कल शाम अपने पुराने संकलन में कुछ ऐसे कैसेट्स ढूंढ निकाले मैंने .............जिनको लगभग भुला ही चुकी थी.....,, अब तो जैसे कैसेट सुनने का रिवाज ही नहीं रहा.......हर जगह सीडी और पेन ड्राइव का ऐसा प्रचलन हो गया है कि......... मन पसंद गाने सुन ने को जी तरस जाता है........टीवी खोलो तो वही बेहूदा बे सिर पैर के गाने ...जिनको न सुना जाये तो ज्यादा अच्छा है..... ..या हम ही इतने पुराने हो चुके हैं.....(जैसा कि बच्चे कहते हैं...........क्या मम्मी कितने सड़े हुए अपने ज़माने के गाने सुन रही हो..... )जैसे पता नहीं हम कितने पुराने ज़माने के हैं........खैर.....
एक समय में हमने कितने कैसेट्स इकठ्ठे किये थे......बेहिसाब .........कितने गायब हो गए...कितने टूट गए...इसके बावजूद भी अभी कम से कम ५०० कैसेट्स तो होंगे ही..........जिनमे से अब कितने तो रखे रखे ही ख़राब हो चुके हैं बजते ही नहीं.......उनका क्या उपयोग है ??............समझ में नहीं आता...... न किसी को देते बनता है .......न फेंकते बनता है .........न ही रखने का मन हो रहा है.........कितने कैसेट्स हैं ......... जिनपर बच्चो को डांस सिखाया है.....स्कूल में प्रोग्राम कराया है......घंटो दूकान में खड़े रह कर एक कैसेट से दूसरे कैसेट में गाने डब करवाए हैं......हर मनपसंद गाने का कैसेट लेना तो संभव नहीं होता था.....किसी फिल्म का कोई खास गाना ही अच्छा लगता था..........तो वो सारे गाने एक लिस्ट बना कर ले जाते थे फिर नए खाली कैसेट में सारे गाने एक साथ डब किये जाते थे......कितना धैर्य था तब.....
याद आता है जब हमने पहला टेप रिकार्डर खरीदा था.....तब कितना एक्साईट मेंट और क्रेज़ था......ये करीब ८० या ८१ की बात है....................उस समय उस टेप के साथ दो कैसेट मुफ्त मिले थे.....एक निर्गुण का था और दूसरा बालेश्वर ........जो कि पूर्वांचल के बहुत प्रसिध्ध्ह लोकगायक थे ...... जब तक नए कैसेट नहीं खरीदे गए हम दिन भर उन्हें ही सुना करते थे.........और शायद उस वक़्त एक कैसेट ५ रुपये का आता था...........
उस से भी पहले वक़्त याद आता है.....टेप तब तक हमने सिर्फ फिल्मों में ही देखा था.......मैं शायद ३ या ४ में पढ़ती रही होउंगी.......जौनपुर वाली बुआ जी ने टेप रिकार्डर खरीदा था..... उसमे एक तरफ एक चक्के में रील लिपटी रहती थी....और प्ले करने पर दूसरी तरफ लिपटती चली जाती थी.....अगर आप सभी ने राजेश खन्ना की आनंद . देखी होगी तो उस टेप की याद आ गई होगी....उस समय ये बहुत बड़ी चीज हुआ करती थी......किसी किसी के घर में......ही दीखता था.................और जिनके पास ये सब हुआ करता था वो बहुत एडवांस लोग माने जाते थे.............. हम लोग बड़ी हसरत भरी नज़रों से देखा करते थे...ये चीजे .......क्यों कि तब हमारे लिए ये सब एक बड़ी विलासिता की वस्तु हुआ करती थी..... बुआ जी और भैया लोगों ने ......हम बच्चो से कहा था कि कुछ भी बोलो................इसमें सब रिकार्ड हो जाता है.....और हम सबने अपने अपने ढंग से अपने कोर्स की कवितायें इत्यादि बोल कर उसमे टेप की थीं....जब हमारा बोला हुआ दोबारा हमें सुनाया गया ................तो उस समय क्या अनुभव हुआ था वो आज बताने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं........आज ये बातें कितनी तुच्छ लग सकती हैं ............पर वो कितना प्यारा और अनोखा अनुभव था हमारे लिए........
