कुछ अनकहे पल ..कुछ अनकही बातें ......कुछ अनकहे दर्द कुछ अनकहे सुख ......बहुत कुछ ऐसा जो सिर्फ महसूस किया .....किसी से बांटा नहीं . ...बस इतना ही .......
लिखिए अपनी भाषा में
Monday, May 31, 2021
यूंही
Sunday, May 30, 2021
हाय बुढ़ापा
Friday, May 28, 2021
टाइटैनिक
Tuesday, May 25, 2021
22-5-19(पटना)
Thursday, May 20, 2021
पटना यात्रा (21.5.19)
Friday, May 14, 2021
उफ्फ्फफ वो डरावने दिन....कोरोना के
महीनों के इंतजार के बाद और बेहद उत्साहित वातावरण के साथ बेटे का वैवाहिक कार्यक्रम समाप्त हुआ और गिने-चुने अतिथियों के जाने के बाद ...जब थोड़ा आराम करने के लिए सोचा तभी जैसे किसी की नजर सी लग गई.......पहले बिटिया और फिर मैं संक्रमित हो गए.... जब बुखार के बाद अचानक मुँह का स्वाद और सूंघने की शक्ति समाप्त हुई तो चिंता थोड़ी बढ़ गई। 5-7 दिन तक स्वाद, खुशबू, बदबू सब लापता थे। ऐसी स्थिति में घबराना स्वाभाविक है लेकिन अब यही सोचती हूँ कि सबसे पहली बात यह कि हमें बिल्कुल भी घबराना नहीं है, शांत रहना है। क्योंकि आगे चलकर हमें कई सारी चीज़ें परेशान करती हैं
सबसे पहले भूख ख़त्म हो जायेगी मुँह का स्वाद पहले ही चला जाता है ....
खानपान बहुत सीमित हो जायेगा.. मुझे तो खाने की कल्पना मात्र से उल्टी कर देने की इच्छा हो रही थी... जिसका सीधा प्रभाव आपके शरीर पर दिखाई देगा आपके गाल पिचकने लगेंगे आँखों में गड्ढे दिखेंगे जिससे अब आपको और घबराहट होगी लेकिन आपको अब भी नहीं घबराना है। यह सब इसलिए है क्योंकि आपके शरीर को जितना भोजन चाहिए आप उतना नहीं ले रहे हैं तो इसलिए आप ख़ूब खाइये जितना खा सकते हैं। सवाल आता है क्या खाना है? धरती पर जो भी खाने योग्य है अपनी-अपनी औकात और सुविधानुसार आप सब खा सकते हैं। शरीर में थकावट, कमज़ोरी दिखाई देगी इससे भी नहीं घबराना है यह कुछ समय रहेगी फिर ठीक हो जायेगी। नींद बहुत अधिक आयेगी तो जितना सो सकते हैं सोइये जितना ज़्यादा सोएंगे उतना ही कम सोचेंगे।मैने तो यही किया..... खूब सोई... सोने जगने मे जैसे कोई अंतर ही नहीं था.... या दवाओं की ड्राउजीनेस भी रही होगी....
ठंडी चीज़ों से थोड़ा परहेज़ करें यह भी ज़रूरी नहीं है कि हर वक़्त गर्म पानी पीना है आप नार्मल पानी पी सकते हैं। मैंने काढ़ा जैसा कुछ नहीं पिया बस चाय कभी दूध वाली कभी काली नींबू वाली चाय और सबमे सिर्फ अपना बनाया हुआ काढ़े नुमा चूर्ण आधा चम्मच बस...... । यह आपके ऊपर निर्भर करता हैकि आप क्या लें.... यदि सांस लेने में दिक्कत महसूस कर रहे हैं भारी-भारी सा लग रहा है तो कुछ देर इस ओर ध्यान न दें कुछ और सोचें फिर देखें अभी भी वही स्थिति है या सामान्य है..... यदि अब भी सांस लेने में ज्यादा दिक्कत है तो डॉक्टर से संम्पर्क करें।
गूगल, यूट्यूब, फेसबुक टीवी और नरेंद्र मोदी से उचित दूरी बना कर रखें। फ़िल्म देखें किताबें पढ़ें जो आपका मन करे वो हर काम करें। प्रेमी या प्रेमिका है तो उससे ख़ूब बातें करें। दूसरे लोगों से मशवरा कम लें ज़रूरत पड़ने पर ही डॉक्टर के पास जाएं।आज हर कोई डॉक्टर बना हुआ है..... सभी ज्ञान बांट रहे हैं.....
