आज कल
बहुत अजीब सा मौसम है आजकल का
न कोई ख़ुशी है न कोई दुःख
समझ नहीं आ रहा क्यों एसा है .......
अरसे बाद तारों की बारात नज़र आई है...
अच्छा लगता है जब कभी सावन में तारे नज़र आते हैं.............
इन्हें देखते हुए सोचती हूँ...
सब...
इस वक़्त क्या कर रहे होंगे......
हर कोई अपने आप में व्यस्त...
और मैं ..
इस वक़्त सबसे दूर ......
निरासक्त भाव से सोच रही हूँ...
आजकल कुछ भी करने को जी नहीं चाहता......
बहुत दिन हो गए हैं कोई कविता लिखे हुए.....
अजीब सा मन हो गया है.....
न कोई ख़ुशी है न गहन उदासी....
ये बीच कि स्थिति बड़ी अजीब सी होती है......
त्रिशंकु से दिन बीतते जा रहे हैं न ऊपर कि ओर उठ पा रही हूँ न गर्त में समां रही हूँ.....
कभी कभी जब बहुत कुछ कहने को जी चाहता है .....
तो कुछ भी कहा नहीं जाता ......
शब्द ही साथ नहीं देते . .....
समझ नहीं आता क्यों होता है ऐसा???...................
क्यों होता है ऐसा.........
मन का अंतर्द्वंद है जो ऐसा करवा रहा है , जिस मन को शांत करना आवश्यक आजकल | ये मन बहुत ही तेज़ रफ़्तार से भागता है जिसे रोकना हमारे बस में नहीं होता है कभी कभी , चाह कर भी शांत नहीं होता है |
ReplyDeletehaan shayad........
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