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Tuesday, August 11, 2020

लॉकडाउन के बोझिल दिन

इस लाॅकडाउन में जब कि इतवार - सोमवार सब बराबर हैं.... फिर आज  भी  देर तक सोती रही।  सुबह ने जरूर मेरा दरवाजा भी खटखटाया होगा पर मैने सुना नहीं..... पांच बजे आंख खुली, घड़ी देखा फिर आंखें बंद कर लीं.... । सुबह कैसे होती है बहुत दिनों से नहीं देखा..... नौ- दस बजे तक क्या कुछ हो चुका होता है इस निर्मम दुनिया में, ठीक से पता नहीं। सालों से टीवी नहीं देखा और अखबार पढ़े तो मुद्दतें बीत गईं.....जरूरत भर की सारी जानकारियां और मनोरंजन इसी दो बाइ तीन की डिबिया में बंद हैं..... दूरदराज के लोग या अपनी जान से प्यारे लोग सब अपनी मुट्ठी में हैं..... कहीं आना जाना नहीं.... एक दूसरे का चेहरा भी आमने सामने से न देख पाने के लिए शापित..... और जिन्हें देखने की अनुमति भी है तो सब एक दूसरे से मुंह छुपाए हुए हैं.... पता नही किस पूर्व जन्म के पापों का प्रायश्चित कर रहे हैं 😖😖😖😖बहुत दिन हुए  रात नहीं देखी, आसमान नहीं देखा, तारे नहीं देखे, चाँद नहीं देखा.... घर से बाहर निकले ही कितने दिन बीत गए...... बस दो कमरों के फ्लैट में कैद। यहां कमरे में चांदनी और धूप दोनों ही नहीं आती..... आती भी होगी... पर मैं खिड़की बंद रखती हूं......  मोबाइल और फोटो में चाँद देख लेती हूं..... पर एक बात है  जिंदगी जो गीत गाती है वह गीत और कहीं नहीं सुना जा सकता..... दिन भर जिंदगी के कदमों की ही आहट सुनती रहती हूं..... जिंदगी की गजलों को  बार बार सुनने की इच्छा होती है.... सब कुछ यथावत और पूर्ववत बना रहे..... बस इसी एक  दुआ के साथ जीती हूं.... इस भागमभाग... चीखती - चिल्लाती... कठोर और बेरहम दुनिया में सब कुछ यथावत और पूर्ववत बना रहे ये सोचना ही बहुत सुकून देता है.......

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