लिखिए अपनी भाषा में

Tuesday, December 27, 2011

अदम के गाँव की पगडंडी .......



                 दिखने में तो ये किसी भी साधारण गाँव का रास्ता लग सकता है पर  ये कोई साधारण रास्ता नहीं है........ये अदम के गाँव की पगडंडी है.......जिसके लिए उन्होंने लिखा था....... 
         फटे  कपड़ों में तन ढांके ,गुजरता हो  जहाँ कोई..
          समझ लेना वो पगडंडी अदम के गाँव जाती  है..... 
आज इस रास्ते पर सड़क बनाने का काम शुरू हो चुका है... डी. एम्.  श्री राम बहादुर साहब  की   पहल  से ही यह काम प्रारंभ हो सका है...पर अफ़सोस है कि अब  अदम जी उस सड़क पर  से कभी नहीं गुजरेंगे........वो बूढा बरगद आज भी चुपचाप  खामोश खड़ा अदम जी का रास्ता देख रहा है.......जिसका जिक्र उन्होंने अपनी रचनाओं में कितनी ही बार किया है..........

               अदम जी की रचनाओं के बारे में कुछ कहना शायद मुझ जैसे मामूली इंसान के लिए बहुत मुश्किल  है.....मुझे इतनी समझ नहीं....आज जब अदम जी जैसे व्यक्तित्व  के बारे   में लिखने बैठी हूँ तो समझ नहीं पा रही  की क्या और कहाँ से शुरू करूँ ??.... अदम जी से हमारी मुलाकात  शायद ८७ या ८८ के दौरान हुई...उसी समय उनकी एक  पुस्तक.....धरती की सतह पर ..प्रकाशित हुई थी...जिसने तहलका मचा दिया था....
                               अतुल भैया (कुंवर अतुल कुमार सिंह ,मंगल भवन, मनकापुर )के मंगल भवन में आयोजित ....कवि सम्मेलनों में और आई. टी. आई. में आयोजित कवि गोष्ठियों और कवि सम्मेलनों में उन्हें  बराबर सुना है और ह्रदय से सराहा  है ....
          मुझे याद है ......एक बार रात में ११ बजे अदम जी हमारे घर आये ...साथ में एक कवि मित्र भी थे...उस समय वे कैनवास की तलाश में हमारे पास आये थे .......चूंकि हम दोनों चित्रकार लोग हैं...तो रंग ब्रुश कैनवास ...हमारे पास आसानी से मिल सकता था.....भीष्म साहनी  जी के विशेष आग्रह ........पर दूसरे दिन सुबह ही ......उन्हें एक कविता पोस्टर प्रदर्शनी  में ...वो कैनवास भेजना था......उनकी एक बहुत प्रसिद्ध  ग़ज़ल .......उस पर लिखी जानी  थी.....रात भर  जाग कर मेरे पतिदेव ने वो कविता पोस्टर तैयार किया और भेजा.....
                     कई बार हमने घर में बैठ के इत्मिनान से उन्हें सुना है..और विभोर हुए हैं...ऐसा सौभाग्य बहुत कम मिलता है  ......मुझे बहुत ख़ुशी है  की ऐसे बहुत से अविस्मर्णीय अनुभवो की मैं भी   साक्षी रही हूँ.....
                   उनकी गजलें हर वर्ग के लोगों की जुबां पर हैं और इतने लम्बे अरसे पहले  कही जाने के बावजूद ......आज भी समसामयिक लगती हैं......उनका सच बात कहने का लहजा ऐसा तीखा  था  कि एक  बार जेल  तक जाने की नौबत आ गई थी...पर उनकी असीमित लोकप्रियता के कारण ऐसा संभव नहीं  हुआ.......ऐसी ही एक रचना के दो शेर जो मुझे बहुत पसंद हैं....
मैंने अदब से हाथ उठाया सलाम को ,
वो  समझे इस से खतरा है उनके  निजाम  को , 
चोरी न करें झूठ न बोलें तो क्या करें ?
चूल्हे पे क्या उसूल पकाएंगे शाम को?...
             उन्हें दुष्यंत और नागार्जुन के समकक्ष रखा जाता है....पर शायद बहुत कम लोग ही ये जानते होंगे , कि सिर्फ प्राइमरी तक की शिक्षा  थी उनकी ......शायद कक्षा ६ तक ,परिस्थितियों  ने इस से आगे पढ़ पाने की इजाजत  नहीं दी थी उन्हें .....पर साहित्य में कितनी गहरी पकड़ और पैनी पैठ थी उनकी ...इस से सभी  वाकिफ हैं.....
            दुष्यंत का वारिस .....गोंडा का कबीर  ...ऐसे कई नामों से विभूषित किया जाता है उन्हें...पर इस बात का तनिक भी गुमान नहीं था अदम जी को....... ऐसे ऐसे शेर कह जाना  जो सुन ने वाले को चीर  कर धर  दें ...पर उनके चेहरे  से जरा भी आभास नहीं होता था कि वे वाह वाह के लिए तरस रहे हैं.....जब कि आज ज्यादा तर कवि मंच लूट लेने के लिए इतने अभिनय .....और अदाएं दिखाते हैं कि बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता है..... पर बिना कोई दिखावा किये जब अदम जी शुरू होते थे ...........तो पूरे हाल में सन्नाटा हो जाता था.....कितनी बार ऐसा हुआ है कि ....जब अदम जी ने अपना पाठ शुरू किया है, ......लोगों ने दूसरे कवियों को उठने ही नहीं दिया.....कितनी ही बार सुनी हुई गजलें फिर फिर  ....सुनी जाती थीं.....चाहे  कितनी भी देर  हो जाये....लोग उन्हें सुनने के लिए बैठे रहते थे......

