लिखिए अपनी भाषा में

Sunday, August 2, 2020

लॉकडाउन के बोझिल दिन

इस लॉकडाउन के दौरान कई बार मन बहुत विचलित   हुआ , कुछ बेहद आत्मीय जनों की तकलीफ़ों ने रातों की नींद भी उड़ाई, कई बार अपनों के दुखों में शामिल ना हो पाने की बेबसी ने चुपके -चुपके  रूलाया भी..... पर हर बार सँभाला है ख़ुद को ,ढाढस बंधाया है...... हिम्मती बने रहने का अभिनय किया है...हाँ अभिनय ही कहूंगी.... मैं जानती हूँ मैं बहुत कमजोर हूं, डरपोक भी .. ख़ुद के साथ पतिदेव के स्वास्थ्य का ख़ूब ख़्याल रखा है... अब चाहे रोज़ व्यायाम करना हो या हल्दी-दूध, काढा पीना, आँवला खाना, च्यवनप्राश या नींबू पानी कुछ भी नहीं छूटा है....कभी कभी पतिदेव के  पसंदीदा व्यंजन बनाने से लेकर कुछ नई नई रेसिपी भी ट्राई की हैं....पर इन सबके साथ.... .. बस वक़्त बेवक़्त अपने प्रिय कोने में प्रिय कुर्सी में ज़रूर बैठती हूँ , अपनी खिड़की पर जहाँ मिलता है मुझसे मेरे हिस्से का एकान्त जहाँ बैठकर मैं देख पाती हूँ पेड़ों के हरियाले झुरमुट को , महसूस कर पाती हूँ हवा  को , जहाँ से दीखती है सीधी सपाट सड़क और उस पर आते जाते कुछ लोग ....और मेरा प्यारा बिल्लू भी.... दो सालों से ये अनजाना अचानक कहीं से आ टपका ये बिल्ला....मुझे देखते ही दूध बिस्कुट के लिए अपनी चमकती हरी हरी आंखों से लगातार मुझे घूरता इतने प्यार से ऊंंऊंं करता है कि बस क्या कहूँ!!!!! वो अब इतना दुलारा सा हो गया है कि दरवाजा खोलते ही उसको न देखूं तो सूना सा लगता है....
           चार छः  कपड़ों में क़रीब पाँच महीने बीत गए और कपडों की आलमारी खोलने तक की सुध तक न आई । बेचारी मेरी प्रिय साड़ियां-चूड़ियाँ क्या सोचती होंगी.!!! .... चार -पाँच  महीने से राशन, सब्जी और छिट-पुट दवाइयों को छोड़ कर कुछ न ख़रीदा , ना पार्लर गई , न शॉपिंग की , न दोस्तों से मिली.... बल्कि इस बीच बहुत कुछ सीख लिया है कि इस  जीवन में   बेहद महत्वपूर्ण लगती ज़रूरतों की लंबी लिस्ट इतनी छोटी भी की जा सकती है , समय के साथ भरसक समझौता किया सकता है, बशर्ते शारीरिक और मानसिक संतुलन ठीक- ठाक बना रहे......
   वैसे मैं भी कम नहीं खट रही हूँ , सुबह दस बजे सोकर उठने से लेकर रात दो, ढाई, तीन कभी कभी चार बजे तक कुछ न कुछ चुक चुक चलनी में जुटी ही रहती हूँ ... दैनिक चर्या के बाद काढ़ा बनाओ... बर्तन धुलो....झाडू लगाओ... सफाई करो... नाश्ता चाय... फिर बर्तन धुलो.... खाना बनाओ... खाना खाओ फिर बर्तन धुलो...... शाम को चाय नाश्ता.... फिर बर्तन धुलो.... फिर रात का खाना
बनाओ... हल्दी दूध बनाओ... खाना खाओ, दूध पियो फिर बर्तन धुलो......जिस दिन पतिदेव फल सब्जी और घर का सामान ले आएं.... तो सबको धुलो... सेनेटाइज करो....फिर अपनी अपनी निर्धारित जगहों पर रखो.... बर्तन धुल धुल के हाथ गोरे हो गए हैं 🤔🤔उफ्फ्फफ 😏😏पर एक पॉजिटिव सी थिंकिंग रखी जाए तो ये है...... कि अब ये हालत हो गई है कि हम किसी भी निर्जन स्थान पर चाहे वो,सुदूर समुद्र का किनारा हो, जंगल या पहाड़ , गुफा - कंदरा हो.... कहीं भी  जीवन बिता सकते हैं.... गुजर कर सकते हैं.....बस दो चार जोड़ी कपडे...सादा दाल रोटी.... मिल जाए बस.....सिर्फ  कोरोना से दूर रखें प्रभु 🙏🙏🙏

No comments:

Post a Comment