लिखिए अपनी भाषा में

Wednesday, December 23, 2020

😏😏😏😏😏

अभी काफी देर से "फूडफूड" चैनल देख रही हूं.... संजीव कपूर...और  एक दो और शेफ के सिवा बाकी सभी शेफ की बनाई डिशेज़ का स्वाद तो भगवान ही जानता है..कैसा होता होगा?     ...क्यों कि टीवी के अलावा तो और कभी किसी .....को वो "अड़ोंग बड़ोंग " बनाते तो कभी मैने देखा नहीं......उन व्यंजनों को सिर्फ कैसे सजा कर पेश किया जाये इसी पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है.... और इन सभी व्यंजनों में जो सामग्री डाली जाती है. ..पहले तो वो हर जगह उपलब्ध नही होती.....७५% महिलाएं तो सामग्री के नाम सुन कर ही उन व्यंजनों को खारिज कर देती है....और जिस तरह की लाइफ स्टाइल वाली हसीनाएं. ...इतरा इतरा कर चहक चहक कर  खुश होकर  शानदार किचेन मे    एक से एक स्टाइलिश बरतनों और किचन वेयर में इन व्यंजनो को बनाती दिखाई जाती हैं.....उन सभी के घरों मे ज्यादातर "कुक" खाना बनाते हैं.....वे शायद ही कभी खाना  बनाती हों....  😏😏😏😏😏

