लिखिए अपनी भाषा में

Tuesday, May 7, 2024

लानत है

फेसबुक पर हम ऐसे अनजाने लोगो से मिलते हैं ..जिनसे पता नहीं जीवन में कभी मुलाकात हो न हो....पर उनके सुख दुःख......उनकी खुशियों ...उनके गम में शामिल हों......यही तो सोशल मीडिया का  मतलब       है......हमारी   बातों से कोई    खुश   हो.... हम भी किसी की बातों में खुश    हो....मैं तो बस  इसमें   ही  खुश   हो जाती  हूँ.......   मैंने भी देखा है हलकी फुलकी खुशनुमा सी बातों से अपने दिन सुकून से बीत जाते हैं ....पहले से ही जिंदगी में इतना तनाव और टेंशन हैं...कि अब कोई किसी के विचार नहीं जानना चाहता....यहाँ बैठ कर सिर्फ दूसरों पर कमेंट्स मारने या गाल बजाने से कुछ हासिल नहीं होता...सिर्फ कुछ लाइक्स या शेयर से कोई क्रांति नहीं होने वाली...  कभी कभी कुछ लोग इतनी तीखी प्रतिक्रिया करते हैं यहाँ....... कि बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती.....एक नार्मल सी बात इतना तूल पकड़ लेती है कि आरोप प्रत्यारोप..... और अंत में बात गाली गलौज तक पहुंच जाती है.... और नतीजा कुछ नहीं निकलता....अच्छी मित्रता भी कुछ बेवजह की बातों में टूटने के कगार पर आ जाती है.... यहां तक कि शायद एक दूसरे से मिलें तो मारपीट की नौबत आ जाय...... .तो आखिर  फायदा क्या है....इतनी बहसबाजी का..........अपने आप को ज्यादा  काबिल और बुद्धिजीवी दिखाने के लिए ....दूसरों पर उंगली उठाना ही कुछ लोगों का मकसद है......फेसबुक ....सिर्फ अपनी भड़ास निकलने का ही माध्यम रह गया है कुछ लोगों के लिए........यही सोशल मीडिया का मतलब है क्या??......दिनभर के थके मांदे लोग कुछ पल शांति से .....स्नेह और हल्के मन से एक दूसरे के साथ समय बिताना चाहते हैं तो क्या हर्ज है ??...इसमें कौन से पैसे खर्च हो रहे हैं ?......यहाँ पहले से ही इतने ज्ञानी लोग हैं कि अब और ज्ञान और विचार देने की न जरूरत नहीं है........कम से कम मुझे तो बिल्कुल नहीं...... अपना ज्ञान अपने पास ही रखें..... कुछ पोस्ट्स में कमेंट बॉक्स में ऐसी लीचड़, ओछी और अश्लील फब्तियां देखने को मिलती हैं कि लिखते समय उन काबिल फेसबुकियों को ये भी समझ नहीं होती कि उनकी भाषा का सब पर क्या असर हो रहा होगा?? और जिन जाने माने लोगों के लिए वो अपना घटिया प्रदर्शन कर रहे हैं उन पर कोई असर तो पड़ेगा नहीं ?? छीः लानत है ऐसे लोगों पर😡😡😡😡😡😡