          पहली  दृष्टि में उनके व्यक्तित्व का कोई खास असर नहीं पड़ता  था (कम से कम मुझ पर तो नहीं पड़ा था.) सीधे सादे ग्रामीण वेश में  खिचडी  बालो  और छितरी मूछों वाले ...........कुरता ,धोती और बंडी  पहने ....बेहद विनम्रता  के साथ ..और .........कुछ कुछ हिचकते हुए बोलना....सभी पढ़े लिखों के बीच ....स्वयं को कम पढ़ा लिखा और छोटा बताना .........एक ऐसी  खासियत थी जिसकी कोई मिसाल नहीं.....पर उन्हें मंच पर देखना एक अनूठा  अनुभव था.....उनके एक एक शेर सीधे जाकर ....ह्रदय में धंस जाते थे.......सोचने   पर विवश  कर देते थे......
               उन्होंने अपनी जैसी पहचान बनाई........... और दिनों दिन उनके शेरों  में जैसा पैनापन बढ़ता गया.....और वही तेवर शुरू से अंत तक विद्द्मान   रहे ये बहुत बड़ी  बात है......उनके पास न कोई डायरी थी न ही वे कुछ लिख  कर लाते   थे.....पर उन्हें सब जुबानी याद रहता था ...यहाँ तक कि ...
मैं चमारों  की गली में ले चलूँगा आपको ...........
      जैसी बेहद लम्बी कविता  भी उन्हें पूरी कंठस्थ थी....और जिस तरह वे ठन्डे मस्तिष्क के साथ गजलें कहते थे.............कि सुनने वालो की शिराओ में खून उबलने लगता था......हर व्यक्ति  उन शेरों से .....खुद को जुड़ा हुआ महसूस करता था.......
         उनकी कवितायें और गजलें ..वाह वाह नहीं करवातीं   बल्कि  वाह और आह का अंतर   भुला देती हैं......सुन कर कुछ देर के लिए निस्तब्धता छा जाती है...... 

            इधर  काफी  दिनों  से  अदम  जी  मुलाकात  नहीं  हुई  थी ....हाँ ये जरूर मालूम होता रहा की वे बीमार चल रहे हैं.....बीमारी इतनी ज्यादा बढ़ जाएगी इसका आभास नहीं था.......अचानक सुनाई देना कि अदम जी नहीं रहे......बहुत कष्ट पंहुचा गया......मेरी बहुत इच्छा थी कि..... मैं भी अदम जी के प्रिय गाँव में एक बार जरूर जाऊं .....जहाँ वे जीवन पर्यंत रहते रहे......जब कि थोडा सा भी चर्चित होते ही सभी शहर की तरफ   भागते   हैं.....पर   उन्होंने ऐसा नहीं किया......खैर.....
              मेरे पतिदेव अभी पिछले रविवार को अतुल भैया के साथ  उनके घर गए ..और  उनसे जुडी कुछ  यादों  के चित्र .......मेरे लिए लेकर आये.....उनका घर , उनकी पत्नी ,उनके पुत्र  के चित्र .......उन्हें मिले हुए ढेरों इनाम, उनका प्रिय बरगद ........और उनके घर तक जाने वाली पगडंडी.......सभी के चित्र ......अब मेरे संकलन में हैं.......जो मैं आप सभी से बांटना चाहती हूँ.......


