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Monday, August 30, 2010

सेंट्रल  स्कूल  में 

           



      सेंट्रल स्कूल में आने के बाद ये महसूस हुआ कि बेकार में मुझे यहाँ 
 आने का इतना शौक़ था..........बहुत  अच्छा अनुभव नहीं रहा मेरे लिए......  यहाँ कि लड़कियां बेहद घमंडी ,सर चढी  और अजीब सी थीं...खास तौर पर जो लड़कियां  शुरू से यहाँ पढ़ रही थीं....वो तो खुद को यूनिवर्सिटी   का ही समझती थीं क्यों कि सेंट्रल हिन्दू गर्ल्स स्कूल में या सेंट्रल हिन्दू ब्वायज   स्कूल में पढने वाले बच्चो को यूनिवर्सिटी में पहले मौका दिया जाता था....वो बच्चे  यूनिवर्सिटी के स्टुडेंट यूनियन  के चुनाव में वोट देने के हक़दार थे.....मैंने अपने जीवन का पहला वोट उसी स्कूल में ही दिया.....मुझे याद है उस साल एक चंचल सिंह नाम के छात्र नेता थे जो जीत कर छात्र संघ अध्यक्ष भी बने उस साल......वो वोट मांगने हमारे स्कूल भी आये थे...जो हमारे लिए बड़ी अनोखी बात थी कि उन्होंने हम सभी लड़कियों से हाथ जोड़ जोड़ कर वोट डालने कि विनती (!) की थी.......और वो चंचल सिंह फाइन आर्ट्स  कॉलेज के छात्र थे........उस वक़्त फाइन आर्ट्स का भूत इस क़दर सर पर सवार  था कि फाइन आर्ट्स से सम्बंधित हर बात हमें आकर्षित करती थी.....और हम ज्यादा से ज्यादा वहां के बारे में जानना  चाहते थे............मेरा चंचल सिंह से कोई परिचय नहीं था......न ही मैंने कभी उनको देखा था.....पर सिर्फ इस कारण से वे फाइन आर्ट्स के छात्र हैं मैंने उनको वोट दिया और कई वोट दिलवाए...........अब यह सब सोच कर बहुत हंसी आती है......कितना बचपना था ये सब.........

वहां की   ड्राइंग टीचर  भी बी .एच . यू. फाइन आर्ट्स की  ही पढी हुई थीं    श्रीमती आभा गौतम  ..........यहाँ भी ड्राइंग की  क्लास जमीन  में बैठ कर ही होती थी..विशुद्ध कलात्मक तरीके से.....पूरे कमरे में दरी बिछी हुई थी...और सारे  कमरे में चित्र और देख कर बनाने के काम आने वाली  मूर्तियाँ तथा बर्तन आदि रखे हुए थे.......यहाँ आकर  मेरी दोस्ती कई बहुत अच्छी लड़कियों से हुई जो सभी दूसरे दूसरे  स्कूलों से आई   थीं  .......इनमे  से २ तो फाइन आर्ट्स कॉलेज में मेरी सहपाठिनी भी बनीं...........

        सेंट्रल स्कूल में ७ महीने  पढने के दौरान  मैंने क्रिकेट  खेलना  भी सीखा ....हम कुछ  ६  ,७ लड़कियों का ग्रुप  था जो क्रिकेट    के पीछे  पागल  था.....सुबह  ५  बजे  उठ  कर स्टेडियम    जाना   और दौड़ लगाना याद आता है......उस वक़्त कितना साईकिल चलते थे हम लोग........मैं और दुर्गा जो कि मेरी बहुत पक्की  सहेली  थी और आज भी है ............वो सुबह सुबह ५ बजे आजाती  थी और फिर हम दोनों  निकल जाते  थे......पापा जी ने मुझे कलकत्ते से बैट  मंगा   कर दिया था........कितना हल्का फुल्का शरीर था तब.........काश के वो दिन फिर से वापस आजाते......


         क्रिकेट खेलने के सिलसिले में हम लोग दो तीन बार लखनऊ और कलकत्ते तक गए थे............पर सिर्फ घूम फिर कर लौट आये वहां खेलने का तो नहीं पर भारत और इंग्लॅण्ड कि महिला टीम का मैच देखने को मिला ...........टूर काफी अच्छा रहा.........
     पापा जी उस वक़्त कलकत्ते में ही थे...उनके पास २ दिन रुकी थी....वहां भी मेरी मैनेजर साहब की  बेटी के लिहाज़ से बड़ी आवभगत हुई....
पापा जी वहां सियालदह   में रहते थे.......खादी   कमीशन की  बिल्डिंग के सबसे ऊपर के हिस्से में उनके रहने की  व्यवस्था थी.....जो..लोगों में भूत बँगला  के नाम से मशहूर था......वहां कभी किसी ज़माने में बहुत बड़ा सामूहिक हत्याकांड हुआ था .....और सभी बताते थे कि वहां बड़ा ही डरावना माहौल रहता था रात को ...............और चीखने चिल्लाने कि आवाजें आती थी....सुबह का रखा हुआ खाना शाम तक सड़ जाता था .....अब इसके पीछे क्या कारण  था नहीं जानती ..............पर मुझे बड़ी ही हैरत होती है कि पापा जी वहां सिर्फ एक बूढ़े दरबान और उनकी बूढ़ी   पत्नी  के साथ कैसे रहते   थे?....उनको  बिलकुल   डर  नहीं लगता था......
          
