इस बार कुछ उदास और भरे हुए मन से हैदराबाद से वापस हो रही हूँ ......अभी १८ मई से १८ जून तक बड़े उत्साह से वहां रही ....फिर अचानक ही १३ जुलाई को दुबारा जाना पड़ा बिटिया की अस्वस्थता की वजह से ...... रिजर्वेशन नहीं मिल पाने से फिर हवाई यात्रा से ही जाना पड़ा ......और वो यात्रा भी ऐसी की ७ घंटे मुंबई एयरपोर्ट पर बैठना पड़ा.....बिना किसी काम के एक ही जगह पर बैठना कितना दुश्वारी का काम है ......यही महसूस हुआ ....पतिदेव ने कई बार चेष्टा भी की कि चलो कहीं घूम आते हैं .....पर वहां की बारिश और किसी न किसी वजह से बाहर निकलना संभव नहीं हुआ.....अब सोचती हूँ कि अच्छा ही हुआ जो हम लोग कहीं बाहर नहीं गए ......वहीँ बैठे बैठे समय बिताया ...जब हैदराबाद वाली फ्लाईट में बैठे और सामने की सीट के पीछे लगा हुआ टीवी ऑन किया .....तो समाचार सुन कर सन्न रह गए.....कि ठीक १० मिनट पहले वहां ३ जगह भीषण धमाके हुए जिसमे बहुत से लोग मारे गए.....हमारा प्लेन भी करीब आधा घंटा देरी से उड़ा ...... सभी अनुमान लगा रहे थे ........कि क्या बात है उड़ान में इतनी देरी क्यों ......पर बाद में पता चला कि क्या कारण था .....और यह सब बस कुछ ही मिनटों के अंतर पर हुआ....हमारा जहाज कुछ विलम्ब से उड़ा .....और जब तक यह समाचार सब तरफ फैला ......हम सब हैदराबाद की तरफ आधा रास्ता पार कर चुके थे......रात करीब १० बजे हम बिटिया के पास पहुंचे .....और काफी देर तक टीवी पर मुंबई के समाचार देखते रहे और अपनी घबराहट पर काबू पाते रहे.....
१७ तारीख को मेरी बिटिया का साइनस का ओपरेशन था....ओपरेशन सफल रहा ........डॉक्टर बहुत अच्छे और मिलनसार स्वभाव के थे..........मरीज की आधी बीमारी तो डाक्टर के ढाढस बंधाने और अच्छी तरह अटेंड करने से ही चली जाती है...ऐसा अनुभव रहा .....ओपरेशन से लेकर टाँके काटने तक एक हफ्ते का समय लगा.....उसकी तकलीफ और कष्ट देख कर मन बड़ा विचलित रहा .....पर बहुत तसल्ली की बात है की भगवान् ने उसे बहुत हिम्मती बनाया है.....इतने दर्द और तकलीफ में होने के बाद भी उसने बिलकुल हिम्मत नहीं हारी .....डाक्टर भी बहुत तारीफ कर रहे थे उसकी ....
अभी २४ तारीख को जब वो टाँके कटवा कर घर वापस आई ....तो काफी देर तक सर दर्द उलटी तथा जी घबराने से परेशान रही ...........पर उसके बाद उसे काफी हल्कापन महसूस हुआ.........चेहरे तथा नाक की सूजन कम होने लगी ...पर ऐसी स्थिति में उसे छोड़ कर आने में बड़ा कष्ट हो रहा था......पर परिस्थितियां इंसान को ऐसा विवश कर देती हैं ........कि कोई क्या करे ?.........२६ की सुबह का हमारा रिजर्वेशन था......और आना भी अवश्यक था क्यों की गर्मियों के अवकाश के बाद मैंने तुरंत ही १५ दिनों की छुट्टी ले ली है......पता नहीं स्कूल में क्या चल रहा होगा .....खैर देखा जायेगा .......अभी से क्यों परेशान होऊं ?.............
बिटिया हर बार स्टेशन तक छोड़ने आती थी ...पर इस बार अस्वस्थता के कारण उसकी आने की हिम्मत नहीं हुई ....... ..और हमने भी ज्यादा जोर नहीं दिया .....उसकी रूम मेट रिनी जरूर हमें छोड़ने आई ........और बड़ी ही सक्रियता के साथ उसने हमें ट्रेन तक छोड़ा ......बहुत प्यारी और अच्छी बच्ची है.. वो भी.........