Wednesday, December 16, 2020

बस अब जाओ 2020😏😏

दिसम्बर की डायरी
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एक ख़ुशनुमा सी सुबह , 15 दिसंबर की । आज बिल्कुल भी कोहरा नहीं है.....  सिहरा देने वाली  सी हल्की-हल्की ठंडी हवा , आसमान की सीढ़ियाँ चढ़ता सूरज, पर धूप मे जरा भी आँच नहीं है.... , बस सुनहरा पीला रंग सा  बिखरा हुआ है...गुनगुनी सी, अच्छी लगती धूप । साफ़ सुथरा नीला आकाश, बादलों का कहीं अता पता भी नहीं.... मनकापुर की हरियाली का कोई जबाव नही है ।खूबसूरत मौसम में ये और भी खूबसूरत हो उठता है.... ऐसा मौसम और चारों तरफ शांति का वातावरण.... पता नहीं भविष्य में फिर ऐसे सुकून दायक पल मिलेंगे या नहीं.....पिछले आठ नौ महीनों से ऐसी बंधी बंधाई दिनचर्या चल रही है जैसे... कोल्हू के बैल की तरह नाक मुंह पर पट्टी बांधे बस एक धुरी पर घूमती जा रही हूँ बस......।सब कुछ अपने समय पर ही हो रहा है.... प्रकृति ने भीषण गर्मी भी दिखाई, बेतहाशा और निरंतर जलथल एक कर देने वाली बारिश भी और अब आजकल कुछ दिनों से सर्दी की प्रचंडता भी दिखाने को आतुर है..... सब कुछ अपनी मौज में बस बीतता जा रहा है.... और अब तो ऐसा महसूस होने लगा है जैसे हम जन्मों जन्मों से ऐसे ही रहते चले आ रहे हैं..... बेलौस और निश्चिंत..... और मैं ये भी महसूस कर रही हूँ कि हमारी जरूरतें कितनी सीमित हैं..... इसमें बहुत सी बातें न भी होतीं तो हमें शायद कोई फर्क नहीं पड़ता..... पर बहुत सी बातों बहुत से रिश्तों को हम ढो रहे हैं जैसे.....
                    मौजूदा साल अब अपने आख़िरी पड़ाव पर पहुंच चुका है , बहुत जल्द ही ये भी  अतीत के पन्नों में शामिल हो जाएगा । ये सोचकर  मन कभी खुश होता है और कभी अनमना । अच्छा हो या बुरा..... समय की ये खासियत है कि वो बीत ही जाता है..... ये दिन भी जैसे तैसे बीत ही गए..... बस मन टीस रहा है जैसे.....
         लगता है अभी-अभी तो आया था ये साल !  पलक झपकते ही गुज़र गया ! कुछ ही दिनों बाद नया साल आ जायेगा ।
         गुज़रते दिनों के साथ-साथ इस साल को विदा करते ......मन उदास है , हमेशा ही ऐसा होता है । विदा शब्द हमेशा कष्टप्रद होता है........ पीड़ा देता है.....उम्र और वक्त बढने के साथ साथ सबसे मोह भी बढ़ता जाता है.......  मोह कहाँ  बिसरा पाते हैं हम सब ? पर सोचने  से समय कब रूका है....वो तो प्रवाहित है..... और कैसा अनूठा अद्भुत प्रवाह है ये !
             साल जो व्यतीत होता जा रहा है  तो ज़ेहन में कितना कुछ उमड़ने लगा है , 
अब , दिसम्बर जा रहा है  तो याद करने बैठी हूँ कि इस बेदर्दी साल ने कितना कुछ छीना और क्या क्या दिया..... कुछ रिसते रहने वाले घाव... जिनके बारे में सोचने से भी सिहरन होती है.... बस भगवान् सब पर कृपा दृष्टि बनाए रखें.... सबका सुहाग बनाए रखें....जिसके पास जितना भी है, उसी में संतोष रखना सिखाएं...... सबकी गलतियों को क्षमा करें प्रभु.... सब शुभ शुभ हो यही विनती है आपसे 🙏🙏🙏🙏 सबको हिम्मत और धैर्य दो ईश्वर... आमीन.....
          अपना शहर , अपनी हवा , अपनी हरियाली अपने फल फूल और इन कुछ हरे भरे और कुछ सूख चले बेतरतीब पेड़ों पर बसे परिंदों तक से इस हद तक लगाव हो चला है कि अब यहां से जाना है सोच कर ही मन कैसा कैसा तो हो जाता है.......मन की संदूकची में बहुत कुछ बंद कर के साथ ले जाऊंगी यहां से.....  लगाव  तो मेरी अपनी खिडकी से दिखती  हरी भरी टहनियों, झूमते पेड़ों , रातरानी , और फूलों के पौधों से भी है.....  और मेरे कैनवास , ब्रश और रंगों से भी.... पर बेचारे इंतज़ार ही करते रहे कि इस साल भी उन्हें वक्त दूँ.... पर इतनी व्याकुलता और असमंजस की स्थिति रही इन दिनों कि मन स्थिर नहीं हो पाया....परिजनों की पीड़ा, बीमारी, मानसिक, शारीरिक और आर्थिक कठिनाइयों की सूची लंबी होती चली गई और मैं इन्हीं में आपाद मस्तक डूबी रही......और किसी ओर ध्यान ही नहीं गया.... पर कोई बात नहीं नए साल को वादा करती हूँ कि जो कुछ भी इन दिनों छूटा रहा है..... उसे पूरा करने की कोशिश ज़रूर करूंगी.....ईश्वर मेरे साथ हैं और मुझे पूरा यकीन है कि वो कभी मेरे साथ अन्याय नहीं होने देंगे.......आमीन
           ये साल सिर्फ बुरा और कष्ट देने वाला ही रहा है ऐसा नहीं है.....इस गुजरते हुए साल ने मुझे चिर प्रतीक्षित खुशियां भी दी हैं....मुझे मेरा सुंदर सा नाती भेंट किया है... मेरी बेटी इस साल माँ बनी....दुनिया के सबसे प्यारे बच्चे की माँ...अपनी तीसरी पीढ़ी देखने का गौरव मिला मुझे....और क्या चाहिए 😊😊😊😊
          याद तो बहुत आएगा ये साल ,  बुरे और अच्छे दोनों ही रूपों में.....कितने ही प्रिय हमारा साथ छोड़ गए पर बहुत से परम प्रिय हमें मिले और हमारे साथ जुड़े भी.........
          कोरोना ने बहुत कुछ सिखा दिया है.... तो कुछ बातों की असलियत भी सामने आ गई है.... अब कुछ ही दिन बाक़ी हैं इस वर्ष के जाने में.... , पर जो भी हैं एक -एक  पल  खुशगवार बीतें यही कामना है.....मुझे उम्मीद है कि जल्द ही एक सुबह जब हम सो के उठेंगे तो यही शुभ सूचना मिलेगी कि अब हम कोरोना वायरस से मुक्त हो चुके हैं और सब कुछ पहले जैसा ही सामान्य हो गया है..... दुनिया फिर से पहले की तरह खुशगवार हो उठी है.......🙏🙏🙏

