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Thursday, January 5, 2023

मन की बात😢

कभी-कभी सोचती हूँ कितना अच्छा लगता होगा जब आप अपनी देवरानी, जेठानी या ननद भौजाइयों से सास- बहू और घर गृहस्थी, बाल बच्चों वाली, चुगली एक दूसरे की बुराई, घर कच्ची और परपंच छोड़कर..... सम सामयिक प्रसंगों, ज्वलंत विषयों और किताबों की बात कर सकें..... विश्व प्रसिद्ध लेखकों, कवियों और कविताओं की, कला और साहित्य की बात कर सकें......जहां आपको कोई "बहुत एडवांस" बहुत "पढीलिखी", "बहुत मेंटेन ", "अपने को बहुत समझती हैं "वाले कमेंट या ताने न दे.... हर एक के शौक या पसंद नापसंद एक सी नही हो सकती  ये तो जगजाहिर है......... पर किसी से गुण मिले या न मिले...... उनसे धीरे-धीरे मन तो मिलने  ही लग जाता है.....उनका संग-साथ अच्छा लगने लगता है..... ..मुझे यह बात का हमेशा कचोटती रहती है कि मैं इस मामले में बहुत भाग्यहीन रही.... इतने लंबे चौड़े.... लोगों से खचाखच भरे.... छुआछूत.... पूजा-पाठ (लगभग पाखंड) और दोहरा चरित्र जीने वाले कुनबे में मुझे कोई भी अपनी जैसी रूचि वाला इंसान नहीं मिला......
       अब तो अपने बच्चे ही आपस में प्रेम से रह लें..... तो माता पिता के लिए जन्नत है .... हमारी पीढ़ी तक तो रिश्ते अब भी बहुत हद तक संभाल के रक्खे हुए हैं..... हालाँकि अब मिलना जुलना उतना नहीं होता..... सभी की अपनी अपनी व्यस्तताएं हैं......समय ही ऐसा आ गया है.... उसके लिए किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.... पर कोई वैमनस्य नहीं है...... पर हमारे बच्चे शायद  उन्हे इतना नहीं संभाल पायेंगे........ बच्चे जानते ही नहीं बहुतों को..... आमना सामना ही नहीं हुआ..... शादी विवाह में भी व्यस्तता के कारण पहुंचना - मिलना नहीं हो पाता...... अब उनके  लिये रिश्तों से ज़्यादा दोस्तों की अहमियत है....उनका अपना सर्किल है अपना समाज है...... 
          रिटायर मेंट के बाद अब यहां से शिफ्ट होने की तैयारी में आज कल बहुत सारे पुराने कचरे(!) को साफ करने में लगी हुई हूँ.....एक समय बेहद प्रिय और जरूरी चीजें..... जो बड़े प्यार से खरीदी गई थीं.... बच्चों को मिले ढेरों इनाम, कप, गिफ़्ट वगैरह को कचरा कहना  रूला रहा है.... भरसक मैं यूँ भी  बहुत  सारी एक्स्ट्रा हो गई चीजे हटाते रहने और उन्हें जरुरतमन्द लोगों को  बांटते रहने मे विश्वास करती हूं..... इससे घर भी हल्का रहता है और मन भी....... काफी हद तक बहुत कुछ बांट ही दिया है....... 
             इसी सफाई के सिलसिले में  आज बडी मेज का ड्राअर खोल कर  कर बैठी थी..... नई  के साथ साथ बहुत सारी  पुरानी फोटुएं - चिट्ठियां भी हैं यही कोई  30-40 या 50 साल पुरानी भी..... उनमें से छांट कर  कुछ एक फोटोज और चिट्ठियां तो मैंने  फाड़  कर फेंक ही दीं ...... जो अब तक भावुकतावश सम्भाल कर रखी थीं...... उसमें..... बहुत सारे चेहरे  तो अब कोई पहचानेगा ही नहीं..... मैं खुद भी नही पहचान पा रही.... फिर  भी फोटो फाड़ना नही चाहिए... चिट्ठियां फाड़ना अच्छा नही होता... ऐसा सोच के  अब तक संजो के रखा था....... 
