कल अपने कॉलेज के मित्र गणेशन की शिकायत पर कि........कुछ मित्र हमारे संदेशों का जवाब क्यों नहीं देते??.......बहुत देर तक सोचती रही ...............कि आखिर ऐसा क्या हो जाता है..........कि हम संदेशों का जवाब तक देने में कतराते हैं???........... सिर्फ हाँ....हूँ....या फिर झूठे ही हाल चाल पूछ लेने में किसी का क्या जाता है??.......ये महज एक औपचारिकता ही तो है......हमारे हाल कैसे भी हों....उसके लिए कोई क्या कर लेगा...........हम जैसे हैं वैसे ही रहेंगे....न कोई किसी को कुछ देता है न ...न कोई किसी से कुछ लेता है.....फिर??..........पर सिर्फ एक औपचारिकता निभाने से ..........अगर किसी को कुछ ख़ुशी या तसल्ली मिलती है .......तो क्या हम उतना भी उसे नहीं दे सकते??..... व्यस्त रहना अच्छी बात है......पर इतना व्यस्त रहना??......
इस रफ़्तार भरी ज़िन्दगी में......हम कितनी कोरी ज़िन्दगी जीने के आदी हो गए हैं......कि उन रिश्तों को भी नहीं निभा पाते.......जिनके बिना हमारी ज़िन्दगी अधूरी है....कभी जगह की दूरी.....कभी दिलों की कडवाहट .......हमारे रिश्तों में एक ऐसी दरार डाल देती है कि उन रिश्तों की अहमियत का अहसास ........हमें या तो किसी अपने की मृत्यु के बाद होता है या फिर रिश्तों के टूटने पर.......
अभी कुछ दिनों पूर्व मैंने......प्लान बनाया .....की चाहे फेसबुक या अन्य किसी माध्यम से भी ........अपने पुराने मित्रो को खोजा जाये......और मैं इस प्रयास में सफल भी हुई......एक दूसरे के माध्यम से ..........कई पुराने मित्र......जिनकी स्मृतियाँ ....कहीं बहुत गहरे दबी पड़ी थी.....पुनः उभर आईं......और ये इतना संतुष्टि दायक प्रकरण रहा.....जिसकी मुझे उम्मीद भी नहीं थी.....कॉलेज छोड़े हुए लगभग २२ या २३ वर्ष बीत चुके हैं........इस दरम्यान....नदियों में कितना पानी बह चुका है.....कितना समय बदल गया है.........परिस्थितियां बदल गई हैं.......हम सभी लगभग आधी सदी जी चुके हैं......सबके बालों में चाँदी के तार चमकने लगे हैं........सभी के बच्चे बड़े हो गए हैं.............या उस उम्र में हैं.....जब हम सभी मित्रों की दोस्ती शुरू हुई थी......पर अभी जब उन सबसे मुलाकात हुई....फ़ोन पर ही सही......( सचमुच अभी तक ज्यादातर को इतने सालों से देखा नहीं हमने ....अभी तक रूबरू नहीं हुए...)...पर लगा ही नहीं कि हम इतने अरसे बाद मिल रहे हैं...वही उत्साह.....वही उमंग.......बहुत अच्छा लगता है सबसे बात करके.......
पतिदेव ने भी अपने कई मित्रों को ढूंढ निकला......और बातचीत का ऐसा समां बंधा कि लगता ही नहीं ....अब सब दादा नाना बनने की उम्र में पहुच चुके हैं. .......... कईयों की बहुए आ चुकी हैं...........दामाद आ चुके हैं.........पर ......वही चुहलबाजियाँ .....वही हंसी मजाक.......वही पुरानी मस्ती भरी बातें........अपने कॉलेज टाइम में की हुई बदमाशियां..और शरारतें.....जिन बातों के लिए आज जब हम अपने बच्चों को डांटते हैं .......तो ये जरूर याद आता है की ये सब तो हम भी किया करते थे........पर इन बातों के साथ साथ अब हमारे बातें करने के कुछ टॉपिक बदल गए हैं......अब हमारी बातो में हमारे बच्चे भी शामिल हैं.........वे क्या करते हैं...........उनके लिए क्या सोचा है......उनकी शादी कहाँ करनी है??.....लड़का देखा या नही.....बेटो की बाते बहुओं की बातें.........दामादों की बातें.............घर बनवाया या नहीं........रिटायर होने के बाद क्या करना है......?..... वगैरा वगैरा भी शामिल हैं........ देखते देखते कितना समय बीत गया है.......लगता है अभी तो नौकरी शुरू की थी.....अब रिटायर भी होने जा रहे हैं........
