इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नही हैं... सिवा अपने मन की खुशी के
अब तो लगता है बस वही करो जो अपना जी चाहे....
किसी की सुनने को मन नहीं....
बहुत जी लिए दूसरों की मर्ज़ी से...
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आज.....
अजीब सुस्त सी सुबह... ठहरा सा गीला गीला सा मौसम
अलसाई चादर... औंधी तकिया
ईजल पर पेंटिंग का कैनवास अधूरा...
रंगों की पैलेट, रंग, ब्रुश
चित्र पूरा किए जाने के लिए मेरा इंतज़ार करते हुए....
घर कुछ बिखरा बिखरा सा...
पर समेटने संवारने की कोई इच्छा नहीं....
घड़ी की लगातार टिक टिक...
पता नहीं लगातार चलते चलते ये ऊबती भी नहीं
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दीवार पर कई दिनों की बारिश ने गजब की चित्रकारी कर दी है....
तरह तरह की आकृतियां बन रही हैं
कुछ चेहरे, कुछ बादल, कुछ पेड़....
या इससे ज्यादा मैं सोच नहीं पाती...
मेरी दुनिया, मेरा दायरा यहीं तक है शायद...
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फिक फिक फिक फिक.. हक हक हक हक
अजीब सी पंखे की आवाज
निरंतरता के साथ....
मन मौसम मिज़ाज
कुछ ऊबा सा है आजकल...
और मैं तो वैसे ही इतने स्लो हूँ कि अकेले दौड़ूं तब भी सेकेंड ही आऊंगी। 😏😏😏
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दो दिनों की अप्रत्याशित छुट्टी के बावजूद
अब
संडे का भी कत्ल शुरु।
लेटे बैठे ग्रीन टी, नींबू पानी निगल चुकी...
आंख मूंदे मूंदे 30 / 40 स्टेटस लाइक कर चुकी
अब फिर से अंगड़ाई और जम्हाई दोनो आ रही है...
आंखें बंद करूं तो शायद सो ही जाऊँ....
एकदम से लग रहा कि अभी चाय पी ही नही....
कोई चाय बना के देने वाला नहीं....
जो खाना पीना है खुद ही करो.
चंडीपाठ से लेकर मोचीगिरी तक 😏😏😏😏
काम की फेहरिस्त लंबी है जो निपटाने है पर मालूम है निपटेगा आज भी कुछ नही।
नहा लें आज हम तो वही उपकार होगा हमारा.... खुद पर😏😏😏😏😏
काहिली की भी कोई हद होती है क्या????
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