            अदम जी ने   फलां शायर या कवि की जगह ली ..............या फलां शायर अदम जी की जगह लेगा .........ये कहना बेमानी है.....कोई किसी की जगह नहीं लेता.........हर व्यक्ति अपनी जगह स्वयं बनाता है.....अदम जी की जगह कोई नहीं ले सकता...........अदम जी भले ही आज सशरीर हमारे बीच नहीं हैं.........पर वे नहीं रहे.......ऐसा नहीं कहा जा सकता  .....वे अपनी रचनाओं में अमर हैं........पर ये सोच कर जरूर कष्ट  होता   है.....अब इतनी सशक्त भाषा में कौन ललकारेगा??...........
 सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरखान को.......


अदम जी को विनम्र श्रधांजलि .......

Sunday, December 11, 2011

अफ़सोस है यार .(!!!!!!!).

                 



                        कभी कभी लगता है ....कि मेरे बारे में सभी यही सोचते होंगे कि मेरे पास सिवा पुरानी यादो में घिरे रहने के और  कोई काम नहीं.....?....तब  लगता है कि शायद कहीं   ये सच भी है ......जब इतनी अच्छी और खुशनुमा यादें जुडी हों आपके साथ........फिर इधर उधर क्यों देखें ?..मन ही मन में उन मीठी यादों की..... जुगाली करते रहना बहुत पसंद है मुझे..........पर एक अफ़सोस सा है मन में.......मुझे लड़ना नहीं आया आजतक.......
                    एक बेहद साधारण इंसान की तरह जीवन जिया है मैंने ......न काहू से दोस्ती न काहू से बैर  ......वाला सिद्धांत ...रहा  है अपना तो.........इसमें जरा बदलाव करूँ  तो.....ये कह सकती हूँ......सब कोऊ से दोस्ती न काहू से बैर.....कह सकती हूँ......मुझे याद नहीं कभी किसी से मेरी लड़ाई हुई हो............हाँ लड़ाईयां देखी हैं...... बहुत विकट रूप से लोगो को ........लड़कियों को झगड़ते देखा है.....मारपीट करते देखा है...  अपने बच्चों का झगडा निपटाया है......स्कूल में रोज ही इस परिस्थिति से आमना सामना होता है.......पर कभी खुद ......किसी से झगड़ नहीं सकी..........तमन्ना ही रह गई.....कोई बहन  नहीं जिसके साथ लड़ाई हो.....हाँ भाई जरूर लड़ता था .........पर उस समय मुझे ये कह कर चुप करा दिया जाता था.....बेटा तुम बड़ी हो न...जाने दो लड़ाई नहीं करते........वो बड़े पन का अहसास कभी नहीं गया..........सहेलियों से जब कुछ अनबन होने की नौबत आई .....तो मेरा अंतर मुखी स्वभाव सामने आगया.......चुप रह जाने की आदत........फिर शादी हुई.......तीन तीन ननदें.....पर कोई झगडालू  नहीं....मेरी सास जी......  ....सीधे पन और भोले पन की मिसाल.........शायद परंपरागत  ससुराल में ज्यादा समय रहना पड़ता तो.....कुछ लड़ने का तरीका मैं भी सीख लेती....लड़ाइयाँ    हुईं    हैं पर मुझसे       किसी की लड़ाई नहीं हुई........ वहां पर भी ऐसा नहीं हो सका......पतिदेव मेरे स्वयं के चुने हुए हैं.....तो उनमे कोई कमी निकालने का मुझे कोई हक नहीं.....पर मुझे लगता है.....कि सीधे पन और सज्जनता   की अगर कोई हद होती है तो वो मेरे पतिदेव पर आकर ख़त्म होती है.......कभी किसी के मुंह  से उनकी बुराई नहीं सुनी मैंने.......( कोई करता तो शायद मैं उसका मुंह नोच लेती..उस से लड़ लेती.......पर यहाँ भी मुझे निराशा ही मिली है.......)हाँ पतिदेव से .....किसी बात     पर असहमत    होने पर हमेशा    की तरह ..........एक  दो दिन     बात    चीत    बंद    बस  ........... ...लड़ाई ...    फिर भी नहीं........फिर सुलह   ...........(मैं उनकी बात से पूरी तरह सहमत होती हूँ    और वो मेरी बात से.......सो  .ऐसे मौके  बहुत कम आते हैं...)......


