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Tuesday, August 25, 2020

है न??

जब टीवी आया  तो हमारे वक्त गुजारने में जबरदस्त  परिवर्तन हुआ 😆😆 जल्दी जल्दी काम निपटा कर टीवी  के सामने बैठ जाना..... तब  मम्मी पापा  से यही डांट पड़ती थी...हम पता नहीं जिंदगी में कुछ कर पायेंगे या नहीं..... . ऐसे हम सब समय बर्बाद कर रहे हैं... 😀😀😀 कुछ सालों बाद जब मोबाइल फोन आया ..... तो हमसब फिर समय बर्बाद करने लगे 😁😁😁😁😁 फिर कम्प्यूटर और इन्टरनेट आया  तो उस पर याहू मैसेंजर और ऑर्कुट पर समय बर्बाद करने लगे😁😁😁😁और अब तो हद ही पार हो गई है....... अब फेसबुक और वाट्स एप ने तो जीना दूभर कर दिया है😏😏😏 आज मम्मी पापा होते तो क्या सोचते??? 😡😡😡😡
          हद्द ढीठ और बेशर्म हो गये हैं हम 😱😱😱😱😱😱😱😱😱 हैं न????

Sunday, August 16, 2020

हम्मममम

परिवार का छोटा होना... और छोटे परिवार के सभी सदस्यों का इधर-उधर होना.... नए समय का अभिशाप है..... जिनके बिना दिन के कुछ पल बिताने भी मुश्किल होते थे... अब महीनों बीत जाते हैं.... उनकी शक्ल भी  देखे..... सबकी व्यस्तता देखते हुए कोई प्रतिक्रिया भी नहीं  की जा सकती...... त्योहारों पर भी  मिलना नहीं  हो पाता..... त्योहार  पर्व मनाने की जगह बस खानापूर्ति करके बस निभा लिए जाते हैं...... खास तौर पर किसी त्योहार के लिए कुछ करना मेरे लिए तो सिर्फ रोज के लंच डिनर में थोड़ा बहुत फेर बदल कर लेना..... एक दो व्यंजन और बना लेना तक ही सीमित  रह गया है😏😏 ना ज्यादा कुछ बनाने की इच्छा होती है... न खाने की.... खुद भी और आने जाने वाले ज्यादातर लोग... किसी को चीनी से परहेज है तो किसी को मसाले से..... कोई नमक कम खाता है तो कोई तला भुना नहीं  खाता...... अब ऐसे में कोई क्या बनाये  और क्या खिलाये!!!!!!! कोई रंग नहीं  खेलता (मैं खुद भी नहीं) क्योंकि रंगों से एलर्जी है..... तो किसी  को पटाखों की आवाज़ से हार्ट अटैक का डर है...... अब तो बस टीवी पर ही सब त्योहार देखो😊😊😊😊 तरह तरह के रंगबिरंगे फैशनेबल कपड़ों की बहार देखो..... और दिन भर फूड फूड और फॉक्स लाइफ चैनल लगा कर स्वादिष्ट और अजीब अजीब से दिखने वाले व्यंजनों का आनंद लो...... 😊😊😊😊😊😊

एक स्कूल टीचर का छोटा सा सपना 😊😊

न गर्मी न सर्दी..... कभी-कभी इतना प्यारा मौसम हो... शांति हो... मूड अच्छा हो... कोई काम नहीं हो... कोई चिंता नहीं हो.. कोई टेंशन नहीं हो.. कोई हड़बड़ाहट नहीं.. कोई खुशी नहीं हो.. कोई दुःख नहीं हो...टिफिन में मन पसंद नाश्ता हो...😉😉 स्कूल डायरी का... रजिस्टर का,.. मार्क रजिस्टर का, सारा काम कम्प्लीट हो.... प्रिंसिपल फादर का मूड अच्छा हो... सारी टीचर्स मुस्कुराते हुए मिलें.....बच्चों के पेरेंट्स शांति से आपकी पूरी बात (बच्चों की शिकायत) सुन लें....... क्लास में सारे बच्चे शांत बैठे हों... चुपचाप काम कर रहे हों..स्मार्ट बोर्ड बिना किसी दिक्कत के आराम से चल रहा हो..... .बच्चे ब्लैक बोर्ड पर लिखा हुआ सब सही सही उतार कर ले आयें...... कोई करेक्शन काटपीट न करना पड़े.... रेड जेल पेन खूब बढिया चल रहा हो.... सभी को गुड वेरी गुड देते रहने की इच्छा हो आये... बिना डांट या खीझे....... 😊😊😊

ओह सुखद सपना है कितना सुंदर😆😆😆😆😆अच्छा ये सपना पूरा हो जाय तो मजा आ जाये😊😊😊😊 नहीं????

