गर्मी की छुट्टियाँ .......ओह्ह्ह्ह.... सुन कर ही कितना अच्छा लगता है .......और वो भी पूरे १/२ महीने की......सचमुच पूरे साल इंतज़ार रहता है इन छुट्टियों का......जब की ऐसा नहीं है की हम इन छुट्टियों में कहीं विदेश चले जाते हैं या किसी हिल स्टेशन पर चले जाते हैं............बस ये अच्छा लगता है की कहीं जाना नहीं है सिर्फ घर में ही रहना है........सुबह उठने की कोई जल्दी नहीं........आराम से उठो.......आराम से तीन चार बार चाय पियो...........आराम से टीवी देखो........जब मन हो नाश्ता करो..........जब मन हो नहाओ......क्या सुख है ये भी........किसी बात की हड़बड़ी नहीं..........घर में रहने का कितना बड़ा सुख है..........ये सिर्फ ८ घंटा घर से रोज बाहर रहने वाला समझ सकता है..................और मुझे अपने घर से ज्यादा अच्छी जगह दुनिया में कोई नहीं लगती....कहीं से भी घूम के आओ ...अपने घर का ताला खोलते वक़्त जो संतुष्टि मिलती है उसका कोई जवाब नहीं है..........मेरा अपना कमरा .........अपना ...बिस्तर .....अपनी किताबों से भरी आलमारी (मेरी लाइब्रेरी ) अपना कंप्यूटर........ मेरी अपनी रसोई ..............देख लिया मैंने जग सारा...अपना घर है सबसे प्यारा........
इधर जब से बच्चे पढ़ाई के लिए बाहर निकल गए हैं......तो हर साल गर्मी में उनके पास जाने का कार्यक्रम बन जाता है.........हमारे लिए भी थोडा स्थान परिवर्तन हो जाता है और बच्चे भी खुश हो लेते हैं........ये छोटी छोटी खुशियाँ हमारे जीवन में एक बहुत बड़े सकून का कारण हैं........व्यस्त जीवन से कुछ ऐसे पल चुरा लेना.....जो सिर्फ हमारे हों.......ओह्ह्हह्ह......कितना अच्छा लगता है...........
यह सच है की अपने सपने ....अपने शौक़ ....... मान्यताएं......उम्मीदें......और अपने आदर्श.......एक जैसे न हो तो पति पत्नी की नहीं निभ सकती......कितना भी प्रगाढ़ रिश्ता या आत्मीयता हो....पति पत्नी सिर्फ पास पास होते हैं साथ साथ नहीं............और इस मामले में मैं खुद को खुशनसीब मानती हूँ की हम दोनों की सभी बातें बहुत मिलती जुलती हैं........... ये जरूर है की ये मुझसे ज्यादा बातूनी हैं.......जहाँ मैं एक अच्छी श्रोता हूँ....ये अच्छे वक्ता हैं........अगर कोई अच्छा श्रोता मिल जाये तो इन वक़्त बहुत अच्छा बीत जाता है.......और जहाँ तक मेरा सवाल है.............. मुझे बोर होने का वक़्त ही नहीं मिलता........एक नियमित दिनचर्या..........पेंटिंग...............फिर ये किताबें.........इंटरनेट.......और फिर आराम..........
हाँ तो मैं गर्मियों की छुट्टियों की बात कर रही थी.......इस बार बिटिया रानी की बहुत इच्छा थी की हम दोनों हवाई जहाज से उसके पास आयें........अपनी पहली तनख्वाह उसने हमारे लिए गिफ्ट और हवाई जहाज का टिकट खरीदने में लगा दी........सचमुच उसका उत्साह देख कर हमने भी अपना मन बना लिया .........और मितव्ययिता पर उसे भाषण नहीं दिया........
सचमुच हम जीवन भर जोड़ने घटाने में ही लगे रहते हैं...........अपने मर्जी का कुछ कर ही नहीं पाते..........अब लगता है की कभी कभी समय के साथ बहना चाहिए.............जब उम्र होती है हम जोड़ते रहते हैं..................और जब इस लायक होते हैं..................की अपनी मर्जी से कुछ कर सकें तो उम्र उस लायक नहीं रहती.........स्वास्थ्य साथ नहीं देता.......दवाइयों की पोटली साथ लेकर चलनी पड़ती है........और ये सबसे बड़ा कष्ट है..........अब ये सोच कर अच्छा लगता है की बच्चे अब इस लायक हो गए हैं...........की उनको हमारी तरह या हमारे माँ बाप की तरह हाथ बाँध कर नहीं चलना पड़ेगा................जी भर कर कमाओ और जी भर कर खर्च करो........किसी चीज के लिए इच्छा होते हुए भी मन को मत दबाओ..............