जैसा कि आप जानते हैं कोई भी बीमारी एक दिन में ठीक नहीं होती है इसलिए खुद को समय दें.... बहुत ज़्यादा न सोचें आप अंदर से खुद को जितना मज़बूत रखेंगे बीमारी इतनी ही जल्दी ठीक होगी। यदि मानसिक रूप से मजबूत नहीं हैं तो फेसबुक और टीवी और अखबार की डराने वाली खबरों से दूरी बना कर रख सकते हैं, क्योंकि उनका तो काम ही टीआरपी बढाने के लिए चीख चीख कर उन्माद पैदा करना......
यह मुमकिन नहीं है कि आप खाली लेटे हैं और आप कुछ न सोचें.... आप उस समय के बारे में सोचिए जो समय आपके जीवन में सबसे ज़्यादा खुशनुमा था। दोस्तों के साथ बिताए पल स्कूल, कॉलेज, ऑफिस की शरारतें। आप अपने अंदर खोजिए बहुत कुछ सकारात्मक है जो आपको मिल जायेगा। जो आपको बीमारी से लड़ने में मदद करेगा।ईश्वर का कोटिशः धन्यवाद, आप स्वस्थ हैं। 🙏🏻🙏🏻🌺🌺 मुझे लगता है कि महामारी भयानक तो है ही फिरभी लोग और हमारे चैनल हमें डरा अधिक रहे हैं, जो हमारी मानसिक अवस्था पर कुप्रभाव डाल रही है।मेरे घर कुछ दिन पहले मुझे, मेरी बेटी, दामाद, उसकी बहन,सभी संक्रमण के शिकार हुए.... सबको को बुखार आया, मेरे बेटे ने बिना प्रतीक्षा किए हमारे फैमिली डाक्टर के नोटिफिकेशन के अनुसार पूरा कोर्स कराया..... थोड़ी दिक्कत और टाइम लगा पर ईश्वर की कृपा से सभी अब स्वस्थ हैं।.
साँसों की ये जंग बड़ी डरावनी थी..सभी की कोरोना नेगेटिव रिपोर्ट ले कर बहुत राहत मिली है... लेकिन इस हाहाकार से बेहद व्यथित हूँ .... इस मौत के तांडव में बहुत घबराहट है .... जीवन के लक्षण से नदारद इस फेसबुक को देख कर स्तब्ध और संज्ञाशून्य हो जाती हूँ .....फेसबुक पर से सभी डराने वाली पोस्ट और वीडियो डिलीट कर देती हूँ..... न वो दिखें न मुझे डराएं..... मैं बस वही देखूंगी जो मैं देखना चाहती हूँ....... हां मैं शुतुरमुर्ग हूँ... बस...
इस बीच खोने वाले मित्रों की सूची भी गड्डमड्ड हो रही ... जाने कितने इस बीच साथ छोड गए .... जीवन का पतझर धरती पर इस तरह देखूँगी सोचा न था ..... पलायन नहीं कर रही लेकिन बहुत बहुत बुरा महसूस कर रही हूँ ..... सभी बिछड़े मित्रों को हार्दिक श्रद्धाजंलि , सभी बीमार लोगों को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की शुभकामनाएं और स्वस्थ लोगों को सुरक्षित रहने की दिल से दुआएँ ..
