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Wednesday, April 27, 2022

इन दिनों

इन दिनों घर से स्कूल के रास्ते पर जगह जगह सूखे पत्तों के ढेर मिलते हैं  एक उदास करने वाली चरमराते पत्तों वाली आवाज़ के साथ  गोल-गोल चक्कर काटते हुए लम्बी-लम्बी सड़कों को चूमते आखिरी विदा का गीत गाते हुए।
इन पत्तों को अभी चंद दिनों पहले तक ही तो हरा-भरा देख सब  विस्मित थे....आशान्वित थे.. खुश थे, कैसे वर्षों से स्थिर खड़े पेड़ों पर खूबसूरत झालरों जैसे  झिलमिलाते थे और आज हवा इन्हें बुहार कर जाने किस दिशा लिए जा रही  है... 
कोई पूछे कि ये तो जीवनक्रम है इसमें नया क्या है? उदासी क्यों ?? मगर पतझड़ का यह उदास दृश्य आँखों पर हर बरस  नमी सी भर देता है..... आप पत्तों का टूटना देखते हैं और बस.... कुछ भी नहीं कर सकते।

 कभी आप संसार के सबसे उदासीन मनुष्य में बदलने लगते हैं..  धीरे-धीरे यह समझने लगते हैं कि  संसार का हर सुख इतना क्षणिक है कि हवा के एक झोंके से ही तहसनहस  हो जाता है...... या फिर आप हरेक बात को हल्के में लेने लगते हैं...... गम्भीर से गम्भीर बात पर भी पर हँसने लगते हैं। ऐसा महसूस होता है कि यहाँ सब कुछ  हँसी में उड़ा देने योग्य है... कुछ भी सीरियस नहीं है 

जिस  ने राह में रूक कर, ठहर कर.. टूटते हुए पत्ते नहीं देखे कभी, वो कभी नहीं समझ पाता कि यह संसार कैसे कैसे असहनीय दृश्यों से भरा पड़ा है। 


Monday, April 25, 2022

😔

बच्चों का दूर जाना जिस तरह आज हमें सताता है , ये बात याद दिलाता है कि जब हम अपने माँ पापा से दूर गए थे तो बिल्कुल ऐसे ही दर्द से वो लोग भी गुजरे होंगे । अपने कलेजे के टुकड़े कोई अपने से दूर  नहीं भेजना चाहता है , पर दुनियां का यही दस्तूर है कि धान का पौधा अपना स्थान परिवर्तन नहीं करेगा तो पौधा कैसे बनेगा ।

कोरोना काल

कितना अजीब सा समय है..... लग ही नहीं रहा कि सिर्फ हफ्ते भर पहले हम सब कितने उत्साहित थे.... खुशी के पलों को एन्जॉय करते हुए...... पर इन चार छः दिनों में ही जैसे जैसे कोरोना अपना रौद्र रूप से दिखाता जा रहा है.... सब आकुल व्याकुल होते जा रहे हैं.... कुछ पल के लिये घोर अंधेरा छा जाता है आँखों के सामने। एक अंजान डर आकर बैठ जाता है मन में।अब भी कभी देर रात अचानक उठ कर बैठ जाती हूँ और ठंड में भी पसीने से तरबतर हो जाती हूँ...... सब सही सही  होता रहे तो भी एक डर नही पता क्यों हमेशा लगा रहता है। 
    दूसरे ही पल सोचती हूँ ..
  सब छूटता सा जा रहा है जैसे और मैं छटपटाती रह जा रही हूँ.... कुछ कर तो नहीं पा रही हूँ..... मुठ्ठियों को पूरी ताकत से भींच कर रखती हूँ कि कुछ भी गलती से भी न छूटे लेकिन हाथों की लकीरों में जो नहीं होता उसे मुठ्ठियों की ताकत भी बांध नहीं सकती..... हर बार मोह के उस भंवर में फँसती जाती हूँ जिससे कई बार निकल चुकी हूँ..... अपने आस-पास सब फिर से वैसा ही घटता हुआ देखती हूँ फिर खुद को देखती हूँ ..अगर सबकुछ फिर से वैसा ही घट भी रहा है तो क्या...भगवान मेरे परिवार को सुरक्षित रखना....मेरे भाई की उम्र लंबी करो प्रभु.....रोज रोज भयावह खबरें सुन सुन कर बहुत मन खराब हो रहा है...... सब कुछ बदल रहा है जैसे..... क्या फिर सब कुछ पहले जैसा हो पाएगा??? मैं सोचकर घबराती हूं कि जब सब कुछ नॉर्मल हो जाएगा... कुछ साल बीत जाएंगे, जब हम कभी अपने खोए हुए लोगों को याद करेंगे उनमें कौन कौन होंगे?? ❤️😭🙏  ऐसा लगता है जैसे..... मैं भी तो अब वो नहीं रही जो पहले थी..
आंखें खोलती हूँ.... मुस्कुराने की नाकाम सी कोशिश करती हूँ..खुद को नजर भर निहारती हूँ ,सांसें भरती हूँ तो याद आता है कि ये तो अब भी अपनी गति से चल ही रहीं हैं और बस दिल पर हाथ रख के निकल जाती हूँ इस अंजान डर से..
(26-4-21)

