रात बारिश की आवाज़ से नींद खुली...
पूरे लंबे शीशों वाली खिड़की /दरवाजे से बारिश देखती रही। मौसम थोड़ा ठंढा हो गया है ....
बे-मौसम बारिश....
बहुत थकी हूँ...... बिना काम के ही...... मैं आजकल बिना कुछ किए ही थक जाती हूँ.... हद है .... बेतुकी चीज़ें याद आने लगीं हैं...... सिरहाने आधी पढ़ी किताब रख कर आख़िरी बार कब सोई थी!!!
बारिश के बाद का भीगा, प्यारा मौसम है। गोमतीनगर वाले घर में होती तो अपनी रॉकिंंग चेयर पर बैठ कर कॉफ़ी पीती...... यहाँ ग्रीन टी पी रही हूँ ..... सामने किताबों का कुतुब मीनार बनता जा रहा है.... कुछ अधूरी किताबें देखते हुए सोच रही हूँ , एक आध तो उठाऊं, पूरी करूं..
फोन बहुत समय बर्बाद करता है यार.. कहते हैं कि किताबें लाना और उन्हें न पढ़ना अपराध है, इस अपराध की सज़ा अगर दी जाती तो मुझे बहुत दिनों की जेल काटनी पड़ सकती थी......... मेरे पास भी अनपढी किताबों का ढेर लगा है...... न पढ़ पाने का दुख महसूस कर रही हूँ........ कभी कभी मैं कोई किताब बहुत मूड से शुरू करती हूँ और बीच में रोजमर्रा के कुछ झंझट और सबसे ज्यादा ये जान का दुश्मन फोन अपनी टांग अड़ाकर मेरा ध्यान भटका देते हैं. किताब बेचारी निरीह सी मुझे ताकती रह जाती है क्योंकि फिर मेरा वो मूड भी तो जल्दी नहीं बनता.
कई बार एकसाथ कई किताबे पढती रहती हूँ एक साथ, थोड़ी थोड़ी पढ़कर अगली उठा ली जाती है और बुक मार्क लगा कर रखी हुई किताबों का ढेर सिरहाने बढता चला जाता है.......
पुरानी बिना पढ़ी कई किताबें रैक में रखी हुई हैं, अपनी बारी की प्रतीक्षा में, ऐसे ही तमाम नयी किताबें पुरानी किताबों को पीछे धकिया देती हैं, वो बेचारी अपने पढ़े जाने की प्रतीक्षा में देखती रह जाती हैं.
वक्त के साथ मेरा मिजाज़ भी बदलता रहता है. पहले एक बार में एक किताब पढ़ती थी.... अभी भी मन सभी किताबें तत्काल पढने का होता है और किसी के भी साथ न्याय नहीं कर पाती....
मन नहीं लग रहा है आज पता नहीं क्यों 😔😔😔😔
देखें कल का दिन कैसा जाता है....
.
.
No comments:
Post a Comment