लिखिए अपनी भाषा में

Tuesday, June 28, 2022

ऊहापोह

अतीत से बहुत प्यार नहीं करना चाहिए..... इन दो सालों में जीवन में इतना उतार चढाव देख लेने के बाद मन दिग्भ्रमित सा हो गया है..... याद में जो बातें थीं, उनसे अधिक लगभग बेहिसाब बातें सोच लेना एक तरह से खुद को गले तक लबालब भर लेना ही तो है ...... अक्सर आधी रात को नींद उचट जाती है.... डर लगता है कि ये तो अभी  आधी रात ही बीती है .... अब नींद न आई तो?  और अक्सर नहीं ही आती.. जागती ही रह जाती हूँ.....

 वे सारी जगहें, जो सालों पहले  पीछे छूट चुकीं.. उस समय का अब कोई मित्र साथी भी नहीं..... वहां तक सिर्फ सपनों में लौटा जा सकता है...... वास्तव में उन सभी जगहों का तो जैसे अस्तित्व ही मिट चुका है......वो सारी जगहें एक नये कलेवर, नए रूपरंग और नई खुशबू के साथ मौजूद हैं जिन्हें मैं नहीं पहचान पाती... और वो भी शायद मुझे नहीं पहचान सकें.... 

जीवन के अवसान के बारे में कुछ नहीं सोचती हूँ........मगर चीज़ें इस तरह की शक्ल लेती हैं कि उनमें उलझी खोई सिहरती रहती हूँ.....आज सुबह सुबह एक साथी स्टाफ के पति का अचानक देहावसान..... आंखें खुलते ही पहला समाचार यही मिला..... तब से अजीब सा मन हो रहा है... इतने किस्से सुनाई दे रहे हैं  कि दिल दहल जाता है.... पता नही क्या हो रहा है ये सब?? बहुत मन दुखी हो गया है...... हे भगवान् 🙏सबपर कृपा दृष्टि बनाए रखो😢😢
          ये  भी बीत गया, वो भी चला गया और जाने कौन कितना बचा है? डर सा बैठ गया है मन में...... अजीब सा संदेह, अनजाना भय और अंतहीन पीड़ा। बस इतना भर ही जो तंद्रा या अधखुली जागती सी नींद में होता है... 
शायद बेमतलब और बेवजह की बातों की तलाश में ही अतीत में इतना गहरा  डूबती  उतराती रहती हूँ..... हर चीज को शक्ल देने की दोबारा कोशिश क्यों करती हूँ......जैसा चल रहा है वैसा ही चलने क्यों नहीं  देना चाहती.... ये ही सब सोचती हुई रोज सुबह से पहले के वक़्त में सो जाना चाहती हूँ। आजकल की रातें बहुत गर्म है। बेचैन सी   ऊहापोह से भरी....एसी की हवा भी बस छू कर ही गुजरती रहती है... तृप्त नहीं करती...... 

         बहुत अच्छा लिख पाना मुझे अभी तक आया नहीं है...  पर कोशिश है कि अच्छा लिख सकूं.... हां मैंने  अगर किसी से कुछ कह दिया हो तो उसके लिए माफी मांग लेना चाहती हूँ और ऐसी सभी गलतियों के लिए भी जो मैने कभी की ही नहीं.... 
              सबकुछ छलावा सा लगता है मगर मैं बार बार कोशिश करती हूँ कि काश एक मुलाक़ात हो सके.... बस एक बार... . मां से.... पापा से.... भाई से...... जाने किस से...क्या सबके मन में भी ऐसी बातें आती  हैँ? 
        ऊपर वाले की क्रोनोलॉजी धरती से अलग होती हैँ......यहां का जन्मदिन वहां एप्लाई नहीं होता.. जिस दिन पर्ची कटेगी, न कोई जान/समझ पायेगा और न कुछ कर पायेगा, जिनके लिए सारी उम्र खपे हैं......प्राणपण से चाहा है जिन्हें... हजारों आंसू बहाए हैं जिनके लिए..... वो भी कहेंगे " शुभस्य शीघ्रम् "......
.
.
(नोयडा - 13-6-22)

No comments:

Post a Comment