लिखिए अपनी भाषा में

Thursday, December 15, 2022

मनकापुर की यादें

उस गली/घर ने सुन के ये सबर किया
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं......

         आज इतने सालों के बाद आखिरकार अब मनकापुर को अलविदा कहने का समय आ गया है.... मुझे आज भी पहले दिन से लेकर आज तक के सभी पल याद हैं.. जैसे-जैसे जाने के दिन आते जा रहे हैं...... अंदरुनी लगाव बढ़ता ही जा रहा है... एक अनोखा जुड़ाव है मनकापुर से...... ऐसा लगता है जैसे कल ही वह दिन था जब इस जगह पर मैं पहली बार आई थी..शादी के बाद .... नई नई गृहस्थी यहीं शुरू की... .  1986 में जनवरी की चौथी तारीख..... सभी लोग नये थे.... ज्यादातर  युवा पीढ़ी..... नए नए शादी शुदा जोड़े......... नए  नए बने मम्मी पापा..... नई जगह...... चारों तरफ धूल मिट्टी, नई नई इमारतों  का कंस्ट्रक्शन...नया शॉपिंग काम्प्लेक्स, नया स्वीमिंग पूल, आफिसर्स क्लब, तीन स्कूलों की इमारतें सब तैयार किए जा  रहे थे.... एक पूरा खूबसूरत शहर... बनता जा रहा था.... .
        
         आज जीर्ण शीर्ण.... बुजुर्गियत की ओर बढ रहे फ्लैट्स की नींवें खुद रही थीं उस समय..... ट्रेन से आते समय बहुत दूर से ही मनकापुर की खूबसूरत नारंगी स्ट्रीट लाइट्स की रोशनी का घेरा दिखाई देना शुरू हो जाता था...... जो छोटे छोटे पौधे ईंटों की छोटी छोटी..... कुएँ जैसी चार दीवारी लगा कर घेरे गए थे.... आज 38 सालों में पूरे घने प्रौढ़ पेड़ों में तब्दील हो चुके हैं चारों तरफ इतनी ज्यादा हरियाली है कि कहीं भी बाहर कुछ दिनों के लिए जाने के बाद ऐसा हरा भरा माहौल देखने के लिए दिल बेचैन होने लगता है....  बारिश के मौसम में तो यहां की खूबसूरती और सुकून बस्सस..... कहना ही क्या....सुबह सुबह चिडियों की मधुर चहचहाहट.......से ही नींद खुलती है....टिकरी जंगल करीब होने से लोमड़ी और सियार, साही जैसे जानवर भी आते जाते देखे.....मोर भी बिना हिचक लॉन में टहलते देखे जा सकते हैं....... बस अद्भुत ही माहौल बना रहता है....
                  एक समय था जब मनकापुर हमारे लिए एक दम अनजाना था.... बल्कि यूं कहूँ कि पतिदेव की ज्वाइनिंग से पहले कभी मनकापुर का नाम तक नहीं सुना था..... इसलिए मन में एक डर और  घबराहट सी बनी हुई थी...पढाई पूरी करने के लिए 1988-89 तक बनारस आना जाना लगा रहा....90 में जब पहली बार जॉब ज्वाइन किया तब से मनकापुर हमारा स्थाई पता बन गया...ए-208 से शुरू हुआ सफर डी-55 तक पतिदेव के पदानुसार चला..... और विगत दस वर्षों से टीचर्स को मिलने वाले अपने लिए एलॉटेड बी टाइप फ्लैट से अब ये सुंदर सफर समाप्त हो रहा है ....
        शुरूआत में थोड़ा अंतर्मुखी और व्यस्त रहने की वजह से लोगों से बहुत घनिष्ठता नहीं हुई.... पर पतिदेव के जन संपर्क अधिकारी होने के कारण. अनगिनत लोगों से मुलाकात जान-पहचान होती रही..... धीरे-धीरे मोटे तौर पर बहुत खास और अलग-अलग रिश्ते जुड़ते गए.... यदि मेरे परिवार के बाद कहीं भी मैं अपना एक खास स्थान रखती हूँ तो यह मेरा दूसरा घर है.... एक कलाकार और चित्रकार दंपति के रूप में हम पति-पत्नी को यहाँ भरपूर इज्जत और शोहरत मिली.....बेहद संतुष्ट, शांतिपूर्ण और सुखद समय बिताया है यहां हमने..... मनकापुर राजपरिवार से लेकर जाने माने साहित्यकारों कवियों, कलाकारों से भी व्यक्तिगत रुप से हम पति-पत्नी के मधुर संबंध रहे...जो अविस्मरणीय हैं....

