दिखने में तो ये किसी भी साधारण गाँव का रास्ता लग सकता है पर ये कोई साधारण रास्ता नहीं है........ये अदम के गाँव की पगडंडी है.......जिसके लिए उन्होंने लिखा था.......
फटे कपड़ों में तन ढांके ,गुजरता हो जहाँ कोई..
समझ लेना वो पगडंडी अदम के गाँव जाती है.....

अदम जी की रचनाओं के बारे में कुछ कहना शायद मुझ जैसे मामूली इंसान के लिए बहुत मुश्किल है.....मुझे इतनी समझ नहीं....आज जब अदम जी जैसे व्यक्तित्व के बारे में लिखने बैठी हूँ तो समझ नहीं पा रही की क्या और कहाँ से शुरू करूँ ??.... अदम जी से हमारी मुलाकात शायद ८७ या ८८ के दौरान हुई...उसी समय उनकी एक पुस्तक.....धरती की सतह पर ..प्रकाशित हुई थी...जिसने तहलका मचा दिया था....
अतुल भैया (कुंवर अतुल कुमार सिंह ,मंगल भवन, मनकापुर )के मंगल भवन में आयोजित ....कवि सम्मेलनों में और आई. टी. आई. में आयोजित कवि गोष्ठियों और कवि सम्मेलनों में उन्हें बराबर सुना है और ह्रदय से सराहा है ....
मुझे याद है ......एक बार रात में ११ बजे अदम जी हमारे घर आये ...साथ में एक कवि मित्र भी थे...उस समय वे कैनवास की तलाश में हमारे पास आये थे .......चूंकि हम दोनों चित्रकार लोग हैं...तो रंग ब्रुश कैनवास ...हमारे पास आसानी से मिल सकता था.....भीष्म साहनी जी के विशेष आग्रह ........पर दूसरे दिन सुबह ही ......उन्हें एक कविता पोस्टर प्रदर्शनी में ...वो कैनवास भेजना था......उनकी एक बहुत प्रसिद्ध ग़ज़ल .......उस पर लिखी जानी थी.....रात भर जाग कर मेरे पतिदेव ने वो कविता पोस्टर तैयार किया और भेजा.....
कई बार हमने घर में बैठ के इत्मिनान से उन्हें सुना है..और विभोर हुए हैं...ऐसा सौभाग्य बहुत कम मिलता है ......मुझे बहुत ख़ुशी है की ऐसे बहुत से अविस्मर्णीय अनुभवो की मैं भी साक्षी रही हूँ.....
उनकी गजलें हर वर्ग के लोगों की जुबां पर हैं और इतने लम्बे अरसे पहले कही जाने के बावजूद ......आज भी समसामयिक लगती हैं......उनका सच बात कहने का लहजा ऐसा तीखा था कि एक बार जेल तक जाने की नौबत आ गई थी...पर उनकी असीमित लोकप्रियता के कारण ऐसा संभव नहीं हुआ.......ऐसी ही एक रचना के दो शेर जो मुझे बहुत पसंद हैं....
मैंने अदब से हाथ उठाया सलाम को ,
वो समझे इस से खतरा है उनके निजाम को ,
चोरी न करें झूठ न बोलें तो क्या करें ?
चूल्हे पे क्या उसूल पकाएंगे शाम को?...
उन्हें दुष्यंत और नागार्जुन के समकक्ष रखा जाता है....पर शायद बहुत कम लोग ही ये जानते होंगे , कि सिर्फ प्राइमरी तक की शिक्षा थी उनकी ......शायद कक्षा ६ तक ,परिस्थितियों ने इस से आगे पढ़ पाने की इजाजत नहीं दी थी उन्हें .....पर साहित्य में कितनी गहरी पकड़ और पैनी पैठ थी उनकी ...इस से सभी वाकिफ हैं.....
दुष्यंत का वारिस .....गोंडा का कबीर ...ऐसे कई नामों से विभूषित किया जाता है उन्हें...पर इस बात का तनिक भी गुमान नहीं था अदम जी को....... ऐसे ऐसे शेर कह जाना जो सुन ने वाले को चीर कर धर दें ...पर उनके चेहरे से जरा भी आभास नहीं होता था कि वे वाह वाह के लिए तरस रहे हैं.....जब कि आज ज्यादा तर कवि मंच लूट लेने के लिए इतने अभिनय .....और अदाएं दिखाते हैं कि बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता है..... पर बिना कोई दिखावा किये जब अदम जी शुरू होते थे ...........तो पूरे हाल में सन्नाटा हो जाता था.....कितनी बार ऐसा हुआ है कि ....जब अदम जी ने अपना पाठ शुरू किया है, ......लोगों ने दूसरे कवियों को उठने ही नहीं दिया.....कितनी ही बार सुनी हुई गजलें फिर फिर ....सुनी जाती थीं.....चाहे कितनी भी देर हो जाये....लोग उन्हें सुनने के लिए बैठे रहते थे......