Wednesday, August 12, 2020

मैं बस ऐसी ही हूँ 😂😂😂

मेरे क़रीबतरीन  और नजदीकी लोग मुझे "अपने-आप को बहुत काबिल समझने वाला" कहते हैं। कारण कि मैं अपने मन मिज़ाज की मारी हूँ, मूडी हूँ...... मन हुआ तो सारा- सारा दिन घर को सजाने संवारने में लगी रही ,मन नहीं हुआ तो सवेरे से शाम तक अपने घोर आलसीपन में औंधी पड़ी रही। कभी मूड हुआ तो हर रोज़ बाहर घूमने टहलने निकली..... कभी हफ्तों महीनों खिड़की तक से न झांका। कभी किसी से ख़ूब बतियाने का  होने का मन हुआ ,  कभी पूरी तरह अपने में ही बन्द  रही ।कभी जिससे  घण्टों बातें की..... कभी उसी को महीनों तक देखा ताका भी नहीं ..... अबोला बना  रहा। कभी कोई सीरियल देखने बैठी तो जब तक वो खत्म न हो जाए तब तक उसके पात्रों से इतना घनिष्ठ हो उठी कि रातों को सपने में भी उन्हें देखने लगी.....  और आठों पहर उनके संग रहने लगी। कभी बहुत दिनों तक दो  शब्द लिखने का मूड नहीं  बना.... और कभी कभी पन्नों पर पन्ने भर डाले..... । कभी सँवरने का जी हुआ तो अकारण ही अपनी पसन्द की साड़ी या सूट पहनने के लिए अलमारी उल्ट पलट कर डाली  और कभी आलस चढ़ा (वैसे ये आलस वाली बीमारी हमेशा की है) तो पूरा दिन बीत गया गाउन में भूतनी बने हुए....अड़ोस पड़ोस  में भी गप्प बाजी और पुलिया प्रपंच की आदत नहीं..... किसी ने घमंडी कहा किसी ने अकड़ू और आलसी। जो अपने हैं , खास हैं. बेहद प्यारे हैं उनके माथे पर  गुस्से की एक  सिकुड़न भी मुझे पसंद नहीं....... माफ़ी मांगने में कभी पीछे नहीं रहती.... मुझसे बर्दाश्त ही नही होता । और जो मुझे पसन्द नही हैं वे निंदा करें या गालियां दें कोई अंतर नही पड़ता। मैं कोई प्रतिक्रिया नहीं करती.... खामोश हो जाती हूं.... उपस्थित होने पर भी वहां अनुपस्थित रहती हूँ....