इस बार हमारे हैदराबाद आने के लिए बिटिया ने हवाई यात्रा का प्रोग्राम बना दिया.......लखनऊ से दिल्ली होते हुए हैदराबाद......दिल्ली से बेटे को भी हमारे साथ ही जाना था........पहली हवाई यात्रा.........वो भी हम ..सबकी.....बड़े ही रोमांचित थे हम सब.........कहाँ और कैसे जाना है कैसे क्या करना है ..ये सभी जानकारियाँ मेरी बेटी कई दिन पहले से दे रही थी.....या यू कहूं कई दिन से हमारी क्लास ली जा रही थी........सिर्फ २० किलो सामान ले जाना है.........तो ये समझ में नहीं आ रहा था की क्या ले जाएँ और क्या न ले जायें........हर बार की तरह मिठाई...लड्डू....खुरमा और मठरी की तो कोई गुंजाइश ही नहीं थी...... ...यहाँ तक की अपने पेड़ के आम भी नहीं ला पाई........पतिदेव की सख्त मनाही थी.....की फालतू सामान नहीं ले जाना है.....आम हर जगह मिलता है.......पर उनको कैसे समझाती की अपने पेड़ के आम और अपनी बनाई हुई चीजो की बात ही कुछ और होती है .................खैर मन मार .कर ............. कुछ नहीं लाई ............बिटिया थोडा दुखी भी हुई पर क्या करूँ..??
..........खैर अब और आगे.........बड़े खुश मूड में हम लोग लखनऊ आये .....और अमौसी हवाई अड्डे तक पहुचे ..........सारी फोर्मेलीटीज़ करते करते चलने का वक़्त आया.......जब अनाउंस मेंट हुई कि अब हमारा जहाज जाने के लिए तैयार है तो एक बड़ी अजीब सी घबराहट महसूस होने लगी.......लगा की हमारा डिसीजन सही तो है न उड़ के जाने वाला.........शायद सभी के साथ ऐसा होता होगा......पर बेटी के बारबार फ़ोन करते रहने से एक हिम्मत सी बंधी हुई थी.......आखिरकार आखिरी दरवाज़ा खुला और हम लोग बाहर रन वे पर आये.........जीवन में कभी इतने पास से हवाई जहाज नहीं देखा था.........वहां खड़े कई जहाज देख कर अच्छा लगा......फिर हमारे वाले जहाज से सीढ़ी लगा दी गई........और हम लोग ऊपर पहुंचे........वहां बहुत अच्छे तरीके से मुस्कुरा कर एयर होस्टेस ने हमारा स्वागत किया........और हमारी सीट बताई.........अपनी अपनी जगह पर इत्मिनान से बैठ गए हम लोग........फिर एक एयर होस्टेस ने विमान में क्या क्या करना है और क्या क्या नहीं करना है सब समझाया .........कुछ बाते तो समझ में आई और कुछ नहीं.......पर कोई बात नहीं......अगली बार सही.......
बनारस से बार बार भतीजी और भाई का फ़ोन आरहा था.......क्या हुआ??? अभी जहाज उड़ा कि नहीं ???? ...जब उड़े तो बताना ........खैर उसे मेसेज किया कि अब फ़ोन बंद करना है......और दिल्ली पहुच कर बात होगी...........सभी के पेट पर बेल्ट बंधवाई गई.......फिर जहाज ने रनवे पर दौड़ना शुरू किया.......तो हालत ख़राब होने लगी........मेरे पतिदेव जो कभी झूले पर भी नहीं बैठ सकते.......सांस रोक कर बैठे थे ........फिर जहाज ने ज़मीन छोड़ दी............बेटी के कहने के अनुसार हमारे कान बंद से होने लगे थे........तुरंत कान में रुई लगाई गई....... ...दिल की धड़कने बढती जा रही थीं....................मैं तो बहुत उत्साह के साथ खिड़की से नीचे देखती रही.....और सुन्दर नजारो का पूरा मज़ा लेती रही..... ...............और अपने मोबाईल कैमरे से फोटोज भी लेती रही.......जिनमे से कुछ फोटोज बहुत सुन्दर आई हैं............बीच में एक बार दो एयर होस्टेज एक ट्राली पर कुछ खाने पीने का सामान और गिफ्ट देने लायक सामान लेकर आई.......जो इतने ज्यादा दाम के थे...की हमने सिर्फ पानी पिया.......और अपने साथ में लाया हुआ कुछ पापड़ी दालमोठ आदि खाया.........पतिदेव ने कुछ नहीं खाया ..............उनकी हालत देख कर बहुत हंसी आ रही थी और साथ ही तरस भी आरहा था......क्यों कि जब भी कभी हम लोग मेले आदि में बड़े वाले झूले में चढ़ते थे....तो वे हमारी तरफ देखते भी नहीं थे.......इतना डर लगता है उन्हें.......और आज उन्हें कुछ ऐसी ही परिस्थितियों से दो चार होना पड़ रहा था..........