                           जानपहचान की कुछ महिलाओं को ......सब्जी वाले...काम वाली बाई ..सफाई करने वाली....हर एक से झांव झांव करते देखा है.......पर खुद कभी हिम्मत नहीं कर पाई ......कभी कभी सोचती हूँ......कैसे कमर  पर हाथ रख कर ......चीख चीख कर .......हाथ नचा नचा कर लड़ लेते हैं लोग......हे भगवान्..............अपने स्कूल स्टाफ के बीच में कभी कभी बहुत गरमागरम वार्तालाप भी देखती हूँ.................पर अफ़सोस है कि वहां भी अभी तक ऐसा मौका नहीं मिला मुझे.......ट्रेन में सीट के लिए.........दूकान में सामान के लिए.....दूध वाले से दूध में पानी मिलाने के लिए.....ये सब कुछ बातें ऐसी हैं...जिनका कोई अंत नहीं............पर मुझे आज  तक अवसर नहीं मिला......एक अध्यापिका  होने के कारण....हमेशा से एक आदर वाले भाव से ही.... सभी मिलते हैं......संतोष की बात है अभी भी ये भावना बची हुई है कुछ लोगों  में......
                       एक दूसरे की मिटटी पलीद करना और .............एक दूसरे की माँ बहनों के साथ अपने नजदीकी सम्बन्ध बना लेना .........तो बहुत मामूली बात है............पुराने   गड़े  मुर्दे  खोदे    जाते हैं....जाने कहाँ कहाँ की बातें निकाली जाती हैं.......हे भगवान्............खैर और इस हद तक लड़ने के बाद ......फिर कैसे बात कर लेते हैं उनसे.....भगवान् ही जानता है......... मेरा झगडा इस हद तक किसी से हो जाये ........तो शायद मैं जीवन भर उस व्यक्ति से बात न कर सकूं....उसकी शक्ल तक न देख सकूं............. पर भगवान् की बड़ी कृपा है......आज तक मैं इस सुख से वंचित हूँ......और शायद......ये मेरा सौभाग्य है.......भगवान् से यही प्रार्थना  है कि वे  मुझे ये सुख कभी न प्रदान करें......आमीन   ......

Tuesday, December 6, 2011

कैसे हमदम कैसे दोस्त ...

                   
                             कल  अपने कॉलेज  के    मित्र गणेशन की शिकायत पर  कि........कुछ मित्र हमारे संदेशों का जवाब क्यों  नहीं देते??.......बहुत देर तक सोचती रही ...............कि आखिर ऐसा क्या हो जाता है..........कि हम संदेशों का जवाब तक देने में कतराते हैं???........... सिर्फ हाँ....हूँ....या फिर झूठे ही हाल चाल पूछ लेने में किसी का क्या जाता है??.......ये महज एक औपचारिकता ही तो है......हमारे हाल कैसे भी हों....उसके लिए कोई क्या कर लेगा...........हम जैसे हैं वैसे ही रहेंगे....न कोई किसी को कुछ देता है न ...न कोई किसी से कुछ लेता है.....फिर??..........पर सिर्फ एक औपचारिकता निभाने से ..........अगर  किसी को कुछ ख़ुशी या तसल्ली मिलती है .......तो क्या हम उतना भी उसे नहीं दे सकते??.....   व्यस्त  रहना अच्छी बात है......पर इतना व्यस्त रहना??......
                           इस रफ़्तार  भरी ज़िन्दगी में......हम कितनी कोरी  ज़िन्दगी जीने के आदी हो गए हैं......कि उन रिश्तों को भी नहीं निभा पाते.......जिनके बिना हमारी ज़िन्दगी अधूरी है....कभी जगह की दूरी.....कभी दिलों की कडवाहट .......हमारे रिश्तों में एक ऐसी दरार डाल  देती है कि उन रिश्तों की अहमियत का अहसास ........हमें या तो किसी अपने की मृत्यु  के बाद होता है या फिर रिश्तों के टूटने   पर.......

