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Tuesday, August 24, 2010

पढने की बीमारी

             किताबें  मन  का  शोक  ,दिल का डर  या अभाव कि हूक कम नहीं करतीं ,सिर्फ सबकी आँख बचा कर चुपके से दुखते सर के  नीचे सिरहाना रख देती हैं................(sankalan se )
         मेरे पास अपनी एक निजी लाइब्रेरी है ...बहुतदिनों से इकठ्ठी की  हुई 
मेरे पास तकरीबन २००० किताबें हैं ....एक यही शौक़ मेरा है ........जिसमे पैसे खर्च करना मुझे पैसे कि बर्बादी नहीं लगता ......मेरा बस चले तो मैं दुनिया कि हर किताब खरीद डालूँ और पढ़ डालूँ पर वो कहते हैं न कि भगवान् गंजे को नाखून नहीं देते   ........खैर.....फिर भी जितनी हमारी सामर्थ्य  है खरीदते ही रहते हैं ............मेरे घर में हर जगह  मेरे बिस्तर पर ,पढने कि मेज पर ,कंप्यूटर की  मेज पर, सोफे पर ,फ्रिज पर ,कपड़ो की आलमारी में यहाँ तक की बाथरूम में भी किताबे मिल जाएँगी....इसके लिए कितनी बार सभी से डांट खा चुकी हूँ पर एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल दिया है......स्कूल में भी मेरे पर्स में एक दो किताबे और मैगजीन  जरूर रहती हैं....और अन्य टीचरों कि तरह फ्री पीरियड (जो कि  अक्सर मिलता ही नहीं) में बैठ कर गप्प मारना  मुझे ज्यादा पसंद नहीं......तो उस वक़्त भी किताबें ही मेरा साथ देती हैं.......या मेरा पेंटिंग का सामान मेरे साथ होता है ......मैं जानती हूँ की मेरे इस स्वभाव के कारन मुझे घमंडी कहा जाता है ..........पर मैं सच कहती हूँ के ऐसा बिलकुल नहीं है बस .......मुझे पसंद नहीं  है .........मेरा ज्यादातर समय बस इन्ही कामों में बीत ता है ..........अखबार वाले को तय कर रखा है कि कम से कम १० मैगजीन  वो मुझे हर महीने दे जाये .......और जब मैं पढ़ लूं तो वापस ले जाये .....
उसका पैसा ले जाये......


पढने का शौक़ मुझे पापा जी और नाना जी से मिला.....मुझे याद है के जब हम लोग अपने ननिहाल जाया करते थे ......उस समय नाना जी कुछ पत्रिकाएँ मंगवाया करते थे.....कादम्बिनी और स्पुतनिक जो एक रशियन   मैगजीन  थी ..ये नियमित आती थीं......नानाजी बहुत ज्यादा पढ़े लिखे तो नहीं थे पर बहुत  नोलेज था उनको .........बहुत से विषयों पर वो हम लोगो से बाते करते थे.....कितनी ही साहित्यिक किताबे पढ़ी थीं उन्होंने........
 और पापा जी का भी यही हाल था कि हर समय हाथ में कोई न कोई किताब होती थी ...............मैंने ज्यादा तर किताबे खरीद कर पहले पापा जी को ही दी हैं और उसके बाद मैंने पढ़ी हैं.....पापा जी के साथ साथ मम्मी को भी किताबे पढने का शौक़ हो गया था.....और अपने फुर्सत के  पलों का उपयोग वो भी पढ़ कर ही करती थीं........मुझे ध्यान है मम्मी ने बी.ए का एक्जाम  बनारस आकर दिया था.उस  समय मैं १० वीं में थी  ...........

    जब उनकी शादी हुई थी तब वो सिर्फ १० वीं  पास थी...पर पढाई का ऐसा क्रेज था उन्हें कि  हम लोगो के साथ वो भी पढ़ती थीं....... उनका अर्थशास्त्र विषय काफी अच्छा था ......


मुझे ,पापा जी को और मम्मी को इतना पढने का शौक़ होते हुए भी मेरे दोनों भाइयों को पढाई की  पुस्तकों के  अलावा कोई अन्य पुस्तक पढ़ते हुए कभी नहीं पाया गया.....वो दोनों सिर्फ पास होने के  लिए ही पढ़ते थे.....और आज भी यही हाल है कि लाख किताबे घर में रखी हों वो कभी छू भी नहीं सकते........ पर इस बात की ख़ुशी है कि भाई के बच्चो को पढाई के प्रति रूचि है.......और उसकी बड़ी बिटिया जो काफी हद तक स्वभाव में मुझसे मिलतीजुलती है पढने की  काफी शौकीन है....उम्मीद करती हूँ की इस शौक़ को बनाये रखेगी.........मेरे दोनों बच्चे भी बहुत ज्यादा तो नहीं पर कुछ कुछ शौक़ रखते हैं पढने का .........बेटा तो काफी अच्छा लिखने भी लगा है   और ये मेरे लिए बड़ी अच्छी बात है ......



 मेरे पतिदेव ज्यादा पढने के तो नहीं पर लिखने के ज्यादा शौक़ीन हैं......बहुत ही परिमार्जित और सुन्दर भाषा है उनके पास पर  जब मूड हो तभी लिखते हैं.......उनकी इस विधा का फायदा बहुत लोग उठाते हैं.....चाहे वो न्यूज़ पेपर्स में न्यूज़ लिखनी हो या किसी का भाषण लिखना हो सब आकर खड़े हो जाते हैं और उनसे लिखवा कर ले जाते हैं...मुझे बहुत  चिढ़ होती है इस से पर क्या करूँ??

पर मुझे अच्छी साहित्यिक पुस्तके पढने का शौक़ है तो वो मेरे लिए लेकर जरूर आते हैं.....किसी भी बुक स्टाल पर पहुँचने  के बाद मुझे फ़ोन करके पूछते हैंकि ..... यहाँ ये किताब  है ..तुमने पढ़ी है क्या??? अगर नहीं पढ़ी होगी तो वो खरीद ली जाएगी .........२००४ में जब उनको १ साल के लिए दिल्ली  भेजा गया था ...उस वक़्त मुझे याद है मेरे लिए ७०००/- की  बहुत अच्छी अच्छी किताबे खरीद कर मुझे वेलेंटाइन  डे पर उपहार दिया था उन्होंने.....और वो हर साल इसी दिन एक अच्छी सी डायरी भेंट करते हैं......

    मैं थोड़े थोड़े दिनों पर कुछ न  कुछ किताबों की  आलमारी से निकाल निकाल कर पढ़ती रहती हूँ.................और मैं जब लम्बे समय तक पढ़ पढ़ कर  आलमारी उथल पुथल कर डालती हूँ............तो बड़े ही धैर्य के साथ फिर से उसे नए सिरे से सेट भी कर देते हैं..........इसके लिए मैं उनकी अहसानमंद हूँ .........



 

3 comments:

  1. hmm... mammy..
    sach hai bilkul..
    lekin tumhara padhne ka shauk mein aur babu poora karenge, aage bhi..
    aur kitaabe bhi samhaal k rakhenge..
    sachchii..acha laga padh kar..

    Betu

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  2. Ye Beemari nahi hai Auntie , Ye to ek Junoon hai jo ki bahut hi acha hai.Bahut hi acha lagta hai itna padhne wale logo ko dekhkar, Kash har koi padhayee ki importance itni hi khubsurti se samjhe , apna Bharat char din me badal jayega,is junoon ko thanda mat hone dijiyega auntie...

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  3. haan beta koshish yahi rahegi......thanks

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