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Monday, December 7, 2020

मुंबई यात्रा 🤗🤗

मुंबई शहर का दौरा लग गया है , बेटे के पास आई हूँ बस यूं ही घूमने फिरने..... स्वभाव में , चीजों को जरा गौर से देखने का शौक है.... उम्र के लिहाज से अब थकान जल्दी होना शुरु हो गई है, पर घूमने का लालच बना हुआ है...... तरह तरह का खाना खाने का शौक है.... . वैसे भी मैं इतनी छोटी सी जगह में रह रही हूँ कि यहाँ से बाहर हर जगह रोमांचित ही करती है.... हर जगह पसंद आ जाती है 😝
        अधिकतर  यहाँ यूपी वाले, बिहार वाले छाए हुए हैं.... जिनको मराठी लोग  बिहारी ही कहते हैं और यूपी वाले बार बार करेक्ट करते है – हम यूपी से हैं , बिहार से नहीं। दोनों एक ही लगते हैं न.... बोली-बानी, रहन सहन, शक्ल- सूरत में भी.... वैसे भी गाय और भैंस में ज्यादा फर्क नहीं होता 😝

               एक से एक शानदार होटल, शो रुम्स, मॉल्स, रेस्तरां..वर्ली सी लिंक...पर से गुजरना.... अथाह समुंदर और खूब ऊंची ऊंची खूबसूरत इमारतों का झुंड.... और  यह चीजें बहुत पसन्द आईं ।
        पर एक चीज काफी अखरी कि इतना सब होने के बावजूद महंगे से महंगे अपार्टमेंट में भी खिड़की में ख़ास तरह का लोहे की प्रोटेक्शन वाली ग्रिल / जाली और उन पर बुडूम बुडूम करते असंख्य स्लेटी रंग के कबूतर....और उनकी बीट, बदरंग पंखों और गंदगी के ढेर...... खिड़की खोलना मुश्किल..... । यह मुंबई की पुरातन चाल संस्कृति को दर्शाता है । लोग अरबपति, खरबपति भी होते चले गए पर चाल संस्कृति से बाहर नहीं निकल पाए । करोड़ों के फ्लैट की शोभा इन लोहे की पिंजरों से खत्म होती सी महसूस होती है ।
       यहाँ महिलाएं सुरक्षित हैं । कहा जा सकता है कि अन्य शहरों से ज्यादा सुरक्षित, यहां की महिलाएं है । रात में 11-12 बजे भी आराम इत्मीनान से सड़कों पर, लोकल ट्रेनों में लड़कियों , औरतों को निश्चिंत घूमते, टहलते देखा... किसी को किसी से कोई मतलब नहीं..... सब अपने में व्यस्त....
           मुख्य सड़कों या बड़ी गली / मुहल्ले वाली सड़कों के हर चौथे मकान / दुकान में बेहतरीन रेस्टोरेंट / बार हैं । बैंगलोर की याद आ गई कई जगह पर.....
* गणेश मंदिर हर जगह.....यहां गणपति पूजन का ज्यादा महत्व है....जैसे कोलकाता में दुर्गा पूजा का.....मुंबई का गणेशोत्सव देखने की इच्छा थी.... पर उस समय आने का कोई मौका नहीं मिला.....सिद्धि विनायक मंदिर और हाजी अली की दरगाह पर जाने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ
          बेटा भी कब तक यहाँ रहेगा, उसके मूड पर है....दिल्ली का मोह नहीं जा रहा....वैसे भी कल किसने देखा है!!!
       कई खास खास परिचितों और  प्रसिद्ध साहित्यिक मित्रों से मुलाकात भी हुई...
कल यानी 31 दिसंबर का पूरा दिन अपनी साहित्यिक सखियों के नाम रहा...बेटे के मुंबई आने के बाद यहां रहने वाले  सभी परिचितों से मिलने की इच्छा और बलवती हो उठी थी...... लेकिन मुंबई के बारे में अल्प जानकारी और सभी का इतनी दूर दूर होना.....हम छोटे शहर वालों के लिए बड़ा दुविधा जनक है....बेटे के निवास स्थान से रश्मि का निवास थोड़ा नजदीक होने से सिर्फ उनसे ही मिलने की कल्पना कर पा रही थी..... पर सिर्फ एक बार फोन करते ही रश्मि ने तो जैसे मन मांगी मुराद पूरी कर दी.....एक से एक साहित्यिक दिग्गजों के साथ "पृथ्वी कैफे" में लंच, ढेर सारी आत्मीय बातें और फिर जुहू बीच पर सैर सपाटे की मस्ती...पतिदेव भी बहुत प्रसन्न हैं.....बेहद प्यारी और सुंदर सी अनु ने भी सरप्राइज दिया.... .2018 का अंत तो अविस्मरणीय हो गया हमारे लिए 😊😊😊😊😊😊
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(अब हम दोनों से मिलकर उन्हें कैसा लगा!!!! पूरी उम्मीद है निराशा तो नहीं हुई होगी 🤔🤔🤔)
         फिलहाल हम तो सिर्फ घुमंतू बन के आए हैं ,  😐 जल्द वापस भी लौटना है ।
       शहर तो कुछ कुछ रास आया वो भी इसलिए कि यहाँ प्रदूषण और जगहों के मुकाबले कम है..... लेकिन उम्र के इस मुकाम पर रास आने का कोई मतलब नहीं.....  अब तो किसी शहर से कुछ लेने की  तमन्ना नहीं बची है और ना ही कुछ देने ताकत ।
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फिर भी ,सारे शहर पसन्द क्यों आ जाते हैं यार ? 😊

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