वैसे मैं कहना यही चाहती थी कि  यह कोई अजीब बात नही है कि मैं हमेशा  किसी न किसी खास मूड  या किसी अजीब मनःस्थिति की  गिरफ़्त में रही हूँ । मुझे कभी कभी ड्राइंग या पेंटिंग की ऐसी सनक सवार होती थी कि रात रात भर कैनवस ईजल से भिड़ी रही हूँ.... एक समय पढ़ने का सुरूर  चढ़ा (वो तो अब चढ़ता है. ...पर अब फोन बहुत समय खा जाता है वैसे.... अब पढने वाला पागलपन कम हो गया है) कभी किताबों से ऐसी यारी थी कि रात दिन का होश नहीं था।मनोहर कहानियां और सत्यकथा तक पढी है अगर कोई किताब नही मिली हो तो....... जब बच्चे हुए उन दिनों मैं उन्हें लेकर इतनी पगला गई कि सोना भूल गई।   जैसे उनके सिवा मेरे लिए दुनिया में कुछ और बाकी न  रहा।  सालों यह आलम रहा। एकबारगी सिलाई की ख़ब्त सवार हुई। झबले, फ्रॉक, स्कर्ट, पर्स, झोले, थैले और जाने क्या सिल डाला....उस  समय तो ये आलम था कि मेरे सिले बैग्स और पर्स दूर दूर तक गए..... बागबानी का शौक चढ़ा तो फूल कलियों और पत्तों की गिनती भी याद रहती। कभी साड़ियों की ख़ब्त चढ़ी , कभी बर्तनों और क्रॉकरी की,ढूंढ ढूंढ कर अमीना बाद, हजरत गंज, बनारस की गलियों और दिल्ली के लाजपत और करोल बाग को रौंद डाला.... कभी चुनकर -चुनकर अपनी पसन्द के गानों के  सैकड़ों कैसेट और सीडी खरीद डाले.... गाने सुनने की , कभी फ़िल्में  देखने की , कभी तस्वीरें खींचने की तो कभी पुस्तक मेले से या किसी भी साहित्यिक पुस्तकों की दुकान से जी भर कर (जी तो कभी भरता ही नहीं) किताबें खरीदने की धुन..... बनी रही . आजकल मैं एक नई ख़ब्त की शिकार हूँ।
       किसी जानवर को अपना पालतू बनाकर रखना और लोगों का शौक हो सकता है ..... लेकिन मुझे उनको गोद में बैठाना या चुम्मा चाटी करना बिल्कुल जिद की हद तक  नापसंद है...लेकिन पिछले दो सालों से  मेरी इस जिद पर जैसे लगाम लग गई है  शायद मै उसके प्यार में पड़ गई हूँ....एक पक्का देसी बिलौटा जिसे मैं बहुत दिनों तक बिल्ली समझती रही थी.. ....अचानक मेरी एकाकी सी लाइफ स्टाइल में आ टपका है... यह कितना प्यारा है। इसकी चमकीली हरी आंखें , मासूम सूरत ,   प्यार जताना , मेरी आहट सुनते ही उसकी सतर्क हरकतें.... मुझे अगले मोड़ तक स्कूल छोड़ने जाना और छुट्टी के वक्त मुझे उसी मोड़ से वापस लाना...मुझे देखते ही कुछ बिस्कुट या दूध की उम्मीद में आगे पीछे मंडराने लगना.... ऊं ऊं की आवाजें लगाना.... मुझे भाने लगा है....रात में ही उसके लिए दूध बचा कर रख देती हूँ..... सुबह दरवाजा खोलते ही मुझे उसी का इंतज़ार रहता है...और वो भी अंगड़ाई और जम्हाई लेते हुए दरवाजे पर विराजमान हो जाता है..... उसके लिए मैने एक मोढा सा बना कर दरवाजे पर  कोने में रख दिया है....और एक कांच का बाउल भी दूध के लिए..... उसे भी अब ये आभास है कि वो व्यवस्था उसी के लिए की गई है....मोढे पर आराम से जमा रहता है... दूध वाले को देखते ही भाग कर आ जाता है.....  जाड़ों में धूप में निधड़क मेरी कुर्सी के नीचे आकर बैठा रहता है.... आजकल  इसी का संग है।  कभी कभी इससे  गुपचुप बातें करती हूँ। इसे उठना बैठना सिखाती हूँ। और इसकी हरकतों पर  ख़ूब  हंसती हूँ। दिनभर यहां रहने के बाद वो रात में कहां रहता है मुझे नहीं पता..... पर सुबह सवेरे वो यहां मोढे पर बैठा ही मिलता है.....कई बार दरवाजा खुलते ही उसने अंदर आने की चेष्टा की पर धमकाए जाने पर अब समझ गया है कि अंदर आना मना है...... लॉकडाउन में बाकी सारी दिनचर्या के बाद ये मेरा मनपसंद शगल है...... मैंने पाला नहीं है उसको.... पर उसका यहां बने रहना मुझमें एक पॉजिटिव फीलिंग्स भरता है..
मैं बस ऐसी ही  हूँ

