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Saturday, April 18, 2015

ऐसे ही.……।



           कितनी मशीनी और बेरंग हो चली है हमारी जिंदगी..जिसमे न दूसरों  के लिए वक़्त है न खुद  के लिए........कई बार इस तनाव भरी जिंदगी से दूर भागने का मन करता है .....जहाँ पर सिर्फ  अपनों का प्यार हो सुकून हो....पर जीना तो इसी जिंदगी में है ......लिहाजा इसी को थोड़ा रंगीन बनाना  होगा....थोड़ा आत्मीय बनाना होगा.... ताकि कुछ पल हम अपनों के साथ बिता सकें.....कभी कभी याद करती हूँ कि कैसे  मम्मी कहा करती थीं कि उन्होंने अपने लिए तो कोई सपना देखा ही नहीं......जो कुछ देखा वो हमारे लिए ही देखा .....हमें खुल कर जीने का अवसर देना ...और हमारी महत्वाकांक्षाओं में रंग भरना ही ........उन्होंने अपनी जिम्मेदारी समझ ली थी.....और अब शायद मैं भी वही करना चाहती हूँ.......या काफी हद तक किया भी है......शायद एक उम्र में आकर सभी माँएं ऐसा ही करती हैं...अपने बच्चों के लिए एक बेहद खूबसूरत सुनहरे कल का सपना देखती हैं ......भले ही उसके लिए उन्हें अपना आज दांव पे लगा देना पड़े....अपने शौक़....अपनी इच्छाएं...अपनी तमन्नायें...अपना कैरियर....सब दरकिनार कर सिर्फ और सिर्फ अपने बच्चों ....अपने परिवार के लिए जीने लगती हैं....उनकी आंखो  मे बस यही सपना घर बना लेता है....कि  मेरा बेटा... खूब बड़ा अफसर बने ....बेटा  बेटी खूब अच्छी नौकरी में आजायें.......उनकी खूब अच्छी शादी हो और उन्हें      उनका मनचाहा दुनिया का हर सुख   हर ख़ुशी मिले......

बच्चे धीरे धीरे    कब माँ के सपनों की दुनिया से निकल कर अपनी अपनी दुनिया बना लेते हैं......पता ही नहीं चलता.....वो बच्चे जो हमसे पूछे बिना एक पेंसिल तक नहीं खरीदते थे......बड़े  बड़े  डिसीजन्स  खुद लेने  लगते  हैं...बिना हमारे साथ गए...पास के .बाज़ार तक नहीं जाते थे.....वो विदेशों तक हो आते हैं.....वहीँ जाकर बस जाते हैं......पेरेंट्स का बोलना उन्हें ख्वामख्वाह की दखलंदाजी लगने लगता है .....आस पास ऐसा माहौल देखते हुए खुद को भाग्यशाली पाती हूँ...कि कम से कम हमारी जिंदगी  में तो अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ....और भविष्य में भी ऐसा न हो यही उम्मीद करती हूँ
…।

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