अभी ७५ % ठीक होने की अवस्था में बिटिया को छोड़ कर जा रही हूँ..............पर मन वहीँ लगा हुआ है......समझा कर तो आई हूँ....रिनी को भी समझाया है.........पर कभी कभी बच्चे लापरवाही करते हैं .........खाने पीने में भी कोताही हो जाती है ........पर क्या करू ???........खैर बच्चे समझदार हैं.........जो करेंगे अच्छा ही करेंगे ...........इतना कमजोर होने से काम नहीं चलेगा ...........पर माँ के दिल का क्या करू??...........
ट्रेन में रिजर्वेशन बहुत मुश्किल से मिल पाया है.....वो भी स्लीपर में........एक तो ट्रेन में बैठने की आदत ख़तम सी होती जा रही है.....कई सालों से कहीं आना जाना ही छूट सा गया है ....जब भी छुट्टी होती है बच्चे ही चले आते हैं........और आसपास कहीं जाना होता है तो कार से ही निकल लेते हैं......इस लिए लम्बे सफ़र की आदत ही छूट गई है..........पर ट्रेन के सफ़र का अलग ही आनंद (!!) है ........
सबसे पहले कितनी मुश्किल से ट्रेन में घुसना ........वो भी स्लीपर में .......एक से एक ...........दुर्गन्ध युक्त लोगो का सामना करना .............वो भी इस भीषण गर्मी तथा चिपचिपाती हुई उमस में...टॉयलेट और बाथरूम की भयानक. दुर्व्यवस्था . ......कुछ . ......... कहना ही बेकार है .......उफफ्फ्फ्फ़ ......
हैदराबाद का मौसम बहुत अच्छा रहता है.......दिन में गर्मी पर रात में एक चादर जरूरी....... जब हम वहां से चले थे तो वहां खूब मूसलाधार बरसात हो रही थी........ट्रेन में चढ़ने तक ये हाल था कि.......सीट पर बैठने के लिए जगह बनानी पड़ रही थी....पूरी सीट खिड़की से आ रहे पानी से गीली थी..........पर ज्यों ज्यों आंध्र ख़तम होता जा रहा है ......गर्मी की प्रचंडता बढती जा रही है........हवा में एक चिपचिपाहट सी बनी हुई है ...... जरा भी ताजगी नहीं है हवा में......जब तक ट्रेन चलती ...रहती है.......गनीमत है.........ट्रेन रुकते ही ...........जान .सांसत में पड़ जाती है.........
१०.३० बजे से लेकर १ बजे तक हम लोग थोडा सो लिए हैं .......फिर उठ कर रात की कचौड़ी और ट्रेन में खरीदे आलू वडे खाए हैं ......
ट्रेन पूरी रफ़्तार से चलती है तो ट्रेन में बैठने का मज़ा दुगना हो जाता है.....मीलो दूर दूर तक फैले ...खेत ....जंगल और सूखी पहाड़ियां दिखाई दे रही हैं.....बारिश हो जाने से सब कुछ धुला धुला साफ़ सुथरा दिखाई दे रहा है ....कहीं कहीं के दृश्य खूब सुन्दर बनी हुई पेंटिंग जैसे लगते हैं ......काश मैं इतना सुन्दर लैंड स्केप बना पाती .......कोई कोई जगह इतनी सुन्दर लग रही है ..कि जी चाहता है ............. यहीं एक झोपड़ी बना कर बस जायें ......काश ऐसा हो पाता .......
मेरी बिटिया हैदराबाद में जहाँ रहती है.....वो जगह मुझे बहुत पसंद आई है..... शायद मुझे मनकापुर के अलावा ...और कहीं ख़ुशी से और .............वातावरण को देखते हुए रहने को कहा जाये तो मैं वहां रहना पसंद करूंगी ........... बेहद साफ़सुथरा शांत और खुशनुमा सा इलाका.........अभी बहुत डेवलप नहीं है.........दूर तक काफी हरियाली और सूखे पहाड़ दिखाई देते हैं.........रात में जब चारों तरफ .....बत्तियां जलती हैं......तो किसी हिल स्टेशन पर होने का आभास .....होता है..........मैं तो वहां बालकनी में घंटो बिता सकती हूँ.... .......हाथ में चाय का कप थामे हुए...........
.....बेहद अच्छा मौसम .....शायद ४ ..६ ...साल में वहां भी अच्छी भीड़ भाड हो जाएगी .....पर अभी तो बहुत अच्छा लगता है.....