Tuesday, August 11, 2020

लॉकडाउन के बोझिल दिन

इस लाॅकडाउन में जब कि इतवार - सोमवार सब बराबर हैं.... फिर आज  भी  देर तक सोती रही।  सुबह ने जरूर मेरा दरवाजा भी खटखटाया होगा पर मैने सुना नहीं..... पांच बजे आंख खुली, घड़ी देखा फिर आंखें बंद कर लीं.... । सुबह कैसे होती है बहुत दिनों से नहीं देखा..... नौ- दस बजे तक क्या कुछ हो चुका होता है इस निर्मम दुनिया में, ठीक से पता नहीं। सालों से टीवी नहीं देखा और अखबार पढ़े तो मुद्दतें बीत गईं.....जरूरत भर की सारी जानकारियां और मनोरंजन इसी दो बाइ तीन की डिबिया में बंद हैं..... दूरदराज के लोग या अपनी जान से प्यारे लोग सब अपनी मुट्ठी में हैं..... कहीं आना जाना नहीं.... एक दूसरे का चेहरा भी आमने सामने से न देख पाने के लिए शापित..... और जिन्हें देखने की अनुमति भी है तो सब एक दूसरे से मुंह छुपाए हुए हैं.... पता नही किस पूर्व जन्म के पापों का प्रायश्चित कर रहे हैं 😖😖😖😖बहुत दिन हुए  रात नहीं देखी, आसमान नहीं देखा, तारे नहीं देखे, चाँद नहीं देखा.... घर से बाहर निकले ही कितने दिन बीत गए...... बस दो कमरों के फ्लैट में कैद। यहां कमरे में चांदनी और धूप दोनों ही नहीं आती..... आती भी होगी... पर मैं खिड़की बंद रखती हूं......  मोबाइल और फोटो में चाँद देख लेती हूं..... पर एक बात है  जिंदगी जो गीत गाती है वह गीत और कहीं नहीं सुना जा सकता..... दिन भर जिंदगी के कदमों की ही आहट सुनती रहती हूं..... जिंदगी की गजलों को  बार बार सुनने की इच्छा होती है.... सब कुछ यथावत और पूर्ववत बना रहे..... बस इसी एक  दुआ के साथ जीती हूं.... इस भागमभाग... चीखती - चिल्लाती... कठोर और बेरहम दुनिया में सब कुछ यथावत और पूर्ववत बना रहे ये सोचना ही बहुत सुकून देता है.......

Monday, August 10, 2020

लॉकडाउन में अमरूद

ये रहे मेरे लॉन के एकलौते अमरूद के पेड़ के बेस्वाद अमरूद 😖😖 एकदम बेकार..सख्त बीजों से भरे.... . इसकी इतनी काट पीट और छीछालेदर सिर्फ इसलिए की गई है कि ये अपने अमरूद होने का फर्ज अदा कर सकें....इनको कभी पके हुए तौर पर नहीं खाया जा सका है क्यों कि थोड़ा सा भी पीला पड़ते ही (पकने वाली कंडिशन का पहला स्टेप) इसमें कीड़े लग जाते हैं....आज अपनी अमरूद खाने की इच्छा को (लॉकडाउन में मयस्सर नहीं) नहीं खारिज किया और दो चार तोड़ कर ही दम लिया.....पर प्लेट में जो ये चूरन टाइप की चीज दिख रही है ये है जलजीरा पाउडर...... और कसम से इसके साथ ये बेस्वाद अमरूद भी बहुत स्वादिष्ट लगे 😊😊😊😊😊
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(खाली प्लेट से समझ लें कि तीनो अमरूद फिनिश 😂😂😂😂)

Sunday, August 9, 2020

दिल चाहता है....

जिंदगी में इतनी उलझनें हैं कि.... हम बचपन की शरारतों को भूल जाते  हैं......और ये भ्रम पाल बैठते हैं कि अब हम बड़े हो गए हैं.......हमें ऐसी शरारतें, ऐसी हरकतें नहीं करनी चाहिए.....पर सच पूछो तो हर किसी में एक छोटा सा बच्चा हमेशा ज़िंदा रहता है.......जो वक़्त बेवक्त..... शरारतें करना चाहता है........हर तरह की फ़िक्र  से दूर खूब देर तक सोना चाहता है.......अपनी मनमानी करना चाहता है... .... .अपने हर काम में किसी की रोक टोक नहीं चाहता है.......जी भर कर हंसना चाहता है.....मनचाहा न होने पर जी भर कर रोना चाहता है....किसी से चिढ जाने पर..... उसे जीभर कर पीटना  चाहता है....और कोई जी दुखाने वाली बात हो जाने  पर चाहता है...... कोई हमें भी पुचकारे.......प्यार से समझाए........बिना झिडके हमारे आंसू पोंछ दे .......और सर पर हाथ फेर कर कहे........कोई बात नहीं सब ठीक हो जायेगा.......चिंता मत करो....
कहाँ गए वो हाथ ???. जो हमारे दुखी और उदास होने पर सर सहला कर और पीठ थपथपा कर सांत्वना देते थे.....😢😢

