लिखिए अपनी भाषा में

Monday, August 25, 2014

यूं ही....

   


        इस बार गर्मी की छुट्टियां बहुत बोझिल सी बीतीं..……। बहुत कुछ करना चाहते हुए भी...सच कहूँ तो कुछ भी नहीं किया जो सार्थक लगे....
साल भर जिस छुट्टी का इंतज़ार रहता है
वो इतना निरर्थक बीते ये सोच कर ही एक अपराधबोध से घिर जाती हूँ.....
.जैसे लग रहा है..समय बर्बाद हुआ....
घरेलू काम काज निबटाने के बाद सारा दिन कोई काम नहीं ....
सिर्फ चुप चाप बैठे बैठे किताबें पढ़ते रहने के ...ये तो मैं पूरे साल करती हूँ.....फिर इन छुट्टियों का क्या सदुपयोग हुआ ???
ऐसे भी दिन बीते हैं, जब इस छुट्टियों में मेरे पास बिलकुल फुरसत नहीं होती थी...पर अब ?
बहुत दिनों तक अगर चुप से रहो तो वैसी ही आदत  पड़   जाती है....ये महसूस होता है कि अगर इशारों में ही बातें कर ली जाएँ तो अच्छा है....बरसों बीत गए हैं.....सिर्फ वक़्त बोलता रहा ..बाकि सब तमाशाई बने देखते रहे .....कभी कभी महसूस होता है कि हम वहीँ के  वहीँ खड़े हैं....और ज़िन्दगी भागती चली जा रही है ...लगता ही नहीं कि जिंदगी के ५२ साल बीत चले हैं...और जिंदगी छोटी और छोटी होती चली जा रही है....काफी कुछ किया है..और अभी काफी कुछ करना बाक़ी  है....बस यही सोचती रहती हूँ कि जितना कुछ कर सकी हूँ   वो क्या एक सार्थक जीवन कहलायेगा ???
किसी  हद तक हाँ....पर अंदर ही अंदर एक बात कुछ कचोटती सी रहती है....इस बात का एक दुःख सा बना रहता है कि जो मेरे जीवन का सबसे प्रिय काम रहा है ,, जो मेरे जीवन का एक अभिन्न सपना रहा है,  उसे ही सबसे कम समय दे पा रही हूँ...या यूं कहूँ कुछ समय से बिलकुल छोड़ ही दिया है......तो ज्यादा सही होगा....एक निश्चित रूटीन पर ज़िन्दगी घूमती चली जा रही है...वही वही दिनचर्या....वही वही थके हारे उकताए हुए चेहरे...रोज देखना....वही घिसी पिटी उबाऊ बातें....वही रोज का रोना देखते देखते सोचती हूँ , क्या यही सपना था मेरा ?....भागती दौड़ती जिंदगी में वक़्त के बीतने का पता ही कहाँ चलता है.......
               कब  दोपहर  होती  है  ....कब  शाम  होती  है ...कब रात गुजर कर फिर दिन निकल आता है....कब बैठे बैठे उम्र निकलती चली गई....कब खूबसूरत  काले बालों के बीच चांदी के तार चमकने लगे,....और कब मेहंदी हाथों के बजाय बालों में लगानी शुरू  कर दी गई.....अहसास ही नहीं हुआ..........सोचो तो ताज्जुब होता है....कि कब  और कैसे     नपी तुली सुन्दर कदकाठी बेडौल हो कर बोझ बन जाती है.......आसपास के बच्चे दीदी के बजाय आंटी कहने लगते हैं.......और कभी आंटी या बहन जी सम्बोधन से चिढ़ने वाले हम........ बड़ी ही शालीनता से इसे स्वीकार भी कर लेते हैं.......और कब साथ के  लोग  एक एक कर रिटायर होना शुरू हो जाते हैं........पता ही नहीं चलता.......
खैर यह तो जीवन यात्रा  है....एक आश्चर्यजनक चक्र....   और हमें इसके साथ ही घूमते रहना है....

अभी कहीं पढ़ी हुई सुन्दर पंक्तियाँ...

ज़िन्दगी का फलसफा भी कितना अजीब है.....
शामें कटती नहीं और साल गुजरते चले जा रहे हैं....

Sunday, August 10, 2014

बस्स्स यूँ ही …

 

हाहा .
मुद्दतें हो गईं मुझे राखी पर किसी ने कोई गिफ्ट नहीं दिया.... ...और अगर किसी बार किसी कारण से राखी समय से नहीं पहुँच पाई तो तंज़ करने से नहीं चूके... ...बच्चो के साथ भी राखी का त्योहार मनाए कई साल बीत गये हैं .....आज फिर ऐसा है कि सभी बाहर हैं...मै एकाकी. . क्या बनाऊँ....क्या मनाऊँ...समझ नही पा रही..... . ....अपने दोनों प्यारे भाइयों को राखी पर बहुत सारा आशीर्वाद भेजती हूँ.... और सभी भाइयों को ढेर सी स्नेहिल शुभकामनाएँ.....

