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Monday, January 2, 2023

ऐसी ही हूँ मैं

               उम्र के इस मोड़ पर आ के  मैं अब चीजों से मोह नहीं रखना चाहती और न ही नई चीजों को पाने या लेने की कोई ललक रहती है....... कबर्ड  में ज़्यादा कपड़े देख कर अब उलझन होने लगी है.... बहुत  सोच समझ कर ही लेती हूँ कि पहन पाऊँगी या नहीं क्योंकि अब सिर्फ़ कम्फर्टेबल ढीले-ढाले कपड़े ही पहन पाती हूँ........ 
           बचपन मे मैंने भी कम खिलौनो से खेला....... गिने चुने ही खिलौने रहे मेरे पास....... ज़्यादा की चाह रही भी नहीं। न दूसरे बच्चों के खिलौनों को देख कर कभी  जी ललचाया...... 
            बेहिसाब लापरवाह होने के बाद भी अपनो की निशानियों को बचपन से ही सहेज सहेज कर रखना आ गया था..... बेस्ट फ्रेंड की ढेर सारी चिट्ठियां और ग्रीटिंग कार्ड बरसों संभाल के रखे रही..... वो ग्रीटिंग कार्ड कॉलेज के टाइम तक थी मेरे पास......अपने 32 वर्षों के अध्यापन कार्य काल के दौरान छात्र छात्राओं बच्चों के दिए अनगिनत प्यारे प्यारे कार्ड्स.... आज भी मेरे पास धरे हैं..... .  कितनी प्यारी प्यारी चीजें..... सहेलियों के दिए छोटे छोटे गिफ़्ट मेरे बनाए तमाम स्केचेज ड्राइंग्स....कितने क्रिकेटर्स, चार छः फिल्म कलाकारों कुछ लेखकों, कवियों के आटोग्राफ से भरी मेरी आटोग्राफ बुक..... . सब कुछ सम्भाल कर रखती थी....... बनारस की भयावह बाढ़ में मेरा ट्रंक 20 दिन तक डूबा रहा और उसमे कितने सारे मेरे सपने और खूबसूरत चीजें  गीले कीचड और मलबे में बदल गईं......
          अंतर्मुखी स्वभाव के चलते.... दोस्त भी बहुत कम बनाए... ... उन्हीं से दोस्ती होती जो दिल मे घर कर जाते....और जिंदगी में अगर सचमुच किसी को चाहा और जिससे प्यार हुआ बस उसी के हो कर रह गए........ बस ऐसी ही हूँ मैं... खुल कर लडाई झगड़ा करने का कभी नेचर नहीं रहा..... किसी के कुछ कह देने पर रो धो कर चुप हो जाती रही हूँ..... 
               अब जाकर 2-4 साल से कुछ चेंज करने की कोशिश की है  ख़ुद को.... मैं मजाक नहीं करती कभी और दिल दुखाने वाले और अश्लील मजाक तो कभी नहीं...... और ये भी कभी पसंद नहीं किया कि  कोई मेरा मजाक बनाए या उड़ाए...... अब बहुत प्रैक्टिकल हो गयी हूँ.... मैंने भी कुछ समय पहले कुछ लोगों का व्यवहार बहुत बुरा महसूस किया..... और हमेशा के लिए उनसे संपर्क तोड़ लिया..... मैं अपने आप से बहुत प्यार करती हूँ...... अब ख़ुद को गिफ्ट देती हूँ कभी कभी.....अब कोई लालसा सी नहीं रही जैसे.... बहुत बचा लिया.... बच्चे अब समर्थ हैं अपने पांवों  पर खड़े हैं...... 
किसके लिए बचाना है? जिसे ज़रूरत होगी अपने लिए कमा लेगा..... 
