लिखिए अपनी भाषा में

Thursday, February 9, 2012

क्या  लिखू ,
कि  वो  परियो  का  रूप  होती  है
या  कड़कती  ठण्ड   में  सुहानी  धूप  होती  है ,
वो  होती  है  उदासी  की  , हर  दर्द  की  दवा  की  तरह
या  फिर  उमस  में  शीतल  हवा  की  तरह ,
वो  चिड़ियों  की  चहचहाहट   है
या  फिर  निश्छल  खिलखिलाहट   है
या  फिर  आँगन  में  फैला  उजाला  है
या  फिर  मेरे  गुस्से  पे  लगा  ताला   है
या  पहाड़  की  चोटी   पे  किरण  है
या  फिर  ज़िन्दगी  सही  जीने  का  आचरण  है ,
है   वो  ताकत  , जो  छोटे  से  घर  को  महल  कर  दे
वो  काफिया   जो , किसी  भी  ग़ज़ल  को  मुकम्मल    कर  दे ,
वो  अक्षर  जिसके  बिना  वर्ण -माला  अधूरी  है
वो  जो  सबसे ज्यादा   जरुरी  है
ये  नहीं ,
कि  वो   हर  वक़्त  सांस -सांस  होती  है .....
क्योकि   बेटिया  तो  सिर्फ  अहसास  होती  है ..

और  लास्ट  में -
नहीं  वो  बहुत   सारे  पैसे , अपने  गुल्लक   में  उडेलना  चाहती  है
वो  बस  कुछ  देर  मेरे  साथ    खेलना   चाहती  है ..

"बेटा  वही  सब  ऑफिस  का  काम  है
नहीं  करूँगा  तो  कैसे  चलेगा "..

जैसे  मजबूरी  भरी  दुनिया दारी  को  संभालना  है ,
और  वो  झूठा  ही  सही
लेकिन  मुझे  एह्सास   कराती  है
जैसे  सब  समझ  गयी  हो
लेकिन  आँखे  बन्द  कर  के  रोती  है ,
सपने  में  खेलते  हुए  मेरे  साथ  सोती  है
ज़िन्दगी  ना  जाने  क्यों  इतना  उलझ  जाती  है ..
और  हम  समझते  है ,
की  बेटिया  सब  समझ  जाती  है ..........



( संकलन से )

1 comment: