लिखिए अपनी भाषा में

Sunday, May 2, 2021

यूंही 😟😟

करीब छः साल से डायरी लिखने लगी हूँ..... डायरी क्या बस यूंही सा रोजाना मचा....बस दिनभर में क्या किया.... क्या महसूस किया... इमानदारी से इसे बता देती हूँ... कोई वाक्य विन्यास नहीं.... कोई भाषा का चमत्कार नहीं.. बस जो भी सोचती जाती हूँ लिखती जाती हूँ...... मेरी डायरी पढ़कर कोई मेरे बारे में क्या सोचेगा?
मैंने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं। जाने क्यों?
डायरी ही अब मुझे ऐसी लगने लगी है जो चुपचाप बिना कोई आर्ग्यूमेंट किए मेरी सारी कड़वी मीठी बातें सुनती रहती है.... कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करती....मेरी अच्छी सखी है ये.....
जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है
पर मैं बार बार सब भूल जाती हूं..... या शायद याद रखना ही नहीं चाहती... ..मेरे सबसे अच्छे मित्र वो हैं जिन्होंने इस बात का कभी बुरा न माना कि मैं उनका फोन क्यों नही उठाती? मैंने उनके मैसेज का जवाब क्यों नही दिया? यकीन मानिए वैसे भी वक्त के साथ साथ मैंने फोन पर बातें करना कम कर दिया है ज्यादातर बातें फोन, व्हाट्सएप  पर ही हो जाती हैं। लेकिन कई बार यह भी नही हो पाता ।  मैं बहुत फोन फ्रेंडली कभी न रही...... पतिदेव की तरह घंटों लंबी लंबी बातें वैसे भी नही कर पाती। सुख दुख का बंटवारा फोन पर बेमानी सा लगता है। मैंने पिछले कई वर्षों में सबसे ज्यादा बातें खुद  से की हैं।
फेसबुक पर बहुत ज्यादा लिखना पढ़ना भी. अब कभी कभी कोफ्त भरा और ऊबाऊ लगने लगा है......
इस छोटी सी जगह पर   मैं जहां हूँ फेसबुक से इतर मेरे दोस्तों की संख्या बहुत कम है।अपनी शिक्षक सखियों के अलावा..... स्कूल के बाद उनसे भी मिलना यदा कदा हो पाता है। मेरा ज्यादातर वक्त खुद के साथ ही गुजरता है....अपने फोन.... अपनी किताबों या फिर अपनी नींदों के साथ...... सोना मेरा सबसे प्रिय टाइमपास है..... मैं बिना किसी तैयारी के कभी भी सो सकती हूँ....पर बेवजह बिस्तर पर लेट कर समय नहीं बिता सकती.....एकदम नींद से चूर होने पर ही अपनी कुर्सी से हटती हूँ..... पढने लिखने की किसी हद तक शौकीन होने के बावजूद आज तक मेरी अपनी कोई निजी स्टडी टेबल नहीं है..... मूलतः एक चित्रकार होने के बाद भी आज इस उम्र तक मैं अपना कोई स्टूडियो नहीं बना पाई जहाँ मैं इत्मीनान से अपने ईजल पर एकांत में मनचाहे चित्र बना सकूं.....अनगिनत ढेरों मनपसंद किताबों का संग्रह होने के बाद भी मेरे पास उन्हें सजा कर खूबसूरत ढंग से रखने के लिए कोई कोना या आलमारी नहीं है....इधर उधर, बिस्तर पर, टेबल पर कहीं भी किताबें मिल सकती हैं....पता नही दो सालों से कैसा समय है ,किताबें सिरहाने ,फ्रिज के ऊपर ,टेबल पर  यूं ही धरी रह जाती हैं ,पत्रिकाओं के पेज तक नही पलटे जाते ... यह नहीं कि पापड़ ,चिप्स बनाने का समय नही मिलता लेकिन मैं आलू सिर्फ सब्जी बनाने के लिए ही खरीदती हूँ ।पेंटिंग करने के लिए मंगाई पेंट्स कलर किट धूल फांक रही..... फोन, फेसबुक ,वाट्सएप में भी रुचि खत्म हो रही..... यह भी नही कि पूजा पाठ ,अध्यात्म में रुचि बढ रही.... बस मन किसी बात में लग ही नही रहा... पौधों को पानी भी बस इसलिए डालती हूँ कि वह सूखें नही... कोई बागवानी का शौक नहीं पनप रहा...सिलाई, कढ़ाई, बुनाई सबका शौक पाले हुए हूँ.... पर एक दो दिनों में ही उकता जाती हूँ..... पता नहीं ये मेरे साथ ही हो रहा है या मेरी जैसी सब बूढ़ी लेडीज के साथ होता है.....वैसे 59-60 की उम्र ऐसी बूढ़ी भी नहीं होती...... बस यही इच्छा है कि सब ठीक ठाक से समय बीत जाए.... कठिन समय है पर बीत ही जाएगा.... भगवान् सब पर कृपा दृष्टि बनाए रखें........ जाने अभी कितनी यात्राएं शेष हैं, कितना कुछ कहना बाकी है। कितना कुछ पढा जाना बाकी है...
हंसते हुए भी आंखे भर आती है अपनी तो....
कोई तकलीफ थोड़े ही है....

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