लिखिए अपनी भाषा में

Wednesday, December 2, 2020

क्या कहूं....

एक फेसबुक मित्र की पोस्ट पढ़कर ये एहसास हुआ कि और भी लोग मेरी तरह सोचते हैं🤔🤔हां मैने भी महसूस किया है...... पर  अभी तक कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी 😕अब जब उन्होंने जिक्र छेड ही दिया है तो कह डालती हूं☺️ दूर से जितना स्नेह प्रेम दिखाई देता है वो यदि दिल्ली पंहुच कर ये सूचना दे दी जाये कि "हम आये हैं और मिलना चाहते है" तो वो आत्मीयता और प्रेम कहां गायब हो जाता है पता नहीं 😏😏😏😏 फोन ही नहीं अटेंड करना, करना भी तो कोई न कोई एक्सक्यूज बता कर कतरा जाना..... या तो हम जहाँ हैं वहां से खुद को इतनी दूर बताना मानो वो किसी दूसरे प्लेनेट पर हों.....आखिर सामने वाला भी कोई बच्चा तो नहीं जो आपकी इन बातों को समझ नहीं पायेगा....कई बार के अनुभव हैं ये.... सभी को तो नहीं पर कई लोगों के साथ का अनुभव बता रही हूं......जाने क्या समझ कर ऐसा करते हैं मुझे नहीं पता....अब तो सब जानते हैं कि हर आदमी बिजी है और बिना समय लिये या बिना फोन किये कोई किसी के घर जाता नहीं.... अब वो तो समय नहीं रहा कि लोग आपके घरों में ठहरते थे और आपको उनकी आवभगत करनी पड़ती थी.... एक आध घंटे के लिए मिलने में भी इतने नखरे??? छोड़ो अब तो हमने खुद ही कहना छोड़ दिया है.....और ताज्जुब और क्षोभ तो तब होता है जब लौट आने के बाद उन "खास लोगों" का फोन आया "कि अरे!!! आप आकर लौट भी गईं? बताया नहीं आपने??" बड़े शहरों में ये रिवाज आम हो चला है.... गनीमत और फख्र है कि हम अभी छोटे शहर में हैं और यहीं रहना चाहते हैं ☺️☺️☺️ हर अतिथि का खुले दिल से स्वागत करते हैं और करते रहना चाहते हैं.... स्टेशन से रिसीव भी कर सकते हैं और स्टेशन छोड़ने भी जा सकते हैं...बिना कोई एहसान लादे😏😏😏

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