उस समय मैं खुद को मानसिक रूप से बहुत कमजोर और असहाय महसूस कर रही थी और अभी भी डरती हूँ .... रोज नियमित प्राणायाम करती हूँ...और हृदय से गायत्री मंत्र का जाप भी.... . और भगवान् से यही विनती करती हूँ कि सब पहले सा हो जाए.... अब रहम कर दो भगवान्.... बहुत हो गया ..... तुम तो सचमुच केवल तमाशा देख रहे हो.... इतने निष्ठुर मत बनो प्लीज 😢सब शुभ शुभ हो भगवान्..... सबकी रक्षा करो प्रभु...... इस कठिन समय से उबारो सबको.... रहम करो ईश्वर 🙏🙏🙏🙏कोई गलती हुई हो तो क्षमा करो सबको.....सभी देवी-देवताओं से गिड़गिड़ा कर विनती करती हूँ.... सबको स्वस्थ कर दो भगवान्...
फिर से सब पहले जैसा हो जाए...... बहुत हुआ अब 🙏🙏🙏
जिंदगी में वैक्यूम बन रहे हैं। बीमारी तो एक बहाना होती है। अपने और अपने आसपास के लोग जाकर एक खालीपन सा छोड़ कर जाते हैं।
किसी की दु:ख की घड़ी में
भले ही इन्सान कुछ भी न कर पाए
लेकिन फिर भी आकर , साथ खड़ा हो जाए उतना ही बहुत है.... उससे बड़ी हिम्मत बंधवाने की बात कोई और नहीं हो सकती..
. अंत में इतना याद रखिए संसार में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे आप जीत नहीं सकते। इसलिए हमें न घबराना है और न ही निराश होना है।
मुझे पूरा विश्वास है कि बहुत जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा...... आमीन🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Monday, May 10, 2021
10 मई 2120
Wednesday, May 5, 2021
हद्द हो गई है 😡😡😡
कुछ यादें
मैंने अपने पापा और माँ के दरमियान बहुत घनिष्ठ तोता मैना वाला प्रेम कभी नहीं देखा। दोनों बहुत सी बातों में बेमेल थे। पापा बेहद खूबसूरत,गौर वर्ण स्मार्ट और शानदार प्रभावशाली व्यक्तित्व के स्वामी..... और मां बेहद खूबसूरत आंखों वाली पर सामान्य शक्ल सूरत, कद काठी और सांवली सलोनी.....पापा जी की तुलना में कम पढी लिखी और साधारण ज्ञानवान....हालांकि बाद के वर्षों में ये पढ़ने वाला शौक काफी डेवेलप कर लिया था उन्होंने.... हां लिखना नहीं शुरू किया... जब कि उनकी कल्पना शक्ति बेहद तीक्ष्ण थी.... नानी बनने के बाद मेरी बिटिया को रोज दो तीन कहानियां उसे सुनाना उनकी दिनचर्या का महत्वपूर्ण कार्य था... और बेटी की उत्कट इच्छा रोज नई कहानी सुनने की रहती थी.... वो रोज एक दो नई कहानी बनातीं ,जोड़तीं और उसे सुनाती..... अफसोस है कि उन कहानियों का कोई संग्रह नहीं बन पाया....किसी भी घटना का बेहद सजीव चित्रण करना..... उनको बखूबी आता था......संभवतः ये गुण थोड़ा बहुत मुझमें भी आया है... पर उनके जैसा नहीं.... न लिखने के पीछे उनकी मात्रा संबंधित अशुद्धियों का ही हाथ था इस बात पर मैं बिल्कुल सहमत हूं क्योंकि शुरुआती पढाई चम्पारण बिहार (उनके ननिहाल) में होने से इस पक्ष पर संभवतः बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया.... मैने महसूस किया है कि मात्रा की अशुद्धि पर बिहार में बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता....और इसी टोकाटाकी और लज्जा वश उन्होंने लिखना छोड़ दिया था....बाद में जब हम सब भाई बहन लिखने पढने योग्य हुए तो उनका चिट्ठी, डायरी का हिसाब भी लिखना भी छूट गया....