       समय किसी के लिए रुकता नहीं है, मेरे रिटायरमेंट के अवसर पर हमारे बच्चे यहां मनकापुर आए..... मनकापुर में बिताया जीवन/बचपन बार बार खींचता है उन्हें भी...
वो अपने पुराने शिक्षकों और मेरे पुराने साथियों से मिलने के इच्छुक थे....वे सभी स्कूल आए.... स्कूल तक आने पर बहुत  से साथियों से मुलाकात हुई भी...... अब यहां से जाने के बाद संभवतः फिर सबका एक साथ एकत्र हो पाना नहीं हो पाता.....  हम सबकी भी इच्छा थी कि थोड़ा समय हम सब एक साथ बिताते.....
           पहली बार नाती  और मेरी बहूरानी के आगमन और नाती की दूसरी वर्षगांठ  पर एक छोटी सी पार्टी करने की भी दिली तमन्ना थी....... पर मेरे रिटायर होने की तारीख, बच्चों की पांच दिनों की छुट्टी, स्कूल में गांधी जयंती और दशहरे की चार-पांच दिनों की छुट्टियां सब आपस में ऐसा गड्ड-मड्ड हुईं कि मन लायक कुछ हो ही नहीं पाया...... ज्यादातर लोग ज्वाइन नहीं कर सके.... खैर जो भी आए मैं उनकी शुक्र गुजार हूँ......अब पता नहीं यहाँ से जाने के बाद फिर कभी उन सबसे जीवन में मुलाकात होगी या नहीं.... नहीं जानती........ अपनी मित्रों के इस छुअन भरे   स्नेह के  सामने मुझे धन्यवाद कहना बहुत छोटा और औपचारिक लग रहा है...... .
         अब मनकापुर छोडने का वक्त नजदीक है...... मनकापुर छोड़ते हुए.... मुझे लग रहा है जैसे  38 सालों से आज तक हमेशा हर जगह लिखा जाता रहा..मेरा स्थाई पता अब खोने वाला  है.... एक बड़ी कमी, एक अधूरापन सा महसूस हो रहा है.... जैसे मैं किसी ऐसे अनजान स्टेशन पर उतरने वाली हूँ....... जिस स्टेशन का नाम तक मुझे मालूम  नहीं है.... अब फिर से एक नया शहर.....नई शक्ल में देखूँगी...... और हर तरफ एक नई ख़ुशबू महसूस करूँगी ......लगता है फिर सबकुछ नए सिरे से शुरू करना होगा......
शायद इसी तरह मैं अपने सपनों को ज़िंदा रख सकती हूँ ......
               कई जगहों की लिस्ट बना रखी है जहां जाने की बड़ी तमन्ना है.....और आज तक कामकाजी व्यस्तता की वजह से नहीं जा सकी....पर अब मैं वो सारी जगहें  देखना चाहती हूँ....(पर शायद अब धीरे धीरे शरीर साथ नहीं दे रहा)..... मैं हर उस शख्स से मिलकर इत्मिनान से ढेरों बातें करना चाहती हूँ ,जिससे कभी न कभी मिलने का वादा किया था... कई किताबें दो- चार पन्ने पढ़ कर  रख दीं थीं ये सोचकर कि कभी किसी दिन फुर्सत में पढूँगी..... अब वो सारी किताबें फिर से और आराम से पढ़ना चाहती हूँ...... ढेर सारी पेंटिंग्स बना लेने का मन है...और कुछ जगहों पर एग्जिबिशन लगाने का भी... .
           अब रसोई में  वो हर ऊलजलूल एक्सपेरिमेंट करना चाहती हूँ जो कभी इस डर से नही किया कि कहीं गडबड़ न हो जाए.... मुझे नहीं पता कि ये सच है या मैं किसी गलतफहमी में हूँ..... पर अब लगता है कि अब तक जिंदगी का एक लंबा दौर सिर्फ दूसरों को खुश करने, रोजी कमाने या दुनिया के बोसीदा से खांचे में खुद को एडजस्ट करने की जद्दोजहद में ही बिता  दिया है पर अब ये वाली पारी तो मेरी होनी चाहिये.....अब अपनी मर्जी से बाकी बचे हुए दिन... जी लेने की इच्छा है....... बिना किसी बंदिश के.....बच्चों के बीच.... बच्चों के साथ..... अपने प्यारे दुलारों के  इर्द-गिर्द गुजरती ये जिंदगी...

शायद..जिंदगी का सबसे खूबसूरत दौर जीने का मौका मिला है अब ❤️

         
मुझे इस जगह से बहुत कुछ मिला है, जो मैं  यहां से अपने साथ ले जा रही हूं..... मैं अपने जीवन में मनकापुर से जुड़े इन 38 सालों को कभी नहीं भूलूंगी.... आखिर हम सभी को एक न एक दिन अलग होना ही था, मैं प्रार्थना करूंगी कि इतने लंबे समय के मेरे साथी सहयोगी, मेरी  सहेलियाँ, मेरे तमाम प्यारे बच्चे... मेरे छात्र - छात्राएं हमेशा खुश रहें और अपने जीवन में बहुत प्रगति करें और एक दिन वे निश्चित रूप से अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे।
मैं सभी के सुखद भविष्य की कामना करती हूं...