                               अभी कुछ दिनों पूर्व मैंने......प्लान   बनाया .....की चाहे फेसबुक  या अन्य किसी माध्यम से भी ........अपने पुराने मित्रो को खोजा जाये......और मैं इस प्रयास में सफल भी हुई......एक दूसरे के माध्यम से ..........कई पुराने  मित्र......जिनकी स्मृतियाँ ....कहीं बहुत गहरे  दबी पड़ी थी.....पुनः उभर आईं......और ये इतना संतुष्टि दायक प्रकरण रहा.....जिसकी मुझे उम्मीद भी नहीं थी.....कॉलेज छोड़े हुए लगभग २२ या २३ वर्ष बीत चुके हैं........इस दरम्यान....नदियों में कितना पानी बह चुका है.....कितना समय बदल गया  है.........परिस्थितियां  बदल गई हैं.......हम सभी लगभग आधी सदी जी चुके हैं......सबके बालों में चाँदी  के तार चमकने लगे हैं........सभी के बच्चे बड़े हो गए हैं.............या उस उम्र में हैं.....जब हम सभी मित्रों की दोस्ती शुरू  हुई थी......पर अभी जब उन सबसे मुलाकात  हुई....फ़ोन पर ही सही......( सचमुच अभी तक ज्यादातर को इतने सालों  से देखा    नहीं हमने  ....अभी तक रूबरू  नहीं हुए...)...पर  लगा ही नहीं कि हम इतने अरसे बाद मिल रहे हैं...वही उत्साह.....वही उमंग.......बहुत अच्छा लगता है सबसे बात करके.......
              पतिदेव ने भी अपने कई मित्रों को ढूंढ  निकला......और बातचीत का ऐसा समां बंधा कि लगता ही नहीं ....अब सब दादा  नाना बनने  की उम्र में पहुच चुके हैं. .......... कईयों  की बहुए आ चुकी हैं...........दामाद आ चुके  हैं.........पर  ......वही चुहलबाजियाँ .....वही हंसी मजाक.......वही पुरानी मस्ती  भरी बातें........अपने कॉलेज टाइम  में की हुई बदमाशियां..और शरारतें.....जिन बातों  के लिए आज जब हम अपने बच्चों को डांटते  हैं .......तो ये जरूर याद आता  है की ये सब तो हम भी किया करते थे........पर इन बातों के साथ साथ अब हमारे बातें करने  के कुछ टॉपिक बदल गए हैं......अब हमारी बातो में हमारे बच्चे भी शामिल हैं.........वे क्या करते हैं...........उनके लिए क्या सोचा है......उनकी शादी   कहाँ करनी है??.....लड़का देखा या नही.....बेटो की बाते बहुओं  की बातें.........दामादों की बातें.............घर बनवाया या नहीं........रिटायर  होने  के बाद क्या करना  है......?..... वगैरा वगैरा भी शामिल हैं........ देखते देखते कितना समय बीत गया है.......लगता है अभी तो नौकरी शुरू की थी.....अब रिटायर  भी होने जा रहे हैं........
     