यहाँ ट्रेन में मेरे ठीक सामने की सीट पर .....एक गोरखपुर के दंपत्ति बैठे हुए हैं....रहन सहन से तो लोअर मिडिल क्लास ही हैं..पर शो ऑफ़ वाली प्रवृति से ग्रसित हैं....उनका एक ३ या ४ साल का बच्चा है....बिलकुल गहरा सांवला (काला ) जो बेहद चंचल या हमारी भोजपुरी भाषा में कहें तो बेहद उछिन्नर या बनच्चर है.....एक जगह बैठ ही नहीं पा रहा......इतनी भीषण गर्मी में उसकी हरकतें .....बुरी तरह चिढ़ा रही हैं......जी यही चाह रहा है..कि अपनी टीचर वाली भूमिका में आ जाऊँ ...और जोर से डांट कर दो चपत लगा दूं ............हर सामान बेचने वाले के आने पर......जिद से लोट जाना .....फिर उसके पापा का ......सबको नोटों का बण्डल दिखाते हुए कुछ न कुछ खरीदना ......ज्यादा महंगा होने पर .......न खरीद पाने पर चीखना चिल्लाना .....रोना .... फिर दो चार झापड़ खाकर कुछ देर शांत रहना.....थोड़ी देर बाद...... फिर यही सब दोहराया जाना.......ये ड्रामा बहुत देर से देख रही हूँ ....
उसके बगल में ही एक २५ ..२६ साल का युवक बैठा हुआ है....वो भी एक अलग ही व्यक्तित्व या कहूं नमूना है तो ज्यादा सही होगा ....कंधे तक बढे हुए बाल ....और करीब डेढ़ इंच लम्बे नाखून जो चमकीले हरे नेल पोलिश से रंगे हुए हैं....यहाँ बैठे सभी के आकर्षण और कौतूहल का केंद्र हैं.........और दूसरे बाएं हाथ की कलाई में मोतियों की कई लडियां ....जिन्हें उसने चूड़ियों की तरह लपेट रखा है.....साटिन या शनील कि नीली धारीदार कमीज पहने हुए वो खुद को न जाने क्या समझ रहा है.....इतनी गर्मी में कानों में हेड फोन लगा कर मोबाईल से गाने सुन रहा है.....मेरे पतिदेव ने तो उस से पूछ भी लिया है कि उसने नाखून क्यों बढ़ा रखे हैं.......और उसने कोई जवाब नहीं दिया है.....अभी शायद (ऐसा लोगो ने अंदाज़ा लगाया है ) वो कुछ नशा करने की चीज को एक प्लास्टिक शीट में लेकर मसल रहा था ....लोगो के पूछने पर की वो क्या कर रहा है ??? .......उसने कोई जवाब नहीं दिया और वहां से उठ कर चला गया ..और जब वापस आया तो वो पैकेट उसके पास नहीं था ......ताज्जुब की बात है की उसका पिता भी उसके साथ है.....क्योंकि अभी अभी दोनों ने साथ बैठ खूब ढेर सारा खाना खाया है......
दक्षिण से हमें सीखना चाहिए…..ऐसा बहुत कुछ …….जो उनसे सचमुच सीखने लायक है……ट्रैफिक नियमों का पालन…इमानदारी ….कई चीजो में हम उनसे बहुत पीछे हैं……..
साइड की ऊपर की सीट पर एक युवक …बिलकुल लाल रंग की ......पता नहीं क्या क्या लिखी हुई एक्टर एक्ट्रेस शर्ट पहन कर लेटा है……..उसकी काफी लम्बी चुटिया है……शायद पक्का पंडित होगा या किसी मन्नत के लिए रखी होगी ….क्योकि जींस और फैशनेबल शर्ट पहने हुए किसी लड़के की एक फुट लम्बी चुटिया रखे कभी नहीं देखा …….चुटिया इतनी लम्बी है कि कई बार मोड़ कर लपेटने पर एक बड़ा सा गुच्छा बन कर लटक रहा है……. उसे भी काफी बढ़ चढ़ कर बोलने की आदत लगती है……छोटी छोटी बहसों में मेरे पतिदेव ने उसे बुरी तरह धराशायी कर दिया है….. पर शायद वो समझ गया है की यहाँ बैठे हुए सहयात्रियों में हम लोग ही ऐसे हैं जो उसके झांसे नहीं आने वाले …तो उसने डींगें मारना बंद कर दिया है…..