                  गम नही करती अब मैं...... खुद को समझा बुझा कर खुद ही नॉर्मल कर लेती हूँ...... मैं तो हमेशा से ही ऐसी रही....... मिनिमम में काम चलाने वाली....... भंडार भरकर कभी रखा ही नहीं......पर चाहे अनचाहे.... नौकरी के चक्कर में साडियों /कपडों का ढेर लग गया......कपडों का शौक रहा है बचपन से ही और बचपन में जो शौक पूरे नहीं हो सके...... वो अब तक गाहे-बगाहे करती रही......खूब बांटा भी.... बिना किसी से पूछे.... बस उठाया और दे दिया......जब तक चीजें सामने दिखती रहती हैं मोह लगता है पर अब एकदम निर्मोही बन कर आंखे बंद कर लेती हूँ...... अब तक  जितना सम्भालकर जो भी रखा....... दे दिया..... 
                  भावुक हूँ बहुत...... भुला नहीं पाती..... अगर दुःखी भी हूँ तो किसी को ज़ाहिर नहीं करती.... लेकिन फ़र्क़ न पड़े,.... ऐसा नहीं होता.... बहुत पड़ता है,...बहुत ज़्यादा पड़ता है.... .. कभी किसी ने कुछ भी किया हो मेरे लिए, अपनी ताक़त से ज़्यादा ही उसके लिए कुछ करने की कोशिश करती हूँ...... हमेशा एहसानमन्द रहती हूँ...... कुछ अच्छा कहा हो तब भी..... और अगर कभी किसी ने मुझे रुलाया हो या चोट पंहुचाई हो तो उस समय अवाइड तो कर देती हूँ, पर दिल से भुला नहीं पाती....... अपना ग़म अपने तक ही रखा हमेशा.... मेरा मन मुझसे जुड़ी हर चीज़ में अटका रहता है..... कितनी लिमिटेड चीजें थीं बचपन में......पर  कभी नई नई चीज़ें दूसरों के पास देख कर ललचाई नहीं.....  जो कुछ भी मेरे पास है, जब तक वह ठीक-ठाक काम दे रहा, नए का क्या ढेर लगाना....... खिलौने हों, चप्पल-8 जूते हों, घड़ियां, हैंड बैग, बरसों चलाया...... सिलाई करने का शौक चढा तो कितने ही दिनों तक खुद के सिले हुए ही सलवार कुर्ते पहने....... भले वो कैसे भी सिले हों.... यूनिवर्सिटी में उन्हीं सूट्स को पहन के जाती रही निःसंकोच बिना शर्माए.......जब कि उस समय बेलबॉटम और डॉगकॉलर वाली नीतूसिंह टाइप शर्टस खूब फैशन में थीं..... बहुत चीज़ों का ढेर नहीं लगाया लेकिन जो भी पास था, प्यार से सहेजा......शो आफ करने की आदत नहीं रही..... 
            इंसानों के लिए भी यही भावना रही..... जिसने दिल में जगह बना ली, बस बना ली..... नाराज़ होना, शिकवे करना नहीं आया.... कभी उदास हुई या रूठी भी तो किसी से मनाने की उम्मीद नहीं लगाई....कभी हक़ जताना, धौंस जमाना नहीं आया...... 
               मेरा चीजों को सहेज कर रखने की, हिफ़ाज़त करने की,  ये सब कुछ बहुत अच्छी आदतें हैं... मुझमें भी यह मेरी मम्मी से आया है.... 
    अपनी चीजों से बहुत लगाव रहता है मुझे...कभी किसी की चीज छीनने की मंशा नहीं रही..... भले मेरी ही कितनी चीजें बिन पूछे ले ली गईं....और आजतक वापस नहीं मिलीं.... . 
पर अब चाहती हूँ बदल जाऊँ...... रिश्ते,सामान....हर चीज बहुत संभल कर रखी  ..मैंने ...पर अब  सीख  रही   हूं थोड़ा बहुत "छोडो जाने दो यार"... करना..... 
               आदमी जिंदगी भर ये सोचकर पैसा बचाता है कि मुसीबत में काम आएगा और ये ही सोचकर जिंदगी भर मुसीबत में ही रहता है..... 

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