                             पतिदेव के बहुत खास मित्र राजीव दा  तो लगता ही नहीं  ..........कि कभी बड़े होंगे .....जबकि वे दो विवाहिता बेटियों के पिता हैं.....आज भी ...........उतने ही जीवंत और हंसमुख........उनकी शरारतों  से पूरा कॉलेज और हॉस्टल परेशान रहता था......कुछ पुराने     मित्र     जो उनके    साथ    होस्टल    में थे  .......बुरी    तरह   त्रस्त   रहते थे  उनकी  हरकतों  से ..........होस्टल में हुई किसी भी शरारत की शुरुआत  उन्ही से होती थी.......हर खुराफात    की जड़    में उनका हाथ     जरूरी था.........इस    बात    को लेकर   कई बार मित्रो से ......उनकी लड़ाई नाराज़गी   भी हो जाती थी पर वे  बाज  नहीं  आते  थे ..........मेरे पतिदेव स्वयं भुक्त भोगी हैं...............और आज भी राजीव दा  मौका मिलने पर ....किसी को भी छोड़ने वाले नहीं है...........जाने कहाँ कहाँ की..... खुराफातें सूझती हैं उनको........और मजे कि बात ये है ...........कि मेरे पतिदेव भी खूब  रूचि लेते हैं उनके साथ.........राजीव दा एक प्रतिष्ठित   अखबार    में चीफ    ग्राफिक आर्टिस्ट   हैं...और साथ ही बहुत ही अच्छे कार्टूनिस्ट   भी   ..........तो     कभी   कभी   उस   विधा   का प्रयोग   वो   ..मेरे   पतिदेव  के चित्रों का कार्टून बनाने में करते  हैं......अलग अलग लोगो के शरीर पर .......इनके मुंह     का चित्र...या फिर  किसी टॉपिक पर इन्हें माडल  बना कर ...........इनके कार्टून अक्सर भेजते रहते हैं......... वो चित्र बना कर मुझे ई  मेल  करते हैं ............और .  जब तक  हम   वो चित्र देख न लें  ...तब तक .....कई बार उनका फोन आ  चुकता है .........देखो हमने कुछ भेजा है..........फिर हम सबके खूब ठहाके लगते हैं.........कुछ कोड वर्ड      में इनलोगों    ने एक दूसरे के नाम बना रखे  हैं....जो एक दूसरे  को    पुकारने   में प्रयोग किये जाते हैं.... ........कई बार  ऐसा हुआ है कि आधी रात में राजीव दा का फोन   आया  है ....कि कोई बढ़िया  जोक या मेसेज  भेजो.....ट्रेन में हैं.......बोर हो रहे हैं........और हमने मेसेज भेजा है...........और भेज भेज कर उन्हें  भी   खिझा दिया है............कभी कभी ....चलो  यार फलां का नंबर ..... मिलाओ  उसको गरियाया जाये.....इस तरह  की बातें सुनकर .........कभी कभी मैं ही इनलोगों को टोकती हूँ ........कि आप लोग बड़े कब होंगे  ??........ये सब क्या है........पर  मित्रों के साथ ........एक ऐसा ही माहौल बन जाता है................कि अपनी  वही पुरानी ज़िन्दगी जीने का मन होता है..........वो चुलबुला पन वो मस्ती.......मधुबन (कोलेज  की  कैंटीन )  में जा   कर चाय   पीना   ........टूर   में किये हुए   गुल गपाड़े ..........तब हम सभी .....इन्द्रा भी....(राजीव दा की पत्नी )  उनके बच्चे ..........हमारे बच्चे .....सभी कॉलेज  की बातें सुनकर खूब एन्जॉय करते हैं.............चूंकि हम दोनों पति पत्नी एक ही कॉलेज  से पढ़े हुए हैं..............और  ज्यादातर......पुराने मित्रों को हम दोनों ही जानते हैं........तो ये आनंद  और दुगना हो जाता है......


           याद आता है......मेरी एक बहुत प्यारी सहेली जो अब हमारे बीच नहीं रही.....राजश्री  सिन्हा......कभी हम दोनों मिल के ये सोचा करते थे......जब हम लोग बुढ्ढे हो जायेंगे... ......तो सब फाइन आर्ट्स  के दोस्तों को इकठ्ठा करेंगे...और तीर्थयात्रा पर चलेंगे . एक बार हम लोगो ने कुछ स्केचेस भी बनाये थे कि जब हम लोग बुढ्ढे होंगे तो कैसे दिखेंगे.......काश......

          और भी कई दोस्तों से बातें होती रहती हैं.........अच्छा लगता है .........सब अच्छी अच्छी जगहों पर कुछ न कुछ बढ़िया काम कर रहे हैं.........जिनसे बात की और .........उन्होंने उतना ही अच्छा रेस्पोंस दिया तो  खुद को भी अच्छा लगा..................पर कुछ लोग ऐसे भी हैं...जो बहुत ज्यादा व्यस्त हैं.......या शायद  व्यस्त दिखने का दिखावा करते हैं पता नहीं.........इंसान कितना भी व्यस्त हो.......पर कुछ पल ऐसे जरूर निकाल सकता है.........जब वो सिर्फ अपने लिए जिए......सारी टेंशन को भुला कर.... ......और वो टेंशन सिर्फ पुराने दोस्त ही दूर कर सकते हैं......अब इस उम्र में .........वे आपकी कोई बुराई नहीं करेंगे...न ही आपकी किसी लड़की .....या लड़के से दोस्ती देख कर जलेंगे.....न ही किसी खास अध्यापक को .....आपका पक्ष लेने के  लिए कोसेंगे...................अब ये बहाना  भी नहीं बनाया जा सकता कि .......आने जाने का टाइम नहीं है.......क्यों कि हर हाथ में फोन है.....और कभी भी ..........कहीं भी बात की जा सकती है.........पर इसके लिए भी इच्छा होनी चाहिए.....पर कुछ खास मित्रो का व्यवहार  देख कर ......यही महसूस हुआ.....कि वे या तो खुद को बहुत बड़ा समझते हैं ......या हमको बहुत छोटा.........जो भी हो.......