पतिदेव के बहुत खास मित्र राजीव दा तो लगता ही नहीं ..........कि कभी बड़े होंगे .....जबकि वे दो विवाहिता बेटियों के पिता हैं.....आज भी ...........उतने ही जीवंत और हंसमुख........उनकी शरारतों से पूरा कॉलेज और हॉस्टल परेशान रहता था......कुछ पुराने मित्र जो उनके साथ होस्टल में थे .......बुरी तरह त्रस्त रहते थे उनकी हरकतों से ..........होस्टल में हुई किसी भी शरारत की शुरुआत उन्ही से होती थी.......हर खुराफात की जड़ में उनका हाथ जरूरी था.........इस बात को लेकर कई बार मित्रो से ......उनकी लड़ाई नाराज़गी भी हो जाती थी पर वे बाज नहीं आते थे ..........मेरे पतिदेव स्वयं भुक्त भोगी हैं...............और आज भी राजीव दा मौका मिलने पर ....किसी को भी छोड़ने वाले नहीं है...........जाने कहाँ कहाँ की..... खुराफातें सूझती हैं उनको........और मजे कि बात ये है ...........कि मेरे पतिदेव भी खूब रूचि लेते हैं उनके साथ.........राजीव दा एक प्रतिष्ठित अखबार में चीफ ग्राफिक आर्टिस्ट हैं...और साथ ही बहुत ही अच्छे कार्टूनिस्ट भी ..........तो कभी कभी उस विधा का प्रयोग वो ..मेरे पतिदेव के चित्रों का कार्टून बनाने में करते हैं......अलग अलग लोगो के शरीर पर .......इनके मुंह का चित्र...या फिर किसी टॉपिक पर इन्हें माडल बना कर ...........इनके कार्टून अक्सर भेजते रहते हैं......... वो चित्र बना कर मुझे ई मेल करते हैं ............और . जब तक हम वो चित्र देख न लें ...तब तक .....कई बार उनका फोन आ चुकता है .........देखो हमने कुछ भेजा है..........फिर हम सबके खूब ठहाके लगते हैं.........कुछ कोड वर्ड में इनलोगों ने एक दूसरे के नाम बना रखे हैं....जो एक दूसरे को पुकारने में प्रयोग किये जाते हैं.... ........कई बार ऐसा हुआ है कि आधी रात में राजीव दा का फोन आया है ....कि कोई बढ़िया जोक या मेसेज भेजो.....ट्रेन में हैं.......बोर हो रहे हैं........और हमने मेसेज भेजा है...........और भेज भेज कर उन्हें भी खिझा दिया है............कभी कभी ....चलो यार फलां का नंबर ..... मिलाओ उसको गरियाया जाये.....इस तरह की बातें सुनकर .........कभी कभी मैं ही इनलोगों को टोकती हूँ ........कि आप लोग बड़े कब होंगे ??........ये सब क्या है........पर मित्रों के साथ ........एक ऐसा ही माहौल बन जाता है................कि अपनी वही पुरानी ज़िन्दगी जीने का मन होता है..........वो चुलबुला पन वो मस्ती.......मधुबन (कोलेज की कैंटीन ) में जा कर चाय पीना ........टूर में किये हुए गुल गपाड़े ..........तब हम सभी .....इन्द्रा भी....(राजीव दा की पत्नी ) उनके बच्चे ..........हमारे बच्चे .....सभी कॉलेज की बातें सुनकर खूब एन्जॉय करते हैं.............चूंकि हम दोनों पति पत्नी एक ही कॉलेज से पढ़े हुए हैं..............और ज्यादातर......पुराने मित्रों को हम दोनों ही जानते हैं........तो ये आनंद और दुगना हो जाता है......
याद आता है......मेरी एक बहुत प्यारी सहेली जो अब हमारे बीच नहीं रही.....राजश्री सिन्हा......कभी हम दोनों मिल के ये सोचा करते थे......जब हम लोग बुढ्ढे हो जायेंगे... ......तो सब फाइन आर्ट्स के दोस्तों को इकठ्ठा करेंगे...और तीर्थयात्रा पर चलेंगे . एक बार हम लोगो ने कुछ स्केचेस भी बनाये थे कि जब हम लोग बुढ्ढे होंगे तो कैसे दिखेंगे.......काश......
और भी कई दोस्तों से बातें होती रहती हैं.........अच्छा लगता है .........सब अच्छी अच्छी जगहों पर कुछ न कुछ बढ़िया काम कर रहे हैं.........जिनसे बात की और .........उन्होंने उतना ही अच्छा रेस्पोंस दिया तो खुद को भी अच्छा लगा..................पर कुछ लोग ऐसे भी हैं...जो बहुत ज्यादा व्यस्त हैं.......या शायद व्यस्त दिखने का दिखावा करते हैं पता नहीं.........इंसान कितना भी व्यस्त हो.......पर कुछ पल ऐसे जरूर निकाल सकता है.........जब वो सिर्फ अपने लिए जिए......सारी टेंशन को भुला कर.... ......और वो टेंशन सिर्फ पुराने दोस्त ही दूर कर सकते हैं......अब इस उम्र में .........वे आपकी कोई बुराई नहीं करेंगे...न ही आपकी किसी लड़की .....या लड़के से दोस्ती देख कर जलेंगे.....न ही किसी खास अध्यापक को .....आपका पक्ष लेने के लिए कोसेंगे...................अब ये बहाना भी नहीं बनाया जा सकता कि .......आने जाने का टाइम नहीं है.......क्यों कि हर हाथ में फोन है.....और कभी भी ..........कहीं भी बात की जा सकती है.........पर इसके लिए भी इच्छा होनी चाहिए.....पर कुछ खास मित्रो का व्यवहार देख कर ......यही महसूस हुआ.....कि वे या तो खुद को बहुत बड़ा समझते हैं ......या हमको बहुत छोटा.........जो भी हो.......