नागपुर स्टेशन पर गाडी रुकी है…….काफी बड़ा स्टेशन है…........पतिदेव काफी देर से सो रहे थे …..अभी अभी उठ कर बैठे हैं…..दक्षिण भारत के सभी स्टेशनों की खासियत है….कि ये अपनी यू .पी और बिहार वाली गन्दगी फैलाने वाली आदत से कोसों दूर है….बेहद साफ़ सुथरे स्टेशन…..यहाँ तक की पटरियों को देख कर भी लगता है… सारे पत्थर कायदे से सजा कर और अभी अभी झाड़ू लगा कर रखे गए हैं…….ट्रेन के नीचे पटरियों पर भी बिलकुल गन्दगी नहीं…......अगर कोई कागज़ डब्बे ..बोतल …..वगैरा फेंक दे तो तुरंत सफाई कर्मी द्वारा उठा कर कूड़ेदान में डाल दिया जाता है…….अगर कोई हयादार इंसान हो तो वाकई लज्जित हो जाये …..पर अपनी साइड के लोग बिलकुल भी नहीं शर्माते ….......और वक़्त बेवक्त अपनी बेशर्मी का प्रदर्शन करते रहते हैं…..
इधर पान और गुटखा खाने की आदत भी नहीं नज़र आती … हैदराबाद में ........ बहुत ढूँढने के बाद भी मुझे रजनी गंधा का पैकेट नहीं मिला…..जिस तरह अपनी तरफ छोटी से छोटी दुकान पर भी झालर की तरह सजी हुई…गुटखा और सुपारी की पुडिया दिखाई देती हैं…..इधर कहीं नहीं दिखती….पान की दुकान ही मुश्किल से मिलती है……और पान तो ऐसे मिलते हैं….जैसे पान के पत्ते को पूरा सैंडविच बना देते हैं……उसमे इतना अधिक मैटेरिअल डाला जाता है की पान का अस्तित्व ख़तम हो जाता है…..
कुल मिला कर अर्थ यही निकलता है..कि इधर पान को बिलकुल महत्त्व ही नहीं दिया जाता..और इसी वजह से पान की पीक से संवरी हुई जगहें ....दीवारें ...कोने.....सड़कें जो हमारे यू . पी. बिहार की शान हैं……यहाँ नहीं हैं…..बहुत साफ़ सुथरापन है यहाँ……
रात बीतती जा रही है…अभी एक चाभी के गुच्छे वाला आया था ….जिस से एक दर्जन गुच्छे खरीदे …बेहद सुन्दर और फिनिश काम वाले छोटे छोटे गुच्छे हैं…. गिफ्ट में देने लायक…….गोरख पुरी जोड़े ने भी अपने लाल के लिए दो ले ही लिए …..
डिप वाली चाय मुझे बहुत बेस्वाद लगती है…पर मजबूरी है…कई बार पी चुकी हूँ ….और माइंड कर रही हूँ ….कि जब भी मैं चाय लेती हूँ ….अगल बगल बैठे सभी चाय लेते हैं…..और जब तक चुपचाप बैठी रहती हूँ ….चाय वाला आवाज़ लगा कर चला जाता है कोई नहीं लेता …..पता नहीं क्या बात है……गोरखपुरी जोड़ा हर फेरी वाले से कुछ न कुछ अल्लम गल्लम खरीदता ही रहता है …… पर अगर कोई भिखारी आता है तो उनकी जेब से एक रुपया भी नहीं निकलता …..सीधे भगा देने वाली मुद्रा में हाथ हिला देते हैं …… अभी मैंने भी २ पैक चिप्स खरीदे हैं……खाना खाने की बिलकुल इच्छा नहीं है……इतनी घुटन भरे माहौल में खाना ?? छि !!!!!!!! …सोच के ही जी मिचला रहा है…....
सोने का वक़्त हो गया है….गर्मी की भीषणता उग्र रूप में है…..पता नहीं नींद कैसे आएगी ………सोने का मन तो नहीं पर क्या करें उसके सिवा कोई चारा भी तो नहीं है……ऊपर जल रही लाइट भी इतनी मरियल है की कुछ पढ़ा भी नहीं जा सकता ……..गर्मी के मारे हमने कुछ खाया नहीं……सबसे ऊपर वाली बर्थ हम दोनों की थी ….पर एक भले आदमी ने अपने दोनों लडको को ऊपर सुला कर सबसे नीचे वाली बर्थ हम लोगो को दे दी है……..पर बीच वाली बिर्थ गिरा दिए जाने से .... कुछ ऐसा आभास हो रहा है की ताबूत में लेट कर कैसा लगता होगा …….न बैठ सकते हैं न उठ सकते हैं……….किसी तरह दम रोके पड़ी हूँ…..सामने पतिदेव भी बार बार पहलू बदल रहे हैं…….नींद किसी को नहीं आरही ….हर तरफ से एक विकट सी बदबू आरही है…….पर कुछ बहादुर लोग ऐसे भी हैं जिनकी नाक बहुत जोर जोर से बज रही है…….