Monday, December 14, 2020

नवंबर 2017

इधर कुछ दिनों पहले मुंबई अपने भतीजे की शादी में जाना हुआ.... मेरे फेसबुक स्टेटस पर Manmohan Saral दादा का मैसेज पढ़ कर अतीव प्रसन्नता हुई 😊😊ये अहसास ही नहीं था कि अचानक उनसे मिलने का अवसर मिल जायेगा.....दादा ने पूरा विस्तृत एड्रेस मुझे वाट्सैप पर भेज दिया था.... और हमारी प्रतीक्षा भी कर रहे थे 😊😊😊😊एक रोमांच सा था कि जिस लेखक को बचपन से पढती आ रही हूं, वो हमारे सामने बैठे हैं.... एक बड़ी विभूति से मिलने के अवसर कभी कभी ही आते हैं.... कुछ देर के लिए ही जाने का प्रोग्राम होने के बाद भी हम बहुत देर तक वहां बैठे रहे.....
दादा सिर्फ श्रोता से बन कर बैठे रहे और हम दोनों वक्ता बने रहे😂😂😂 मंद मंद मुस्कुराते हुए सुनते रहे......बड़ी ही आत्मीयता से अपना पूरा घर.....अपनी पत्रिकाओं, पुस्तकों का संकलन दिखाया...... चारों तरफ से किताबों से घिरे रहना... ओह!!!!! मेज, कुर्सी डायनिंग टेबल,पलंग, रैक हर जगह किताबें ही किताबें.....
हमारे जाने के कुछ समय बाद तक उनकी कार्य सहायिका नहीं आई थी.... और हमारे लिए चाय नाश्ते की व्यवस्था नहीं हो पा रही थी इसके लिए उनकी व्यग्रता देख कर मैने स्वयं चाय बनाने की पेशकश की पर वे तैयार नहीं हुए..... कुछ देर बाद वो आई और हमने चाय नाश्ता ग्रहण किया....उस दरम्यान दादा का बार बार किचन में जाना और अपने हाथों से सारी व्यवस्था करना अंतर्मन को छू गया 😊😊😊😊पतिदेव ने ढेर सारी फोटोज लीं...
अभी कुछ समय पूर्व ही दादा की जीवन संगिनी नहीं रही हैं.... उनकी बातों में उनका अभाव बराबर महसूस हो रहा था ☹️☹️
इतना अच्छा समय बीता.... हम दोनों बिल्कुल गदगद होकर लौटे..... अपनी एक बहुत अच्छी पुस्तक उन्होंने मुझे भेंट की.....
फिर मिलने की उम्मीद के साथ हम दोनों वापस आए😊😊😊😊😊

Thursday, December 10, 2020

😖😖😖😖

हे भगवान्!! मैं कितना काम कर रही हूं😱🤢लगातार...थक कर चूर हूं... गले में दर्द, पीठ में दर्द, सिर में दर्द, बुखार, हरारत, उलझन😕😕😕फिर भी किसी पर कोई असर ही नहीं 😔😔🤢🤢 बीमार पड़ने से भी क्या फायदा जब कोई देखभाल करने वाला और हालचाल पूछने वाला न हो😏😏😏

यादें

दही के लिए मेरा ननिहाल एरिया (गोरखपुर, अब महराजगंज) बहुत मशहूर है.... बचपन से ही इतनी ज्यादा दूध, दही, मलाई, रबड़ी की शौकीन रही हूं जिसकी हद नहीं 😊😊😊 (अब तो इनका सपना भी देख लूं तो कैलोरी बढ जाती है 😕😕😔😔😢😢😢) याद है कि मौसी, मामा जी, और मेरी खुद की शादी में १५-२० किलो दूध की खूब बढ़िया जमाई हुई दही"खूब मोटी साढ़ी वाली, (औटा औटा कर भूरी गुलाबी मोटी मलाई, जो रोटी की तरह हाथ में उठाई जा सकती थी) दही नाना जी ने तैयार कराई थी... जो कई घंटों तक मुलायम चादर में बांध कर टांग दी जाती थी.... फालतू पानी निकल जाने के बाद जो बचता था, वो होता था निखालिस खोए जैसा सॉलिड, मलाईदार, गाढ़ा, मीठा, शुद्ध दही.... दही का कंडेंस्ड रूप.... एक कटोरी दही से एक भगोना नॉर्मल दही बनाया जा सकता था.... पर हमको तो सॉलिड वाला रूप ही पसंद था😊😊😊जो फ्रिज में रख देने के बाद बिल्कुल आइसक्रीम की तरह खाया जा सकता था.....
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अब कभी नहीं लौटेंगे वो दिन 😞😞