😔😔

अक्सर मन में यह ख्याल आता है . . .
कि जैसा सामने वाले ने हमारे साथ व्यवहार किया 
अगर वही व्यवहार हम उसके साथ करें तो उसे
क्या और कैसा महसूस होगा। 
क्या वह भी रिश्ते को बनाए रखने के खातिर इतना अनुचित व्यवहार और कटाक्ष सहन करेंगें अथवा नहीं?

रिश्ता दो लोगो के मध्य होता है . . .
एवं उसे बनाए रखने की जिम्मेदारी तथा प्रयास भी 
दोनो की तरफ से ही होना चाहिए अन्यथा वह रिश्ता 
धीरे धीरे खत्म होने लगता है।।

ये खाली खाली मन...

मन जैसे खाली खाली सा... उचाट सा होने लग गया है..... कुछ भी ठहरता नहीं बहुत देर तक..... गुस्सा जितनी जल्दी आता है उतना ही जल्दी शांत भी हो जाता है... रोना कुछ देर का ही है फिर "अच्छा छोडो.... क्यों सोच रही हूँ इतना? सब ठीक है" कहकर चीजें हटा देना चाहती हूँ दिल और दिमाग से... कहने को बहुत से लोग हैं साथ...... पर अब  एकांत ज्यादा सुखद लगता है अब......अब अपने शौक और मनपसंद कामों को ही पूरा वक्त देना चाहती हूँ.... किसी के दबाव में कुछ करने की न जरूरत है न इच्छा.... 
                      नहीं पता कि अब इस उम्र में ज्यादा समझदार हो चुकी हूँ या दिनों दिन बेवकूफ होती जा रही हूं..... बेहद नॉर्मल - फॉर्मल चीजें ,जो करनी भी जरूरी है वो भी करने की इच्छा नहीं होती... किसी जान पहचान वाले को देख कर भी कोई खास उत्साहित नहीं होती... अब बातें ही शुरू नहीं करना चाहती....सिर्फ सुनती ही रहती हूँ.... चाहे घर पर रहूं या स्टाफ रूम में... महज एक दर्शक और श्रोता ही बनी रहती हूँ..... बड़बोली तो मैं खैर कभी नहीं रही.... पर अब कुछ अजीब ही स्थिति है.... मन ही नहीं होता..कुछ भी करने का ..सबसे मन खिन्न सा हो गया है जैसे.... हर जगह वही हाल है..... कोई भी चीज बस थोड़ी ही देर तक अच्छी लगती है... 
लगता है जो छूट गया सो छूट गया...... जो है सो है..... नहीं है तो भी कोई गम नहीं और है भी तो क्या.... क्या पता कल न हो....... कुछ सपने जो कभी देखे थे अब निरर्थक से महसूस होते हैं... ना खुद.... से ना दुनिया से... कोई शिकायत रही...... ना ही उन लोगों से कोई शिकवा है जिनकी बातों पर रो पडी़ हूँ ....... सभी को  दिल से माफ कर दिया है ..... ये तो नहीं कह सकती.... पर बस्ससस....... 
अब फर्क नहीं पड़ता कि किसने क्या कहा.... क्या दिया..... क्या लिया.. ... छोड़ो.... अब सब अपनी अपनी दुनिया में मग्न हैं तो ठीक है....अब मुझे किसी से ज्यादा उम्मीद भी नहीं..... 
खैर सब ठीक ही है..... 