शायद वो लोग कभी इस वस्तु स्थिति को अपना नहीं पाए। मैं बड़ी हुई तो बहुत सारी बातों में पिता से उलट रही। ज्यादातर बातों में उनसे असहमत..... ज्यादातर उन बातों में जिनमें मम्मी की बातों को काटा जा रहा हो... या उनकी बेइज्जती हो रही हो..... मैं मम्मी के निकट ज्यादा थी... उनसे हर तरह की बातें शेयर करती थीं और बहुत सी बातें हम दोनों पापा जी तक पंहुचने ही नहीं देते थे ये सोच कर ही कि वो नाराज होंगे..... लेकिन इसके बावजूद वे दुनिया के सबसे अच्छे पिता थे । जिनके न रहने को मैं हर ख़ुशी हर दुःख में महसूस करती हूँ।
कितनी सुंदर सुखद स्मृतियां हैं उनके साथ.... बचपन में उनका मेरी हर बात को सबसे ज्यादा महत्व देना.... उनके दो चार दिनों वाले अॉफिशियल टूर में अपनी दो चार फ्रॉकों के साथ लटक जाना....अब समझ सकती हूँ कि वो कितना परेशान हो जाते होंगे...एक घटना तो मुझे अच्छी तरह स्मरण भी है..... जब एक बार ट्रेन में वो मेरे घने लंबे बालों की चोटी बनाने की असफल कोशिश कर रहे थे तो साथ में बैठी महिला ने उनसे कंघी लेकर मेरी कसी कसी दो चोटियां गूंथ दी थी जो दो तीन दिनों तक नहीं खुली थी....रोज अपनी हथेली के बित्ते से नापना कि रात भर में मैं कितनी लंबी हो गई हूँ.....अभी भी आंखों में आंसू ला देने के लिए काफी है...... उनकी
और यह बात दिल को छू जाती थी कि, " अब तुम बड़ी हो गई हो....ऐसे रोअनी कब तक बनी रहोगी??" .... मेरी बात बात पर रो देने वाली और आंसू भर लेने वाली आदत आज भी बरकरार है.....
पापा से बचपन में सबसे ज़्यादा बात मैं करती थी, या यूं कहूँ कि उनसे कुछ मनवाना होता तो मुझसे ही कहा जाता था....... अब कुछ बदल सा गया है, अब वैसी बातें नही हो पाती। मैं सबके सामने अब रो नही पाती... शायद मैं अब "बड़ी" हो गयी हूँ!
जन्मदिन पर उन्हें प्रणाम करना चाहती हूं आज भी...जबकि वो दोनों ही लोग अब नहीं हैं... . बस सोचती रह जाती हूँ .... क्या कहूँ?
अब देखो न! कितना कुछ कह गयी हूँ यहां........मैं भी पापा की प्रिय बिटिया रही हूं.....घर में सिर्फ एक मैं थी जो किसी भी बात को लेकर उनसे बहस कर सकती थी... और अपनी मनमानी करा लेती थी..... ये लिखते समय मुस्कुराती रही हूँ ...... लेकिन आखिरी पंक्ति तक आते ही आँखें भर आई हैं। कोई तो होता जो ये कहता अब "तुम बड़ी हो गई हो। रोअनी बेटी और नकचतनी(नाक से मिनमिना के बोलने वाली) पतोह ठीक नहीं होती "
कितना कुछ छीन लेता है ये बड़ा होना भी ।कोई कहीं नहीं जाता..सब यहीं रहते हैं❤️
इतने प्यारे पापा को पुनः नमन करती हूं
.
Sunday, May 2, 2021
यूंही 😢😢
आज थोडा मन उदास सा है., कोई ऐसी चीज जो आपको बहुत प्रिय हो , उसकी ऐसी दुर्गति देख कर जी उमड़ आना स्वाभाविक है.....नहीं जानती थी कि इतने दिनों से संभाल कर रखी हुई मेरी कुछ आयल पेंटिंग्स का ऐसा हश्र होने वाला है........आज दीवाली के लिए घर की साफ़ सफाई के दौरान.....जब अपना कुछ सामान अपनी जगह से हटाया , तो बाँध कर रखी हुई कुछ पेंटिंग्स पर ध्यान गया ..और ये देख कर बड़ी ही पीड़ा हुई कि वो सारी पेंटिंग्स दीमको द्वारा बुरी तरह क्षतिग्रस्त की जा चुकी थीं.....और इतनी ख़राब हालत में थीं कि उनका कोई भी हिस्सा छूने लायक तक नहीं था......लाचार हो कर अपने माली से कह कर उन्हें अपने लान के ही पिछले हिस्से में आग के हवाले कर दिया.....तब से इतना मन खराब हो रहा है कि क्या कहूं .......बस इसी बात कि तसल्ली है कि उन सभी पेंटिंग्स के चित्र मेरे संग्रह में हैं........अब यही सोच रही हूँ कि क्या उनकी यही नियति थी ????