Monday, December 7, 2020

मुंबई यात्रा 🤗🤗

मुंबई शहर का दौरा लग गया है , बेटे के पास आई हूँ बस यूं ही घूमने फिरने..... स्वभाव में , चीजों को जरा गौर से देखने का शौक है.... उम्र के लिहाज से अब थकान जल्दी होना शुरु हो गई है, पर घूमने का लालच बना हुआ है...... तरह तरह का खाना खाने का शौक है.... . वैसे भी मैं इतनी छोटी सी जगह में रह रही हूँ कि यहाँ से बाहर हर जगह रोमांचित ही करती है.... हर जगह पसंद आ जाती है 😝
        अधिकतर  यहाँ यूपी वाले, बिहार वाले छाए हुए हैं.... जिनको मराठी लोग  बिहारी ही कहते हैं और यूपी वाले बार बार करेक्ट करते है – हम यूपी से हैं , बिहार से नहीं। दोनों एक ही लगते हैं न.... बोली-बानी, रहन सहन, शक्ल- सूरत में भी.... वैसे भी गाय और भैंस में ज्यादा फर्क नहीं होता 😝

               एक से एक शानदार होटल, शो रुम्स, मॉल्स, रेस्तरां..वर्ली सी लिंक...पर से गुजरना.... अथाह समुंदर और खूब ऊंची ऊंची खूबसूरत इमारतों का झुंड.... और  यह चीजें बहुत पसन्द आईं ।
        पर एक चीज काफी अखरी कि इतना सब होने के बावजूद महंगे से महंगे अपार्टमेंट में भी खिड़की में ख़ास तरह का लोहे की प्रोटेक्शन वाली ग्रिल / जाली और उन पर बुडूम बुडूम करते असंख्य स्लेटी रंग के कबूतर....और उनकी बीट, बदरंग पंखों और गंदगी के ढेर...... खिड़की खोलना मुश्किल..... । यह मुंबई की पुरातन चाल संस्कृति को दर्शाता है । लोग अरबपति, खरबपति भी होते चले गए पर चाल संस्कृति से बाहर नहीं निकल पाए । करोड़ों के फ्लैट की शोभा इन लोहे की पिंजरों से खत्म होती सी महसूस होती है ।
       यहाँ महिलाएं सुरक्षित हैं । कहा जा सकता है कि अन्य शहरों से ज्यादा सुरक्षित, यहां की महिलाएं है । रात में 11-12 बजे भी आराम इत्मीनान से सड़कों पर, लोकल ट्रेनों में लड़कियों , औरतों को निश्चिंत घूमते, टहलते देखा... किसी को किसी से कोई मतलब नहीं..... सब अपने में व्यस्त....
           मुख्य सड़कों या बड़ी गली / मुहल्ले वाली सड़कों के हर चौथे मकान / दुकान में बेहतरीन रेस्टोरेंट / बार हैं । बैंगलोर की याद आ गई कई जगह पर.....
* गणेश मंदिर हर जगह.....यहां गणपति पूजन का ज्यादा महत्व है....जैसे कोलकाता में दुर्गा पूजा का.....मुंबई का गणेशोत्सव देखने की इच्छा थी.... पर उस समय आने का कोई मौका नहीं मिला.....सिद्धि विनायक मंदिर और हाजी अली की दरगाह पर जाने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ
          बेटा भी कब तक यहाँ रहेगा, उसके मूड पर है....दिल्ली का मोह नहीं जा रहा....वैसे भी कल किसने देखा है!!!
       कई खास खास परिचितों और  प्रसिद्ध साहित्यिक मित्रों से मुलाकात भी हुई...
कल यानी 31 दिसंबर का पूरा दिन अपनी साहित्यिक सखियों के नाम रहा...बेटे के मुंबई आने के बाद यहां रहने वाले  सभी परिचितों से मिलने की इच्छा और बलवती हो उठी थी...... लेकिन मुंबई के बारे में अल्प जानकारी और सभी का इतनी दूर दूर होना.....हम छोटे शहर वालों के लिए बड़ा दुविधा जनक है....बेटे के निवास स्थान से रश्मि का निवास थोड़ा नजदीक होने से सिर्फ उनसे ही मिलने की कल्पना कर पा रही थी..... पर सिर्फ एक बार फोन करते ही रश्मि ने तो जैसे मन मांगी मुराद पूरी कर दी.....एक से एक साहित्यिक दिग्गजों के साथ "पृथ्वी कैफे" में लंच, ढेर सारी आत्मीय बातें और फिर जुहू बीच पर सैर सपाटे की मस्ती...पतिदेव भी बहुत प्रसन्न हैं.....बेहद प्यारी और सुंदर सी अनु ने भी सरप्राइज दिया.... .2018 का अंत तो अविस्मरणीय हो गया हमारे लिए 😊😊😊😊😊😊
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(अब हम दोनों से मिलकर उन्हें कैसा लगा!!!! पूरी उम्मीद है निराशा तो नहीं हुई होगी 🤔🤔🤔)
         फिलहाल हम तो सिर्फ घुमंतू बन के आए हैं ,  😐 जल्द वापस भी लौटना है ।
       शहर तो कुछ कुछ रास आया वो भी इसलिए कि यहाँ प्रदूषण और जगहों के मुकाबले कम है..... लेकिन उम्र के इस मुकाम पर रास आने का कोई मतलब नहीं.....  अब तो किसी शहर से कुछ लेने की  तमन्ना नहीं बची है और ना ही कुछ देने ताकत ।
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फिर भी ,सारे शहर पसन्द क्यों आ जाते हैं यार ? 😊

