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Tuesday, October 13, 2020

कैसे भूलूँ..

मम्मी,
कैसे भूलूँ....???
आपके चले जाने के बाद,
.
रसोई की आलमारी में विराजे
दुनियाभर के भगवान,
मेरा बनाया हुआ संकट मोचन का चित्र
लक्ष्मी - गणेश, शंकर जी की
छोटी बड़ी मूर्तियाँ,
..
रसोई घर की
काठ की आलमारी में रखे
तरह तरह के अचार,
..
आपका बक्सा.
आपकी साड़ियां
आपके कपड़े,
आपकी पढी़ , अन पढी़ किताबें
आपकी ढेरों चीजें....
..
आपका पर्स बनाम झोला बनाम बैग
जो कभी मैने अपने हाथों सिला था,
आपकी सुपारी की डिबिया,
आपका छोटा सा सरौता,
आपका रूमाल,
छोटी सी गिलसिया,
विश्वनाथ ज्वैलर्स का नन्हा सा जिप वाला पर्स सब वैसे ही अपनी जगह पर थे.
बस हम  सब
अपनी अपनी जगह
झकझोर कर हिला दिए गए थे .....
और शायद आज तक स्थिर नहीं हो पाए हैं....
.
मेरे आते समय
आज भी भाभी हल्दी,
दूब और चावल से खोंइछा भरती है
और फेर लेती है...
थोड़ा सा चावल
पांच बार ये कह कर...
" आती रहिएगा दीदी" ....
बड़ा संतोष और सुकून मिलता है सुनकर...
पर इस विदाई में.....
एक अजीब सी कमी महसूस होती रहती है.....
. .
आते समय आप दोनों की तस्वीर को प्रणाम करती हूँ तब,
जैसे दिल को कोई मुट्ठी में जकड़ लेता है.....
कहना चाहती हूँ आपसे....
जैसे हमेशा कहती थी.
..
मम्मी जल्दी प्रोग्राम बनाइएगा आने का....
इस बार ज्यादा दिन के लिए...
.
जल्दी आइएगा मम्मी .
.
जल्दी ही...
. ठीक है न ??? ..
..
(अकेली बेटियों  का अकेलापन  अकथनीय होता है मम्मी ....... वो कभी बड़ी नहीं हो पातीं.... )

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