      पापा  जी  के   कमरे   के   बगल    वाले  कमरे   में  खादी कमीशन   के   वरिष्ट   चित्र   कार   (नाम   नहीं  याद   आरहा  ) का   स्टूडियो   था ..  .......मुझे   बहुत   अच्छा   लगा   वहां  .....उन   अंकल   ने   मुझे   अपने    बनाये   हुए   कुछ   चित्र   और   बहुत   अच्छी   क्वालिटी   के   हैण्ड    मेड   पेपर   दिए   थे  ..जिनमे    से   कुछ   अभी   तक   मेरे   पास   सुरक्षित   हैं  ......बड़ी   बड़ी   पेंटिंग्स   रखने   के   लिए   उन्होंने    मुझे   फाइल्स    भी   भेजी   थीं  .....और   हैण्ड मेड   पेपर की  बनी  हुई ड्राइंग कॉपी भी .......

         सेंट्रल हिन्दू स्कूल में पढने के दौरान वहां पर एक आर्ट एग्जिबिशन  लगाईं  गई थी......जिसमे मैंने भी अपनी २ पेंटिंग्स लगाई  थीं.....और कुछ क्राफ्ट वर्क भी लगाया था...... काफी अच्छी प्रदर्शनी रही थी....
         सेंट्रल हिन्दू स्कूल एक तरफ से खालसा स्कूल और दूसरी तरफ से बसंत कन्या महाविद्यालय से जुडा   हुआ है.....मतलब तीनो स्कूल एक कतार  में हैं...बीच में सेंट्रल , दाहिनी तरफ खालसा स्कूल  और बाएँ तरफ बसंत कन्या महाविद्यालय........तो सभी की  पहली मंजिल वाली कक्षाएं  एक दूसरे  स्कूल में दिखाई देती थीं.........अगर किसी कक्षा को सजा मिली हुई होती थी...जैसे कान पकड़ कर खड़ा होना या कक्षा के  बाहर निकल दिया जाना .....तो वो दूसरे स्कूल वाली लड़कियों के लिए मनोरंजन का साधन होता था.....सभी एक दूसरे को चिढाते  थे.......कभी कभी बसंत कन्या की  लड़कियों के खोमचे वाले से हम लोग भी अमरुद और मूंगफली  या चूरन  खरीद  लेते  थे.... कुछ लड़कियां कभी कभी भाग भी जाती थीं........( बसंत कन्या की  तरफ की  दीवार थोड़ी ढह गई थी )उस समय  हर स्कूल में टिफिन  के वक़्त कुछ खाने   का सामान लेकर खोमचे वाले आते थे......खालसा स्कूल में तो एक आंटी आया करती थीं जो बहुत  अच्छे छोले और समोसे लेकर आती थीं..........२५ पैसे में २ समोसे और उसपर छोले और मीठी चटनी.....हाय क्या स्वाद था....

      क्रिकेट खेलने के दौरान हम लोग बड़े बड़े खिलाडियों से मिले......पूरी इंडिया टीम एक बार बनारस आई थी.....जिनमे सुनील गावस्कर, कपिल देव, रोजेर बिन्नी, रविशास्त्री  , संदीप पाटिल,मदन लाल,मोहिंदर अमरनाथ   जैसे खिलाड़ी भी थे.... .....सभी के हस्ताक्षर लिए थे मैंने भी........................पर अफ़सोस  कि अब वो ऑटो ग्राफ बुक   नहीं है मेरे पास..........उस समय क्रिकेट से सम्बंधित बहुत  मैटर  था इकठ्ठा  किया  था मैंने.......एक खेल पत्रिका खेल सम्राट का पूरा कलेक्शन था .......मैंने सुनील गावस्कर को राखी भेजी थी और उनका जवाब भी आया था............. ..........उनकी ब्लैक एंड ह्वाईट  फोटो के  साथ.........वो फोटो अभी भी है मेरे एल्बम में................

         एक बार उत्तर प्रदेश की रणजी ट्राफी टीम भी आई थी जिनमे से कुछ सदस्यों को मैंने अपने घर चाय पर आमंत्रित किया था.....और वे सभी लोग आये भी थे.........बहुत याद आते हैं वे दिन.....


खैर धीरे धीरे समय बीता ...............मैंने पी .यू..सी.पास किया......और फाइन आर्ट्स (अपने सपने ) की ओर कदम बढाए...........
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2 comments:

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  2. mujhe sabhi log achchi tarah yaad hain......tabhi to itna kuchh likh saki hoon.....bas yahi dukh hai ki jab maine admission liya tha tab ye sab log vahan se padh kar nikal chuke the.....maine sabka jikar hi suna hai.... ..

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