आज हर कोई कुछ न कुछ बेच रहा है। मैं सुबह वाट्सैप खोलने के बाद से लेकर रात को सोने के वक्त तक दिन भर कुछ न कुछ खरीदने का ही सोच रही होती हूँ....अक्सर खरीदती भी रहती हूँ..... . पहले कभी भी ऐसी जरूरत नहीं महसूस होती थी.. मुझे अक्सर वो दिन याद आता है जब मैं नौकरी नहीं करती थी और दिन में एक बार भी सिवाए किताबों, रंगों और कला से संबंधित चीजों के कुछ और खरीदने का नहीं सोचती थी......
बोहोत ही उम्दा 👏, ये लेख हमें वास्तविकता से रूबरू कराती है♥️
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