प्रिय किताबों की श्रृंखला में पापा जी के बहुत अच्छे मित्र श्री चंद्र किशोर जायसवाल की पुस्तकों का नाम न लूं ऐसा नहीं हो सकता..... उनके कई। उपन्यास और कहानी संग्रह पढने का सौभाग्य मुझे मिला है... जिनमें से कई मेरे संग्रह में हैं.... उनकी भाषा शैली और कहानी कहने का अंदाज गजब का है..... मैं अक्सर जोर जोर से पढ़ कर सुनाती थी और मम्मी पापा बडी ही दिलचस्पी से सुनते थे.... एक दो बार जब वे घर पर आये तो उनकी वाणी में ही उनकी रचनाएं सुनी गईं.... "नकबेसर कागा ले भागा", "मैं नहि माखन खायो"..."गवाह गैरहाजिर"... "मर गया दीपनाथ" सब एक से बढ़कर एक हैं....
वाह🌼🌼
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