*याद हम आएंगे बेहद*
अब से कुछ सदियों का वक़्फ़ा
कट गुज़र जाने के बाद
खून के आंसू बहाता
ज़ख्म भर जाने के बाद
जब कभी भी
धुंध में लिपटा हुआ
माज़ी निकाला जाएगा
दर्द के गरदाये पन्नों को
खंगाला जाएगा
याद हम आएंगे बेहद।
वो तरक्की से लबालब
लोग जब चर्चा करेंगे
और तस्वीरों पे उंगली
रख के ये बोला करेंगे-
ये वही हैं लोग
जो खूनी वबा से
एकजुट होकर लड़े थे
एक जां होकर खड़े थे।
जब से आदम ने ज़मीं पर
पांव फैलाये तभी से
कट गया था
बंट गया था।
तेरा-मेरा
और मैं-तू
ने बहुत तोड़ा हुआ था।
जात-मजहब
खिश्तो-खित्तों
रंग, नस्लों और गुरूरों ने
जुदा करके रखा था।
हम कॅरोना को भले
खुशकिस्मती कहने न पाएं
पर यही वो पहली शय है
जो हमें है पास लाई
जिसने आदम की कड़ी को
फिर से यकजहती सिखाई
सारा आलम
इस वबा से
जूझने में मुब्तिला है
एक डर है
एक चिंता
एक सा ही हौसला है।
ख़ुद भी बचने
और बचाने
की जुगत में सब लगे हैं
दूर रह कर
दूसरों के पास ज्यादा आ गए हैं ।
अब से कुछ सदियों का वक़्फ़ा
कट गुज़र जाने के बाद
खून के आंसू बहाता
ज़ख्म भर जाने के बाद
जब कभी भी
धुंध में लिपटा हुआ
माज़ी निकाला जाएगा
दर्द के गरदाये पन्नों को
खंगाला जाएगा
याद हम आएंगे बेहद।
-अशोक अग्रवाल
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