Sunday, August 2, 2020

लॉकडाउन के बोझिल दिन

इस लॉकडाउन के दौरान कई बार मन बहुत विचलित   हुआ , कुछ बेहद आत्मीय जनों की तकलीफ़ों ने रातों की नींद भी उड़ाई, कई बार अपनों के दुखों में शामिल ना हो पाने की बेबसी ने चुपके -चुपके  रूलाया भी..... पर हर बार सँभाला है ख़ुद को ,ढाढस बंधाया है...... हिम्मती बने रहने का अभिनय किया है...हाँ अभिनय ही कहूंगी.... मैं जानती हूँ मैं बहुत कमजोर हूं, डरपोक भी .. ख़ुद के साथ पतिदेव के स्वास्थ्य का ख़ूब ख़्याल रखा है... अब चाहे रोज़ व्यायाम करना हो या हल्दी-दूध, काढा पीना, आँवला खाना, च्यवनप्राश या नींबू पानी कुछ भी नहीं छूटा है....कभी कभी पतिदेव के  पसंदीदा व्यंजन बनाने से लेकर कुछ नई नई रेसिपी भी ट्राई की हैं....पर इन सबके साथ.... .. बस वक़्त बेवक़्त अपने प्रिय कोने में प्रिय कुर्सी में ज़रूर बैठती हूँ , अपनी खिड़की पर जहाँ मिलता है मुझसे मेरे हिस्से का एकान्त जहाँ बैठकर मैं देख पाती हूँ पेड़ों के हरियाले झुरमुट को , महसूस कर पाती हूँ हवा  को , जहाँ से दीखती है सीधी सपाट सड़क और उस पर आते जाते कुछ लोग ....और मेरा प्यारा बिल्लू भी.... दो सालों से ये अनजाना अचानक कहीं से आ टपका ये बिल्ला....मुझे देखते ही दूध बिस्कुट के लिए अपनी चमकती हरी हरी आंखों से लगातार मुझे घूरता इतने प्यार से ऊंंऊंं करता है कि बस क्या कहूँ!!!!! वो अब इतना दुलारा सा हो गया है कि दरवाजा खोलते ही उसको न देखूं तो सूना सा लगता है....
           चार छः  कपड़ों में क़रीब पाँच महीने बीत गए और कपडों की आलमारी खोलने तक की सुध तक न आई । बेचारी मेरी प्रिय साड़ियां-चूड़ियाँ क्या सोचती होंगी.!!! .... चार -पाँच  महीने से राशन, सब्जी और छिट-पुट दवाइयों को छोड़ कर कुछ न ख़रीदा , ना पार्लर गई , न शॉपिंग की , न दोस्तों से मिली.... बल्कि इस बीच बहुत कुछ सीख लिया है कि इस  जीवन में   बेहद महत्वपूर्ण लगती ज़रूरतों की लंबी लिस्ट इतनी छोटी भी की जा सकती है , समय के साथ भरसक समझौता किया सकता है, बशर्ते शारीरिक और मानसिक संतुलन ठीक- ठाक बना रहे......
   वैसे मैं भी कम नहीं खट रही हूँ , सुबह दस बजे सोकर उठने से लेकर रात दो, ढाई, तीन कभी कभी चार बजे तक कुछ न कुछ चुक चुक चलनी में जुटी ही रहती हूँ ... दैनिक चर्या के बाद काढ़ा बनाओ... बर्तन धुलो....झाडू लगाओ... सफाई करो... नाश्ता चाय... फिर बर्तन धुलो.... खाना बनाओ... खाना खाओ फिर बर्तन धुलो...... शाम को चाय नाश्ता.... फिर बर्तन धुलो.... फिर रात का खाना
बनाओ... हल्दी दूध बनाओ... खाना खाओ, दूध पियो फिर बर्तन धुलो......जिस दिन पतिदेव फल सब्जी और घर का सामान ले आएं.... तो सबको धुलो... सेनेटाइज करो....फिर अपनी अपनी निर्धारित जगहों पर रखो.... बर्तन धुल धुल के हाथ गोरे हो गए हैं 🤔🤔उफ्फ्फफ 😏😏पर एक पॉजिटिव सी थिंकिंग रखी जाए तो ये है...... कि अब ये हालत हो गई है कि हम किसी भी निर्जन स्थान पर चाहे वो,सुदूर समुद्र का किनारा हो, जंगल या पहाड़ , गुफा - कंदरा हो.... कहीं भी  जीवन बिता सकते हैं.... गुजर कर सकते हैं.....बस दो चार जोड़ी कपडे...सादा दाल रोटी.... मिल जाए बस.....सिर्फ  कोरोना से दूर रखें प्रभु 🙏🙏🙏