या फ्री है कि अपनी भावनाएं व्यक्त करने में उन्हें जरा भी झिझक नहीं .....ये उनका सौभाग्य है ..
          हमें तो याद भी नहीं कि मम्मी पापा से अथाह प्रेम करने के बावजूद हम उनसे कभी कह पाएं हो कि हम उनसे बहुत प्यार करते हैं.......यदि  आज उनके   नहीं रह   जाने   पर ही  सही  .....  ये    अवसर    हमें मिला   है तो कहने   में कैसी    झिझक......

Saturday, May 9, 2015

यूं ही…







          आज कल वॉट्सएप्प और फेसबुक पर भी लोगों से बार बार ये गुज़ारिश की जा रही है कि कोल्ड ड्रिंक और मिनरल वाटर की बोतलें फेंके नहीं......फ्रिज में भर कर रखे और बाहर निकलते समय ..."गरीबो"को दे दें....उनकी मुस्कराहट आपका दिन बना देगी....... ऐसा कर के देखा था एक परिचित ने......जिन "गरीबो" कि बात आप कर रहे हैं.....उन पर से इस क़दर यकीन उठ चुका है जिसकी हद नहीं.......उन्होंने ४ बोतलें दी... एक भीख मांगने वाले को....और उसने पीते ही इस तरह का तमाशा शुरू कर दिया कि...उनके पास भागने के सिवा और कोई चारा नहीं बचा था.....उनसे ५०० /- रुपये लेकर ही छोड़ा उस "गरीब " ने.....नहीं तो थाना पुलिस तक का चक्कर लगवा देता......तब से हमने तो कसम खा ली है ऐसा कुछ करने की........कोई घर आजाये तो भले ही अपने सामने पानी पिला दें.......पर सिर्फ उनकी मुस्कुराहटें देखने के लिए ??? तौबा तौबा !!!!!!

Thursday, May 7, 2015

यूँ ही.…





               फेसबुक पर हम ऐसे अनजाने लोगो से मिलते हैं ..जिनसे पता नहीं जीवन में कभी मुलाकात हो न हो....पर उनके सुख दुःख......उनकी खुशियों ...उनके गम में शामिल हों......यही तो सोशल मीडिया का मतलब है......हमारी बातों से कोई खुश हो.... हम भी किसी की बातों में खुश हो....मैं तो बस इसमें ही खुश हो जाती हूँ....... मैंने भी देखा है हलकी फुलकी खुशनुमा सी बातों से अपने दिन सुकून से बीत जाते हैं ....पहले से ही जिंदगी में इतना तनाव और टेशन है ...की अब कोई किसी के विचार नहीं जानना चाहता....यहाँ बैठ कर सिर्फ दूसरों पर कमेंट्स मारने या गाल बजाने से कुछ हासिल नहीं होता...सिर्फ कुछ लाइक्स या शेयर से कोई क्रांति नहीं होने वाली... कभी कभी कुछ लोग इतनी तीखी प्रतिक्रिया करते हैं..यहाँ की बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती.....एक नार्मल सी बात इतना तूल पकड़ लेती है कि आरोप प्रत्यारोप..और अंत में बात गाली गलौज तक पहुंच जाती है..और नतीजा कुछ नहीं निकलता.....तो आखिर फायदा क्या है....इतनी बहसबाजी का..........अपने आप को ज्यादा काबिल और बुद्धिजीवी दिखाने के लिए ....दूसरों पर उंगली उठाना ही कुछ लोगों का मकसद है......फेसबुक ....सिर्फ अपनी भड़ास निकलने का ही माध्यम रहगया है कुछ लोगों के लिए........यही सोशल मीडिया का मतलब है क्या??......दिनभर के थके मांदे लोग कुछ पल शांति से .....स्नेह से एक दूसरे के साथ बिताना चाहते हैं तो क्या हर्ज है ??...इसमें कौन से पैसे खर्च हो रहे हैं??//......यहाँ पहले से ही इतने ज्ञानी लोग हैं कि अब और ज्ञान और विचार देने की न जरूरत है न हिम्मत......कम से कम मुझमे तो नहीं..............