Wednesday, December 2, 2020

क्या कहूं....

एक फेसबुक मित्र की पोस्ट पढ़कर ये एहसास हुआ कि और भी लोग मेरी तरह सोचते हैं🤔🤔हां मैने भी महसूस किया है...... पर  अभी तक कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी 😕अब जब उन्होंने जिक्र छेड ही दिया है तो कह डालती हूं☺️ दूर से जितना स्नेह प्रेम दिखाई देता है वो यदि दिल्ली पंहुच कर ये सूचना दे दी जाये कि "हम आये हैं और मिलना चाहते है" तो वो आत्मीयता और प्रेम कहां गायब हो जाता है पता नहीं 😏😏😏😏 फोन ही नहीं अटेंड करना, करना भी तो कोई न कोई एक्सक्यूज बता कर कतरा जाना..... या तो हम जहाँ हैं वहां से खुद को इतनी दूर बताना मानो वो किसी दूसरे प्लेनेट पर हों.....आखिर सामने वाला भी कोई बच्चा तो नहीं जो आपकी इन बातों को समझ नहीं पायेगा....कई बार के अनुभव हैं ये.... सभी को तो नहीं पर कई लोगों के साथ का अनुभव बता रही हूं......जाने क्या समझ कर ऐसा करते हैं मुझे नहीं पता....अब तो सब जानते हैं कि हर आदमी बिजी है और बिना समय लिये या बिना फोन किये कोई किसी के घर जाता नहीं.... अब वो तो समय नहीं रहा कि लोग आपके घरों में ठहरते थे और आपको उनकी आवभगत करनी पड़ती थी.... एक आध घंटे के लिए मिलने में भी इतने नखरे??? छोड़ो अब तो हमने खुद ही कहना छोड़ दिया है.....और ताज्जुब और क्षोभ तो तब होता है जब लौट आने के बाद उन "खास लोगों" का फोन आया "कि अरे!!! आप आकर लौट भी गईं? बताया नहीं आपने??" बड़े शहरों में ये रिवाज आम हो चला है.... गनीमत और फख्र है कि हम अभी छोटे शहर में हैं और यहीं रहना चाहते हैं ☺️☺️☺️ हर अतिथि का खुले दिल से स्वागत करते हैं और करते रहना चाहते हैं.... स्टेशन से रिसीव भी कर सकते हैं और स्टेशन छोड़ने भी जा सकते हैं...बिना कोई एहसान लादे😏😏😏