फिलिप्स का बहुत ही खूब सूरत रेडियो है ...अभी भी घर पर (बनारस में ).........अब शायद २0 या २५ साल से कभी खोला ही नहीं गया..............एक समय वो कितनी गौरव की चीज थी......सबसे बड़े कमरे में .......उसके लिए बड़ा शो बॉक्स बनाया गया था........और सुन्दर क्रोशिये के कवर से ढंका हुआ..........और किसी भी बच्चे को छूने नहीं दिया जाता था.......
रेडियो सीलोन ...विविध भारती ..बिनाका गीत माला.....फौजी भाइयों के लिए प्रोग्राम........... जो कोई खास हीरो या हिरोइन पेश करते थे...........और सन्डे को ...कोई फिल्म .........कितनी तन्मयता और लगन से सुनते थे हम सब.........पूरी फिल्म बिना देखे ............ सिर्फ सुन कर ही कितना मजा आता था........तभी विविध भारती की विज्ञापन सेवा आरम्भ हुई थी......हवा महल..............और दो गज जमीं के नीचे के विज्ञापन याद आते हैं.........पहली हारर फिल्म जिसका विज्ञापन सुन कर ही हमारे रोंगटे खड़े हो जाते थे............ जब हम भाई बहन छोटे थे ........तब पापा जी कभी कभी ......हम लोगो को लेकर आकाशवाणी जाते थे....अपने मन पसंद बाल संघ कार्यक्रम में भाग लेने .......कितना शौक़ से कहानी , कविता इत्यादि तैयार करते थे ....चुटकुले , गीत.... ....भैया दीदी कितने प्यार से बात करते थे उसमे.....
जब यूनिवर्सिटी पहुची तो भी आकाशवाणी जाने की रूचि बनी ही रही.........युवावाणी कार्यक्रम में कितनी ही वार्ताएं .....कहानिया ......प्रस्तुत कीं......पापा जी को .....बहुत ज्यादा शौक़ रहा इन चीजो का.......और उन्होंने मुझे प्रोत्साहित भी किया......हर . बार प्रसारण के समय से एक घंटा पहले ही रेडियो खोल कर बैठ जाते थे पापा जी....कि कहीं भूल न जाएँ ...सुनना और आ रही वार्ता या कहानी ..या कोई भी प्रोग्राम जो मैं प्रस्तुत कर रही होती थी...उसे टेप में रिकार्ड कर लिया जाता था और बार बार सुना जाता था..........कितना उत्साह...कितना क्रेज़......भूल नहीं सकती........
आज जब मेरा बेटा मीडिया लें से जुड़ने जा रहा है या जुड़ चुका है...... ये बातें बरबस ही बहुत याद आती हैं........शायद इसकी नीव तभी कहीं मेरे अंतर्मन में पड़ चुकी थी .......... पतिदेव बराबर आकाशवाणी से जुड़े रहे हैं और आज भी जाते रहते हैं.........
चलिए इतनी बातें तो बता दी सबको..........पर मैं अभी तक ये नहीं समझ पा रही हूँ कि .........उन पुराने कैसेटों का क्या करूँ ???...........जिन्हें न फेंकते बन रहा है और न रखते........ ... यदि कोई तरीका है तो प्लीज बताइए........मैं इंतज़ार कर रही हूँ........
मेरे पास भी मेरे शौक का अम्बार है....क्या बताऊँ
ReplyDeleteसचमुच रश्मि कभी कभी शौक भी जी का जंजाल बन जाता है न ......बहुत सी चीजें हम इकठ्ठा करते चले जाते हैं.....फिर समझ नहीं आता उनका क्या करें......
ReplyDeleteyahan bhej dijiy.yahan radio hai aapki aawaj sunenge
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