               इसी  से  इतनी  उम्र  और अनुभव    के  बाद  मेरा  तो  यही  मानना    है  कि  जो  प्रेम   से  बात  करे  ..उसे  वैसे  जवाब  दो .....नहीं  तो  कोई  किसी  को  क्या  देता  है ......जब  तुम   किसी  से  प्रेम  से  बोल   भी  नहीं  सकते  ....तो और क्या कर सकते हो?...........जिनके  साथ  जीवन  के  सबसे  अच्छे  ९  ...१०  साल   बिताये   हैं ...उनको  सिर्फ  जवाब   देने   में  इतनी  तकलीफ  ???...तो  जाओ .....अपना  काम  करो ........यहाँ  किसके  पास  फुर्सत  है ....है  न ......मस्त   रहो ......

Friday, December 2, 2011

मेरी प्रिय किताबें और मैं.....

                            




                     मुझे किताबों से अच्छा  कोई गिफ्ट नहीं लगता ........आज  ही नहीं बचपन से ही किताबो के प्रति जो मेरा प्रेम भाव बना हुआ है..........(बेशक कोर्स की किताबों को छोड़  कर ) वो आज भी वैसे ही बरकरार है......किताबों को देख कर ............मैं खुद को रोक ही नहीं पाती..............अगर मुझसे पूछा जाये .............जीवन  में सबसे सुखद क्षण  कौन से होंगे  आपके लिए.?? .......तो मैं यही कहूँगी.....छुट्टी का दिन......साफ़ स्वच्छ बिस्तर......हाथ में चाय से भरा  मेरा मनपसंद बड़ा मग  ...जो मेरे बेटे ने मुझे गिफ्ट किया है......(जिस पर लिखा है ..यू आर द  बेस्ट मदर .).......और  मेरे मनपसंद  साहित्यकार.........(जिनकी लिस्ट बहुत लम्बी है ) की खूब बढ़िया किताब... ......नहाने धोने और खाने की कोई जल्दी नहीं........  इस से ज्यादा बढ़िया दिन मेरे लिए और कोई नहीं हो सकता ...........


                           इधर बहुत दिनों से पेंडिंग   पड़ा हुआ काम .....अपनी किताबो की आलमारी साफ़ करना....आखिर इस दशहरा और दीवाली की छुट्टियों में  हमने  निबटा ही डाला.......इतनी सारी किताबो की साजसंभाल  ...सचमुच  एक बड़ा भारी काम है......सारी किताबों को निकाल कर धूप दिखाना....सफाई से पोंछ कर कटी फटी जगहों को चिपकाना  ........कहीं जरूरत हो तो जिल्द चढ़ाना.....बहुत दिल कडा करके कुछ ऐसी किताबें .......जो सचमुच एक कबाड़  ही बन चुकी थीं उन्हें हटाना....(मैं मानती हूँ कि किताबें कभी भी कबाड़ नहीं हो सकती )पर सचमुच कुछ इस हाल में आ चुकी थी कि जिनके पन्ने छू भर लेने से मिटटी में मिल जाने को आतुर थे.....तो उन्हें मृत ही घोषित कर दिया हमने........बहुत  सारी  ऐसी पत्रिकाएँ ......जिनकी अब कोई आवश्यकता नहीं रही....बहुत सी अखबारों की कतरनें........पुराने अखबार......जो पता नहीं किस कारण से अभी तक संभाल कर रक्खे  गए थे.....उनको पूरा खोल खोल कर देखना कि.... क्या पता कुछ ऐसा निकल ही आये...जो जरूरी हो.......पापा जी के पुराने बक्से में भी ऐसा बहुत कुछ हुआ करता था.....पापा जी की डायरियां........ उनके लिखे हुए नोट्स.........कुछ छोटे छोटे  संस्मरण.........कोई खास आर्टिकल.......कुछ विशेष.......लेख.......जो कभी काम नहीं आ सके   .....पुरानी पत्रिकाओं से काट कर निकाले हुए.....कविताओं के संकलन.........मम्मी कितना नाराज होती थी........कि क्या ये बेमतलब का बवाल....... काट काट कर इकठ्ठा करते रहते हैं.....तो पापा जी उनको यही कहते थे देखना ये सब मेरी बेटी संभाल के रखेगी........मुझे बहुत दुःख है .....पापा जी ....कि........... मैं नहीं संभाल पाई उन्हें...... अब अपना ही इकठ्ठा किया हुआ.........देख के लगता है कि क्यों जोड़ रही हूँ ये सब???...कौन पढ़ेगा??.........फिर    भी  बटोरती  ही  जा  रही  हूँ ........
                 कितनी ही किताबें   ऐसी निकल आई .........जिन्हें एक अरसे बाद देखने से ये महसूस हो रहा है..... कि वे मेरे लिए बिलकुल नई  हैं ...फिर  से उन्हें पढने में वैसा   ही आनंद  आएगा ...........अभी २५ सितम्बर को पतिदेव  से उपहार में मिली १२ किताबो में से ४ किताबें  भी अभी नहीं पूरी नहीं पढ़ पाई हूँ.........