रात में करीब १ बजे कुछ पुलिस वाले अन्दर आये थे ….और चुटिया वाले की सीट के नीचे वाली बर्थ पर किसी तरह सोये हुए दो नेपालियों की तलाशी का ड्रामा करने लगे …..पासपोर्ट मांगने पर एक के पास तो सारे कागजात मिल गए पर दुसरे वाले को ३०० रूपये लेकर उन्होंने छोड़ा …..छी कैसी गन्दी मानसिकता हो गई है……पैसे देकर छूटे हुए नेपाली ने भी हंसी उड़ाई उनलोगों की…….पर उन्हें तो सिर्फ पैसे से मतलब है किसी भी तरह मिलें …….अन्ना हजारे बेचारे कहाँ कहाँ तक दौडें ??बहुत शर्म महसूस होती है ऐसी हरकतें देख कर………..
हे भगवान किसी तरह रात बीती है…….
गोरखपुर वाला जोड़ा रात भर .....जमीन पर सोया रहा है……कन्फर्म टिकट नहीं होने से उन्हें बर्थ नहीं मिली थी ……अभी अभी आलू पकोड़े और चाय का नाश्ता करके फिट हैं…..पूरा परिवार ……
लखनऊ स्टेशन पर उनके लाडले ने एक फूहड़ सा हवाई जहाज खरीदा है…..और हाथ पैर धोकर या कहूं नहा कर उसके पीछे पड़ा हुआ है……..माँ के कई बार कहने के बावजूद ….उसने खिलौना रखा नहीं है…..खिलौना शायद ही उसके घर तक सलामत पंहुचे ……..उसके पापा ने बड़ी शान के साथ बताया है की जहाज ८० रूपये का है………और माँ का कहना है की ऐसे महंगे महंगे पचासों खिलौने घर पर पड़े हैं….यह बात वो कई बार दोहरा चुकी है……
धीरे धीरे धीरे गंतव्य निकट आता जा रहा है…….इधर कहीं बारिश होती नहीं दिखी ….......पर बादल लगे हैं…..शायद होने ही लगे……झिलाही के आसपास .. से बारिश मिली है…पता नहीं मनकापुर में बस तक पहुचने के लिए भीगना न पड़ जाये ……..
मनकापुर स्टेशन पर गाडी से उतरने के बाद ……पीछे से बाय बाय सुनाई दिया है…..मुड के देखती हूँ वही ट्रेन वाला छोटा बच्चा खिड़की में से हाथ निकाल कर टाटा कर रहा है……..बहुत अच्छा सा महसूस हुआ..........मैंने भी हाथ हिला दिया है….उसकी माँ भी झाँक रही है…….एक ऐसा साथ ...........जो करीब डेढ़ दिन तक रहा……और अब शायद ज़िन्दगी में फिर कभी उनसे मुलाकात नहीं होगी ……..
बस तक आते आते छींटे पड़ने लगे हैं…..बस में सबसे आगे की सीट मिल गई है…….आखिर पहुँच ही गए मनकापुर….घर वापस आगई हूँ……दो चार दिन फिर लगेंगे सामान्य अवस्था में पहुचने में…….कल से फिर वही दिन चर्या ………वही स्कूल ……हे भगवान !!!!!!!!!!!!!!!!!!!......
Nice writeup , based on observations of train journey.keep it.
ReplyDeletethanks sabhjit ji....
ReplyDeleteयात्रा को लाइव टेलीकास्ट कर दिया । आपकी लेखन शैली देख कर शिवानी की कहानियाँ याद आती हैं ।
ReplyDeleteबिटिया के स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाएं ।
शुक्रिया विवेक.......इतनी अच्छी तारीफ के लिए...शिवानी मेरी सबसे पसंदीदा ..लेखिका हैं .....जब मैं १० में पढ़ती थी तब मैंने उन्हें पत्र लिखा था..और उनका जवाब आज भी मेरे पास सुरक्षित है
ReplyDeletehm sbi log 1 jaisi hi maansikta waale hain...mummy hotin to unka b blkul yahi reaction hota ...khud mera b yahi haal hota h ...is blog k hr feeling ko mai bht ache se mehsus kr skti hu.. :)
ReplyDeleteअरे वाह!! क्या कमाल वर्णन किया है। मज़ा आ गया पढ़ के। ट्रेन में और खासतौर पर अगर स्लीपर में आना पड़ जाए, तो समझो नमूने ही नमूने मिलने वाले हैं 😊
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