मम्मी 😟
मम्मी जिस दिन लौट जाती थीं.... वो दिन जरूरत से ज्यादा लंबा हो जाता था....स्कूल से वापस आने के बाद....अपने आप ताला खोलना और सूनी डायनिंग टेबल देखना बेहद कष्टप्रद होता था.... रसोई में भी जैसे सारे बर्तन सुन्न पडे होते थे.... हफ्ते दस दिन तो एकाकी पन को एडजस्ट करने में ही बीत जाते थे... मम्मी चली जाती थीं तब पता चलता था न उनसे ढेर सारी बातें कर पाई न उनसे लिपट कर प्यार कर पाई। मम्मी जब तक रहती थीं, मैं डरती रहती थी कि वो बीमार न पड़ें... कुछ भी न हो उन्हें..... हमेशा यही लगता रहा कि मम्मी बस बीमार न पड़ें।
मम्मी जब तक रहती थीं तब तक रोज सबेरे एक ही बात कहती थी तुम्हारे यहां नींद बहुत अच्छी आती है । पढने की बेहद शौकीन होने के कारण ढेरो मैग्ज़ीन्स और मेरी लाइब्रेरी की किताबों की संगत में ही उनका दिन बीतता... जिस दिन उनको जाना होता था तो बीती रात न वो सो पाती थीं न हम सब... सो नही पाती थीं, शायद जाने की इच्छा नहीं होती होगी... इसलिए नींद नही आती होगी।
उनसे दूर हमारी उम्र बढ़ रही थी.... हमसे दूर उनकी उम्र बढ़ रही थी। थोड़ी सी गुंजाइश होती तो हम सबकी की उम्र बढ़ने से रोक देते। काश!!!
कोई भी चीज़ उन्हें पसंद आ जाती थी और हम ये महसूस कर लेते थे.... तो शुरू होता था हमारा आग्रह और उनकी ना नुकुर.... शायद वो संकोच करने लगी थीं..... आते समय ढेरों सामान लेकर आना.... और जाते समय ढेरों सामान खरीद कर रख जाना उनका सबसे बड़ा शौक था....
उनके होते हुए हम उन्हें उतना प्यार नही कर पाए जितना करना था...... अब उनके जाने के बाद उनकी याद बहुत आती है। यह अफसोस हमारे साथ जिंदगी भर रहेगा.... कि हमने लोगों के जाने के बाद उन्हें याद करना सीखा, साथ रह रहे लोगों को प्यार करना और जताना शायद नहीं सीख पाए.....
यूंही 😟😟
करीब छः साल से डायरी लिखने लगी हूँ..... डायरी क्या बस यूंही सा रोजाना मचा....बस दिनभर में क्या किया.... क्या महसूस किया... इमानदारी से इसे बता देती हूँ... कोई वाक्य विन्यास नहीं.... कोई भाषा का चमत्कार नहीं.. बस जो भी सोचती जाती हूँ लिखती जाती हूँ...... मेरी डायरी पढ़कर कोई मेरे बारे में क्या सोचेगा?
मैंने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं। जाने क्यों?
डायरी ही अब मुझे ऐसी लगने लगी है जो चुपचाप बिना कोई आर्ग्यूमेंट किए मेरी सारी कड़वी मीठी बातें सुनती रहती है.... कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करती....मेरी अच्छी सखी है ये.....
जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है
पर मैं बार बार सब भूल जाती हूं..... या शायद याद रखना ही नहीं चाहती... ..मेरे सबसे अच्छे मित्र वो हैं जिन्होंने इस बात का कभी बुरा न माना कि मैं उनका फोन क्यों नही उठाती? मैंने उनके मैसेज का जवाब क्यों नही दिया? यकीन मानिए वैसे भी वक्त के साथ साथ मैंने फोन पर बातें करना कम कर दिया है ज्यादातर बातें फोन, व्हाट्सएप पर ही हो जाती हैं। लेकिन कई बार यह भी नही हो पाता । मैं बहुत फोन फ्रेंडली कभी न रही...... पतिदेव की तरह घंटों लंबी लंबी बातें वैसे भी नही कर पाती। सुख दुख का बंटवारा फोन पर बेमानी सा लगता है। मैंने पिछले कई वर्षों में सबसे ज्यादा बातें खुद से की हैं।
फेसबुक पर बहुत ज्यादा लिखना पढ़ना भी. अब कभी कभी कोफ्त भरा और ऊबाऊ लगने लगा है......
इस छोटी सी जगह पर मैं जहां हूँ फेसबुक से इतर मेरे दोस्तों की संख्या बहुत कम है।अपनी शिक्षक सखियों के अलावा..... स्कूल के बाद उनसे भी मिलना यदा कदा हो पाता है। मेरा ज्यादातर वक्त खुद के साथ ही गुजरता है....अपने फोन.... अपनी किताबों या फिर अपनी नींदों के साथ...... सोना मेरा सबसे प्रिय टाइमपास है..... मैं बिना किसी तैयारी के कभी भी सो सकती हूँ....पर बेवजह बिस्तर पर लेट कर समय नहीं बिता सकती.....एकदम नींद से चूर होने पर ही अपनी कुर्सी से हटती हूँ..... पढने लिखने की किसी हद तक शौकीन होने के बावजूद आज तक मेरी अपनी कोई निजी स्टडी टेबल नहीं है..... मूलतः एक चित्रकार होने के बाद भी आज इस उम्र तक मैं अपना कोई स्टूडियो नहीं बना पाई जहाँ मैं इत्मीनान से अपने ईजल पर एकांत में मनचाहे चित्र बना सकूं.....अनगिनत ढेरों मनपसंद किताबों का संग्रह होने के बाद भी मेरे पास उन्हें सजा कर खूबसूरत ढंग से रखने के लिए कोई कोना या आलमारी नहीं है....इधर उधर, बिस्तर पर, टेबल पर कहीं भी किताबें मिल सकती हैं....पता नही दो सालों से कैसा समय है ,किताबें सिरहाने ,फ्रिज के ऊपर ,टेबल पर यूं ही धरी रह जाती हैं ,पत्रिकाओं के पेज तक नही पलटे जाते ... यह नहीं कि पापड़ ,चिप्स बनाने का समय नही मिलता लेकिन मैं आलू सिर्फ सब्जी बनाने के लिए ही खरीदती हूँ ।पेंटिंग करने के लिए मंगाई पेंट्स कलर किट धूल फांक रही..... फोन, फेसबुक ,वाट्सएप में भी रुचि खत्म हो रही..... यह भी नही कि पूजा पाठ ,अध्यात्म में रुचि बढ रही.... बस मन किसी बात में लग ही नही रहा... पौधों को पानी भी बस इसलिए डालती हूँ कि वह सूखें नही... कोई बागवानी का शौक नहीं पनप रहा...सिलाई, कढ़ाई, बुनाई सबका शौक पाले हुए हूँ.... पर एक दो दिनों में ही उकता जाती हूँ..... पता नहीं ये मेरे साथ ही हो रहा है या मेरी जैसी सब बूढ़ी लेडीज के साथ होता है.....वैसे 59-60 की उम्र ऐसी बूढ़ी भी नहीं होती...... बस यही इच्छा है कि सब ठीक ठाक से समय बीत जाए.... कठिन समय है पर बीत ही जाएगा.... भगवान् सब पर कृपा दृष्टि बनाए रखें........ जाने अभी कितनी यात्राएं शेष हैं, कितना कुछ कहना बाकी है। कितना कुछ पढा जाना बाकी है...
हंसते हुए भी आंखे भर आती है अपनी तो....
कोई तकलीफ थोड़े ही है....