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Saturday, August 28, 2010

मेरे चंद पसंदीदा शेर..

 मेरे चंद  पसंदीदा शेर...



घर के हालात  तो चेहरे से बयान  होते हैं......
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फिर क्यों कमरे को करीने से सजा रखा है??..................
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गुम्म   हूँ  न  जाने  कौन  से  आलम  में  इन  दिनों ...

अपनी  खबर  है  अब  न  तुम्हारी  खबर  मुझे .. .
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लग्ज़िशें  कहाँ  तक  साथ   देंगी ...

हम  भी  एक  रोज़  संभल  जायेंगे ..
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छोड़   कर  अपनी  जड़े  चलता  बना ..

हम  वहां  हैं  था  जहाँ   जंगल  कभी .......
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आता  था  जिसको  देख  के  तस्वीर  का  ख़याल ..

अब  तो  वो  कील  भी  मेरी  दीवार  में  नहीं .........
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सरहद की  लकीर  देख  आये ..

खंजर की  तरह  चमक  रही  थी .
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किया  था  उसने  जवानी  में  वस्ल  का  वादा

बुज़ुर्ग  हो  गए  हम  एतबार  करते  हुए ......
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देर  है  बारिश  के  आने  में  अगर ..

तब  तलक  तालाब  को  गहरा  करो ..
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रास्ते  में  मिले  सभी  मुझको ...

जिसको  देखा  वो  घर  के  बाहर  था ..
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शहर  का  दर्द  जहाँ  हद  से  गुज़र  जाता  है ..

गाँव  क्यों  छोड़ा   यही  मुझको  ख़याल  आता  है ..
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गली  में  चाँदनी  छिटकी  हुई  है ..

कई  दिन  बाद  वो  खिड़की  खुली  है ..
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तुम  आये  हो  तो  आँखे  हैं  रोशन ..

दिए  जैसे कि  दीवाली  में  खुश  हैं ...
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खज़ाना  सच  का  मुठ्ठी  में  है  जिसकी ,,

हम  अपनी  ऐसी   कंगाली  में  खुश  हैं ..
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हम  तो  गीली रेत   थे  जिसको  रोंदा  जाना  था ..

उसने  भी  कुछ  नक्श  बनाये  और  बिगाड़  दिए ..
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हमारे  ज़िन्दगी  भर  पाँव  चादर  से  रहे   बाहर ...

ताज्जुब  है  सिकंदर  के  कफ़न  से  हाथ  बाहर  थे ...
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हालां    के  याद   आता  है  अब  भी  बहुत   हमें ..

वो  शहर  जिसमे  कोई  हमारा  कभी  न  था ...
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हम  जिसके  साथ    साथ  थे ,उसके  कभी  न  थे ...

जो  साथ  था  हमारे . हमारा  कभी  न  था .....
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काश  किसी  दिन  तेरा  मेरा  यू  संगम  हो  जाये ..

मैं  रोऊँ  तो  तेरे  दिल  का  मौसम  नम   हो  जाये ..
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बच्चो  के  सच्चे  जेहनो  में  झूठी  बातें  मत  डालो ,

कांटो  कि  सोहबत  में  रह  कर  फूल  नुकीला  हो  जाता  है ..
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दिन  भर  तो  हम  दोनों  मिल  कर  पानी  शक्कर   मिलाते  हैं ..

रात  होते  ही  सारा  शरबत  क्यों  ज़हरीला  हो  जाता  है ...
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मैं  तो  अब  भी  तुझे  चाहता  हूँ  मगर ...

इतनी  जल्दी  न  मुझसे  बदल  ज़िन्दगी .....
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चला  हूँ  साथ  में  दुनिया  के  बरसो ...

अब  अपने  साथ  चलना  चाहता  हूँ ...
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हमें  भी  ज़िन्दगी  के  गम बहुत  थे ...

तुम्हे  भी  हमसे  प्यारी  ज़िन्दगी  थी ..
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मुझसे  क्या   बेखबर  रहे  हो  तुम ...

तुमसे  क्या  बेखबर  रहा  हूँ  मैं ....
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हम  कभी  अपने  साथ  ही  न  रहे ..

साथ  रहते  तो  खो  गए  होते ...
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क्या  कभी  तुम  भी  भूल  जाते  हमें ??

क्या  कभी  तुम  भी ऐसे   हो  गए  होते ???
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