               मैं क्यों पढ़ती हूँ ?? ....या बिना पढ़े क्यों नहीं रह पाती हूँ??..या हर समय क्यों पढ़ती रहती हूँ ??........... ये मेरे लिए बहुत विकट प्रश्न है..........मैं कुछ भी पढ़ सकती हूँ.....अगर पढने के लिए कुछ नहीं है तो पंचांग और रेलवे टाइम टेबल  से लेकर फ़ोन डाइरेक्टरी  तक ....झाडू लगते वक़्त कूड़े में पड़े चिरकुट  तक  सब कुछ  पढ़ लेती हूँ......और मजे की बात है सबमे कुछ न कुछ अच्छा मिल ही जाता है....अभी मम्मी के नहीं रहने पर जो उनके लिए पूजा इत्यादि  हुई थी....उस वक़्त पूजा के लिए कपूर जिस पुडिया में लपेट कर लाया गया था......वो पुडिया संयोग वश मैंने ही खोली........और आदतन उसमे .....लिखी हुई कुछ पंक्तियाँ पढने का लोभ ......नहीं संवरण कर पाई.....और मुझे देख कर बड़ी ही हैरत और दुःख हुआ...कि वे पंक्तियाँ किसी ...बच्चे ने  अपनी माँ के लिए लिखी थी...........शायद किसी डायरी का पन्ना था वो.......उस माँ के लिए जो शायद घर छोड़ के चली गई थी या दुनिया छोड़ के ........ये साफ़ नहीं था...पर उस बच्चे का पूरा दुःख बयां हो  रहा था........वो पृष्ठ आज भी मेरे पास सुरक्षित है........हम सभी मम्मी के लिए  दुखित थे......उसमे उस पृष्ठ  ने जैसे   मरहम का काम किया.......

                      अपने यहाँ की घरेलू सेविका  सोना को देखती हूँ .......जो एक अक्षर भी नहीं पढ़ सकती.......तो यही सोचती हूँ की उसे क्या बिलकुल भी दुःख नहीं होता होगा ??/.........इतनी रंगबिरंगी सुन्दर पुस्तकें देख कर उसमे लिखे हुए शब्दों को देख कर ..........कि आखिर उनमे  ऐसा क्या लिखा होगा??.........उसे कोई उत्सुकता  नहीं जगती होगी???.................मुझे बहुत हैरत और दुःख हुआ.............जब उसने मुझसे पूछा कि आखिर मैं इतनी बड़ी बड़ी पेंटिंग्स क्यों बनाती हूँ और उनका उपयोग क्या है?...........मैं समझ नहीं पाई कि... उसे क्या उत्तर दूं ???........इतनी सारी किताबें क्यों खरीदती हूँ और ........जब उन सब  किताबों की पढ़ लिया गया है .......तो बजाये  रद्दी वाले को बेच देने के इन्हें आलमारी क्यों सजा के रखा गया है????.......अब इस तरह की बात करने वाले के प्रश्नों का कोई उत्तर ........समझ में आता है क्या????..सिवा दांत  पीस के रह जाने  के..........या फिर अपना सर पीट लेने के......