राखी सभी के लिए मंगल मय हो.........मेरे पतिदेव के लिए भी मेरी राखी की अनगिनत शुभकामनायें.......मैं हर साल उन्हें भी राखी बांधती हूँ......आखिरकार..मेरे असली रक्षक तो वे ही हैं.....और गिफ्ट्स भी मुझे उनसे ही मिलते हैं हाहाहाहा

Saturday, August 9, 2014

यूँ ही.…।




जिंदगी में इतनी उलझनें हैं कि.... हम बचपन की शरारतों को भूल जाते  हैं......और ये भ्रम पाल बैठते हैं कि अब हम बड़े हो गए हैं.......हमें ऐसी शरारतें नहीं करनी चाहिए.....पर सच पूछो तो हर किसी में एक छोटा सा बच्चा हमेशा ज़िंदा रहता है.......जो वक़्त बेवक्त शरारतें करना चाहता है........हर तरह की फ़िक्र  से दूर खूब देर तक सोना चाहता है........अपने हर काम में किसी की रोक टोक नहीं चाहता है.......जी भर कर हंसना चाहता है.....मनचाहा न होने पर जी भर कर रोना चाहता है....किसी से चिढ जाने पर..... उसे जीभर कर पीटना  चाहता है....और कोई जी दुखाने वाली बात हो जाने  पर चाहता है कोई हमें भी पुचकारे.......प्यार से समझाए........बिना झिडके हमारे आंसू पोंछ दे .......और सर पर हाथ फेर कर कहे........कोई बात नहीं सब ठीक हो जायेगा.......चिंता मत करो....
कहाँ गए वो हाथ ???. जो हमारे दुखी और उदास होने पर सर सहला कर और पीठ थपथपा कर सांत्वना देते थे.....

Friday, August 8, 2014

यूँ ही






जिंदगी के धंधों ने इस कदर बिजी कर रखा है कि वक़्त के गुजरने का अहसास ही नहीं हो पाता ,,,,,,,बस जब आइना देखो तो ख़याल आता है कि ज़माने  गुजर गए.....अब जब बच्चे जवान हो गए हैं तो हमें तो बूढ़ा होना ही पड़ेगा...... :( :( :(

Sunday, August 3, 2014

मेरे परम मित्र




        पता नहीं क्यों ....आज तक इस विषय पर कभी बहुत गौर नहीं किया कि मेरे खास मित्र कौन हैं.....हर उम्र, हर जगह, हर परिस्थितियों में दोस्त बदलते रहते हैं.....इस लिए कोई दोस्त बहुत लम्बे समय तक बना रहे ऐसा  नहीं हो पाया......बचपन की और कॉलेज टाइम की दोस्ती......और ऐसे ऐसे दोस्त .....जिनके बिना लगता था जी ही नहीं पाएंगे......आज न जाने कहाँ हैं......मैं मानती हूँ.. कि ऐसा नहीं.. कि वो भी हमें भूल चुके हो......कोई भूलता नहीं....  हाँ ये जरूर है..कि एक लम्बा  समय बीत जाने पर एक धुंधली परत सी चढ़ जाती है रिश्तों पर....वो उतने चमकदार नहीं रह जाते.....पर अगर फिर से उन्हें झाड़पोंछ  कर चमकाने की . कोशिश की जाये तो कोई शक नहीं कि वे पुनः चमक उठें.......पर दुःख इस बात से होता है कि ये चेष्टा कोई करना ही नहीं चाहता........समय के अभाव का रोना रोते रोते हम ये भूल जाते हैं ...कि हमारी ज़िन्दगी कितनी मशीनी और बेरंग हो चली है कि हमारे पास न खुद  के लिए वक़्त है न दूसरों के लिए.........इस भागती हुई दुनिया को देख कर लगता है आखिर हम कहाँ भाग रहे हैं.....क्यों भाग रहे हैं.???......
               खैर ये तो हुई दुनिया जहाँ की बातें....पर मुझे इस बात का आत्मिक संतोष है कि मैंने.... अपने जीवन साथी के रूप में एक ऐसा मित्र पाया है .....जो आज एक लम्बे समय से मेरे परम घनिष्ठ मित्र हैं.....जिनसे मैं हर तरह की बातें शेयर कर सकती हूँ.....इस लिए नहीं कि वे हर प्रॉब्लम सॉल्व कर देते हैं ..बल्कि इस लिए कि वे बातों में इतनी बातें निकाल कर इतने तरीके बता देते हैं......कि असली प्रॉब्लम क्या थी....यही याद नहीं रहता.........पर कुछ भी हो.....मैं अपने सारी मनो भावनाएं  या कहूँ भड़ास ....इनके सामने निकाल कर निश्चिन्त हो जाती हूँ ...........मुझे लगता है जीवन की हर मंजिल आसान है अगर जीवन साथी हर समय पास न भी हो , पर साथ ..हर समय होना चाहिए.....और ये साथ सहज हो तो चलना और भी आसान हो जाता है......एक राज की बात और बता दूँ कि इतने दिनों तक इनके साथ रह कर मैंने जान लिया है कि इनको परेशान करना हो तो थोड़ी देर इनके ऊपर ध्यान न दिया जाये....बस ये दिल से लगा लेते हैं ....हमारी शादी को २९ साल बीत चुके हैं....बहुत सी बातों पर बहस हुई है...मुँह फुलाया है,,, कई कई दिनों तक बात नहीं हुई है ....अब तो इतने पक्के हो गए है कि बिना लड़े झगडे मजा नहीं आता.....अच्छे दोस्त भी तो यही करते हैं न.....:) :) :) :)

Saturday, August 2, 2014

कुछ इंसानी रवैये दूसरे  को    कितना कमजोर बना देते हैं,कि सारे हौसले , सारी ताकतें , सारी हिम्मतें जवाब दे जाती हैं.... सब कुछ रेत का ढेर होता नजर आता है.... कैसी विडम्बना है कि   इतनी मेहनत से बनाये गए  घोंसले का अस्तित्व भी सिर्फ कुछ तिनकों के इधर उधर सरक जाने से ही खतरे  पड़ जाता है।