खैर ५० मिनट के अन्दर हम लोग दिल्ली पहुच ही गए.......और वहां करीब एक घंटा रुकने के बाद हैदराबाद की तरफ जाना था........दिल्ली से बेटा हमें ज्वाइन करने वाला था........वो भी आ गया ............वहां पर हमने घूम कर पूरा जहाज देखा और कुछ फोटोज भी खींचे........दिल्ली का इन्द्रा गाँधी इंटरनेश्नल हवाई अड्डा बहुत बड़ा और सुन्दर है........वहां से दूसरी एयर होस्टेज आई......फिर से वही सब दोहराया गया......और जहाज फिर से उड़ चला..........वहां से करीब २ घंटे का रास्ता है हैदराबाद का..........इस बार का अनुभव बहुत अच्छा रहा ........ बहुत खूबसूरत दृश्य देखने को मिले........कितना अच्छा लगता है बादलो के ऊपर हो कर उड़ना.......उसे महसूस करना.........शायद स्वर्ग ऐसा ही लगता होगा......मैं और मेरे साथ एक परिचिता खूब एन्जॉय कर रहे थे और मैं सोचती हूँ कि .........उस दिन अगल बगल के सभी लोग शायद जान गए होंगे......कि हम लोग पहली बार जहाज में बैठे हैं...........पर हम लोग झिझक और शर्म छोड़ कर खूब हँसे और मजे लिए........अपने पतिदेव की भी खूब खिंचाई की........बेटे को भी थोडा सा परेशानी हुई.......पर उसे भी बहुत मजा आया............
आखिरकार हम सात बजे हैदराबाद राजीव गाँधी एयर पोर्ट पहुच गए.......बिटिया हमें लेने आई थी......बेहद खूब सूरत और साफसुथरा एअरपोर्ट है यहाँ......यहाँ भी कुछ फोटोज ली हमने..............और इस तरह हमारी पहली हवाई यात्रा का अंत हुआ...................
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very nice
ReplyDeleteआपकी रिपोर्ताज शैली अच्छी लगी, कीप इट अप
ReplyDeletethanksss..... hai bhaiya ji......
ReplyDeleteBaht achchha hai. Isme kuch aur story badhao. Keep it up.
ReplyDeleteKK Tewari
arey kk esmey accha kya hai? tumhari sari pol patti khol ke rakh di... main to tumhari plane main kya haalat horahi hogi usey main lucknow main baith kar mahsoos kar raha tha. Smita esne kasam kha lee hai Hydrabad kya kahin bhee bike se chala jaaunga par aero plane ... na baba na...haha...ha. SMITA ACCHA LIKHATI HO, SARA BHASHA AUR FEELINGS KE SATH. SHUBH KAMNAYE
ReplyDeleteye koi story nahi hai......ye to sirf hamara niji anubhav hai......
ReplyDeletethanks....rajiv da......aur bhi sare blogs padhiye....aur apni pratikriya dijiye......
ReplyDeleteBanaras se Chtka Pappu likhte hain ki Waah Bhai Waah! Udo, khoob udo Hawai Jahaj me, akele-akele. Hum sapariwar Zameenway se baith kar Didi-Jija ko udte Hawai Jahaj me dekh kar santosh kar rahe hain. Achchha likha hai, maza a gaya padh kar.
ReplyDeleteChotka Pappu, Banaras