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Friday, August 20, 2010

स्कूल के दिन ...



नारस में किसी स्कूल में दाखिले  के   लिए बहुत परेशान होना पड़ा क्यों कि सभी स्कूल  घर से काफी दूर थे और १० में दाखिला मिलना बहुत मुश्किल था जहाँ भी पढना था वहां ९ और १० एक साथ पढना जरूरी था.....जिसका नतीजा यही हुआ की मुझे फिर से  क्लास ९ पढनी पड़ी....क्लास १ में बहोत अच्छे नंबर  आने   की   वजह से मुझे क्लास २ नहीं पढनी पड़ी थी ......और फिर क्लास ९ दोबारा पढने से बात बराबर हो गई .....


मैंने क्लास ३ तक अंग्रेजी नहीं पढ़ी थी क्यों कि तब प्राइमरी स्कूलों   में अंग्रेजी क्लास ६ से शुरू होती थी जब मगहर (बस्ती) जहाँ बाबा जी गाँधी आश्रम के मंत्री थे ....मैं वहां के  प्राइमरी स्कूल की  क्लास १ में पढ़ती थी....इसके पहले हम लोग लगभग २ साल पटना रहे थे जहाँ के जयप्रकाश नारायण और प्रभावती जी के महिलाचर्खा समिति कदम कुआं  से मैंने नर्सरी  की  पढाई की  थी वहां भी सिर्फ ए  बी सी  दी   की ही जानकारी दी गई थी....जब हम मगहर से लखनऊ  शिफ्ट  हुए  तो स्कूल में अंग्रेजी विषय मेरे लिए बहुत बड़ी मुश्किल था......
इतना अधिक बोझ मेरे सर पर हो गया कि मेरी रातो कि नींद हराम हो गई....इतना अधिक टेंशन था कि मुझे रात में  २ ...३ बजे जाग कर पढने कि लत या बीमारी जो भी कहें वो हो गई रात भर जाग कर मैं पूरी कॉपी भर डालती थी..अंग्रेजी का काम कर कर के......
पापा जी और मम्मी बहुत चिंतित हो गए ये देख कर ..और मेरी हालत देख कर......डाक्टर को दिखने के  बाद ये नतीजा निकला के मुझे पढ़ाई का ज्यादा बोझ लेने से मना    कर दिया गया......उस समय मैं अक्सर बीमार भी रहने लगी थी....और स्वास्थ्य का ये हाल था कि हड्डियों  का ढांचा दिखने लगी थी मैं.....( आज के बिलकुल उलट )...अब तो ताज्जुब होता के मैं कभी इतनी दुबली भी रही हूँगी..........काश  कि कुछ  फोटो  भी खिचाई  होती उस वक़्त .....पर उस वक़्त फोटो खिचाने का इतना इन्तेजाम कहाँ था .............
खैर धीरे धीरे ट्यूशन आदि कि मदद से गाडी पटरी  पर आने लगी....और मैं अंग्रेजी में बेहतर होने लगी........पढने में बहुत होशियार तो नहीं थी पर बहुत बेवकूफ भी नहीं थी....बस ठीक ठाक थी....हाँ ड्राइंग  मेरी काफी अच्छी  थी....और उसके  लिए काफी तारीफ  भी मिलती  थी मुझे   ........................
लखनऊ में क्लास ८ तक तो मुझे चित्रकला विषय पढने को मिला पर ..............बनारस में खालसा स्कूल में ये विषय नहीं था.....वहां मुझे बिना आर्ट सब्जेक्ट  के  ही ९ और १० .पढना पड़ा ...फिर पी यू सी ...(हायर सेकेंडरी) में मुझे कला विषय मिला....जो आगे चल कर मेरे फाइन  आर्ट्स .पढने में सहायक हुआ ......इसके पीछे भी एक लम्बी कहानी है.....


       

4 comments:

  1. hmm..
    sahi hai..
    dhire dhire bahot si chize pata chal rahi hai..
    aur sundar hota ja raha hai lihna ka tarika..
    acha hai..

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  2. hahahaha achcha???..........thanks beta...

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  3. bahut acha..aur wo kahani bhi bataiye auntie ...!!! :)

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