         बस लग रहा था जैसे कि चार या साढ़े चार दशक पीछे का फ्लैश बैक देख रही हूं.... उसमे से कितने ही   चेहरे तो अब हमेशा के लिए ही   तस्वीरों में तब्दील हो चुके है.... कितनी चिट्ठियां जो कितने अरमान कितने प्यार से लिखी गई हैं.... अब उनके उत्तर कभी नही आएंगे.... कितने सारे पुराने फोन नंबरों से भरी डायरियां.. जो नंबर अब कभी नहीं लगेंगे......उन नंबरों पर मिलने वाले बात करने वाले हमेशा के लिए बहुत दूर जा चुके हैं..... 
           देर रात तक  नींद नही  आई..... फ्लैश बैक में घूम रहा था मन...... जैसे कोई बहुत पुरानी  रंग उड़ी - बदरंग सी फिल्म देख रही हूं......पर यही सोचती रही कि फिल्म का अंत सुखद रहे बस..... 
     बहुत सुखद समय तो नहीं कहूंगी पर फिर भी बहुत अच्छा समय था वो.... फिर सबके बच्चे बड़े होते गये.....सब अपने पैरों पर खड़े हुए...... सबके शादी ,ब्याह हुए..... सब,बाल बच्चेदार हुए... माँ बाप से अलग हुए... और धीरे धीरे अपनी दुनिया मे सिमट गए...... चचेरे ,ममेरे रिश्ते सिमटने लगे...... बल्कि सगे रिश्ते भी धीरे-धीरे पट्टीदारियो में तब्दील होने लगे ..... और अब तो आपस मे  अच्छाइयाँ  देखनी  छोड़ कर बुराइयों की तलाश शुरू हो गई हैं.....बल्कि किसी का भी आगे बढ़ना, तरक्की करना.... किसी को नहीं सुहा रहा...ईर्ष्या दग्ध हो उठते हैं सब.... . 
     . अनजाने में भी किसी के मुंह से निकली  नापसन्द बात और व्यवहार का नकारात्मक छिद्रान्वेषण होने लगा। मन मलीन होने लगा है  और साथ ही रिश्तों पर धूल की परत जमने लगी है.....एक अनजानी सी शून्यता आने लगी है रिश्तों पर..... बस "जब देखें तब लागे मोह" वाली बात है.... 
         कितना अजीब है न यह सब कुछ...... पर आज ऐसा ही है.....सब  आपसी रिश्ते दूर करके बस दोस्तों में सिमटने लगे हैं..... .. सबको दिखाने के लिए अंदर से बिल्कुल ठंढे होते जा रहे  रिश्तो के ऊपर भी बनावटी खुशी, बनावटी गर्माहट का लबादा चढाने लगे हैं....... 
       सचमुच उन तस्वीरों - चिट्ठियों  में से कई बहुत नजदीकी  रिश्ते आपसी राजनीति के चलते अपने मे सिमट गये......बहुत चाहते हुए भी एक फोन तक करने में डर लगता है कि पता नही सामने वाले की क्या प्रतिक्रिया हो..... उनमे से बहुत रिश्तो को तो स्वयं मैंने बहुत शिद्दत से जिया है तो मेरा मन दुखी होना तो स्वःभाविक ही है.......पर विवशता है कुछ कर नहीं सकते 😢😢

2 comments:

  1. पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय...
    ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय...
    ...घर-परिवार और कुटुम्ब की बनावट व बिनावट ही ऐसी है.. मुंडे-मुंडे मतिर भिन:.. को एक सूत्र में बाँध सकना दुरुह होता है.. तो जैसा है या जैसा घट रहा है, उसे स्वीकार करना होगा.. सुन्दर भावाँजलि..👌💕

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  2. कोशिश ही की जा सकती है बस

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