लिखिए अपनी भाषा में

Monday, August 30, 2010

यूँ ही सा

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जिसने जैसा समझा 
प्यार को अपने तरीके से परिभाषित किया  …....
और आज  तक  
ये  काम  बदस्तूर  जारी   है ...

सच   कहती   हूँ  ….
इस   भाव   से   तो   नहीं   माँगा   था  ..
मैंने   कुछ  …
कोई  लालसा  नहीं  थी …कोई  उम्मीद  नहीं  की   थी ………
सच  जानो ..यकीन करो  मेरा  ....
मैंने  तो  बस यूं  ही  हाथ  पसार   दिया  था ….
तुमने   जाने   क्या   सोच   कर..............  
मेरी   हथेलियों    में   पूरी  दुनिया  रख  दी        ….
अब   तुम्ही   बताओ  न  …..क्या   मेरी   सामर्थ्य   है  ???
इसे  सम्भाल   पाने  की  ???
कहो  न  अब  इसे  मुठ्ठी  में  लिए  लिए …मैं  कहाँ  घूमूं     ???
कहाँ जाऊं ...........क्या   करूँ   ???...............(संकलन  से)

1 comment:

  1. Pyar me koi expectations aur koi limits nahi...bilkul sach likha hai auntie :)

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