Sunday, April 24, 2022

हमारे पास...

ज़िन्दग़ी में,
एक समय के बाद...
खोने के लिए हमारे पास
केवल,
इक उम्र के अलावा
और कुछ भी तो नहीं बचता...

और आज, हम सब
लगभग उसी मुहाने पर खड़े हैं
शायद...
उसी कग़ार के इर्द-गिर्द...

अब, इस पड़ाव पर पहुँच
सोचती हूँ,
अभी तक जो बीत गया,
कितना सार्थक रहा वह,
और कितना निरर्थक भी...

अब तो यही लगता है,
खुद को... 
बहुत ही बारीक़ी से
और बचा बचा कर
ख़र्च करना चाहिए..... 

मन जिद्दी है बहुत
समझौता करना नहीं चाहता.. 
बच्चों को मालूम नहीं.... कि उनका जीवन बनाते बनाते हमने हमारी कितनी इच्छाएं तिरोहित कीं उन पर..... उस समय कमाई कम और खर्च  अनगिनत... मन को कितनी ही  बार मार कर बच्चों को इस मुकाम तक पहुंचाया। उनकी हजारों तरह की ख्वाहिशों के बाद भी..... सिर्फ उनकी जरूरतें ही पूरी कर पाए.... अब उनके  सामने अपनी किस अधूरी इच्छा की फेरहिस्त थमाएं.... बस मन यही चाहता है कि वो खुश रहें..... हर वो चीज उन्हें मिले..... जिसके लिए उनका मन जरा भी तरसा है..... 

Tuesday, April 19, 2022

पता नहीं क्यों...

पता नही क्यों
कुछ दिनों से मनकापुर की रातों में..
स्मृतियों की फिल्म कुछ ऐसे भागती है.... .
कि मैं सपनों में रात भर दौड़ लगाती रहती हूँ.......
पता नहीं सपनों में दौड़ लगाना कैसा होता है.....
पर सपनों में दौड़ पाना बहुत मुश्किल है....
पांव जकड़ से जाते हैं....
मुंह से आवाज भी नहीं निकलती...
चीखना चाहूं तो चीख गले में ही घुट के रह जाती है...

मुझे आजकल अपने बचपन के
बिछड़े दोस्तों की बहुत याद आती है ,
उनके साथ बिताए गए पल
अनगिनत लम्हे
मुझे उनमे से कई के चेहरे याद है तो कई के नाम.....
पर अक्सर होता यही है
कि हम जिन्हें याद रखना चाहते हैं बस वही चेहरे याद रहते हैं

कितना आसान  है किसी को भूल जाना....
और शायद सबसे कठिन भी...
और सबसे पीड़ा दायक तो
यह सोचकर उदास होना है कि जब हमें सब भूल गए हैं
तो हम  ही क्यों उन्हें याद कर कर के परेशान  हैं ...
और याद करने से होगा भी क्या?

क्या वो जो  बिछड़ गए हैं वो फिर कभी मिल पाएंगे?
इस दुनिया में सबसे मुश्किल काम है
किसी को याद रखना,
और
यह जानते हुए भी
कि अब हम उसकी स्मृतियों में शामिल नहीं हैं.....

(15.4.2022)