पहली दृष्टि में उनके व्यक्तित्व का कोई खास असर नहीं पड़ता था (कम से कम मुझ पर तो नहीं पड़ा था.) सीधे सादे ग्रामीण वेश में खिचडी बालो और छितरी मूछों वाले ...........कुरता ,धोती और बंडी पहने ....बेहद विनम्रता के साथ ..और .........कुछ कुछ हिचकते हुए बोलना....सभी पढ़े लिखों के बीच ....स्वयं को कम पढ़ा लिखा और छोटा बताना .........एक ऐसी खासियत थी जिसकी कोई मिसाल नहीं.....पर उन्हें मंच पर देखना एक अनूठा अनुभव था.....उनके एक एक शेर सीधे जाकर ....ह्रदय में धंस जाते थे.......सोचने पर विवश कर देते थे......
उन्होंने अपनी जैसी पहचान बनाई........... और दिनों दिन उनके शेरों में जैसा पैनापन बढ़ता गया.....और वही तेवर शुरू से अंत तक विद्द्मान रहे ये बहुत बड़ी बात है......उनके पास न कोई डायरी थी न ही वे कुछ लिख कर लाते थे.....पर उन्हें सब जुबानी याद रहता था ...यहाँ तक कि ...
मैं चमारों की गली में ले चलूँगा आपको ...........
जैसी बेहद लम्बी कविता भी उन्हें पूरी कंठस्थ थी....और जिस तरह वे ठन्डे मस्तिष्क के साथ गजलें कहते थे.............कि सुनने वालो की शिराओ में खून उबलने लगता था......हर व्यक्ति उन शेरों से .....खुद को जुड़ा हुआ महसूस करता था.......
उनकी कवितायें और गजलें ..वाह वाह नहीं करवातीं बल्कि वाह और आह का अंतर भुला देती हैं......सुन कर कुछ देर के लिए निस्तब्धता छा जाती है......
इधर काफी दिनों से अदम जी मुलाकात नहीं हुई थी ....हाँ ये जरूर मालूम होता रहा की वे बीमार चल रहे हैं.....बीमारी इतनी ज्यादा बढ़ जाएगी इसका आभास नहीं था.......अचानक सुनाई देना कि अदम जी नहीं रहे......बहुत कष्ट पंहुचा गया......मेरी बहुत इच्छा थी कि..... मैं भी अदम जी के प्रिय गाँव में एक बार जरूर जाऊं .....जहाँ वे जीवन पर्यंत रहते रहे......जब कि थोडा सा भी चर्चित होते ही सभी शहर की तरफ भागते हैं.....पर उन्होंने ऐसा नहीं किया......खैर.....
मेरे पतिदेव अभी पिछले रविवार को अतुल भैया के साथ उनके घर गए ..और उनसे जुडी कुछ यादों के चित्र .......मेरे लिए लेकर आये.....उनका घर , उनकी पत्नी ,उनके पुत्र के चित्र .......उन्हें मिले हुए ढेरों इनाम, उनका प्रिय बरगद ........और उनके घर तक जाने वाली पगडंडी.......सभी के चित्र ......अब मेरे संकलन में हैं.......जो मैं आप सभी से बांटना चाहती हूँ.......
अदम जी ने फलां शायर या कवि की जगह ली ..............या फलां शायर अदम जी की जगह लेगा .........ये कहना बेमानी है.....कोई किसी की जगह नहीं लेता.........हर व्यक्ति अपनी जगह स्वयं बनाता है.....अदम जी की जगह कोई नहीं ले सकता...........अदम जी भले ही आज सशरीर हमारे बीच नहीं हैं.........पर वे नहीं रहे.......ऐसा नहीं कहा जा सकता .....वे अपनी रचनाओं में अमर हैं........पर ये सोच कर जरूर कष्ट होता है.....अब इतनी सशक्त भाषा में कौन ललकारेगा??...........
सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरखान को.......
अदम जी को विनम्र श्रधांजलि .......