मैं रिटायरमेंट के बाद की मेरी जिंदगी को एक तरह से खुशनुमा छुट्टियों की तरह मान रही हूँ और आशा करती हूँ कि यहाँ के साथी गण भी हमें नहीं भुलाएंगे..... आप सब मुझे बहुत याद आएंगे...

        आज एक ऐसा दिन है जब हम इतने दिनों तक इस जगह पर बिताए गए सभी अच्छे और बुरे पलों को याद कर रहे हैं और हम यहां से अच्छे समय की यादों को अपने साथ ले जाने की कोशिश भी कर रहे हैं.....
आज आईटीआई में हमारा आखिरी दिन है, कल के बाद  यहां हम नहीं मिलेंगे या दिखेंगे........आखिरकार घर लौटना ही अंतिम नियति है और जो नही लौटते  पता नही उनके साथ क्या कैसा रहता है...... मनकापुर का बहुत मोह बना हुआ है.... शायद यहाँ के पानी- मिट्टी की ही खासियत है... .मोह छूटता ही नहीं......
मुझे भी मोक्ष नहीं चाहिए......
मैं इसी मोह-माया में ही रहना चाहती हूँ....
मोह माया जल्दी छूटती नहीं.......हर इंसान के जीवन में एक वक्त आता है जब इंसान ये समझ ही जाता है कि खुशियाँ बहुत बड़ी-बड़ी उपलब्धियों  में नहीं जिंदगी से जुड़ी छोटी-छोटी बातों में छुपी होती है........शायद अपनी व्यस्तता और कहीं मूर्खता वश भी......  मैं  यहाँ तक पहुँचने में काफी लेट हो गयी... मुझे नहीं पता ये क्या है, ये उम्र और जीवन का कौन सा पड़ाव है........ हो सकता है  ये मेरी समझ नहीं मेरा भरम भर हो पर जो भी है अच्छा है.......
अच्छा लग रहा है........ अब तो बस ऐसा ही है जैसे--

फिर बहार आई, वही दश्त-ए-नवर्दी होगी,
फिर वही पाँव , वही ख़ार-ए-मुगीलां होंगे
                            -मोमिन
दस्त-ए-नवर्दी-- वीरानों में भटकना
खार-ए-मुगीलां--बबूल के कांटे
.
.
.
(मनकापुर में आखिरी हफ्ते की डायरी)

 हमारी गली 2012-----2022

7 comments:

  1. तुम्हारी सार्वजनिक हुई डायरी का पहला पन्ना पढ़ा हमने आज... वाह..😀💕 ..शानदार है..👌 ..हँस-मुस्कुरा रहा हूँ इसलिए कि..पढ़ते-पढ़ते डबडबाई आँखों का पानी कहीं बाहर न छलक जाए...👍

    ReplyDelete
    Replies
    1. हम तो लिखते लिखते कई बार रोए हैं 😢😢😢😢

      Delete
  2. आप हमेशा मेरे लिए अजीज़ रहेंगी। बोहोत ही सुंदर लिखावट और वर्णन। मनकापुर छोड़ना कैसा है ये सिर्फ यहां के लोग ही समझ सकते हैं। टाउनशिप्स बोहोत होंगी लेकिन ऐसा माहौल और लोग निश्चित ही कहीं नहीं हैं।
    एक इंसान जीवन में दो चीजें सबसे zada याद रखता है, एक उसका पहला टीचर, उसकी मां, और एक उसके स्कूल की पहली टीचर, मेरे लिए आप मां समान ही हैं।
    ❤️❤️❤️

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत सारा प्यार और झप्पी बेटा 😍😍😍😍😍

      Delete
  3. जितना भी अच्छा कहेंगे उतना ही कम होगा आपके इस लेख के लिए इतना इतना अच्छा लिखा है आपने कि मेरे शब्द कम पड़ रहे हैं आज मिस। आपने सबके "मन का मनकापुर" लिख दिया है अपने सुंदर शब्दों में। आपका यह लेख पढ़कर पुराने दिन याद आ गए। सच में मनकापुर ऐसी मनमोहक जगह है जहां से जाने का हर किसी को गम हुआ है और आगे भी होगा। इस जगह ने हर एक को अपना बना लिया इसीलिए इस जगह से बिछड़ते समय इतना ज्यादा दुख होता है। और ज्यादा क्या ही कहूं आप लोग जहां भी रहे स्वस्थ रहें और खुश रहें।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत सारा प्यार और झप्पी 😍😍😍😍खूब खूब खुश रहो

      Delete
    2. बहुत सुंदर यादें समेटी हैं ,आपने।इतने दिनों तक मनकापुर में रहने पर गहरा लगाव स्वाभाविक है। इन सबको छोड़ते कसक तो होगी ही। पर जीवन का इतना लंबा समय आपने इतनी खूबसूरती से बिताया, यह सम्बल भी कम नहीं। आपके पास इतनी ख़ूबसूरत यादें हैं।
      आगामी जीवन की ढेरों शुभकामनाएं !
      (मनकापुर के कुछ चित्र और होने चाहिए थे :) )

      Delete